नई दिल्ली: स्टॉक मार्केट (Stock Market) में अक्सर यह देखा जाता है कि जब भी कोई कंपनी अपना आईपीओ (IPO) लेकर आती है तो उसमें खुदरा निवेशक कंपनी के बारे में कुछ जाने बगैर ही आईपीओ में निवेश कर देते हैं. उनके दिमाग में चलता है कि वह इस आईपीओ के जरिए तुरंत पैसा कमाएंगे पर होता उसके उलट है उनका पैसा आईपीओ में फंस जाता है. IPO निवेश से पहले इन सवालों को पूछेअगर आप अपना पैसा आईपीओ में नहीं फंसाना चाहते हैं तो आपको आईपीओ (IPO) में निवेश करने से पहले खुद से कुछ प्रश्न पूछने चाहिए. जो ये है. उस कंपनी का बिजनेस मॉडल क्या है. यह कितना टिकाऊ है. इंडस्ट्री की ग्रोथ पोटेंशियल कितनी है. अर्थव्यवस्था में किसी भी तरह का भूचाल आने पर कंपनी टिकाऊ है कि नहीं. पिछले कुछ साल के दौरान कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहा है. कंपनी अपने जैसी दूसरी कंपनियों से कैसे बेहतर है. कंपनी का मैनेजमेंट कैसा है. क्या उनका मूल्यांकन ठीक है. कंपनी के लिए रिस्क क्या है. इन सब सवालों का जवाब मिलने के बाद यह भी ध्यान रखें कि यह कंपनी अपने आप को पब्लिक कर रही है. इसके बाद जो भी उसको पैसा मिलेगा उस पैसे को कैसे और कहां इस्तेमाल करेगी. फंडामेंटल और सापेक्ष वैल्यूएशन पर ध्यान देंकहते है कि एक निवेशक को आईपीओ में कंपनी के फंडामेंटल और सापेक्ष वैल्यूएशन को ध्यान में रख कर निवेश करना चाहिए. ग्रे मार्केट में चल रही प्रीमियम जैसी खबरों को देखकर नहीं. बाजार की तेजी के वक्त कंपनियां आईपीओ लाने में पसंद करती है. उस दौरान एक निवेशक को आईपीओ में तभी निवेश करना चाहिए जब वह कंपनी बाजार के रुझान के हिसाब से प्रदर्शन करें. एक निवेशक को बाजार में FOMO का शिकार होने से बचना चाहिए. आसान भाषा में कहें तो जल्दबाजी में और छूट जाने के डर में आकर आईपीओ में निवेश ना करें. IPO का अच्छे से मूल्यांकन करें फिर उसके बाद निवेश करें. आईपीओ का लॉकिंग अवधि खत्म होने के बाद अगर प्री आईपीओ निवेशक उस स्टॉक में टिके हुए हैं तो यह उस स्टॉक के लिए एक सकारात्मक पहलू हो सकता है. जो दिखाता है कि कंपनी आगे भी अच्छा करने का दमखम रखती है. (डिस्क्लेमरः ये एक्सपर्ट/ ब्रोकरेज के निजी सुझाव/ विचार हैं. ये इकोनॉमिक टाइम्स के विचारों को नहीं दर्शाते हैं. किसी भी फंड/ शेयर में निवेश करने से पहले अपने फाइनेंशियल एडवाइजर की राय जरूर लें.) पिछले अध्याय में हमने देखा कि एक कंपनी कैसे आइडिया के स्तर से बढ़ते हुए धीरे धीरे IPO तक पहुंचती है। एक कहानी के जरिए हमने कंपनी के विकास का सफर देखा। कैसे अलग अलग स्तर पर कंपनी को पैसों की जरूरत पड़ती है और उसके पास पैसे जुटाने के क्या रास्ते होते हैं। IPO लाने से पहले कंपनी को किन हालातों से जूझना पड़ता है। Show
ये सब जानना और समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि IPO मार्केट या प्राइमरी मार्केट में कई बार ऐसी कंपनियां भी आ जाती हैं जिन्होंने पहले कभी कहीं और से पैसा उठाया ही नहीं। IPO के पहले अच्छे VC, PE फंड या और कुछ बड़े निवेशकों से पैसे जुटा चुकी कंपनियों के प्रमोटर और बिजनेस के बारे में ज्यादा जानकारी मिल जाती है इसलिए उन पर कुछ अधिक भरोसा किया जा सकता है।
5.2 कंपनियां पब्लिक से पैसा क्यों जुटाती हैं? (Why do companies go public?)पिछले अध्याय में हमने कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे। उनमें से एक था कि कंपनियां पैसे जुटाने के लिए पब्लिक के पास क्यों जाती हैं, क्यों IPO का रास्ता चुनती हैं? जब भी कोई कंपनी IPO लाने का फैसला करती है तो आमतौर पर वो कारोबार बढ़ाने के लिए कैपेक्स जुटाना चाहती है। इस रास्ते में कंपनी को तीन फायदे होते हैं :
इसके अलावा IPO के जरिए पूंजी जुटाने के कुछ और भी फायदे हैं:
तो अब पिछले अध्याय की कहानी पर वापस लौटते हैं और उसे आगे बढ़ाते हैं। आपको याद होगा कि कंपनी को कैपेक्स के लिए 200 करोड़ की जरूरत थी और मैनेजमेंट ने अपने खुद के स्त्रोतों और IPO के जरिए इस रकम को जुटाने का फैसला किया था। याद रखिए कि कंपनी के पास ऑथराइज्ड कैपिटल का 16% हिस्सा यानी 800,000 शेयर अभी भी हैं जो किसी को एलॉट नहीं किए गए हैं। इन शेयरों की कीमत करीब 64 करोड़ आँकी गई थी जब PE फर्म ने निवेश किया था। PE फर्म के निवेश के बाद से कंपनी का करोबार काफी बेहतर रहा है और उम्मीद की जा सकती है कि इन शेयरों की कीमत और ज्यादा बढ़ी होगी। मान लेते हैं कि इन 16% शेयरों की कीमत अब 125 से 150 करोड़ के बीच कहीं है। यानी हर एक शेयर की कीमत 1562 से 1875 के बीच ( 125 करोड़ / 8 लाख) तो अब अगर कंपनी इन 16% यानी 8 लाख शेयरों को पब्लिक को बेचती है तो उसे 125 से 150 करोड़ के आसपास की कोई रकम मिलेगी। बाकी रकम उसे अपने स्त्रोतों से जुटानी होगी। जाहिर है कि कंपनी चाहेगी कि उसे ज्यादा से ज्यादा पैसे शेयर बेच कर मिलें। 5.3 मर्चेंट बैंकर (Merchant Banker):IPO लाने का फैसला करने के बाद कंपनी को कई काम करने होते हैं जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसे मिल सकें। इनमें सबसे पहला और जरूरी काम है मर्चेंट बैंकर की नियुक्ति। मर्चेंट बैंकर को बुक रनिंग लीड मैनेजर (Book Running Lead Manager) या सिर्फ लीड मैनेजर (Lead Manager) भी कहते हैं। इनका काम है कंपनी को उसके IPO में मदद करना। जैसे:
मर्चेंट बैंकर के साथ आने के बाद कंपनी IPO का काम शुरू कर देती है। 5.4 IPO से जुड़े कामों का घटनाक्रम ( IPO sequence of events):IPO में हर कदम सेबी के नियमों के मुताबिक ही उठाना होता है। और ये कदम इस क्रम में उठाए जाते हैं:
5.5 IPO के बाद क्या होता है? (What happens after the IPO?)जब तक IPO या इश्यू खुला रहता है तब तक निवेशक IPO के प्राइस बैंड के भीतर अपनी पसंद की कीमत पर शेयर के लिए बोली लगा सकते हैं या बिड कर सकते हैं, तब तक इसे प्राइमरी मार्केट कहते हैं। लेकिन जैसे ही शेयर एक्सचेंज पर लिस्ट हो जाता है कोई भी उस शेयर को खरीद बेच सकता है, इसे सेकेंडरी मार्केट कहते हैं। इसके बाद शेयर की खरीद बिक्री रोजाना होने लगती है। लोग शेयर क्यों खरीदते या बेचते हैं? शेयर की कीमत ऊपर नीचे क्यों होती है? ऐसे हर सवाल का जवाब हम आने वाले अध्याय में देने की कोशिश करेंगे। आईपीओ आवंटित या नहीं की जांच कैसे करें?— आवंटन स्थिति की जांच कोई रजिस्ट्रार की वेबसाइट के माध्यम से सकता है। रजिस्ट्रार आईपीओ के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार स्वतंत्र संस्थान हैं वे आवेदन पत्रों को संसाधित करते हैं और शेयर आवंटन का भी ख्याल रखते हैं। रजिस्ट्रार की वेबसाइट के अलावा, आप आईपीओ आवंटन की स्थिति एनएसई और बीएसई की वेबसाइट पर भी देख सकते हैं।
आईपीओ में शेयरों का आवंटन कैसे होता है?जब कभी शेयरों की संख्या से अधिक आवेदन आ जाते हैं तो शेयरों का अलॉटमेंट किया जाता है. यानी अगर एक ही शेयर के लिए 50 दावेदार आ जाते हैं यानी इश्यू 50 गुना सब्सक्राइब हो जाता है तो शेयर अलॉटमेंट के जरिए ही यह तय होता है कि किसे कितने शेयर दिए जाएंगे और किसे शेयर नहीं मिलेंगे.
कैसे आईपीओ खरीद करने के लिए?अगर आप IPO में इन्वेस्ट करना चाहते है तो उसके लिए आपको डीमैट या ट्रेडिंग अकाउंट खोलना होता है। ये अकाउंट एचडीएफसी सिक्योरिटीज, आईसीआईसीआई डायरेक्ट और एक्सिस डायरेक्ट जैसे किसी भी ब्रोकरेज के पास जाकर खोला जा सकता है। इसके बाद आपको जिस कंपनी में निवेश करना है उसमें आवेदन करें।
आईपीओ को कैसे बेचे?जब आईपीओ ओपनिंग क्लोज हो जाती है तो कंपनी आईपीओ का अलॉटमेंट करती है. इस प्रोसेस में कंपनी सभी इनवेस्टर्स को आईपीओ अलॉट करती है और इनवेस्टर्स को आईपीओ अलॉट होने के बाद शेयर स्टॉक एक्सचेंज (STOCK MARKET) में लिस्ट हो जाते हैं. स्टॉक मार्केट में लिस्ट होने के बाद शेयर सेकेंड्री मार्केट में खरीदे और बेचे जाते हैं.
|