मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ० महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था। डॉ० हक ने मानव विकास का वर्णन एक ऐसे विकास के रूप में किया है जो लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है और उनके जीवन में सुधार लाता है। इस अवधारणा में सभी प्रकार के विकास का केन्द्र बिन्दु मनुष्य है। मानव विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जीना, ज्ञान प्राप्त करना तथा एक शिष्ट जीवन जीने के पर्याप्त साधनों का होना मानव विकास के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं। अत: मानव विकास ऐसा विकास है जो विकास के विकल्पों में वृद्धि करता है। ये विकल्प स्थिर नहीं बल्कि परिवर्तनशील होते हैं। लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनकी क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है। यदि इन क्षेत्रों में लोगों की क्षमता नहीं है तो विकल्प भी सीमित हो जाते हैं। जैसे एक अशिक्षित बच्चा डॉक्टर बनने का विकल्प नहीं चुन सकता क्योंकि उसका विकल्प शिक्षा के अभाव में सीमित हो गया है। इसलिए लोगों को विकास की धारा में सम्मिलित करने के लिए उनको विभिन्न विकल्पों के चयन की स्वतन्त्रता, अवसर और क्षमता में वृद्धि करना मानव विकास का मुख्य लक्ष्य है। Show (ii) मानव विकास अवधारणा के अन्तर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?
इन चारों आधारी पक्षों में से प्रथम दो पक्षों का सर्वाधिक महत्त्व है। समता का आशय एक सन्तुलित समाज या प्रदेश से है, इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना महत्त्वपूर्ण है जिससे समतामूलक समाज का सृजन हो सके और लोगों को उपलब्ध अवसर-लिंग, प्रजाति, आय और जाति के भेदभाव के विचार के बिना समान रूप से मिल सकें। भारत में स्त्रियों और सामाजिक-आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों तथा दूरस्थ क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त नहीं होते; अत: मानव विकास में इस अभाव को दूर करने का प्रयास समतामूलक विकास के माध्यम से किया जाता है। सतत पोषणीयता टिकाऊ विकास को अभिव्यक्त करती है। मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को विकास और संसाधन उपभोग के समान अवसर मिल सकें। अत: वर्तमान पीढ़ी को समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं प्राकृतिक संसाधनों का उपभोग भविष्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए। इस संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए विकास के अवसरों को कम करता है। इससे विकास का सतत चक्र अवरुद्ध हो जाता है। वर्तमान समय में पर्यावरण संसाधनों का जिस प्रकार दुरुपयोग हो रहा है उससे अनेक प्राकृतिक संसाधनों के समाप्त होने के खतरे में वृद्धि हुई है जिसे सतत पोषणीय विकास की बाधा के रूप में दर्ज किया जा सकता है। अत: मानव विकास अवधारणा की सतत पोषणीयता इसी गैर-टिकाऊ विकास की ओर सचेत करने पर बल देती है। UP Board Class 12 Geography Chapter 4 Other Important QuestionsUP Board Class 12 Geography Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर विस्तृत उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. मानव विकास का मापन, जिसे मानव विकास सूचकांक भी कहा जाता है, के अन्तर्गत स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच जैसे प्रमुख क्षेत्रों में निष्पादन के आधार पर देशों का क्रम तैयार किया जाता है। इनमें से प्रत्येक आयाम को 1/3 भार दिया जाता है। मानव विकास सूचकांक इन सभी आयामों को दिए गए भारों का कुल योग होता है। यह सूचकांक स्कोर 1 के जितना अधिक निकट होता है मानव विकास का स्तर उतना ही उच्च होता है। मानव विकास सूचकांक के आधार पर विश्व के प्रमुख समूह 2. उच्च मानव सूचकांक मूल्य वाले देश – उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देशों में वे देश सम्मिलित हैं जिनका सूचकांक 0.701 से 0.799 के बीच में है। मानव विकास प्रतिवेदन, 2016 के अनुसार इस वर्ग में 56 देश सम्मिलित हैं। उच्च मानव विकास सूचकांक वाले देश यूरोप में अवस्थित हैं और वे औद्योगीकृत पश्चिमी विश्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। फिर भी गैर-यूरोपीय देशों की संख्या आश्चर्यचकित करने वाली है, जिन्होंने इस सूची में अपना स्थान बनाया है। 3. मध्यम सूचकांक मूल्य वाले देश — मध्यम मानव विकास सूचकांक वाले देशों में वे देश सम्मिलित हैं जिनका सूचकांक 0.550 से 0.700 के बीच में है। मानव विकास प्रतिवेदन, 2016 के अनुसार इस वर्ग में कुल 41 देश हैं। इनमें से अधिकांश देशों का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद की अवधि में हुआ है। इस वर्ग के कुछ देश पूर्वकालीन उपनिवेश थे जबकि अन्य अनेक देशों का विकास सन् 1990 में तत्कालीन सोवियत संघ के विघटन के बाद हुआ है। इनमें से अनेक देश अधिक लोकोन्मुखी नीतियों को अपनाकर एवं सामाजिक भेदभाव को दूर करके तेजी से अपने मानव विकास मूल्य को सुधार रहे हैं। इस वर्ग के देशों में उच्चतर मानव विकास के मूल्य वाले देशों की तुलना में सामाजिक विविधता अपेक्षाकृत अधिक पायी जाती है। इस वर्ग के देशों ने राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक विद्रोह का सामना किया है। 4. निम्न मूल्य सूचकांक वाले देश – निम्न मूल्य सूचकांक वाले देशों में वे देश सम्मिलित हैं जिनका सूचकांक 0.549 के नीचे है। मानव विकास प्रतिवेदन, 2016 के अनुसार इस वर्ग में कुल 41 देश सम्मिलित हैं। इनमें अधिकांश छोटे देश हैं, जो राजनीतिक उपद्रव, गृहयुद्ध के रूप में सामाजिक अस्थिरता, अकाल एवं विभिन्न रोग प्रसरण की अधिक घटनाओं के दौर से गुजर रहे हैं। उन्नत नीतियों के द्वारा इस वर्ग के देशों को मानव विकास की आवश्यकताओं के समाधान की त्वरित आवश्यकता है। अतएव मानव विकास-स्तर की दृष्टि से विश्व के देशों की तुलना करने पर यह कहा जा सकता है कि उच्च-स्तर वाले देशों में राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक समृद्धि के कारण सामाजिक क्षेत्र पर अधिक निवेश किया जाना है इसलिए इन देशों में राजनीतिक परिवेश के कारण लोगों को उपलब्ध स्वतन्त्रता अधिक है जबकि अन्य देशों की स्थिति इसके विपरीत है। प्रश्न 2. 2. कल्याण उपागम – यह उपागम सरकार द्वारा मानव कल्याणकारी कार्यों में अधिकतम व्यय करके मानव विकास के स्तरों में वृद्धि करने पर बल देता है। इससे लोगों को अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस उपागम में लोग केवल निष्क्रिय प्राप्तकर्ता के रूप में होते हैं अर्थात् इसमें मानव को लाभार्थी या सभी विकासात्मक गतिविधियों के लक्ष्य के रूप में देखा जाता है। अतः कल्याण उपागम मानव विकास के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और सुख-साधनों पर उच्चतर सरकारी व्यय का पक्षपाती है। 3. आधारभूत आवश्यकता उपागम – इस उपागम को अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने प्रस्तावित किया था। इसमें छह न्यूनतम आधारभूत आवश्यकताओं; जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन, जलापूर्ति, स्वच्छता और आवास की व्यवस्था पर जोर दिया गया है। अत: यह उपागम मानव विकल्पों के प्रश्नों की उपेक्षा करता है और परिभाषित वर्गों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति को महत्त्वपूर्ण मानता है। 4. क्षमता उपागम – इस उपागम को प्रो० अमर्त्य सेन ने महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। इस उपागम में संसाधनों की मानव तक पहुँच की क्षमता में वृद्धि करने पर जोर दिया जाता है। अर्थात् मानव विकास की कुंजी मानव की संसाधन प्राप्त करने की क्षमता में वृद्धि करने में निहित है। प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5.
निम्न मानव विकास सूचकांक की विशेषताएँ
लघ उत्तरीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. वास्तव में मानव विकास सूचकांक विकास में उपलब्धियों का मापन करता है। यह दर्शाता है कि विभिन्न देशों ने मानव विकास के क्षेत्र में क्या-क्या उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। मानव गरीबी सूचकांक मानव विकास से सम्बन्धित है। यह सूचकांक मानव विकास में कमी को मापता है। मानव विकास के इन दोनों मापों का संयुक्त अवलोकन ही किसी देश में मानव विकास की स्थिति का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करता है। प्रश्न 2. प्रश्न 3. सशक्तीकरण का अर्थ – किसी क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को सामाजिक एवं आर्थिक शक्ति प्राप्त करने के विकल्पों के अवसर उपलब्ध कराना है। मनुष्य में ऐसी शक्ति बढ़ती हुई स्वतन्त्रता और क्षमता से आती है। लोगों को सशक्त करने के लिए सुशासन एवं लोकोन्मुखी नीतियों की आवश्यकता होती है। वर्तमान समय में मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से निम्न स्तर वाले पिछड़े हुए समूहों के देशों के लिए सशक्तीकरण का विशेष महत्त्व है। मानव विकास सूचकांक क्या है इसको कैसे मापा जाता है?इस वर्ष 2021 के लिए 191 देशों का मानव विकास सूचकांक जारी किया गया है। मानव विकास सूचकांक के 3 मानक हैं- शिक्षा, स्वास्थ्य और आय तथा मानव विकास। सूचकांक की गणना 4 संकेतकों- जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय द्वारा की जाती है।
आर्थिक विकास और मानव विकास एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं?आर्थिक विकास एक बहुआयामी प्रक्रिया है इसीलिए इसकी मात्रा का निर्धारण संभव नहीं है। फिर भी इसके मापन के संबंध में अनेक प्रयास किये गये हैं विकास के स्तर को मापने के लिए निम्नलिखित चार संकेतकों-प्रतिव्यक्ति आय, जीवन की भौतिक गुणवता का सूचकांक, जीवन की गुणवत्ता का सूचकांक और मानव विकास सूचकांक को अपनाया जाता है।
मानव विकास के तीन आधार क्या है?मानव विकास सूचकांक (HDI) को जीवन प्रत्याशा सूचकांक (दीर्घ और स्वस्थ जीवन), शिक्षा सूचकांक (ज्ञान), और आय सूचकांक (जीवन स्तर) के आधार पर मापा जाता है।
मानव विकास सूचकांक में आर्थिक विकास के क्या मापदंड निर्धारित किया गया है?(Human Development Index) :
इसको प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा जारी किया जाता है। सूचकांक की गणना 3 प्रमुख संकेतकों- जीवन प्रत्याशा, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष, शिक्षा के औसत वर्ष और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के अंतर्गत की जाती है।
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