Q. राजा राममोहन रॉय ने आत्मीय सभा की स्थापना बंगाल में किस वर्ष की थी?
Answer: [B] 1815
Notes: आत्मीय सभा की शुरुआत राजा राममोहन रॉय ने 1815 में कलकत्ता में की थी। इस सभा द्वारा दर्शन व सामाजिक सुधारों पर चर्चा की जाती थी। 1823 तक यह सभा निष्क्रिय हो गयी थी।
ब्रह्म समाज भारत का एक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन था जिसने बंगाल के पुनर्जागरण युग को प्रभावित किया। इसके प्रवर्तक, राजा राममोहन राय, अपने समय के विशिष्ट समाज सुधारक थे। 20 अगस्त,1828 में ब्रह्म समाज को राजा राममोहन और द्वारकानाथ टैगोर ने स्थापित किया था। इसका एक उद्देश्य भिन्न भिन्न धार्मिक आस्थाओं में बँटी हुई जनता को एक जुट करना तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करना था। उन्होंने ब्रह्म समाज के अन्तर्गत कई धार्मिक रूढियों को बंद करा दिया जैसे- सती प्रथा, बाल विवाह, जाति तंत्र और अन्य सामाजिक।
सन 1815 में राजाराम मोहन राय ने "आत्मीय सभा" की स्थापना की। वो 1828 में ब्राह्म समाज के नाम से जाना गया। देवेन्द्रनाथ ठाकुर ने उसे आगे बढ़ाया। बाद में केशव चंद्र सेन जुड़े। उन दोनों के बीच मतभेद के कारण केशव चंद्र सेन ने सन 1866 "भारतवर्षीय ब्रह्मसमाज" नाम की संस्था की स्थापना की।
सिद्धान्त
1. ईश्वर एक है और वह संसार का निर्माणकर्ता है।
2.आत्मा अमर है।
3.मनुष्य को अहिंसा अपनाना चाहिए।
4. सभी मानव समान है।
उद्देश्य
1. हिन्दू धर्म की कुरूतियों को दूर करते हुए,बौद्धिक एवम् तार्किक जीवन पर बल देना।
2.एकेश्वरवाद पर बल।
3.समाजिक कुरूतियों को समाप्त करना।
कार्य
1.उपनिषद & वेदों की महत्ता को सबके सामने लाया।
2. समाज में व्याप्त सती प्रथा,पर्दा प्रथा,बाल विवाह के विरोध में जोरदार संघर्ष।
3. किसानो, मजदूरो, श्रमिको के हित में बोलना।
4. पाश्चत्य दर्शन के बेहतरीन तत्वों को अपनाने की कोशिश करना।
उपलब्धि
- 1829 में विलियम बेंटिक ने कानून बनाकर सती प्रथा को अवैध घोषित किया।।
- समाज में काफी हद तक सुधार आया
- समाज में जाति, धर्म इत्यादि पर आधारित भेदभाव पर काफी हद तक कमी आई।
इन्हें भी देखें
पढ़े atmiya sabha in hindi आत्मीय सभा के संस्थापक कौन थे , आत्मीय सभा की स्थापना कब और किसने की थी नाम बताइए ?
प्रश्न: राजा राममोहन राय
उत्तर: आधुनिक भारत का पिता, राममोहन राय ने 1814 में कलकत्ता में अपने साथियों के सहयोग से आत्मीय सभा की स्थापना की। 1820 में प्रीसेप्टस ऑफ जीसस पुस्तक लिखी जिसमें New Testament के नैतिक एवं दार्शनिक संदेश को उसकी चमत्कारिक कहानियों से अलग करने की कोशिश की। इन्होंने The Guide to peace – Happiness, Gift of Monothestus, Presepts of zesus नामक पुस्तकें लिखी तथा संवाद कौमुदी (बंगाली), मिरात-उल-अखबार (फारसी) Cronicle Maºzine (English), पत्रिकाएं निकाली। English School Culcutta (1817), Hindu College Culcutta (1817), Vedanta College Culcutta (1825) नामक शिक्षण संस्थाएं स्थापित की तथा शिक्षा का उजियारा फैलाया। हिन्दू धर्म एवं समाज सुधार के लिए 1828 में कलकत्ता में ब्रह्म समाज की स्थापना की। इंग्लैण्ड में ब्रिस्टल नामक शहर में 1833 में मृत्यु हुई। सुभाष बोस ने इन्हें युगदूत की संज्ञा दी है।
प्रश्न: देशी रियासतों के एकीकरण की समस्या एवं उसके निदान में पटेल की भूमिका बताइये।
उत्तर: ।. देशी रियासतों के एकीकरण की समस्याएं
ऽ देशी रियासतों का स्वतंत्र रहने का दृष्टिकोण मुख्य समस्या थी।
ऽ कांग्रेस के प्रति दृष्टिकोण आलोचनात्मक था। कांग्रेस ने प्रजा मण्डल आन्दोलन में सहयोग दिया था।
ऽ देशी राजाओं के मध्य समन्वय व स्पष्ट नीति का अभाव।
ऽ विशेषाधिकारों की समाप्ति की सम्भावना।
ऽ बड़े-छोटे देशी रियासतों को भारत संघ का हिस्सा बनाने की प्रक्रिया से संबंधित समस्याएं।
ऽ भौगोलिक स्थिति, सांस्कृतिक विविधता (विभिन्न देशी रियासतों की सांस्कृतिक विविधता) व रियासतों का इधर-उधर बिखरा होना।
ठ. एकीकरण की दिशा में प्रयास व प्रक्रिया – पटेल की भूमिका
प्रथम चरण
ऽ 1947 ई. में रियासती विभाग की स्थापना।
ऽ अध्यक्ष-पटेल व सचिव-मेनन बनाए गए।
ऽ प्रवेश पत्र का निर्माण।
ऽ विलय की विशिष्ट शर्तों का निर्धारण।
ऽ शर्त का केन्द्र बिन्दु तीन विषयों का स्थानान्तरण था। रक्षा, संचार व वैदेशिक मामले।
ऽ देशी राजाओं का इन तीन क्षेत्रों पर पूर्व के काल मे भी कोई विशेष अधिकार नहीं था। इन तीन विषयों के स्थानान्तरण से उनकी स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया। जैसा कि पटेल ने विचार प्रस्तुत किया।
ऽ आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की शर्त।
ऽ उपरोक्त प्रयासों के माध्यम से उनके हितों की सुरक्षा की बात की गयी व उन्हें आश्वस्त किया गया कि भारत संघ में उनके हित सुरक्षित हैं।
द्वितीय स्तर
ऽ देशी रियासतों की अलग – थलग स्थिति के अन्तर्गत उन्हें सलाह व उनसे अपील।
ऽ अलग – थलग स्थिति उनकी असुरक्षित स्थिति को स्थापित कर सकता है।
ऽ भारत में विलय उनकी सुरक्षा को भी स्थापित करता है।
ऽ उनकी स्वतंत्र स्थिति नये खतरों, नयी चुनौतियों की दिशा में संकेत की परिचायक होगी।
तृतीय चरण
1. पटेल की राष्ट्रीय अपील।
2. देशी राजाओं की देशभक्ति की भावनाओं को उदेलित करने का प्रयास।
3. पटेल की घोषणा कि भारत मे उनका विलय भारत के लोग व देशी रियासतों की जनता दोनों के हित में है और यह उपयुक्त समय है जब विलय के माध्यम से सभी लोगों के बृहद् विकास के आधार का निर्माण कर सकते हैं।
4. पटेल की घोषणा कि देशी रियासतें, भारत संघ से कोई पृथक हिस्सा नहीं बल्कि भारत का अभिन्न अंग रहा है।
5. उपरोक्त विचारों का सम्मिलित प्रभाव। 15 अगस्त, 1947 ई. तक भारत के भौगोलिक क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली सभी देशी रियासतों (सिवाय तीन हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर) ने विलय को स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न: स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राज्यों के पुनर्गठन के प्रमुख मुद्दे कौनसे थे ? राज्यों के पुनर्गठन को भाषाई मुद्दे ने कहां तक प्रभावित किया ?
उत्तर: अंग्रेजों ने भारतीय प्रदेशों की जो सीमाएं बनाई थीं वह अस्वाभाविक और अतार्किक थी। उन्होंने प्रदेशों की सीमा निर्धारण में भाषा या संस्कृति की समस्या का कोई ध्यान नहीं रखा था। इस कारण अंग्रेजों द्वारा निर्मित ज्यादातर राज्य बहुभाषी और बहुसंस्कृति युक्त थे और बीच-बीच में देशी रियासतों की उपस्थिति ने प्रादेशिक विभाजन को और भी बेमेल बना दिया था। भाषायी आधार पर राज्यों की पुनर्गठन की सिफारिश मांटफोर्ड रिपोर्ट 1918 में भी की गई थी। कांग्रेस ने भी 1920 में औपचारिक रूप से भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का समर्थन किया और 1921 में अपने संविधान में संशोधन करके अपनी क्षेत्रीय शाखाओं को भाषायी आधार पर पुनर्गठित किया। नेहरू रिपोर्ट (1928) में भी भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की सिफारिश की गई। 1931 के भारतीय संवैधानिक कमीशन रिपोर्ट के आधार पर 1937 में भाषायी आधार पर उड़ीसा नामक राज्य का गठन किया गया।
ऽ स्वतंत्रता के बाद देश के विभाजन, देशी रियासतों के विलय एवं अन्य समस्याओं के कारण राज्यों का गठन अंतरिम व्यवस्था के रूप में ही किया गया।
ऽ इस समय पूरे देश को 19 राज्यों में बांटा गया, जो तीन श्रेणियों भाग ‘क‘, भाग ‘ख‘ तथा भाग ‘ग‘ में विभक्त थे।
ऽ भाग ‘क‘ में नौ राज्यों को, भाग ‘ख‘ में पांच राज्यों को तथा भाग ‘ग‘ में 5 राज्यों को रखा गया। इसके अलावा अंडमान निकोबार तथा अन्य केन्द्र शासित प्रदेशों को, जिन्हें भारतीय संघ में मिलाया जाना था, भाग ‘घ‘ में रखा गया।
ऽ संविधान सभा भारत में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन करने के लिए. था और इस प्रश्न को लेकर संविधान सभा ने 1948 में एस.के. दर की अध्यक्षता में एक आयोग बनाया गया।
ऽ दर आयोग ने भाषा आधार पर राज्यों के गठन को अस्वीकृत कर दिया और यह तर्क दिया कि इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा एवं प्रशासन के लिए भारी असुविधा उत्पन्न होगी।
ऽ आयोग की इस रिपोर्ट के कारण ही संविधान सभा ने संविधान के अन्दर भाषायी सिद्धांत को शामिल नहीं किया।
ऽ किन्तु भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए आंदोलन काफी तीव्र हो गया विशेष कर दक्षिण भारत और आंध्र प्रदेश में।
ऽ आंदोलन को शांत करने के लिए कांग्रेस ने दिसम्बर, 1948 में एक समिति का गठन किया, जिसके सदस्य जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल और पट्टाभि सीतारमैया थे।
ऽ इस समिति ने भाषायी राज्य के प्रश्न पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट भाषाई राज्यों के गठन के विरुद्ध दिया। समिति ने यह तर्क दिया कि इस समय देश की सुरक्षा, एकता और आर्थिक सम्पन्नता पर पहले ध्यान देने की आवश्यकता है।
ऽ समिति की रिपोर्ट के बाद पूरे देश में राज्यों के पुनर्गठन के लिए व्यापक आंदोलन शुरू हो गया। आंध्रप्रदेश के राज्य निर्माण की मांग को लेकर श्री रामालु भूख हड़ताल पर बैठ गए।
ऽ 19 अक्टूबर, 1952 से अनशन पर बैठे स्वतंत्रता सेनानी पोट्टी श्रीरामालु की 56 दिन बाद मृत्यु हो गई, इसके बाद आंध्र में हिंसा प्रारंभ हो गयी।
ऽ आंध्रप्रदेश की घटना की जांच के लिए सरकार ने डॉ. बान्चू की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया तथा आंध्रप्रदेश राज्य की मांग को स्वीकार कर लिया गया।
ऽ इस प्रकार प्रथम भाषायी राज्य आंध्र प्रदेश का गठन 1953 ई. में किया गया। इसके तुरंत बाद तमिल भाषा राज्य रूप में तमिलनाडु का गठन 1953 ई. में किया गया।
आंध्र प्रदेश में संघर्ष की सफलता के बाद अन्य भाषाई समूहों को अपने राज्यों के निर्माण या भाषाई आधार पर अपने राज्यों की सीमाओं के पुनर्गठन के लिए आंदोलन के लिए प्रोत्साहित किया।
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