एना फ़्रैक की डायरी में ऐसा क्या था?
- लुसी स्कोलस
- बीबीसी कल्चर
9 अप्रैल 2015
यह इतनी चर्चित कहानी है कि इसके बारे में ज़्यादा बताने की जरूरत नहीं है.
6 जुलाई 1942 को एना फ़्रैंक को एक डायरी मिली, लेकिन एक महीने के भीतर ही उन्हें, उनके पिता ओटो, मां एडिथ और बड़ी बहन को एम्स्टर्डम के एक गुप्त स्थान पर छिपने के लिए बाध्य होना पड़ा.
ये वही डायरी थी जो एना की मौत और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हुई. यु्द्ध (1939-1945) के दौरान नाज़ियों के यहूदियों पर किए गए अत्याचारों और जनसंहार का भी यह एक अहम दस्तावेज़़ है.
जब एना का परिवार एम्सटर्डम पहुँचा तो उनके साथ एक अन्य यहूदी परिवार रहने आया. इसमें हरमन (ओटो के साथी), ऑगस्ट वान पेल्स और उनका बेटा पीटर, फ्रिट्ज पेफर (वान पेल्स के दांतों के डाक्टर) थे.
ये सभी आठ लोग दो वर्ष और एक महीना तक (अगस्त 1944 तक) छिपे रहे जब इनके बारे में नाज़ियों को जानकारी मिल गई और उनको जबरन वहां से निकालकर यहूदियों के लिए बनाए गए यातना शिविरों में भेज दिया गया.
एना की डायरी ऑटो के कुछ सहयोगियों ने खोज निकाली और इसे सुरक्षित रखा. एना और उसकी बहन की मार्च 1945 में बरजन-बेलसेन कैंप में टॉयफ़स बीमारी से 70 साल पहले मार्च के महीने में मृत्यु हो गई.
इसके कुछ ही महीने बाद ब्रितानी और कनाडाई सैनिकों ने उस इलाक़े को नाज़ियों से मुक्त करा लिया. ऑटो महायुद्ध के बाद ज़िंदा बचा रहने वाले परिवार का अकेले व्यक्ति थे.
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एना ने 12 जून 1942 को डायरी में पहली एंट्री में जो लिखा वह इस अवयस्क डायरी लेखिका की प्रेरणा बताता है.
"मुझे उम्मीद है कि मैं तुमको सब कुछ बता पाऊँगी क्योंकि मैंने अब तक यह बात किसी से नहीं कही है, और मैं आशा करती हूँ की तुमसे मुझे चैन और सुकून मिलेगा."
इस चर्चित डायरी और अन्य उदाहरणों से हमें पता चलता है कि डायरी न केवल दैनिक जीवन के अनुभवों का ब्यौरा होता है, बल्कि इसके खाली पन्नों में लेखक अपने रहस्यों के पिटारे को भी उड़ेल सकता है.
वहां, न तो अपने अनुभवों पर किसे के फ़ैसला सुनाए जाने या अस्वीकार किए जाने का ख़तरा होता है और न ही किसी कसौटी पर परखे जाने का डर.
ख़तरा, प्रेम प्रसंग और मां-बाप की खीझ
एना फ़्रैंक की डायरी में उनके और परिजनों के जीवन पर मंडराते ख़तरे, स्कूल में उसके बचकाना प्रेम-प्रसंगों और मां-बाप की खीझ में घुलमिल जाते हैं.
किसी भी अन्य किशोरी की डायरी की तरह एना फ़्रैंक ने भी अपनी निजी बातों से ही डायरी की शुरुआत की, जो उसके खुद के लिए थी.
लेकिन मार्च 1944 में यह सब कुछ बदल गया जब उसने लंदन से होने वाले एक रेडियो प्रसारण को सुना.
इस प्रसारण में नीदरलैंड के शिक्षा, कला और विज्ञान मंत्री ने जर्मनी के अधीन अपने देश की महिला एवं पुरुषों को संबोधित किया.
उन्होंने इन आम लोगों को, ग़ुलामी के उस दौर में, अपने साधारण अनुभवों को भी 'दस्तावेज़़' के तौर पर उनका संरक्षण करने की आपील की थी.
एना ने अपनी डायरी में लिखी गयी पुरानी एंट्रीस को दोबारा पढ़ा और इन्हें प्रकाशित कराने और आम पाठकों को ध्यान में रखते हुए इन्हें दोबारा लिखना शुरू कर दिया.
67 भाषाओं में तीन करोड़ प्रतियां
चाहे वह अपने सपने को साकार होते देखने के लिए जीवित नहीं रही, उनके पिता ऑटो ने अपनी बेटी के सपने को पूरा किया और "द डायरी ऑफ़ अ यंग गर्ल" का पहला संस्करण 1947 में प्रकाशित हुआ.
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उसके बाद से इसका अभी तक 67 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है और दुनिया भर में इसकी सवा करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं और इतिहास के पन्नों में एना फ़्रैंक का नाम सदा के लिए दर्ज हो चुका है.
आलोचनात्मक और व्यावसायिक सहमति की बात करें तो यह कृति एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ और एक प्रतिभाशाली युवा लेखिका, दोनों ही दृष्टियों से एक बेहद सफल कृति है. पर यह सिर्फ इसलिए संभव हुआ क्योंकि निजी और सार्वजनिक, व्यक्तिगत अनुभव और वैश्विकता में मेल हो पाया.
छापे जाने के 70 साल बाद आज के युवा भी इसे इसलिए पढ़ते हैं क्योंकि यह पलने-बढ़ने के रास्ते में पेश आने वाली मुश्किलों का वृत्तांत भी है.
1946 में प्रकाशन के पूर्व ही इस डायरी को पढ़ने वाले नीदरलैंड के इतिहासकार जान रोमेन ने इसके बारे में लिखा, "एक बच्ची द्वारा लिखी गई, ये बहुत अहम न लगने वाली डायरी, फ़ासीवाद के दिनों के खौफ़ को समेटे हुए है और न्यूरेमबर्ग के सभी साक्ष्यों को अगर मिला भी दिया जाए तो भी यह उन पर भारी पड़ती है."
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इतिहास अगर जीवंत अनुभव नहीं तो और क्या है? हमें प्रथम स्रोत से मिलने वाली सभी सूचनाओं में छिपे पक्षपात या किसी गोपनीय एजेंडे से सावधान रहने को कहा जाता है, पर यह हमारे सामूहिक भूत का सूचनाओं से संपन्न और सबसे सशक्त वृत्तांत भी होता है.
'विनम्रता, अनादर, ख़ूबसूरती'
“मैं अपनी डायरी को किस रूप में देखना पसंद करूंगी?"
1919 में अग्रेज़ी की जानी-मीनी लेखिका वर्जीनिया वुल्फ ने एक पत्रिका में लिखा, "कुछ ऐसा जो ढीले-ढाले रूप में गढ़ा हो, पर बेतरतीब नहीं, इतना लचीला की वह मेरे मन की विनम्रता, अनादर, और खूबसूरती, इन सबको समाहित कर ले. मैं इसको एक गहरे पुराने डेस्क के रूप में देखना चाहती हूँ या फिर अच्छी खासी क्षमता वाले 'होल्ड ऑल' के रूप में, जिसमें आप जो चाहें डाल दें."
सभी प्रकाशित डायरियों में सार्वजनिक और निजी विचारों के बीच के तनाव को देखा जा सकता है. डायरियां स्वाभाविक रूप से गुप्त होती हैं, ऐसा माना जा सकता है. इसके बावजूद कि प्रकाशक ने उसको वैध तरीके से पेश किया है और उसकी अच्छी पैकेजिंग की है, उसको पढ़ना एक तरह से गोपनीयता का उल्लंघन है. एक तरह से यह इस बात को भी स्पष्ट करता है कि ये इतनी लोकप्रिय क्यों होती हैं?
एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में डायरी का अपना महत्व है.
जैसे सैमुएल पैपीज़ की डायरी से हमें लंदन के भयानक अग्निकांड और प्लेग का आँखों देखा हाल पता चलता है.
पर दृश्यरतिक डायरी लिखने वाले भी हैं, जैसे कि लेखक दीवार पर बैठी एक मक्खी की तरह हो, जो सब कुछ देख रहा हो लेकिन उसको कोई अहमियत न दे रहा हो. इन डायरियों में दुनिया का एक अलग ही दृश्य दिखता है.
अंग्रेज़ी में डोरोथी वर्ड्सवर्थ (प्रसिद्ध कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की बहन) से लेकर ऐंडी वारहोल तक, हमें इसी तरह का ग्लानि में डूबे हुए सुख का अनुभव कराते हैं.
‘मन में सहानुभूति पैदा करे’
पर कुछ ऐसे भी डायरी लिखने वाले हैं जो लिखने के क्रम में अपनी ही कथी और मिथक को आगे बढ़ाते रहते हैं. इस बारे में व्यक्तिगत उदाहरण की जगह अंग्रेज़ी साहित्य में ब्लूम्सबरी ग्रुप के नाम से जाने जाते लेखक-लेखिकाओं को लें.
आलोचक जैनेट मैल्कम पूछती हैं, "क्या उनकी जिंदगी वाकई इतनी दिलचस्प थी, या फिर चूंकि वो अपने और एक-दूसरे के बारे में इतना अच्छा और निरंतर लिखते थे, इसी वजह से हमें ऐसा लगता है?"
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डायरी अपने पाठकों का ध्यान तब आकर्षित कर पाती है जब वह उपन्यास की ही तरह अपने पाठकों के मन में सहानुभूति पैदा करती है. इसका दूसरा पहलू है काल्पनिक डायरियों - जिन्हें बच्चों के साहित्य में ख़ासा इस्तेमाल किया जाता है.
व्यंग्यकार भी डायरी की विधा को पसंद करते हैं.
1930 के दशक की मध्यवर्गीय ब्रितानी जीवन पर कटु व्यंग्य करने वाले ईएम डेलाफील्ड की द डायरी ऑफ अ प्रोविन्शियल लेडी भी इसी व्यंग्यात्मक तर्ज पर लिखी गई है. अभी हाल ही में स्यू टाउनसेंड की हास्य कृति द सीक्रेट डायरी ऑफ एड्रियन मोल, उम्र 13 साल, 1980 के दशक में एक बेस्ट-सेलर रही.
इसके सात सीक्विल बने और 1990 का दशक तो वैसे ही डायरी रखने वाली हीरोइन ब्रिजेट जोंस के लिए जाना जाता है - हेलेन फ़ील्डिंग की सिगरेट पीने वाली और व्हाइट वाइन गटकने वाली इकलौती नायिका, जो अपने मिस्टर डार्सी की तलाश में जुटी हुई है.
डायरी - असली या फिर काल्पनिक - का मुख्य आकर्षण होता है कि वह अच्छी-बुरी, साहसिक-कायरतापूर्ण, ख़ुशी से भरी- ग़मगीन, सभी घटनाओं को बेबाक पेश करे.
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यह सही नहीं कि केवल काल्पनिक डायर लिखने वाला ही एक अविश्वसनीय वाचक होता है. जीवन के बारे में हर तरह के लेखन में हम डायरी को सर्वाधिक वास्तविक मानते हैं और ये मानकर चलते हैं कि सत्य के उदघाटन के अलावा इसका कोई एजेंडा नहीं होता.
डायरी को संस्मरण, आत्मकथा या जीवनी में रूपांतरित किया जा सकता है पर डायरी खुद में बहुत ही विशुद्ध होती है.
यह अमूमन ग़लतफहमी साबित हो सकती है जिसे मैंने अपने शोध से तब समझा जब लेखक बार्बरा कोमिन की डायरियों को कई दिनों तक पढ़ने के बाद मुझे लगा कि मैं ही वो भाग्यशाली हूँ जो उसके मन के अंदर क्या चल रहा है, इस रहस्य को जानती हूँ.
मात्र एक पंक्ति ने मेरे इस सपने को तोड़ दिया. कोमिन ने लिखा था, “मैंने किसी भी महत्वपूर्ण घटना का ज़िक्र नहीं किया है, जो बताया है वो सिर्फ़ इधर-अधर की बकवास और मौसम की जानकारी है.”
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