रूपरेखा : प्रस्तावना - छात्रों में अनुशासन की वर्तमान दशा - छात्रों में अनुशासनहीनता का कारण - छात्रों में अनुशासनहीनता का उपाय - उपसंहार।
परिचय | छात्रों में अनुशासनहीनता की प्रस्तावना -अनुशासित छात्र अपने देश के लिए संपत्ति होते हैं। अतः प्रत्येक छात्र से पूर्णतया अनुशासित होने की अपेक्षा की जाती है। उसे अच्छी तरह अध्ययन करना चाहिए। उसे अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए। उसे अपने देश की विधि-व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। उसे अपना ज्यादा समय रचनात्मक गतिविधियों में बिताना चाहिए। उसे अपने देश के लिए संपत्ति बनने का प्रयास करना चाहिए। एक छात्र में अनुशासन होना बहुत जरुरी है।
छात्रों में अनुशासन की वर्तमान दशा | आज के छात्रों में अनुशासन -
परंतु, वास्तविकता इससे दूर है। दुर्भाग्यवश, इन दिनों कुछ छात्र बहुत ही अनुशासनहीन हो गए हैं। उन्होंने अध्ययन को कम महत्व देना शुरू कर दिया है। वे घृणित कार्यों में समय बिताते हैं। वे अपने शिक्षकों का सम्मान नहीं करते। उन्होंने अपने शैक्षणिक संस्थानों में विश्वास खो दिया है। फलतः, वे सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। वे हड़ताल पर चले जाते हैं।
छात्रों में अनुशासनहीनता का कारण | छात्रों का अनुशासनहीन होने का कारण | छात्रों और अनुशासनहीन -
छात्रों के ऐसे व्यवहार के पीछे कई कारण हैं। उन्हें अपने पाठ्यक्रम से संतुष्टि नहीं मिलती। अधिकतर विषय सैद्धांतिक होते हैं। छात्र उन्हें पढ़ने में आनंद नहीं लेते। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों का भी अभाव रहता है। छात्र उन विषयों में जीवन-वृत्ति की संभावनाएँ नहीं देखते जिनका वे अध्ययन करते हैं। शिक्षक और छात्र के बीच भी पहले-जैसा संबंध नहीं है। शिक्षक बस उनके पाठ्यक्रम को पूर्ण कराते हैं। वे चिंता नहीं करते कि छात्रों ने उसे समझा है या नहीं। अनेक छात्र राजनीति से जुड़ जाते हैं। अध्ययन के प्रति उनकी रुचि कम होने लगती है। ये सभी तथ्य विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता को बढ़ावा देते हैं। कुछ स्वार्थी नेताओं के कारण कुछ छात्र भ्रमित हो जाते हैं।
समस्या का समाधान | छात्रों में अनुशासनहीनता का उपाय | छात्रों का अनुशासनहीन का समाधान -
छात्रों का अनुशासनहीन का समाधान यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है। छात्रों और शिक्षकों के बीच ज्यादा संवाद होना चाहिए। राजनीति में छात्रों की संलिप्तता सीमित होनी चाहिए। छात्र का कर्तव्य अध्ययन करना है। उसे अपना अधिकांश समय अध्ययन में बिताना चाहिए। उसे अनुपयोगी चीजों में अपना समय बरबाद नहीं करना चाहिए। इन सभी प्रयत्नों से छात्रों में अनुशासनहीनता के मामले निश्चित रूप से कम होंगे।
उपसंहार -
अंत में, यह कहा जा सकता है कि हमे शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाना होगा जिससे की छात्र उसमें रूचि ले सके। शिक्षकों को समझाना होगा की छात्र के जीवन में अनुशासन का होना कितना जरुरी है। शिक्षकों को अनुशासन का महत्व के बारे में बताना होगा ताकि भविष्य में छात्र सही राह पर चल सके और अपने जीवन में एक मुकाम हासिल कर के अपना, अपने परिवार, समाज और देश का नाम रौशन कर सके और देश को बेहतर बनाने में अपना योगदान देकर देश की अर्थव्यवस्था को ओर बेहतर बना सके।
आज के भागदौड़ वाले जीवन में माता पिता के पास बच्चों की देखभाल के लिए प्राप्त समय नहीं है। बच्चे घर में नौकरों या क्रैच में महिलाओं द्वारा संभाले जा रहे हैं। माता पिता की छत्र छाया से निकलकर ये बच्चे अनुशासन में रहने के आदि नहीं हैं। विद्यालयों का वातावरण भी अब अनुशासनयुक्त नहीं है। इसका दुष्प्रभाव यह पड़ रहा है कि बच्चों के अंदर अनुशासनहीनता बढ़ रही है। वह उद्दंड और शैतान हो रहे हैं। दूसरों की अवज्ञा व अवहेलना करना उनके लिए आम बात है। परिवार के छोटे होने के कारण भी बच्चों की देखभाल भलीभांति नहीं हो पा रही है। माता-पिता उनकी हर मांग को पूरा कर रहे हैं। इससे छात्रों में स्वच्छंदता का विकास होने लगा है और वे अनुशासन से दूर होने लगे हैं। अनेक आपराधिक व असभ्य घटनाओं का जन्म होने लगा है। अल्पवयस्क छात्र-छात्राएं अनेक गलत कार्यों में संलग्न होने लगे हैं।
अत: हमें चाहिए कि बच्चों को प्यार व दुलार के साथ अनुशासन में रखें। जैसा कि कहा भी गया है कि ‘’अति की भली न वर्षा, अति की भली न धूप अर्थात अति हमेशा खतरनाक एवं नुकसानदेह होता है। इसलिए अभिभावकों को बच्चों के साथ सख्ती के साथ-साथ बच्चों को समझाना चाहिए। शिक्षकों का सही मार्गदर्शन भी छात्र-छात्राओं में नैतिक एवं भावनात्मक बदलाव तथा जागृति लाता है। अभिभावको तथा शिक्षकों का संयुक्त योगदान बच्चों के विकास हेतू आवश्यक है। हमारे जीवन मे ‘अनुशासन’ एक ऐसा गुण है, जिसकी आवश्यकता मानव जीवन में पग-पग पर पड़ती है। इसका प्रारंभ जीवन में बचपन से ही होना चाहिये ओर यही से ही मानव के चरित्र का निर्माण हो सकता है। अनुशासन शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है - अनु, शास्, अन,। विशेष रूप से अपने ऊपर शासन करना तथा शासन के अनुसार अपने जीवन को चलाना ही अनुशासन है। अनुशासन राष्ट्रीय जीवन का प्राण है। यदि प्रशासन, स्कूल समाज, परिवार सभी जगह सब लोग अनुशासन में रहेंगे और अपने कर्त्तव्य का पालन करेंगे, ज़िम्मेदारी समझेंगे तो कहीं किसी प्रकार की गड़बड़ी या अशांति नहीं होगी।
डॉ. जीडी शर्मा
कुलपति, बिलासपुर यूनिवर्सिटी
सिटी एडवाइस-एजुकेशन
छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता का एक करण ये भी है की आजकल शिक्षा संस्थाये राजनीति के अखाड़े बन गई है। वहाँ निष्ठावान ओर चरित्रवान शिक्षको की कमी रहती है। प्रबंध समिति के अयोग्य रिश्तेदारों को प्रायः शिक्षक जैसे जिम्मेदार पद पर नियुक्त कर दिया जाता है। ये शिक्षक स्वयं किसी अनुशासन को स्वीकार नही करते फिर उनके द्वारा पढ़ाए गये शिष्य ही किसी अनुशासन को कैसे स्वीकार कर सकते है?
(3) चलचित्र ओर फैशन
चलचित्र ओर फैशन ने भी विद्यर्थियों में अनुशासनहीनता फैलाने में कमी नही छोड़ी है। चलचित्र की भोंडी ओर विषैली दृश्यावलियों ने हमारे छात्रों की मानसिकता को छीन बना दिया है। फैशन ने अनुशासनहीनता के बढ़ाने में “आग में घी” वाला काम किया है। आज का छात्र फैशन में इतना फंस गया है कि अपने मुख्य लक्ष्य ज्ञानर्जन को भी भूल गया है।
राजनीतिक दल:- राजनीतिक दल भी अनुशासनहीनता को बढावा देने वाले मुख्य स्रोत है। इन दलों के नेता कोमल मन वाले छात्रों को भड़का कर अपना स्वार्थ सिद्ध करते है। जब ये नेता कुर्सी पर होते है, तो कहते है कि छात्रों को राजनीति से दूर रहकर अनुशासित जीवन व्यतीत करना चाहिए ,लेकिन जब कुर्सी से अलग होते है। तो उन्हें राजनीति के दलदल में फंसने की सलाह देते है।
अनुशासनहीनता का समाधान
निरंतर बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखकर ही नेहरूजी ने कहा था–“छात्रों में जो स्टिरिक्त शक्ति है,यदि दूसरे साधनों की ओर मोड़ दिया जाए, तो अनुशासनहीनता की समस्या सुलझ सकती है।” डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी विधार्थियो को अनुशासित बनने का सुझाव दिया था। छात्रों में व्याप्त अनुशासनहीनता को दूर करने के लिए यह भी आवश्यक है कि मैकाले की शिक्षा-पद्धति के स्थान पर ऐसी शिक्षा पद्धति का विकास किया जाय, जो छात्रों को व्यवसाय -कुशल बना सके। शिक्षा संस्थाओं में व्याप्त वातावरण को सुधारने की दिशा में ठोस प्रयत्न किए जाने चाहिए । अच्छे चल-चित्रादि दिखाए जाये , ताकि उनकी मानसिकता को स्वस्थ बनाया जा सके। राजनीतिज्ञा को भी चाहिए कि देश की नयी पीढ़ी को तबाही की राह पर न डालें।