Mahabharat 3rd May Episode online Updates: श्री कृष्ण के ज्ञान से अर्जुन के मन में युद्ध से पूर्व पैदा होने वाली तमाम शंका धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। भगवान ने अर्जुन से कहा कि ये युद्ध किसी के स्वार्थ का हिस्सा नहीं है बल्कि…
Mahabharat 3rd May Episode online Updates: भगवान कृष्ण के द्वारा मिले ज्ञान और उनके अविनाशी चर्तुरभुजी रूप के दर्श करके अर्जुन को अब यकीन हो गया है कि इस युद्ध में वो अपनों के विरुद्ध नहीं बल्कि अधर्म के विरुद्ध युद्ध कर रहा हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा मेरी ही भक्ति में मन को लगा जो चिंतन करे मेरा ही सदा निरंतर जो मुझमें लगे रहते हैं, मैं उनका योग और कार्य दोनों पूर्ण करता हूं। भगवान ने अर्जुन से कहा कर त्याग मोह का तू इस लोग में कर्म कर। सफलता या असफलता जो भी मिले मन को रख दोनों में ही समान है अर्जुन इसी क्षमाता का योग नाम।
इससे पूर्व भगवान श्री कृष्ण के ज्ञान से अर्जुन के मन में युद्ध से पूर्व पैदा होने वाली तमाम शंका धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं। भगवान ने अर्जुन से कहा कि ये युद्ध किसी के स्वार्थ का हिस्सा नहीं है बल्कि समाज के कल्याण हेतु इस युद्ध का होना अनिवार्य है। श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कर्मयोगी बनो पार्थ इसी में सबका कल्याण हैं। यदि तुम अपने कर्तव्य के पालन से भागोगे तो फिर अपने कर्तव्यों का पालन कौन करेगा।समस्त संसार मेरी इच्छा अनुसार चलता है, किंतु फिर भी मैं कर्म करता हूं। क्योंकि जिस दिन मैंने कर्म करना छोड़ दिया, तो ये कर्मचक्र रुक जाएगा और कोई भी इसका निर्वाह नहीं करेगा।
वहीं इससे पूर्व महाभारत की रणभूमि सज चुकी है, अपने सामने अपने परिवार के बड़ों को युद्ध भूमि में देख अर्जुन परेशान हो गया। इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने उसे समझाया ये युद्ध धर्म और अधर्म के बीच है और धर्म के मार्ग में आने वाला प्रत्येक व्यक्ति इस संसार के लिए उस कांटे की भांति है जो कमल तक नहीं पहुंचने देता। रिश्ते नातों से बढ़कर धर्म है। आज तुम्हारे पितामह भीष्म और गुरुद्रोण जैसे योद्धा धर्म के मार्ग को रोक रहे हैं। ऐसे में शस्त्र उठा कर न्याय और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध अनिवार्य है।
वहीं अपनों के साथ युद्ध करने से पूर्व अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि वो अपने ही परिवार के लोगों से युद्ध नहीं कर पाएंगे। वह युद्ध के मैदान में अपने लोगों का वध नहीं कर सकते। अर्जुन कहते हैं कि इन पर हमला करने से अच्छा है कि मैं इन हाथों से भिक्षा मांगू। युद्ध भूमि में अपने परिजनों को देख अर्जुन बहुत ज्यादा व्याकुल हो जाते हैं। अर्जुन वासुदेव कृष्ण से कहते हैं कि उनके लिए अब युद्ध करना संभव नही है। अर्जुन कृष्ण से विनती करते हैं कि ऐसे स्थिति में वो ही कोई मार्ग दिखाएं।