भगवान कृष्ण की बांसुरी कहां से आई - bhagavaan krshn kee baansuree kahaan se aaee

जानिए, कौन थी बांसुरी अौर कैसे मिला जड़ रूप में जन्म

मुरली के मधुर स्वरों ने गोपियों के ह्रदयों में प्रेम की अथाह तरंगों का सृजन करके उन में प्रेमोल्लास भर दिया। वे उस मुरली के माध्यम से श्री कृष्ण के ध्यान में खो जातीं। भगवान

मुरली के मधुर स्वरों ने गोपियों के ह्रदयों में प्रेम की अथाह तरंगों का सृजन करके उन में प्रेमोल्लास भर दिया। वे उस मुरली के माध्यम से श्री कृष्ण के ध्यान में खो जातीं। भगवान श्री कृष्ण की मुरली शब्द ब्रह्मा का प्रतीक थी। मुरली वास्तव में पूर्वकाल में ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सरस्वती जी थी। किंतु संयोग वश ब्रह्मा जी के श्राप के कारण जड़ होने से पूर्व उन्होंने एक हजार वर्ष तक प्रभु-प्राप्ति के लिए तप किया, प्रभु ने प्रसन्न होकर कृष्णावतार में अपनी सहचरी बनाने का वरदान सरस्वती जी को दिया। तब उन्होंने ब्रह्मा जी के श्राप को याद करके प्रभु से कहा, ‘मुझे तो जड़ बांस के रूप में जन्म लेने का श्राप मिला है।’

यह सुनकर प्रभु ने कहा,‘नि:सन्देह तुम्हें चाहे जड़ रूप में जन्म मिले, फिर भी मैं तुम्हें अपनाऊंगा तुम में ऐसी प्राण-शक्ति भर दूंगा कि तुम एक विलक्षण चेतना का अनुभव करोगी और अपनी जड़ों को चैतन्य बनाए रख सकोगी।’

अस्तु तदाेपरान्त सरस्वती जी का जन्म मुरली रूप में हुआ आैर वे विश्व वंदनीय प्रभु की प्रिय मुरली बन गई। मुरली सब जड़ चेतन के मन काे चुरा लेती है आैर भगवान् श्री कृष्ण इसे सदा अधेराें के साथ लगाए रखते हैं। ऐसे ही बरकरार गाेपियां मुरली काे छिपा देती हैं आैर अनेक ढंग से श्री कृष्ण काे खिझाती हैं।

एक बार कृष्ण काे यह जानने की इच्छा हुई कि अभी इष्टदेव प्रसन्न हुए या नहीं इसके लिए बांसुरी की परीक्षा चली। एक दिन वास्तव में वेणुवादन करते ही यमुना की गति रूक गई। फिर एक दिन वृंदावन के पाषाण वंशी ध्वनि काे श्रवन कर द्रवीभूत हाे गए पशु-पक्षी, देवताआें के विमान आदि की गति भी रूक गई, सब स्तब्ध हाे गए। इस प्रकार जब पूर्ण वंशी की परीक्षा हाे गई ताे श्यामसुंदर ने आज ब्रजगाेपांगनाआें के लिए उसे बजाया। उस वेणुगीत काे जैसे श्री ब्रजांगनाआें ने सुना वैसे ही आैराें ने भी सुना परंतु रसिकता के अभाववश आैराें पर उसका प्रभाव न हुआ। वेणुवादन दूर वृंदावन में हुआ आैर  गाेपांगनाएं ब्रज में थीं अत: उन्हाेंने दूर हाेने के कारण स्पष्ट नहीं सुना, सुनते ही मूर्छित हाे गईं।

कुछ दिन बाद उनकी मूर्छा भंग हुई। श्री ब्रज-सीमन्तनियाें ने वेणुगीत सुना आैर दूसराें ने वेणु कूजन सुना, कूजन में अर्थ-विहीन केवल धवनि मात्र हाेती है परंतु गीत सार्थक अर्थ युक्त हाेता है। जिन ब्रजदेवियाें ने वेणुगीत सुना उनके अंत करण में किशाेर श्यामसुंदर का सुंदर स्वरूप अभिव्यक्त हुआ। ब्रह्म, रूद्र, इंद्र आदि ने भी वेणुकूजन सुना। सभी एक विषेश भाव में मुग्ध ताे हुए, किसी की समाधि भंग हुई परंतु किसी काे उसका तात्विक रहस्य निश्चिंत रूपेण ज्ञात न हाे सका चतुर्दश भुवनाें में वंशी का स्वर गूंज उठा।

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बांसुरी पूर्व जन्म में कौन थी?

ऋषि दधीचि वही महान ऋषि है जिन्होंने धर्म के लिए अपने शरीर को त्याग दिया था व अपनी शक्तिशाली शरीर की सभी हड्डियां दान कर दी थी। उन हड्डियों की सहायता से विश्कर्मा ने तीन धनुष पिनाक, गांडीव, शारंग तथा इंद्र के लिए व्रज का निर्माण किया था। शिव जी​ ने उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया।

भगवान कृष्ण की बांसुरी का नाम क्या था?

कृष्ण की लंबी बांसुरी (बंशी) का नाम महानंदा या सम्मोहिनी था, इससे अधिक लंबी बांसुरी का नाम आकर्षिणी एवं सबसे बड़ी बांसुरी का नाम आनंदिनी था.

कृष्ण की बांसुरी किसकी बनी थी?

शिव को ध्यान आया कि उनके पास ऋषि दधीचि की महाशक्तिशाली हड्डी पड़ी है. फिर क्या था शिव जी​ ने उस हड्डी को घिसकर एक सुंदर बांसुरी बना ली. इसके बाद भगवान शिव गोकुल पहुंचे और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से भेंट की. भगवान शिव ने यह बांसुरी श्रीकृष्ण को भेंट में दी.

कृष्ण भगवान ने बांसुरी क्यों तोड़ी थी?

कृष्ण जानते थे कि उनका प्रेम अमर है, बावजूद वे राधा की मृत्यु को बर्दाश्त नहीं कर सके. कृष्ण ने प्रेम के प्रतीकात्मक अंत के रूप में बांसुरी तोड़कर झाड़ी में फेंक दी. उसके बाद से श्री कृष्ण ने जीवन भर बांसुरी या कोई अन्य वादक यंत्र नहीं बजाया.

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