भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग कौन-से हैं? हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीप पठार के उच्चावच लक्षणों में क्या अंतर है?
भारत के भू-आकृतिक विभाग निम्नलिखित है-
हिमालय पर्वत
उत्तरी मैदान
प्रायद्वीप पठार
भारतीय मरुस्थल
तटीय मैदान
हिमालय क्षेत्र तथा प्रायद्वीप पठार के उच्चावच लक्षणों में अंतर इस प्रकार है-
हिमालय | प्रायद्वीपीय पठार |
(i) हिमालय भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। (ii) यह बहुत ऊँची पर्वतीय दीवार बनता है। (iii) उत्तर-दक्षिण में हिमालय पर्वत की तीन श्रंखलाएँ है-हिमांद्री, हिमाचल, शिवालिक। (iv) पूर्व-पश्चिम हिमालय में पंजाब हिमालय, कुमाऊँ, नेपाल हिमालय, असम हिमालय शामिल है। (v) माउंट एवरेस्ट, कंचनजुंगा धौलागिरी आदि विश्व के सबसे ऊँचे शिखर है जो हिमालय में स्थित है। इनमे से कुछ 8,000 मीटर ऊँचे है। (vi) हिमालय के जो ऊँचे क्षेत्र है वे हमेशा बर्फ से ढके रहते है। यहाँ कई हिमानिया स्थित है, जहाँ से बारहमासी नदियों का उद्धभव होता है इन्हे हिम व वर्षा दोनों से जल प्राप्त होता है। (vii)ये नवीन वलित पर्वत हैl इनका निर्माण भूगर्भीय काल में 'टेथिस' भू-अभिनति के अवसादी चट्टान के वलित होने के कारण हुआ है। |
(ii) यह उत्तर से चौड़ा और दक्षिण से संकरा है। (iii)प्रायद्वीपीय पठार के प्रमुख रूप दो विभाजन है-दक्षिण का पठार और मध्य उच्चभूमि। (iv) इस क्षेत्र में इस तरह का कोई विभाजन नहीं है। पश्चिम से पूर्व के अंतर्गत मालवा, बुंदेलखंड तथा छोटा नागपुर का पठार शामिल है। (v) ये क्षेत्र उँचाई में कम है इनकी सबसे ऊँची चोटी अनाइमुंडी है जो 2,695 मीटर है। (vi) यहाँ सदा बर्फ नहीं रहती नदियों को केवल वर्षा से ही जल प्राप्त होता है, इसलिए वे मौसमी नदिया होती है। (vii)प्रायद्वीपीय पठार प्राचीनतम भू-भाग का एक हिस्सा है क्रिस्टलीय, आग्नेय व रूपांतरित शैलों से इनका निर्माण हुआ। |
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एक स्थलीय भाग जो तीन ओर से समुन्द्र से घिरा हो-
तट
प्रायद्वीप
द्वीप
द्वीप
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गोवा के दक्षिण में स्थित पश्चिमी तटीय पट्टी-
कोरोमंडल
कन्नड़
कोंकण
कोंकण
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भूगर्भीय प्लेटें क्या है?
जो सघन अर्धतरल चट्टानों के ऊपर तैरती रहती है। उन्हें भूगर्भीय प्लेटें कहते है। इसके दो प्रकार होते है-महाद्वीप और महासागरीय प्लेटें।
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भारत के पूर्वी भाग में म्यांमार की सीमा का निर्धारण करने वाले पर्वतों का सयुंक्त नाम-
हिमाचल
पूर्वांचल
उत्तरांचल
उत्तरांचल
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पूर्वी घाट का सर्वोच्च शिखर-
अनाई मुडी
महेंद्रगिरी
कंचनजुंगा
कंचनजुंगा
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- भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग-
1-भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग हैं :
1- हिमालय पर्वत
2-उत्तरी मैदान
Table of Contents
- 1-भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग हैं :
- 2-भारत की जलवायु-
- 2-भारत के दीप समूह-
- 3-हिमालय पर्वत का भारत के लिए आर्थिक महत्व-
3-प्रायद्वीपीय पठार
इन्हें भी पढ़ें:- उत्तर के विशाल मैदान मैं कौन-कौन से नदी तंत्र है?
4-भारतीय मरुस्थल
5-तटीय मैदान
6-द्वीप माला
2-भारत की जलवायु-
भारत की जलवायु में काफ़ी क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है और जलवायवीय तत्वों के वितरण पर भारत की कर्क रेखा पर अवस्थिति और यहाँ के स्थलरूपों का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमें हिमालय पर्वत और इसके उत्तर में तिब्बत के पठार की स्थिति, थार का मरुस्थल और भारत की हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर अवस्थिति महत्वपूर्ण हैं।
हिमालय श्रेणियाँ और हिंदुकुश मिलकर भारत और पाकिस्तान के क्षेत्रों की उत्तर से आने वाली ठंडी कटाबैटिक पवनों से रक्षा करते हैं। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में कर्क रेखा के उत्तर स्थित भागों तक उष्णकटिबंधीय जलवायु का विस्तार पाया जाता है। थार का मरुस्थल ग्रीष्म ऋतु में तप्त हो कर एक निम्न वायुदाब केन्द्र बनाता है जो दक्षिण पश्चिमी मानसूनी हवाओं को आकृष्ट करता है।
और जिससे पूरे भारत में वर्षा होती है। कोपेन के वर्गीकरण का अनुसरण करने पर भारत में छह जलवायु प्रदेश परिलक्षित होते हैं। लेकिन यहाँ यह अवश्य ध्यान रखना चाहिये कि ये प्रदेश भी सामान्यीकरण ही हैं।
और छोटे और स्थानीय स्तर पर उच्चावच का प्रभाव काफ़ी भिन्न स्थानीय जलवायु की रचना कर सकता है। भारतीय जलवायु में वर्ष में चार ऋतुएँ होती हैं: जाड़ा, गर्मी, बरसात और शरदकाल। तापमान के वितरण मे भी पर्याप्त विविधता देखने को मिलती है। समुद्र तटीय भागों में तापमान में वर्ष भर समानता रहती है लेकिन उत्तरी मैदानों और थार के मरुस्थल में तापमान की वार्षिक रेंज काफ़ी ज्यादा होती है।
वर्षा पश्चिमी घाट के पश्चिमी तट पर और पूर्वोत्तर की पहाड़ियों में सर्वाधिक होती है। पूर्वोत्तर में ही मौसिनराम विश्व का सबसे अधिक वार्षिक वर्षा वाला स्थान है। पूरब से पश्चिम की ओर क्रमशः वर्षा की मात्रा घटती जाती है और थार के मरुस्थलीय भाग में काफ़ी कम वर्षा दर्ज की जाती है।
भारतीय पर्यावरण और यहाँ की मृदा, वनस्पति तथा मानवीय जीवन पर जलवायु का स्पष्ट प्रभाव है। हाल में वैश्विक तापन और तज्जनित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की भी चर्चा महत्वपूर्ण हो चली है। मौसम और जलवायु किसी स्थान की दिन-प्रतिदिन की वायुमंडलीय दशा को मौसम कहते हैं और मौसम के ही दीर्घकालिक औसत को जलवायु कहा जाता है।
दूसरे शब्दों में मौसम अल्पकालिक वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है और जलवायु दीर्घकालिक वायुमंडलीय दशा को दर्शाता है। मौसम व जलवायु दोनों के तत्व समान ही होते हैं, जैसे-तापमान, वायुदाब, आर्द्रता आदि। मौसम में परिवर्तन अल्पसमय में ही हो जाता है और जलवायु में परिवर्तन एक लंबे समय के दौरान होता है। .
2-भारत के दीप समूह-
भारत में कुल 247 द्वीप है जिनमें से 204 द्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित है अरब सागरीय द्वीप प्रवाल भित्ति द्वारा तथा बंगाल की खाड़ी के द्वीप टरशियरी पर्वत निर्माण कारी धरातलीय विशेषता रखते हैं।
3-हिमालय पर्वत का भारत के लिए आर्थिक महत्व-
हिमालय श्रेणियाँ भारत के लिए निम्न दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं –
1. सामरिक महत्व – एक भौतिक बाधा के रूप में हिमालय भारत-चीन के मध्य एक प्राकृतिक सीमा प्रदान करता है ।
2. जलवायु महत्व – ग्रीष्मकाल में हिमालय दक्षिणी-पश्चिमी जलवाष्प-युक्त मानसूनी हवाओं को रोककर देश में पर्याप्त वर्षा करता है । पुनः शीतकाल में साइबेरिया की ठंडी हवाओं को रोक कर यह देश को अपेक्षाकृत गर्म रखता है । यही कारण है कि यद्यपि देश का अधिकांश भाग कर्क रेखा के उत्तर अर्थात् शीतोष्ण
कटिबन्ध में स्थित है किन्तु इस जलवायु उपोष्ण या उष्णकटिबन्धीय है ।
3. आर्थिक महत्व – हिमालय निम्न रूपों में आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है –
(i). शंक्वाकार वन तथा उनसे औद्योगिक मुलायम लकड़ी की प्राप्ति ।
(ii). पशुचारण के लिए जम्मू-कश्मीर में मर्ग तथा उत्तर प्रदेश हिमालय में बुग्याल एवं पयाल जैसे विस्तृत घास के क्षेत्र हैं ।
(iii) विभिन्न खनिजों, जैसे-चूनापत्थर, स्लेट, नमक-चट्टान तथा कोयला की प्राप्ति ।
(iv)चाय के बागों तथा फलोद्यान के लिए ढ़लुआ जमीन की उपलब्धता । ग्रीष्मकाल में गेहूँ, आलू तथा मक्का जैसी फसलों का सीढ़ीनुमा खेतों पर उत्पादन ।
(v) पेय, सिंचाई एवं औद्योगिक उद्देश्यों हेतु मीठे जल की नदियाँ, जो हिमनद-पूरित तथा सतत् बहती हैं ।
(vi) गंगा के मैदान में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप ।
(vii) विभिन्न पर्वतीय पर्यटक स्थल, जैसे-श्रीनगर, शिमला, मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा तथा विभिन्न धार्मिक केन्द्रों, जैसे – बद्रीनाथ, केदारनाथ आदि की स्थिति ।
(viii) जलविद्युत परियोजनाओं; जैसे – भाखड़ा-नांगल, पार्वती तथा पोंग (हिमाचल प्रदेश) दुलहस्ती तथा किशनगंगा (जम्मू-कश्मीर) टिहरी जलविद्युत परियोजना (उत्तरांचल प्रदेश) आदि की स्थिति ।
(ix) विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों की प्राप्ति ।