भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक के लेखक कौन थे? - bhaarat ke pratham svatantrata sangraam pustak ke lekhak kaun the?

1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम : कार्ल मार्क्स द्वारा हिंदी पीडीऍफ पुस्तक | 1857 Bharat Ka Pratham Swatantrata Sangram  : by Karl Marx Hindi PDF Book

भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक के लेखक कौन थे? - bhaarat ke pratham svatantrata sangraam pustak ke lekhak kaun the?

पुस्तक का नाम / Name of Book : 1857 भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम / 1857 Bharat Ka Pratham Swatantrata Sangram

पुस्तक के लेखक / Author of Book : कार्ल मार्क्स / Karl Marx

पुस्तक की भाषा / Language of Book : हिंदी / Hindi

पुस्तक का आकर / Size of Ebook : 3.8 MB

कुल पन्ने / Total pages in ebook : 271

पुस्तक डाउनलोड स्थिति / Ebook Downloading Status  : Best 

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पुस्तक का विवरण : 1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और भारतीय विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। यह विद्रोह दो वर्षों तक भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चला। इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी मास तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया जो अगले 10 वर्षों तक चला…………..

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Description about eBook : The Indian Rebellion of 1857, also known as the First Indian Freedom Struggle, the Sepoy Mutiny and the Indian Rebellion, was an armed revolt against the British rule. This revolt ran in different regions of India for two years. The rebellion started with small clashes and arson in the cantonment areas, but by January, it took a bigger form. The end of the rebellion took place with the end of East India Company rule in India and a direct rule of British crown was initiated across India, which lasted for the next 10 years……………..

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One Quotation / एक उद्धरण

“जब किसी व्यक्ति द्वारा अपने लक्ष्य को इतनी गहराई से चाहा जाता है कि वह उसके लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार होता है, तो उसका जीतना सुनिश्चित होता है।”

– नेपोलियन हिल


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“When a man really desires a thing so deeply that he is willing to stake his entire future on a single turn of the wheel in order to get it, he is sure to win.” 

१८५७ का स्वातंत्र्य समर (मूल मराठी नाम : १८५७चे स्वातंत्र्यसमर) एक प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ है जिसके लेखक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर थे। इस ग्रन्थ में उन्होंने तथाकथित 'सिपाही विद्रोह' का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। यह ग्रन्थ को प्रकाशन से पूर्व ही प्रतिबन्धित होने का गौरव प्राप्त है। अधिकांश इतिहासकारों ने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक 'सिपाही विद्रोह' या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर किया गया था।

सावरकर ने १८५७ की घटनाओं को भारतीय दृष्टिकोण से देखा। स्वयं एक तेजस्वी नेता व क्रांतिकारी होते हुए, वे १८५७ के शूरवीरों के साहस, वीरता, ज्वलन्त उत्साह व दुर्भाग्य की ओर आकर्षित हुए। उन्होंने इस पूरी घटना को उस समय उपलब्ध साक्ष्यों व पाठ सहित पुनरव्याख्यित करने का निश्चय किया। उन्होंने कई महीने इण्डिया ऑफिस पुस्तकालय में इस विषय पर अध्ययन में बिताए। सावरकर ने पूरी पुस्तक मूलतः मराठी में लिखी व १९०८ में पूर्ण की। क्योंकि उस समय इसका भारत में मुद्रण असम्भव था, इसकी मूल प्रति इन्हें लौटा दी गई। इसका मुद्रण इंग्लैंड व जर्मनी में भी असफाल रहा। इंडिया हाउस में रह रहे कुछ छात्रों ने इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद किया और अन्ततः यह पुस्तक १९०९ में हॉलैंड में मुद्रित हुयी। इसका शीर्षक था, 'द इण्डियन वार ऑफ इंडिपेन्डेंस – 1857'। इस पुस्तक का द्वितीय संस्करण लाला हरदयाल द्वारा गदर पार्टी की ओर से अमरीका में निकला और तृतीय संस्करण सरदार भगत सिंह द्वारा निकाला गया। इसका चतुर्थ संस्करण नेताजी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा सुदूर-पूर्व में निकाला गया। फिर इस पुस्तक का अनुवाद उर्दु, हिंदी, पंजाबी व तमिल में किया गया। इसके बाद एक संस्करण गुप्त रूप से भारत में भी द्वितीय विश्वयुद्ध के समाप्त होने के बाद मुद्रित हुआ। इसकी मूल पाण्डुलिपि मैडम भीकाजी कामा के पास पैरिस में सुरक्षित रखी थी। यह प्रति अभिनव भारत के डॉ॰ क्यूतिन्हो को प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान पैरिसम संकट आने के दौरान सौंपी गई। डॉ॰ क्युतिन्हो ने इसे किसी पवित्र धार्मिक ग्रन्थ की भांति ४० वर्षों तक सुरक्षित रखा। भारतीय स्वतंत्रता उपरान्त उन्होंने इसे रामलाल वाजपेयी और डॉ॰ मूंजे को दे दिया, जिन्होंने इसे सावरकर को लौटा दिया। इस पुस्तक पर लगा निषेध अन्ततः मई, १९४६ में बंबई सरकार द्वारा हटा लिया गया।

पुस्तक में उठाए गये मुद्दे[संपादित करें]

पुस्तक लेखन से पूर्व सावरकर के मन में अनेक प्रश्न थे –

  • (1) सन् 1857 का यथार्थ क्या है?
  • (2) क्या वह मात्र एक आकस्मिक सिपाही विद्रोह था?
  • (3) क्या उसके नेता अपने तुच्छ स्वार्थों की रक्षा के लिए अलग-अलग इस विद्रोह में कूद पडे़ थे, या वे किसी बडे़ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक सुनियोजित प्रयास था?
  • (4) योजना का स्वरूप क्या था?
  • (5) क्या सन् 1857 एक बीता हुआ बन्द अध्याय है या भविष्य के लिए प्रेरणादायी जीवन्त यात्रा?
  • (6) भारत की भावी पीढ़ियों के लिए 1857 का संदेश क्या है?

उन्हीं ज्वलन्त प्रश्नों का उत्तर ढ़ूढने की परिणति थी, 1857 का स्वातंत्र्य समर ।

सावरकर जी द्वारा रचित इतिहास के इस महान रचना ने सन् 1914 के गदर आन्दोलन से 1943-45 की आजाद हिन्द फौज तक कम-से-कम दो पीढ़ियों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा दी। मुम्बई की ‘फ्री हिन्दुस्तान’ साप्ताहिक पत्रिका में मई 1946 में ‘सावरकर विशेषांक’ प्रकाशित किया, जिसमें के.एफ. नरीमन ने अपने लेख में स्वीकार किया कि आजाद हिन्द फौज की कल्पना और विशेषकर रानी झाँसी रेजीमेन्ट के नामकरण की मूल प्रेरणा सन 1857 की महान क्रान्ति पर वीर सावरकर की जब्तशुदा रचना में ही दिखाई देती है। उसी अंक के 'वेजवाडा की गोष्ठी' नामक पत्रिका के संपादक जी.वी. सुब्बाराव ने लिखा कि यदि सावरकर ने 1857 और 1943 के बीच हस्तक्षेप न किया होता तो मुझे विश्वास है कि ‘गदर’ शब्द का अर्थ ही बदल गया होता। यहां तक कि अब लॉर्ड वावेल भी इसे एक मामूली गदर कहने का साहस नहीं कर सकता। इस परिवर्तन का पूरा श्रेय सावरकर और केवल सावरकर को ही जाता है।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पुस्तक के लेखक कौन थे?

१८५७ का स्वातंत्र्य समर
लेखक
विनायक दामोदर सावरकर
मूल शीर्षक
१८५७चे स्वातंत्र्यसमर
देश
भारत
भाषा
मराठी, अंग्रेजी
१८५७ का स्वातंत्र्य समर - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › १८५७_का_स्वातंत्र्य_समरnull

भारत का पहला लेखक कौन था?

भारत की खोज पुस्‍तक को क्‍लासिक का दर्जा हासिल है। नेहरू जी ने इसे स्‍वतंत्रता आंदोलन के दौर में 1944 में अहमदनगर के किले में अपने पाँच महीने के कारावास के दिनों में लिखा था। ... .

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नेता कौन थे?

स्वर्णकार भवन में आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधन कर रहे थे। मात्र 38 वर्ष की आयु में काबुल में 1863 को उनका स्वर्गवास हो गया।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत कब हुई थी?

1857भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन / शुरू होने की तारीखnull