भारत विभाजन का प्रभाव
First Published: October 31, 2021
भारत के विभाजन ने भारत और पाकिस्तान दोनों देशों को पूरी तरह से तबाह कर दिया। भारत के विभाजन का प्रभाव काफी चिंताजनक था। विभाजन का तात्कालिक परिणाम हिंसा था। पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसने
जीवन और धन को नष्ट कर दिया। मुस्लिम लीग द्वारा ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के दौरान कलकत्ता में काफी हत्याएं हुईं। उसके बाद नोआखाली में दंगे भड़के। बिहार और पंजाब के इलाकों और उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत में भी तनाव व्याप्त हुआ। इन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रक्तपात और आगजनी हुई। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अनुसार भारत की रियासतों को यह चुनने के लिए छोड़ दिया गया था कि वे भारत में शामिल हों या पाकिस्तान या बाहर रहें। जम्मू और कश्मीर ने आखिरी वक्त तक फैसला नहीं किया।
विभाजन से दोनों समुदायों
में दुश्मनी बढ़ गई। इस तरह की सांप्रदायिक दुश्मनी को देखते हुए गांधीजी और जिन्ना दोनों ने लॉर्ड माउंटबेटन से एक संयुक्त अपील जारी की। विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान में 12 मिलियन से 15 मिलियन लोग विस्थापित हुए। विभाजन विनाशकारी दंगों का कारण बना। माउंटबेटन योजना की घोषणा और राजनीतिक नेताओं द्वारा इसकी स्वीकृति ने अस्थायी रूप से सांप्रदायिक शत्रुता को समाप्त करने का प्रयास किया। लेकिन पंजाब क्षेत्र में मुस्लिम लीग ने घोषणा की कि वह प्रांत के विभाजन में किसी भी बदलाव का विरोध करेगी। इसने फिर से
भारत के विभाजन के प्रभाव सहित एक खतरनाक स्थिति पैदा कर दी। गांधीजी और कांग्रेस नेताओं ने पाकिस्तान क्षेत्रों में हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों से उन क्षेत्रों की स्थिति का बहादुरी से सामना करने और अपने-अपने घरों में रहने की अपील की। लेकिन 17 अगस्त को रैडक्लिफ पुरस्कार तेल की घोषणा के बाद पूरे पश्चिमी पंजाब और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत से हिंदुओं और सिखों को बाहर निकालने के लिए एक अभियान शुरू किया गया था। इसके अलावा, लाहौर, शेखूपुरा, सियालकोट और गुजरांवाला जिलों में गंभीर अशांति विभाजन के बाद विकसित
होने लगी। नरसंहार के बाद अमृतसर में एक हिंसक मुस्लिम विरोधी प्रतिक्रिया हुई।
भारत के विभाजन के प्रभाव ने भी शरणार्थियों की समस्या को जन्म दिया। पश्चिमी पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों ने सबसे छोटे मार्गों से भारतीय सीमा में प्रवेश किया। पश्चिमी पाकिस्तान में व्यापक विनाश का प्रभाव पूर्वी पंजाब में भी पड़ा। यह समस्या पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के क्षेत्रों में संयुक्त प्रांत के पश्चिमी जिलों, विशेषकर मेरठ और सहारनपुर तक फैलती रही। भरतपुर, अलवर और दिल्ली राज्यों ने भी समस्या देखी। इन
क्षेत्रों के मुसलमानों ने अब पाकिस्तान की सीमा पर बड़े पैमाने पर पलायन शुरू कर दिया। दिल्ली को भी बड़ी समस्या का सामना करना पड़ा। शहर में व्यवस्था बनाए रखने के प्रयास में दिल्ली के जिलाधिकारी ने 28 अगस्त की दोपहर से 1 सितंबर तक विस्तारित कर्फ्यू लगा दिया। दिल्ली के करोलबाग में एक हिंदू इलाके में एक बम का विस्फोट क्षेत्र में दंगे के गंभीर प्रकोप का पहला संकेत था। इसके अलावा अक्सर आगजनी और लूटपाट की घटनाएं होती रहीं। राजधानी में घबराहट और आशंका का माहौल हुआ। शहर के कई हिस्सों में संगठित दंगे और
लगातार आगजनी की घटनाओं ने दिल्ली में स्थिति को और खराब कर दिया। हिंदू बहुल इलाकों में स्थित मुस्लिम दुकानों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। दिल्ली को इस अराजकता से बचाने के लिए पंद्रह सदस्यों वाली एक आपातकालीन समिति का गठन किया गया था। आपातकालीन समिति का मुख्य उद्देश्य शहर में बिगड़ती स्थिति से निपटने के तरीके और साधन खोजना था। केंद्रीय आपात समिति ने औपचारिक रूप से विशेष समिति की स्थापना की, जिसमें भाभा अध्यक्ष और एचएम पटेल उपाध्यक्ष थे। अंत में दिल्ली इमरजेंसी कमेटी अस्तित्व में आई। समिति ने शांति
बहाल करने और राजधानी को निरंतर अराजकता से बचाने की कोशिश करके काम किया। इस प्रकार समिति के प्रयास से दो सप्ताह के भीतर शहर में सामान्य स्थिति बहाल हो गई थी। भारत के विभाजन के प्रभाव के परिणामस्वरूप पूर्वी बंगाल से सांप्रदायिक प्रवास भी हुआ। पूर्वी बंगाल के हिंदुओं को भारी विनाश और विपत्ति से गुजरना पड़ा। पश्चिम पाकिस्तान के अधिकारियों की नीति पूर्वी बंगाल से हिंदुओं के बड़े पैमाने पर पलायन के लिए जिम्मेदार थी।
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भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
1991 में भारत सरकार ने महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्तुत किए जो इस दृष्टि से वृहद प्रयास थे जिनमें विदेश व्यापार उदारीकरण, वित्तीय उदारीकरण, कर सुधार और विदेशी निवेश के प्रति आग्रह शामिल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत आगे निकल आई है । सकल स्वदेशी उत्पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रतिशत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रतिशत के रूप में बढ़ गयी ।
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल इसलिए कि इससे देश की अधिकांश जनसंख्या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्कि इसलिए भी भारत की आधी से भी अधिक आबादी प्रत्यक्ष रूप से जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है ।
विभिन्न नीतिगत उपायों के द्वारा कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हुई, जिसके फलस्वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्त हुई । कृषि में वृद्धि ने अन्य क्षेत्रों में भी अधिकतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जिसके फलस्वरूप सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में और अधिकांश जनसंख्या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मिलियन टन का एक रिकार्ड खाद्य उत्पादन हुआ, जिसमें सर्वकालीन उच्चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्पादन हुआ । कृषि क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रतिशत प्रदान करता है ।
उद्योग
औद्योगिक क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है जोकि विभिन्न सामाजिक, आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है जैसे कि ऋण के बोझ को कम करना, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्मनिर्भर वितरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परिदृय को वैविध्यपूर्ण और आधुनिक बनाना, क्षेत्रीय विकास का संर्वद्धन, गरीबी उन्मूलन, लोगों के जीवन स्तर को उठाना आदि हैं ।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार देश में औद्योगिकीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्टि से विभिन्न नीतिगत उपाय करती रही है । इस दिशा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगिक नीति संकल्प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारित हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारित हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रतिबंधों को हटाना, पहले सार्वजनिक क्षेत्रों के लिए आरक्षित, निजी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनिश्चित मुद्रा विनिमय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि के द्वारा महत्वपूर्ण नीतिगत परिवर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्यधिक अपेक्षित तीव्रता प्रदान की ।
आज औद्योगिक क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रतिशत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रतिशत अंशदान करता है ।
सेवाऍं
आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि आधरित अर्थव्यवस्था से ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रतिशत ( 1991-92 के 44 प्रतिशत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक तिहाई है और भारत के कुल निर्यातों का एक तिहाई है
भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्लेखनीय वैश्विक ब्रांड पहचान प्राप्त की है जिसके लिए निम्नतर लागत, कुशल, शिक्षित और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्ति के एक बड़े पुल की उपलब्धता को श्रेय दिया जाना चाहिए । अन्य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्यवसाय प्रोसिस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परिवहन, कई व्यावसायिक सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधित सेवाऍं और वित्तीय सेवाऍं शामिल हैं।
बाहय क्षेत्र
1991 से पहले भारत सरकार ने विदेश व्यापार और विदेशी निवेशों पर प्रतिबंधों के माध्यम से वैश्विक प्रतियोगिता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति अपनाई थी ।
उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परिवर्तित हो गया । विदेश व्यापार उदार और टैरिफ एतर बनाया गया । विदेशी प्रत्यक्ष निवेश सहित विदेशी संस्थागत निवेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लिए जा रहे हैं । वित्तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्य अन्य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्तियों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।
आज भारत में 20 बिलियन अमरीकी डालर (2010 - 11) का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हो रहा है । देश की विदेशी मुद्रा आरक्षित (फारेक्स) 28 अक्टूबर, 2011 को 320 बिलियन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बिलियन अ.डालर की तुलना में )
भारत माल के सर्वोच्च 20 निर्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्च 10 सेवा निर्यातकों में से एक है ।