भारत में नियोजन को क्यों चुना? - bhaarat mein niyojan ko kyon chuna?

अंग्रेजों ने भारत को विभाजन की समस्याओं के साथ एक स्थिर और खोखली अर्थव्यवस्था के रूप में छोड़ दिया। इसने एक सर्वांगीण विकास योजना का आह्वान किया। यदि सरकार ने अर्थव्यवस्था को निजी हाथों में छोड़ दिया होता तो उन्होंने बड़े पैमाने पर उपस्थित गरीबी, बेरोजगारी की ओर न्यूनतम ध्यान दिया होता, जिससे देश के एक प्रमुख खंड को कष्टों का सामना करना पड़ता। हमें एक बड़े स्तर की योजना के साथ एक एकीकृत प्रयास की जरूरत थी जो सरकार केवल आर्थिक योजना प्रणाली द्वारा ही कर सकती थी। इसीलिए भारत ने योजना को चुना।

1947 ई० (स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात्) में भारतीय अर्थव्यवस्था गतिहीन तथा पिछड़ी अर्थव्यवस्था थी। कृषि ही जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन थी किंतु कृषि की अवस्था अत्यधिक दयनीय थी। अर्थव्यवस्था के द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र अविकसित थे और देश की बहुत बड़ी जनसंख्या घोर निर्धनता का जीवन व्यतीत कर रही थी। अर्थव्यवस्था मुख्यत: माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर आधारित थी। जिसका परिणाम था-निर्धनता, असमानता एवं गतिहीनता। ऐसी अर्थव्यवस्था को बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। अतः इन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए भारत ने ‘नियोजन’ का मार्ग अपनाया।

आज़ादी के बाद देश उन्नति के मार्ग पर बढ़ सके और हर वर्ग के लिये समावेशी विकास को सुनिश्चित किया जा सके इस उद्देश्य से आर्थिक योजना प्रणाली को अपनाया गया । योजन का यह मॉडल सोवियत रूस से प्रभावित था जिसने पंच-वर्षीय योजना पद्धति को अपनाया था | हालाँकि भारत में आर्थिक आयोजन को संवैधानिक समर्थन प्राप्त है | संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह लिखित है कि “राज्य अपनी नीति का संचालन विशेष तौर पर निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करेगा : 1. नागरिकों को (पुरुषों और स्त्रियों, दोनों को समान रूप से) जीवन-निर्वाह के पर्याप्त साधनों का अधिकार प्राप्त होगा, 2. समाज के भौतिक साधनों के स्वामित्व का वितरण और नियन्त्रण इस प्रकार किया जाएगा कि सर्वोत्तम रूप में सबका भला हो ; 3.आर्थिक प्रणाली की कार्यान्विति का परिणाम ऐसा न हो कि धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण (Concentration of wealth) आम जनता के हितों के विरुद्ध हो ; 4.उत्पादन को अधिकतम सम्भव सीमा तक बढ़ाया जाए ताकि राष्ट्रीय एवं प्रति व्यत्ति आय के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सके; 5.पूर्ण रोजगार प्राप्त करना; 6.आय तथा सम्पत्ति की असमानताओं को कम करना; और 7.सामाजिक न्याय उपलब्ध कराना।

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भारत में आर्थिक नियोजन का इतिहास

  • 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के पूर्व ही आर्थिक नियोजन का सैद्धान्तिक प्रयास प्रारम्भ हो चुका था। इस दिशा में प्रथम प्रयास 1934 में सर एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था लिखकर प्रारम्भ किया जिसे “विश्वेश्वरैया प्लान” कहा जाता है। यह एक 10 वर्षीय योजना रूपरेखा थी जिसमें श्रम को कृषि से हटाकर उद्योगों की ओर अधिक से अधिक केंद्रित करने का प्रस्ताव था और साथ ही 10 वर्ष में राष्ट्रीय आय को दोगुनी करने का भी लक्ष्य रखा गया |
  • 1938 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने पण्डित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया।
  • राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरित होकर श्रीमन्नारायण ने 1943 में एक योजना प्रस्तुत की, जिसे “गाँधीवादी योजना” (Gandhian Plan) के नाम से जाना जाता है। इसमें मुख्यत: आर्थिक विकेंद्रीकरण ,ग्राम स्वराज तथा कुटीर उद्योग पर अत्यधिक बल दिया गया |
  • प्रसिद्ध समाजवादी विचारक एम. एन. राय ने एक 10 वर्षीय जन योजना (People’s Plan) नामक एक नई योजना प्रस्तुत की।
  • 1944 में बम्बई के 8 प्रमुख उद्योगपतियों (जे. आर. डी. टाटा, जी.डी. बिरला, पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास, लाला श्री राम, कस्तूर भाई लाल भाई,ए.डी.श्रॉफ ,आर्देशिर दलाल एवं जॉन मथाई ) ने मिलकर “ए प्लान फॉर इकोनॉमिक डेवलपमेण्ट इन इण्डिया” नामक एक 15 वर्षीय योजना प्रस्तुत की जिसे “बम्बई प्लान” के नाम से बेहतर जाना जाता है। इसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास पर बल देना,भारत की राष्ट्रीय आय को 15 वर्षों में 3 गुना तथा 15 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय को दो-गुना (₹65 से बढ़ाकर ₹130) करना था।
  • इसके बाद जनवरी, 1950 में जयप्रकाश नारायण ने महात्मा गांधी तथा विनोबा भावे के विचारों से प्रेरित होकर “सर्वोदय योजना” के नाम से एक प्रकाशित की। इसमें समाज के चतुर्दिक विकास पर बल दिया गया |
  • अंततः 15 मार्च, 1950 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में योजना आयोग का गठन किया गया जो एक संविधानेत्तर निकाय है। 6 अगस्त, 1952 में आर्थिक आयोजन के लिए राज्यों एवं योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण तैयार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विकास परिषद् (N.D.C) नामक एक अन्य संविधानेत्तर संस्था का गठन किया गया। और इस प्रकार भारत में आर्थिक नियोजन की विधिवत प्रक्रिया प्रारम्भ हुई |

भारत की पंच-वर्षीय योजनाएं

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) : भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत प्रथम पंचवर्षीय योजना (वित्तीय वर्ष 1951-52 से वर्ष 1955-56) से हुई। इसमें कुल संवृद्धि की दर बहुत ही कम 2.1% रखी गयी थी क्योंकि भारत तब एक नया स्वतंत्र देश बना था और निम्न कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, सिंचाई की समस्या जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा था | अतः प्रथम योजना में कृषि क्षेत्र में संवृद्धि पर सर्वाधिक बल दिया गया | पहली योजना होने के कारण इसके लक्ष्यों को साधारण सा ही रखा गया और ज्यादा बल सुदृढ़ीकरण (consolidation) पर दिया गया। इस योजना में कृषि के विकास के लिए सिंचाई सुविधाओं की बेहतरी को प्राथमिकता दी गई। इस उद्देश्य से ही प्रथम पंचवर्षीय योजना में भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी और हीराकुंड जैसी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ चालू की गई। 1952 में सामुदायिक विकास योजना का प्रारम्भ किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत सिन्दरी उर्वरक कारखाना (तत्कालीन बिहार) की स्थापना की गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना “हैरॉल्ड डोमर मॉडल” पर आधारित थी। इस योजना को तैयार करने वाले विशेषज्ञ के गुट में से के.एन राज एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे संतुलित विकास के साथ ही मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालना भी इस योजना का एक लक्ष्य था। यह एक अत्यंत ही सफल योजना रही क्योंकि इसने 2.1% के लक्ष्य से बढ़कर 3.6 % प्रतिशत की विकास दर को हासिल किया | इस योजना में राष्ट्रीय आय में 18% जबकि प्रति व्यक्ति आय में 11% की वृद्धि देखी गई |

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) : इस योजना में देश के लिए दूरदृष्टि की परिकल्पना को वास्तविक आकार दिया गया | औद्योगिक आधार, औद्योगीकरण के प्रारंभ जैसे प्रयासों की शुरुआत हुई। इसे ‘महालनोबिस मॉडल’ के नाम से जाना गया, जिसके अंतर्गत. सरकार द्वारा पूँजीगत और प्रमुख उद्योग (core industries) दोनों ही क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण क्षमता निर्माण का कार्य शुरू किया गया। इस योजना में (1956-61) में आधारभूत एवं भारी उद्योगों पर विशेष बल के साथ देश के तीव्र औद्योगीकरण को मुख्य लक्ष्य बनाया गया क्योंकि प्रधानमंत्री नेहरु उद्द्योगों व कारखानों को आधुनिक भारत के मन्दिर के नाम से सम्बोधित करते थे | अतः इस योजन में सरकार की प्राथमिकता कृषि से हट कर उद्द्योगों पर केन्द्रित होती साफ़ दिखी । द्वितीय पंचवर्षीय योजना के निर्माण में प्रो. पी सी महालनोबिस ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। इसलिए इस योजना को महालनोबिस मॉडल भी कहा जाता है। इस मॉडल में इस पहलू पर बल दिया गया कि देश को आत्मनिर्भर होना चाहिए और साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए। यह मॉडल बड़े उद्योगों की स्थापना करके, मझोले और लघु उद्योगों के लिए आधार तैयार करने वाला प्रयास था। इसे ‘शीर्ष से नीचे की ओर’ होने वाले औद्योगीकरण के नाम से भी जाना गया। इसमें अंततः ग्रामीण और कुटीर उद्योगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया था। रूस के औद्योगीकरण के नमूने पर आधारित इस मॉडल से, सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े उद्योगों की स्थापना की शुरुआत हुई। ऐसी परिकल्पना भी की गयी थी कि सार्वजनिक क्षेत्र, अर्थव्यवस्था के वृहद् समाज कल्याण के उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होगा। यही कारण है की दूसरी योजना को सार्वजनिक क्षेत्र की योजना या औद्योगीकरण के नाम से भी जाना जाता है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में संवृद्धि दर 4.5% लक्षित की गई जबकि प्राप्त विकास दर 4.2% रही। । देश में पेट्रोलियम पदार्थों की माँग में पर्याप्त वृद्धि हो जाने के बाद भी प्रथम पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में किसी तेलशोधक कारखाने की स्थापना नहीं हुई। लेकिन द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ब्रिटिशकालीन टैक्स तेल कम्पनी द्वारा 1957 में विशाखापत्तनम में एक तेलशोधक कारखाना स्थापित किया गया।द्वितीय पंच वर्षीय योजना के दौरान ही 1957 में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना हुई जिसके प्रथम अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा नियुक्त हुए | इसी योजना में झारखंड की राजधानी रांची में (तत्कालीन बिहार) एच.ई.सी की स्थापना की गई |

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में स्थापित भारी उद्योग1.दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र (प. बंगाल)ब्रिटेन के सहयोग से निर्मित2.राउरकेला इस्पात संयन्त्र (ओडिशा)जर्मनी के सहयोग से निर्मित3.भिलाई इस्पात संयन्त्र (दुर्ग,छत्तीसगढ़)सोवियत रूस के सहयोग से निर्मित

तृतीय पंचवर्षीय योजना ( 1961-66) : तीसरी पंचवर्षीय योजना अकाल ,सूखा और सबसे अधिक, चीन से भारत के युद्ध (1962) के कारण सफल नहीं हो सकी | इस योजना में 5.6% वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया किंतु यह केवल 2.5% वृद्धि दर ही हासिल कर सकी | कुछ विद्वानों के अनुसार इस योजना की असफलता का एक कारण यह भी था कि इस योजना में कृषि और उद्योग दोनों पर ही बल दिया गया या यूं कहें की दोनों में से किसे प्राथमिकता दी जाए यह स्पष्ट नहीं रह गया | इस योजना का उद्देश्य आत्मनिर्भरता पर आधारित विकास की ओर तेजी से आगे बढ़ने का था। इस दौरान दूसरी पंचवर्षीय योजना में स्थापित तीनों इस्पात कारखानों का विस्तार किया गया तथा सोवियत संघ के सहयोग से बोकारो (झारखण्ड) में एक और इस्पात कारखाने की स्थापना की गई | 1962 के चीन युद्ध, 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन और 1965 में भारत-पाक युद्ध के कारण यह योजना विफल रही ।

योजना अवकाश वर्ष (1966-69) : 1966-69 से का समय योजना अवकाश वर्ष के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दौरान कोई भी पंचवर्षीय योजना लागू नहीं की गई या दूसरे शब्दों में इस दौरान तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गई | इसका कारण देश की आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता थी |

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) : चौथी पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण पर विशेष बल दिया गया। इस अवधि में बहुमूल्य संसाधन, युद्ध के कारण अन्यत्र उपयोग कर लिए गये थे। अतः इस योजना का उद्देश्य स्थिरता एवं अधिक आत्मनिर्भरता, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में रखा गया ताकि भविष्य में यदि पुनः युद्ध की स्थिति पैदा हो तो उससे निपटा जा सके। हालांकि यह योजना भी अपने लक्षित 5.5% के विकास दर को हासिल करने में सफल नहीं हो सकी और केवल 3.3% विकास दर ही हासिल कर सकी | योजना की विफलता का मुख्य कारण मौसम की प्रतिकूलता को माना जाता है | तथापि इस योजना का महत्व यह है कि इसे समाजवादी समाज की स्थापना की दिशा में एक अहम प्रयास माना जाता है |

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना ( 1974-79) : इस योजना का महत्व यह है कि इसमें पहली बार, गरीबी निवारण को सबसे प्रमुख उद्देश्य बनाया गया। इसी योजना के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बहुचर्चित 20 सूत्री कार्यक्रम की शुरुआत की और देश में राष्ट्रीय आपातकाल की भी घोषणा इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान हुई | शुरू में इस योजना के दौरान विकास लक्ष्य 5.5% रखा गया किंतु बाद में इसे संशोधित कर 4.4% किया गया | यह योजना अपने लक्षित विकास दर को पाने में सफल रही किंतु गरीबी निवारण की दिशा में यह योजना कुछ खास काम नहीं कर सकी | इसी योजना के उपरांत तत्कालीन इंदिरा सरकार से असंतुष्ट होकर जनता ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार को सत्ता में बिठाया |

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) : हालांकि गरीबी निवारण छठी पंचवर्षीय योजना का भी केंद्र बिंदु रहा लेकिन इस योजना में यह महसूस किया जाने लगा कि गरीबी उन्मूलन के लिए केवल आर्थिक संवृद्धि /विकास का होना ही पर्याप्त नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था की ढांचागत विषमताओं को दूर करने की योजना भी बनाई गई । इस योजना के दौरान ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने “गरीबी हटाओ” का प्रसिद्ध नारा दिया था। यह पंचवर्षीय योजना, संसाधनों को कल्याणकारी कार्यक्रम,जैसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम विशेषतः गरीबी उन्मूलन के लिए हस्तांतरित करने के पहले गंभीर प्रयास के लिए जानी जाती है। इसके अंतर्गत कोई नयी योजना नहीं शुरू की गयी, बल्कि उस समय तक की लागू विभिन्न योजनाओं को एकीकृत करके एक योजना के रूप में लागू किया गया और इसे एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme (IRDP)) का नाम दिया गया। यह पहली ऐसी कार्यकारी योजना थी जिसमें लिंग भेद, महिला सशक्तिकरण राज्यों के बीच बढ़ती असमानता और अंतर क्षेत्रीय असंतुलन पर ध्यान केंद्रित किया गया।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) : 7वीं पंचवर्षीय योजना के 3 मुख्य लक्ष्य थे- पहला, व्यापक स्तर पर कृषि क्षेत्र की ओर उन्मुखता, ताकि कृषि उत्पादन और उत्पादक दोनों में वृद्धि की जा सके , दूसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में कमी और तीसरा रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन । इस योजना में जी.डी.पी. में 5% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया था | सातवीं योजना पहली ऐसी योजना थी जिसमें कृषि समेत कुल वृद्धि दर उच्चतम 10.4% पाई गई । इस दौरान प्रति-व्यक्ति आय में 3.6% प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई | हालाँकि यह भी उल्लेखनीय है कि इसी दौरान अर्थव्यवस्था में पहली बार आयात-निर्यात में भारी असंतुलन का अनुभव हुआ। इससे भुगतान संतुलन का संकट (BoP Crisis) पैदा हुआ और भारत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण लेना पड़ा। लेकिन इसके बदले में IMF ने देश के सामने कई शर्तें रखीं जिन्हें पूरी करने के लिए भारत को आर्थिक सुधारों की घोषणा करनी पड़ी जिसे नयी आर्थिक नीति 1991 के नाम से जाना गया। नयी आर्थिक नीति पर देखें हमारा हिंदी लेख LPG Reforms in Hindi

उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों में भुगतान संतुलन की समस्या उत्पन्न होने से सरकार को पुनः वर्ष 1990 से वर्ष 1992 तक योजना अवकाश लेना पड़ा। इस के बाद से सभी योजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र पर किये जाने वाले व्यय में क्रमशः कमी की जाने लगी जिसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र की भूमिका में बढ़ोतरी हुई जिससे नयी आर्थिक नीति के एक लक्ष्य निजीकरण अथवा विनिवेश को प्राप्त किया जा सके । इसके अंतर्गत जिस क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता हो, उसमें प्राथमिकता के आधार पर निजी क्षेत्र द्वारा मिलने की अपेक्षा की गयी।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) : आठवीं पंचवर्षीय योजना में ढांचागत विकास, विशेषकर ऊर्जा, परिवहन एवं दूर-संचार को मजबूत करने की आवश्यकता के साथ साथ सार्वभौम मानव संसाधन विकास , शिक्षा , परिवार

नियोजन, भूमि विकास, सिचाई , स्वास्थ्य इत्यादि की महत्ता को स्वीकार किया गया। इसी कड़ी में सार्वजनिक क्षेत्र में, स्वैच्छिक रूप से काम करने वाली एजेंसियों को शामिल करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। निजी क्षेत्र की भागीदारी को 55% तक बढ़ा कर दूर संचार, बिजली और गैस के क्षेत्र में इनकी भूमिका में वृद्धि की गयी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका अब चुने हुए क्षेत्र में सीमित रह गयी थी। यह योजना सफल रही क्योंकि इसमें 5.6% की वृद्धि दर को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था जबकि 6.7% वास्तविक दर रही |

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-02) : यह योजना एक प्रकार से आठवीं योजना का विस्तार थी, परंतु इसमें संवृद्धि के अतिरिक्त अर्थव्यवस्था में सामाजिक न्याय और निष्पक्षता को भी केंद्रीय स्वरूप प्रदान किया गया। न्यायपूर्ण वितरण एवं समानता के साथ विकास इस योजना का परम लक्ष्य था | हालाँकि इस योजना में 6.5% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था लेकिन केवल 5.5% ही हासिल किया जा सका |

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002- 07) : दसवीं पंचवर्षीय योजना का लक्षित क्षेत्र प्राथमिक शिक्षा एवं उर्जा रहा | इस योजना का उद्देश्य देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना तथा 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी करना था । इस योजना अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में 8% की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था । योजना के दौरान प्रतिवर्ष 7.5 अरब डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश , 5 करोड़ रोजगार के अवसरों का सृजन करना, योजना के अन्त तक साक्षरता दर 75% करना , शिशु मृत्यु-दर 45 /प्रति हजार या इससे कम करना तथा वनाच्छादन 25% करने का लक्ष्य रखा गया था।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) : इस योजना में समावेशी विकास की अवधारणा पर विशेष बल दिया गया और राज्य व केंद्र सरकारों के लिए निरीक्षण योग एवं परिमाणात्मक लक्ष्य निर्धारित किये गये थे । इस योजना में क्षेत्रीय आर्थिक विषमता पर भी चिंता व्यक्त की गई और पिछड़े राज्यों , विशेष रूप से, उत्तर-पूर्वी राज्यों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास उल्लिखित किया गया। देश के सभी गांव में विद्युतीकरण, रोजगार के 7 करोड़ अवसरों का सृजन, शैक्षिक बेरोजगारी को कम करना, अकुशल श्रमिकों की मजदूरी दर में वृद्धि करना, साक्षरता में बढ़ावा, लिंगानुपात में संतुलन, प्रजनन दर को 2.1 के नीचे लाना इत्यादि इस योजना के अन्य मुख्य लक्ष्य थे |

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) : बारहवीं पंच-वर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य ‘संयुक्त संवृद्धि’ पर केंद्रित है। इसके माध्यम से सरकारी खर्च पर देश की कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहन देने का लक्ष्य रखा गया है ताकि विकसित हो रहे निर्माण क्षेत्र में लोगों को और अधिक रोजगार मिल सकेग | योजना में 10% की संवृद्धि दर तथा कृषि उपज में 4% की संवृद्धि दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अन्य प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं :- आर्थिक विकास, गरीबी एवं बेरोजगारी निवारण, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बाल मृत्यु दर एवं कुपोषण को कम करना,तथा पर्यावरण के क्षेत्र में टिकाऊ एवं धारणीय विकास को सुनिश्चित करना इत्यादि |

बारहवीं पंच-वर्षीय योजना एक प्रकार से देश की अंतिम पंच वर्षीय योजना थी | इसके बाद योजना बनाने वाली संस्था योजना आयोग को परिवर्तित कर नीति आयोग का नाम दिया गया और पंच वर्षीय योजना के स्थान पर सप्त वर्षीय योजना नीति बनाई गई जिसमे प्रथम त्रि-वर्षीय एक्शन प्लान बनाया गया |

आलोचना : पंच वर्षीय योजनाओं की कई बिन्दुओं पर आलोचना भी की जाती है | इनमें प्रमुख है “निजी क्षेत्र बनाम सार्वजानिक क्षेत्र” और “कृषि बनाम उद्द्योग” पर अनिश्चय | आलोचना का प्रथम बिंदु यह है की योजना निर्माण में यह नीति स्पष्ट नहीं रही की वरीयता कृषि क्षेत्र को दिया जाए या औद्योगिक क्षेत्र को | हम पाते हैं की प्रथम योजना में कृषि क्षेत्र को वरीयता दी गई जबकि दूसरी योजना में उद्योग विकास पर ही बल दिया गया परिणाम स्वरूप देश दोनों में से किसी भी एक लक्ष्य को पाने में सफल नहीं हो सका | तीसरी एवं चौथी पंच वर्षीय योजना में हरित क्रांति की शुरुआत की गई | हरित क्रांति के लागू होने से उत्पादन में वृद्धि तो हुई लेकिन कीटनाशक एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से भी कई समस्याएँ उत्पन्न हुई | योजनाओं की असफलता के पीछे राजनैतिक इच्छा शक्ति का आभाव भी एक अहम कारण रहा है |

योजना आयोग / नीति आयोग

नीति आयोग भारत सरकार की आर्थिक-नीति-निर्माण की शीर्ष ‘थिंक टैंक’ संस्था है | भारत सरकार के लिए रणनीतिक एवं दीर्घकालीन नीतियों एवं कार्यक्रमों का प्रकल्प तैयार करते हुए नीति आयोग केन्द्र एवं राज्यों को प्रासंगिक तकनीकी सलाह भी देता है। 1950 में गठित “योजना आयोग” इसकी मातृ संस्था थी | लेकिन 1 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेत्रित्व वाली सरकार ने 65 वर्ष पुराने योजना आयोग को भंग कर इसके स्थान पर एक उत्तराधिकारी संस्था के रूप में नीति आयोग (N.I.T.I.Aayog : National Institution for Transforming India) के स्थापना की घोषणा की। नीति आयोग योजना आयोग की ही तरह भारत सरकार के एक कार्यकालकीय संकल्प’ (केन्द्रीय मंत्रिमंडल) द्वारा सृजित एक गैर-संवैधानिक (extra -constitutional) निकाय है ।

नीति आयोग का ढांचा (structure)

(1) अध्यक्ष : योजना आयोग की ही तरह नीति आयोग के अध्यक्ष भी भारत के प्रधानमंत्री पदेन रूप से होते हैं (इस प्रकार योजना / नीति आयोग के प्रथम अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरु थे एवं इसके वर्तमान अध्यक्ष नरेंद्र मोदी हैं)

(2) उपाध्यक्ष: ये प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त होते हैं और इनका पद कैबिनेट मंत्री के समकक्ष होता है। वर्तमान में सुमन बेरी इसके नव-नियुक्त उपाध्यक्ष हैं |

(3) शासी परिषद (Governing Council) : सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केन्द्र शासित क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं विधायिकाएँ (जैसे-दिल्ली और पुडुचेरी) तथा अन्य केन्द्रशासित क्षेत्रों के उप-राज्यपाल (lieutenant governor) इसके गवर्निंग काउंसिल के सदस्य होते हैं ,

(4) क्षेत्रीय परिषदें : नीति आयोग की क्षेत्रीय परिषद भी होती हैं जिनका गठन एक से अधिक राज्यों या क्षेत्रों से संबंधित विशिष्ट मुद्दों के समाधान के लिए किया जाता है। इनका एक निश्चित कार्यकाल होता है। इनका संयोजकत्व प्रधानमंत्री करते हैं और राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केन्द्रशासित क्षेत्रों के उप-राज्यपाल इसमें शामिल रहते हैं। इन परिषदों का सभापतित्व नीति आयोग के अध्यक्ष अथवा उनके द्वारा नामित व्यक्ति करते हैं।

(5) विशिष्ट आमंत्रित (special invitees) : कुछ विशेषज्ञ, जिनके पास संबंधित क्षेत्र में विशेष ज्ञान एवं योग्यता हो, प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाते हैं। वर्तमान में नितिन गडकरी ,पीयूष गोयल ,वीरेंद्र कुमार ,अश्विनी वैष्णव और राव इंद्रजीत सिंह नीति आयोग के विशिष्ट आमंत्रित सदस्य हैं ,

(6) पूर्णकालिक सदस्य : ये राज्यमंत्री के पद के समकक्ष होते हैं,

(7) अंशकालिक सदस्य : नीति आयोग के 2 अंशकालिक सदस्य भी नियुक्त किए जाते हैं , जो कि प्रमुख विश्वविद्यालयों, शोध संगठनों तथा अन्य प्रासंगिक संस्थाओं से आते हैं और पदेन सदस्य के रूप में कार्य करते हैं।

(8) पदेन सदस्य : प्रधानमंत्री द्वारा केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के अधिकतम 4 सदस्य पदेन सदस्य के तौर पर नियुक्त किए जाते हैं ।

(9) मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (C.E.O) : एक निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा CEO भी नियुक्त किये जाते हैं जो भारत सरकार के सचिव पद के समकक्ष होते हैं । वर्तमान में अमिताभ कान्त नीति आयोग के CEO हैं |

नीति आयोग के उद्देश्य

नीति आयोग के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

1. राज्यों की सामूहिक व सक्रिय सहभागिता से राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, प्रक्षेत्रों एवं रणनीतियों के प्रति साझा दृष्टिकोण का विकास।

2. सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) स्थापित करने के लिए राज्यों के साथ संरचित सहयोग पहलों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना, क्योंकि मजबूत राज्य ही मजबूत देश का निर्माण कर सकते हैं।

3. ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाओं के सूत्रण के लिए प्रक्रियाओं का विकास और इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों तक पहुँचाना।

4.यह सुनिश्चित करना कि जो भी उत्तरदायित्व इसे सौंपे जाते हैं, वे देश की आर्थिक -रणनीति एवं नीति में प्रतिबिम्वित हों ।

5. समाज के कमजोर वर्गों के हितों का विशेष रूप से ध्यान रखना |

6. रणनीतिक एवं दीर्घकालीन आर्थिक -नीति एवं कार्यक्रम रूपरेखा तैयार करना और उनकी प्रगति एवं उनके प्रदर्शन की समीक्षा भी करना।

7. प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समकक्ष थिंक टैंक संस्थाओं,विशेषज्ञों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना ।

8.एक अत्याधुनिक संसाधन सक्षम केन्द्र (state -of-the-art) के रूप में कार्य करना |

अन्य महत्वपूर्ण लिंक :

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भारत ने नियोजन को क्यों चुना?

अर्थव्यवस्था मुख्यत: माँग और पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों पर आधारित थी। जिसका परिणाम था-निर्धनता, असमानता एवं गतिहीनता। ऐसी अर्थव्यवस्था को बाजार की शक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता है। अतः इन समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए भारत ने 'नियोजन' का मार्ग अपनाया।

2 भारत ने योजना को क्यों चुना?

Answer: भारत ने देश की आर्थिक संवृद्धि ,समानता ,आत्मनिर्भर तथा आधुनिकीकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए योजना को चुना

भारत में आर्थिक नियोजन को क्यों चुना?

इसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास पर बल देना,भारत की राष्ट्रीय आय को 15 वर्षों में 3 गुना तथा 15 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय को दो-गुना (₹65 से बढ़ाकर ₹130) करना था।

भारत में नियोजन के उद्देश्य क्या है?

1. आर्थिक विकास - नियोजन का सर्वप्रमुख उद्देश्य आर्थिक विकास के द्वारा जनसाधारण के जीवन स्तर में सुधार लाना है। 2. समाज कल्याण - समाज कल्याण का तात्पर्य समाज के दुर्बल वर्गों, महिलाओं, बच्चों तथा असमर्थ लोगों की दशा में सुधार करना है।