भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए? - bhaarat ne enapeetee par hastaakshar kyon nahin kie?

संसद में 29 जुलाई को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बयान का हवाला देते हुए पुरी ने कहा कि भारत के गैर परमाणु हथियार सम्पन्न देश के रूप में एनपीटी पर हस्ताक्षर करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है. परमाणु हथियार भारत की सुरक्षा का अभिन्न हिस्सा है और आगे भी यह बना रहेगा. उन्होंने कहा कि भारत इस विषय में बाहर से थोपे गए नियमों या मानदंडों को स्वीकार नहीं करेगा जो संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं या भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुरूप हैं अथवा भारत के राष्ट्रीय हितों या सम्प्रभुता का उल्लंघन करते हैं. पुरी ने कहा कि भारत परमाणु अप्रसार की बाध्यताओं को नहीं मानेगा जिसपर उसने सहमति व्यक्त नहीं की.

परमाणु अप्रसार सन्धि में देशों की सहभागिता██ देश जिन्होने हस्ताक्षर किये और अनुमोदित किया ██ Acceded or succeeded ██ देश जो मान्यता-प्राप्त नहीं हैं; सन्धि को स्वीकारते हैं██ वापस लिया ██ अहस्ताक्षरी

परमाणु अप्रसार संधि (अंग्रेज़ी:नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी) को एनपीटी के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। १ जुलाई १९६८ से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या १९0 है। जिसमें पांच के पास नाभिकीय हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। सिर्फ पांच संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारत, इजरायल, पाकिस्तान द.सुदान और उत्तरी कोरिया। एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है। इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने रखा था और सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र है फिनलैंड। इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने १ जनवरी १९६७ से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो। इस आधार पर ही भारत को यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं प्राप्त है। क्योंकि भारत ने पहला परमाणु परीक्षण १९७४ में किया था। उत्तरी कोरिया ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर किये, इसका उलंघन किया और फिर इससे बाहर आ गया।

  • परमाणु अप्रसार (परमाणु अस्त्र संपन्न राज्य परमाणु अस्त्रविहीन राज्यों को इसके निर्माण की तकनीक नहीं देंगे।
  • निरस्त्रीकरण
  • परमाणु उर्जा का शान्तिपूर्ण उपयोग

नई दिल्ली
चीन समेत कुछ देशों ने एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) का हवाला देकर एनएसजी (परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह) में शामिल होने की भारत की कोशिशों पर पानी डाल दिया है। आपको बताते हैं कि NPT आखिर है क्या? एनपीटी परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है।

एनपीटी की घोषणा 1970 में हुई थी। अब तक 187 देशों ने इस पर साइन किए हैं। इस पर साइन करने वाले देश भविष्य में परमाणु हथियार विकसित नहीं कर सकते। हालांकि, वे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इसकी निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के पर्यवेक्षक करेंगे।

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इस पर साइन नहीं करने वालों में भारत, पाकिस्तान और इस्राइल जैसे देश शामिल हैं। उत्तर कोरिया इससे पहले ही अलग हो चुका है।

भारत काफी समय से कहता रहा है कि वह अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधि पर साइन नहीं करेगा, क्योंकि यह भेदभावपूर्ण है। भारत और इस संधि पर साइन नहीं करने वाले देशों का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया है और बाकी देशों पर अप्रसार संधि थोप रहे हैं।

इस मामले में भारत ने फ्रांस का मुद्दा भी उठाया है और कहा है कि वह बिना एनपीटी साइन किए एनएसजी का सदस्य बना था। हालांकि, इस दलील को खारिज करते हुए चीन ने कहा है कि फ्रांस एनएसजी का संस्थापक सदस्य है और ऐसे में उसकी सदस्यता पर सवाल कहां पैदा होता है?

परमाणु अप्रसार संधि यानी एनपीटी के 50 साल पूरे हो गए हैं. 191 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. भारत ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है. भारत इस संधि को भेदभावपूर्ण मानता है. आइए विस्तार से जानते हैं आखिर भारत ने किस आधार पर इस संधि का विरोध किया है.

हैदराबाद : दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रुस के बीच शुरू हुए शीत युद्ध के दौरान दुनिया भर में परमाणु हथियार सहित अन्य खतरनाक हथियार विशेषकर परमाणु हथियार हासिल करने की होड़ मच गई. हर देश परमाणु हथियार विकसित करना चाहता था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम ने जो तबाही मचाई, उसे हर किसी ने देखा था.

इसके मद्देनजर 1968 में परमाणु संधि (NPT) वजूद में आई, जिसे 1970 में लागू किया गया. इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने पेश किया था. उस समय केवल 46 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए थे. इस पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र फिनलैंड था. इस संधि को वैश्विक परमाणु अप्रसार व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है.

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। परमाणु अप्रसार संधि या एनपीटी एक बार फिर से मीडिया की सुर्खियां बन गई है। इसकी वजह यूएन में इसको लेकर दिया गया भारत का वह जवाब है जिसमें साफ किया गया है कि बिना परमाणु देश का दर्जा मिले बिना भारत इस पर हस्‍ताक्षर नहीं करेगा। यूएन में भारत के स्‍थाई राजदूत अमनदीप सिंह गिल ने यह बात साफ कर दी है कि इस बारे में भारत के पूर्व की सोच में कोई बदलाव नहीं हुआ है। यह पहला मौका नहीं है कि जब भारत ने इस बाबत अपना रुख स्‍पष्‍ट किया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर भारत अपना रुख अंतराष्‍ट्रीय मंच पर व्‍यक्‍त करता रहा है।

भेदभाव पूर्ण है संधि 

भारत काफी समय से अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधि को भेदभाव पूर्ण बताता रहा है। भारत का तर्क है कि विकसित देशों ने पहले ही परमाणु हथियारों का भंडार बना लिया है और बाकी देशों पर अप्रसार संधि थोप रहे हैं। इस मामले में भारत फ्रांस का मुद्दा भी उठा चुका है जो बिना एनपीटी पर साइन किए एनएसजी का सदस्य बना था। लेकिन भारत की इस दलील पर चीन का कहना था कि फ्रांस एनएसजी का संस्थापक सदस्य है और ऐसे में उसकी सदस्यता पर सवाल कहां पैदा नहीं होता है। भारत एनएसजी ग्रुप का भी हिस्‍सा बनने की कवायद लगातार कर रहा है, लेकिन चीन हमेशा से वहां पर रोड़े अटकाता रहा है। इस पर आगे बढ़ने से पहले यह भी जान लेना बेहद जरूरी है कि आखिर एनपीटी है क्‍या।

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एनपीटी का मकसद

एनपीटी दरअसल पररमाणु हथियारों का विस्तार रोकने और परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से इस्तेमाल को बढ़ावा देने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का एक हिस्सा है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। 1 जुलाई 1967 से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या 190 है। जिसमें पांच के पास न्‍यूक्लियर वैपंस हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन का नाम शामिल है। सिर्फ पांच संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं जिनमें भारत के अलावा इजरायल, पाकिस्तान, दक्षिण सुडान और उत्तरी कोरिया शामिल हैं।

भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं

एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है। इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने रखा था और इस पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र फिनलैंड था। इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण किया था। इसी आधार पर भारत परमाणु संपन्‍न राष्‍ट्र का दर्जा देने से इंकार किया जाता रहा है। आपको बता दें कि भारत ने पहला परमाणु परीक्षण 1974 में किया था।

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पहली बार सामने आया विचार

दरअसल, इस संधि के बारे में पहली बार विचार जापान के दो शहरों पर गिरे एटम बमों के बाद किया गया था। यह सही मायने में विश्‍व को परमाणु हमले की भयावहता से बचाने के लिए उठाया गया सही कदम था। इसका मकसद था कि परमाणु हथियार वाले देश इसकी क्षमता को कम करें। लेकिन हकीकत यह भी है कि यह संधि और परमाणु हथियार रखने वाले देश इसमें पूरी तरह से विफल रहे हैं। 1968 में जब इसको अमल में लाया गया था उस वक्‍त इस तरह के हथियारों में कमी के साथ परमाणु ऊर्जा का उपयोग मानव कल्‍याण के लिए करने की बात कही गई थी। उस वक्‍त यह माना गया कि जिसने अब तक परमाणु परीक्षण किए हैं या जिनके पास परमाणु हथियार हैं सिर्फ वही उन्‍हें ही परमाणु हथियार संपन्‍न देश का दर्जा दिया जाएगा।

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मानव कल्‍याण के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग

उस वक्‍त अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन ही इस दायरे में आने वाले देशों में शामिल थे। लेकिन इसका सबसे बड़ा प्रभाव संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में दिखाई दिया जिसमें केवल इन्‍हीं देशों को इसका स्‍थायी सदस्‍य बना दिया गया। धीरे-धीरे इस संधि का प्रचार-प्रसार हुआ और मौजूदा समय में करीब 191 देशों ने एनपीटी पर हस्‍ताक्षर किए हुए हैं। एनपीटी की हर पांच साल बाद बैठक होती है और इसमें सभी प्रावधानों पर विचार किया जाता है।

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1992 के बाद शामिल हुए चीन और फ्रांस

चीन और फ़्रांस ने इस संधि पर 1992 के बाद हस्ताक्षर किए थे। इस संधि की एक खास बात यह भी है कि इससे जुड़े देश इस बात से बंधे हुए है कि यह 'ग़ैर-परमाणु' देशों को न तो यह हथियार देंगे और न ही इन्हें हासिल करने में उनकी मदद करेंगे। वहीं इस पर हस्ताक्षर करने वाले देशों को इस बात पर सहमति जाहिर करनी होती है कि वे न तो इस तरह के हथियार विकसित करेंगे और न ही उन्हें प्राप्त करने की कोशिश करेंगे। हांलाकि उन्हें परमाणु ऊर्जा को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए विकसित करने की छूट है। लेकिन यह सब वियना स्थित अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षकों की देखरेख में होता है।

संधि की उपलब्धियां

इस संधि की कुछ उपलब्धियों में दक्षिण अफ्रीका समेत लेटिन अमे‍रिका परमाणु हथियार से संबद्ध सभी गतिविधयों का त्याग देना भी शामिल है। दरअसल, दक्षिण अफ्रीका ने 1980 के दशक में गुप्त रूप से हथियार बनाए लेकिन 1991 में उसने उन्हें नष्ट कर दिया और वह एनपीटी का सदस्य बन गया। लेकिन इराक और उत्‍तर कोरिया इसके अपवाद भी हैं। इराक ने इस संधि पर हस्‍ताक्षर किए थे लेकिन अपने सभी परमाणु ठिकानों की जानकारी नहीं दी थी। इराक ने निरीक्षकों को एक सीमित दायरे में रहकर उन्‍हीं जगहों की जांच की छूट दी थी जिसका खुलासा उसने इस संधि में किया था। लेकिन इराक़ की स्थिति सामने आने के बाद इसके अधिकार बढ़ा दिए गए और इन नए अधिकारों की वजह से ही 1993 में उत्तर कोरिया के साथ यह संकट पैदा हुआ। उत्तरी कोरिया ने पहले इस संधि पर हस्ताक्षर किये, फिर इसका उलंघन किया और 2003 में इससे अलग भी हो गया।

भारत ने NPT पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किए?

एक और निराशाजनक परिदृश्य यह रहा कि भारत ने एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र होने के बावजूद NPT समीक्षा में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाई, जबकि समय की आवश्यकता यह है कि भारत नए आयाम ग्रहण कर रहे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु विमर्श पर अपेक्षाकृत अधिक ध्यान दे और अपने स्वयं के असैन्य एवं सैन्य परमाणु कार्यक्रमों पर पुनर्विचार करे।

भारत ने एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है क्योंकि?

भारत ने परमाणु अप्रसार संधि का विरोध किया है क्योंकि यह गैर-परमाणु संपन्न देशों के लिये पक्षपातपूर्ण रूप से लागू होता है तथा परमाणु हथियार शक्ति संपन्न पाॅंच देशों के एकाधिकार को वैधता प्रदान करता है।

भारत ने 1968 में परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी पर हस्ताक्षर करने से इंकार क्यों किया?

दरअसल, एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है. संधि के अनुसार परमाणु संपन्न देश का दर्जा केवल उन्हीं देशों को दिया गया है, जिन्होंने 1967 से पहले परमाणु परीक्षण किया हो, जबकि भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण 1974 में किया था. इसी भेदभाव के कारण भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए.

एनपीटी का पूरा नाम क्या है?

परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty -NPT) परमाणु नि:शस्त्रीकरण की दिशा में परमाणु अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty) को एक महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ माना जाता है।