संसद का मुख्य कार्य देश के लिए कानून निर्माण करना है। सामान्य रूप से विधेयक दो प्रकार के होते हैं —
(i) साधारण विधेयक
(ii) वित्त विधेयक या धन विधेयक
साधारण विधेयक
साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं। साधारण विधेयक भी दो प्रकार के होते हैं
(i) सरकारी विधेयक
(ii) व्यक्तिगत अथवा निजी सदस्य विधेयक
किसी भी विधेयक को कानून का स्वरूप प्राप्त करने के लिए पाँच अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है :
प्रथम वाचन (विधेयक की प्रस्तुति)
सदन में किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले विधेयक को सरकारी विधेयक कहा जाता है। इस प्रकार के विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए किसी सूचना की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु जब कोई विधेयक कोई गैर-सरकारी सदस्य सदन में प्रस्तुत करना चाहता है तो उसे सदन के अध्यक्ष को एक माह पूर्व सूचना देना आवश्यक होता है।
सरकारी विधेयक सामान्यतया अध्यक्ष की अनुमति से सरकारी गजट में प्रकाशित कर दिया जाता है। व्यक्तिगत विधेयक के लिए तिथि निश्चित कर दी
जाती है। निश्चित तिथि पर विधायक का प्रस्तुतकर्ता सदस्य सदन की अनुमति लेकर विधेयक का शीर्षक पढ़कर सुना देता है।
साधारणत : किसी विधेयक का पेश होना ही प्रथम वाचन मान लिया जाता है। सामान्य रूप से प्रथम वाचन में कोई विवाद नहीं होता किन्तु यदि विधेयक विशेष महत्वपूर्ण हो तो प्रस्तुतकर्ता विधेयक के सम्बन्ध में संक्षिप्त भाषण दे सकता है और विरोधी सदस्य भी संक्षेप में उनकी आलोचना कर सकते हैं। जब सदस्य बहुमत से विधेयक का समर्थन का समर्थन कर देते हैं तो इसे सरकारी गजट में प्रकाशित कर
दिया जाता है। प्रकाशन के साथ विधेयक का प्रथम वाचन पूर्ण हो जाता है।
द्वितीय वाचन
सदन में विधेयक के प्रस्तावित हो जाने के बाद उसकी प्रतियाँ सदन के सदस्यों में बाँट दी जाती हैं। विधेयक के प्रथम वाचन और द्वितीय वाचन के बीच दो दिन का अन्तर रखा जाता है। द्वितीय वाचन में विधेयक के मूल सिद्धान्तों पर वाद-विवाद होता है। इस समय विधेयक का प्रस्तावक सदन से विधेयक पर तुरन्त विचार करने का अनुरोध कर सकता है अथवा विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का अनुरोध कर सकता है अथवा दोनों सदनों की
संयुक्त प्रवर समिति को भेजने का अनुरोध कर सकता है अथवा जनमत के लिए विधेयक को प्रसारित करने का प्रस्ताव रख सकता है। सामान्यतया विधेयक का बहुमत द्वारा समर्थन किए जाने पर उसे प्रवर समिति के पास भेज दिया जाता है। समिति विधेयक की प्रत्येक धारा पर गम्भीरतापूर्वक विचार करते हुए कतिपय संशोधन के साथ अपना प्रतिवेदन तैयार करती है। अब समिति अपने प्रतिवेदन के साथ विधेयक को सदन में प्रस्तुत करती है। इस समय विधेयक की प्रत्येक धारा पर विचार होता है तथा सदस्यों द्वारा भी संशोधन प्रस्तावित करने की छूट रहती है।
आवश्यकतानुसार विधेयक की धाराओं पर मतदान कराया जाता है। इस प्रकार विधेयक के पारित हो जाने के बाद विधेयक का द्वितीय वाचन समाप्त हो जाता है।
तृतीय वाचन
तृतीय वाचन विधेयक के पारित होने का अंतिम चरण होता है। इस वाचन में विधेयक के मूल सिद्धान्तों पर बहस और भाषा सम्बन्धी संशोधन किए जाते हैं। सम्पूर्ण विधेयक पर मतदान कराया जाता है। यदि विधेयक सदन में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो सदन का अध्यक्ष विधेयक को पारित हुआ प्रमाणित
करके दूसरे सदन के विचारार्थ भेज देता है।
विधेयक दूसरे सदन में
प्रथम सदन की ही भाँति विधेयक को दूसरे सदन में भी उपर्युक्त सभी अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन विधेयक में कोई ऐसा संशोधन प्रस्तुत करता है जो प्रथम सदन को स्वीकार न हो तो ऐसे गतिरोध को समाप्त करने हेतु राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाता है। इस संयुक्त बैठक में उपस्थित और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित कर दिया जाता है तो विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया
जाएगा।
राष्ट्रपति की स्वीकृति
दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकार या अस्वीकृत कर सकता है या विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा विधेयक के लौटाए जाने पर यदि संसद के दोनों सदन संशोधन के साथ या संशोधन के बिना स्वीकार कर उसे पुनः राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति स्वीकृति प्रदान करने के लिए बाध्य होता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद विधेयक कानून बन जाता है।
धन
विधेयक
साधारण विधेयक की भाँति ही धन विधेयक भी पारित किए जाते हैं। अन्तर केवल इतना है कि –
(i) धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं।
(ii) लोकसभा द्वारा पारित धन विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किया जाता है।
(iii)राज्यसभा धन विधेयक को 14 दिन की अवधि के अन्दर अपनी सिफारिशों सहित लोकसभा को लौटा देती है।
(iv) लोकसभा राज्यसभा की सिफारिशों को मानने अथवा न मानने के लिए स्वतंत्र है।
(v) राज्यसभा द्वारा 14 दिनों में विधेयक के न लौटाए जाने पर विधेयक दोनों सदनों द्वारा
पारित मान लिया जाएगा।
धन विधेयकों पर लोकसभा की शक्ति अनन्य है। राज्यसभा का इन पर कोई नियंत्रण नहीं है और न ही इसे राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकार किया जा सकता है।
संसद का मूलभूत कार्य विधियों को बनाना है। सभी विधायी प्रस्ताव विधेयकों के रूप में संसद के सामने लाने होते हैं। एक विधेयक प्रारूप में परिनियम होता है और वह तब तक विधि नहीं बन सकता जब तक कि उसे संसद की दोनों सभाओं का अनुमोदन और भारत के राष्ट्रपति की अनुमति न मिल जाए।
विधान संबंधी कार्यवाही विधेयक के संसद की किसी भी सभा में पुर:स्थापित किए जाने से आरंभ होती है। विधेयक किसी मंत्री या गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुर:स्थापित किया जा सकता है। मंत्री द्वारा पुर:स्थापित किए जाने पर विधेयक सरकारी विधेयक और गैर-सरकारी सदस्य द्वारा पुर:स्थापित किए जाने पर गैर-सरकारी विधेयक कहलाता है।
विधेयक को स्वीकृति हेतु राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व संसद की प्रत्येक सभा अर्थात लोक सभा और राज्य सभा द्वारा तीन बार वाचन किया जाता है।.
प्रथम वाचन
प्रथम वाचन (एक) सभा में विधेयक पुर:स्थापित करने हेतु अनुमति के लिए प्रस्ताव जिसे स्वीकार करने के संबंध में विधेयक पुर:स्थापित किया गया है, अथवा (दो) विधेयक के आरंभ होने और अन्य सभा द्वारा पारित किए, अन्य द्वारा पारित विधेयक को सभा पटल पर रखे जाने की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है।
द्वितीय वाचन
द्वितीय वाचन में दो प्रक्रम हैं। “पहले प्रक्रम” में विधेयक के सिद्धांतों और निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रस्तावों पर सामान्यत: इनके उपबंधों पर चर्चा होती है कि विधेयक पर विचार किया जाए, अथवा विधेयक को सभा की प्रवर समिति के पास भेजा जाए; अथवा विधेयक को अन्य सभा की सहमति से सभाओं की संयुक्त समिति के पास भेजा जाए; अथवा विधेयक को संबंधित विषय पर राय लेने के उद्देश्य से परिचालित किया जाए। ‘दूसरे प्रक्रम’ में यथास्थिति सभा में पुर:स्थापित अथवा प्रवर अथवा संयुक्त समिति द्वारा प्रतिवेदन के अनुसार विधेयक पर खंडवार विचार किया जाता है।
राज्य सभा द्वारा पारित किए जाने और लोक सभा को भेजे जाने की स्थिति में विधेयक को लोक सभा के महासचिव द्वारा पहले लोक सभा के पटल पर रखा जाता है। इस स्थिति में द्वितीय वाचन प्रस्ताव के बारे में उल्लेख करता है (एक) कि राज्य सभा द्वारा यथापारित विधेयक पर विचार किया जाए; अथवा (दो) कि विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजा जाए (यदि विधेयक को पहले से सदनों की संयुक्त समिति को नहीं भेजा गया है)।
तृतीय वाचन
तृतीय वाचन प्रस्ताव पर उस चर्चा का उल्लेख करता है कि विधेयक अथवा यथासंशोधित विधेयक को पारित किया जाए।
राज्य सभा में पुर:स्थापित विधेयकों के संबंध में लगभग यही प्रक्रिया अपनायी जाती है।
संसद के सदनों द्वारा विधेयक को अंतिम रूप से पारित किए जाने के पश्चात राष्ट्रपति की अनुमति हेतु प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति की अनुमति के पश्चात यह विधेयक विधि बन जाता है।
विधेयकों को विभाग से संबंधित स्थायी समितियों के पास भेजना
वर्ष 1993 में विभाग से संबंधित 17 स्थायी समितियों के गठन के पश्चात भारतीय संसद के इतिहास में नए युग का सूत्रपात हुआ। अब, स्थायी समितियों की संख्या को 17 से बढ़ाकर 24 कर दिया गया है। 8 समितियां राज्य सभा के सभापति के निदेश से कार्य करती हैं जबकि 16 समितियां लोक सभा अध्यक्ष के निदेश से कार्य करती हैं।
राज्य सभा के सभापति अथवा लोक सभा अध्यक्ष, जैसी भी स्थिति हो, द्वारा किसी भी सभा में पुर:स्थापित ऐसे विधेयकों की जांच और इस संबंध में प्रतिवेदन प्रस्तुत करना इन समितियों का महत्वपूर्ण कार्य है।
स्थायी समितियों के प्रतिवेदनों का प्रत्ययकारी महत्व होता है। यदि सरकार समिति की किसी सिफारिश को स्वीकार कर लेती है तो वह विधेयक पर विचार किए जाने के प्रक्रम में सरकारी संशोधन प्रस्तुत कर सकती है अथवा स्थायी समिति के प्रतिवेदन के अनुसार विधेयक को वापस लिया जा सकता है और स्थायी समिति की सिफारिशों को सम्मिलित करने के पश्चात एक नया विधेयक ला सकती है।
प्रवर समिति अथवा संयुक्त समिति के समक्ष विधेयक
यदि कोई विधेयक प्रवर अथवा संयुक्त समिति को सौंपा जाता है, तो समिति सभा के समान विधेयक पर खंडवार विचार करती है। समिति के सदस्य विभिन्न खंडों पर संशोधन प्रस्ताव कर सकते हैं। सभा में प्रवर अथवा संयुक्त समिति का प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाने के पश्चात विधेयक के प्रभारी सदस्य द्वारा सामान्यत: प्रवर समिति अथवा संयुक्त समिति, जैसी भी स्थिति हो, के प्रतिवेदन के अनुसार सभा में विधेयक पर विचार करने हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है।
किसी धन विधेयक अथवा वित्त विधेयक को, जिसमें किसी विधेयक को धन विधेयक बनाने संबंधी कोई प्रावधान अंतर्विष्ट हों, किसी भी सभा की संयुक्त समिति के पास नहीं भेजा जा सकता।
राज्य सभा में कतिपय प्रवर्गों के विधेयकों के पुर:स्थापन संबंधी प्रतिबंध
कोई विधेयक संसद की किसी की सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। तथापि धन विधेयक राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जा सकता है। इसे राष्ट्रपति की लोक सभा में पुर:स्थापित करने संबंधी पूर्व सिफारिश के साथ केवल लोक सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं यदि इस बारे में कोई प्रश्न उठता है तो इस संबंध में अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।
राज्य सभा के लिए, लोक सभा द्वारा पारित और पारेषित किसी धन विधेयक को उसकी प्राप्ति के 14 दिनों के अंदर वापस भेजना अनिवार्य है। राज्य सभा पारेषित धन विधेयक को सिफारिशों के साथ अथवा बिना सिफारिश के वापस भेज सकती है। लोक सभा, राज्य सभा की सभी अथवा किसी सिफारिश को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है। तथापि, यदि राज्य सभा किसी धन विधेयक को 14 दिनों की निर्धारित अवधि के बाद भी वापस नहीं भेजती, तो उस विधेयक को उक्त 14 दिनों की अवधि की समाप्ति के बाद संसद की दोनों सभाओं द्वारा उसी रूप में पारित हुआ माना जाएगा जिस रूप में उसे लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। धन विधेयक की ही तरह वे विधेयक जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ अनुच्छेद 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से (च) में उल्लिखित किसी भी विषय से संबंध रखने वाले उपबंध हों को भी राज्य सभा में पुर:स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्हें राष्ट्रपति की सिफारिश पर केवल लोक सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। तथापि ऐसे विधेयकों पर धन विधेयक संबंधी अन्य प्रतिबंध लागू नहीं होते।
संविधान संशोधन विधेयक
संविधान ने संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति दी है। संविधान संशोधन विधेयक, संसद की किसी भी सभा में पुर:स्थापित किया जा सकता है। जबकि संविधान संशोधन विधेयक के पुर:स्थापन हेतु प्रस्तावों को सामान्य बहुमत, सभा के कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृत किया जाता है और इन विधेयकों पर विचार करने और इन्हें पारित करने के लिए प्रभावी खंडों तथा प्रस्तावों को स्वीकृत करने हेतु मतदान आवश्यक होता है। संविधान के अनुच्छेद 368(2) के परंतुक सूचीबद्ध महत्वपूर्ण मुद्दों से संबंधित संविधान संशोधन विधेयकों को संसद की सभाओं द्वारा पारित किए जाने के बाद, कम से कम आधे राज्य विधान मंडलों द्वारा इसका अनुसमर्थन किया जाना आवश्यक है।
संयुक्त बैठक
संविधान के अनुच्छेद 108(1) में यह उपबंध है कि जब किसी सभा द्वारा पारित किसी विधेयक, (धन विधेयक अथवा संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को छोड़कर) को अन्य सभा द्वारा अस्वीकार किए जाने या विधेयक में किए गए संशोधनों के बारे में दोनों सभाएं अंतिम रूप से असहमत होने या दूसरी सभा को विधेयक प्राप्त होने की तारीख से उसके द्वारा विधेयक पारित किए बिना छह मास से अधिक बीत जाने पर लोक सभा का विघटन होने के कारण यदि विधेयक व्यपगत नहीं हो गया है तो राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुलाने के लिए आमंत्रित करने के आशय की अधिसूचना, यदि वे बैठक में है तो संदेश द्वारा यदि वे बैठक में नहीं है तो अधिसूचना द्वारा देगा।
राष्ट्रपति ने सभाओं की संयुक्त बैठक संबंधी प्रक्रिया के विनियमन हेतु संविधान के अनुच्छेद 118 के खंड (3) के अनुसार संसद (संयुक्त बैठक और संचार) नियम बनाए हैं।
अभी तक ऐसा तीन बार हुआ है जब संसद की संयुक्त बैठक में विधेयक पर विचार और पारित किया गया हैं।
विधेयकों पर अनुमति
जब कोई विधेयक संसद की दोनों सभाओं द्वारा पारित कर दिया जाए तो वह राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति विधेयक पर या तो अनुमति दे सकता है या अपनी अनुमति रोक सकता है या यदि वह धन विधेयक न हो, तो उसे इस संदेश के साथ वापस भेज सकता है कि उस विधेयक या उसके कुछ निर्दिष्ट उपबंधों पर विचार किया जाए या ऐसे संशोधनों के पुर:स्थापन होने की वांछनीयता पर विचार किया जाए जिनकी सिफारिश उसने अपने संदेश में की हो।
राष्ट्रपति धन विधेयक पर या तो अनुमति दे सकता है या अपनी अनुमति रोक सकता है। राष्ट्रपति धन विधेयक को पुन:विचार करने हेतु सदन को नहीं लौटा सकता है। राष्ट्रपति संसद द्वारा, निर्धारित विशेष बहुमत से और जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों की अपेक्षित सदस्य संख्या द्वारा अनुसमर्थित, पारित संविधान संशोधन विधेयक पर अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है।