बाजार दर्शन’ (Bajar Darshan) श्री जैनेंद्र कुमार द्वारा रचित एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें गहन वैचारिकता और साहित्य सुलभ लालित्य का मणिकांचन संयोग देखा जा सकता है। यह निबंध उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की मूल अंतर वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। जैनेंद्र जी ने इस निबंध के माध्यम से अपने परिचित एवं मित्रों से जुड़े अनुभवों को चित्रित किया है कि बाजार की जादुई ताकत कैसे हमें अपना गुलाम बना लेती है। उन्होंने यह भी बताया है कि अगर हम आवश्यकतानुसार बाजार का सदुपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं लेकिन अगर हम जरूरत से दूर बाजार की चमक-दमक में फंस गए तो वह असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल कर हमें सदा के लिए बेकार बना सकता। है। इन्हीं भावों को लेखक ने अनेक प्रकार से बताने का प्रयास किया है। चलिए जानते हैं Bajar darshan के लेखक परिचय, पाठ का सारांश, शब्द अर्थ, प्रश्न और उत्तर के बारे में। Show बाजार दर्शन पाठ के लेखक का परिचयSource – Hindi Kunjप्रसिद्ध उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार का जन्म 1905 ई० में अलीगढ़ में हुआ था। बचपन में ही इनके पिता जी का देहांत हो गया तथा इनके मामा ने ही इनका पालन-पोषण किया। इनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा हस्तिनापुर के गुरुकुल में हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस में ग्रहण की। 1921 ई० में गांधी जी के प्रभाव के कारण इन्होंने पढ़ाई छोड़कर असहयोग अांदोलन में भाग लिया। अंत में ये स्वतंत्र रूप से लिखने लगे। इनकी साहित्य-सेवा के कारण 1984 ई० में इन्हें ‘भारत-भारती’ सम्मान मिला। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। इनका देहांत सन 1990 में दिल्ली में हुआ। रचनाएँ
जैनेंद्र की पहचान अत्यंत गंभीर चिंतक के रूप में रही। इन्होंने सरल व अनौपचारिक शैली में समाज, राजनीति, अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित गहन प्रश्नों को सुलझाने की कोशिश की है। ये गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे। इन्होंने गांधीवादी चिंतन दृष्टि का सरल व सहज उपयोग जीवन-जगत से जुड़े प्रश्नों के संदर्भ में किया है। ऐसा उपयोग अन्यत्र दुर्लभ है। इन्होंने गांधीवादी सिद्धांतोंजैसे सत्य, अहिंसा, आत्मसमर्पण आदि-को अपनी रचनाओं में मुखर रूप से अभिव्यक्त किया है। भाषा-शैली-जैनेंद्र जी की भाषा-शैली अत्यंत सरल, सहज व भावानुकूल है जिसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग बहुलता से हुआ है परंतु तद्भव और उर्दू-फ़ारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग अत्यंत सहजता से हुआ है। पाठ का सारांशबाजार दर्शन पाठ का सारांश नीचे दिया गया है- प्रतिपादय ‘बाजार दर्शन’ (Bajar Darshan) निबंध में गहरी वैचारिकता व साहित्य के सुलभ लालित्य का संयोग है। कई दशक पहले लिखा गया यह लेख आज भी उपभोक्तावाद व बाजारवाद को समझाने में बेजोड़ है। जैनेंद्र जी अपने परिचितों, मित्रों से जुड़े अनुभव बताते हुए यह स्पष्ट करते हैं कि बाजार की जादुई ताकत मनुष्य को अपना गुलाम बना लेती है। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फेंसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं। लेखक ने कहीं दार्शनिक अंदाज में तो कहीं किस्सागो की तरह अपनी बात समझाने की कोशिश की है। इस क्रम में इन्होंने केवल बाजार का पोषण करने वाले अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र बताया है। सारांश
बाजार दर्शन पाठ का उद्देश्यलेखक बाजार दर्शन पाठ में अपने मित्र की बात बताता है कि उसका मित्र बाज़ार में एक सामान लेने जाता है लेकिन लेकर बहुत कुछ आ जाता है। बाज़ार हमें आकर्षित करता है हमें जो चीज़े नहीं लेनी वह भी ले लेते है। लेखक अपने दूसरे मित्र की बात बताते है कि वह बाज़ार जाता है और खाली हाथ वह वापिस आ जाता है। उसे समझ नहीं आता की कोन सी चीज़ खरीदूं और रहने दूँ । अपनी चाह का पता न हो तो ऐसे ही होता है कि क्या सामान खरीदें। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फेंसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं। फालतू चीज की खरीद का प्रमुख कारण बाजार का आकर्षण है। बाजार में रूप का जादू है। बाज़ार का असर हमें हमेशा होता है चाहे जेब खाली हो या भरी हो। बाज़ार हमारे मन को भटकता है। बाजार दर्शन पाठ के शब्दार्थबाजार दर्शन पाठ के शब्दार्थ इस प्रकार हैं:
बाजार दर्शन प्रश्न-उत्तरबाजार दर्शन प्रश्न-उत्तर इस प्रकार हैं: प्रश्न 1: 1 आदिकाल से ही स्त्री को महत्वपूर्ण माना गया है। स्त्री (पत्नी) ही महिमा है और इस महिमा का प्रशंसक उसका पति है। वही इसकी प्रमुखता को प्रमाणित कर रहा है। मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो । सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज है।
अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफ़ी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है, ओह! कोई अपने को न जाने तो बाजार का यह चौक उसे कामना से विकल बना छोड़े। विकल क्यों, पागल। असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल करके मनुष्य को सदा के लिए यह बेकार बना डाल सकता
है। लेखक की कल्पना के अनुसार गद्यांश के आरंभ में कौन, किससे और क्या कह रहा है? ‘चाह’ का मतलब ‘अभाव’ क्यों कहा गया है ? बाजार, आदमी की सोच को बदल देता हैं-यद्यश के आधार पर स्पष्ट कीजिए? बाज़ार के चौक के बारे में क्या बताया गया हैं? 1 गद्यांश के आरंभ में बाजार ग्राहक से कह रहा है कि ‘आओ मुझे लूटो । सब भूल जाओ, मुझे देखो। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ।” 2 ‘चाह’ का अर्थ है-इच्छा, जो बाजार के मूक आमंत्रण से हमें अपनी ओर आकर्षित करती है और हम भीतर महसूस करके सोचते हैं कि आह! यहाँ कितना अधिक है और मेरे यहाँ कितना कम है। इसलिए ‘चाह’ का मतलब है ‘ अभाव’ । 3 आदमी जब बाजार में आता है तो वहाँ की चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। बाजार में अपरिमित फैक्एँदेवक वाहसचता हैकिउसके पास कनाकपा है। इसप्रकर बाजरउसी सचमें बादतावल देता है। 4 बाजार का चौक हमें विकल व पागल कर सकता है। असंतोष, तृष्णा और ईष्र्या से घायल मनुष्य को सदा के लिए बेकार कर देता है। बाजार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीज़ों का निमन्त्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं उस वक्त जेब भरी हो तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लें. वह भी लें। सभी सामान जरूरी और आराम को
बढ़ाने वाला मालूम होता है। 1 बाजार का जादू हमेशा ‘आँख की राह’ से इस तरह काम करता है कि बाजार में
सजी सुंदर वस्तुओं को हम आँखों से देखते है और उनकी सुंरताप आकृष्ट होकर आवश्यकता न होने पर भी उन्हे खरीदने के लिए ललानित हो उठते है। पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा-सा उपाय है। वह यह कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो। मन खाली हो, तब बाजार न जाओ। कहते हैं लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए। पानी भीतर हो, लूका लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य में भरा हो तो
बाजार भी फैला-का-फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ-न-कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना। 1 बाजार के जादू की पकड़ से बचने का सीधा-सा उपाय यह है कि जब ग्राहक बाजार
में जाए तो उसके मन में भटकाव नहीं होना चाहिए। उसे अपनी जरूरत के बारे में स्पष्ट पता होना चाहिए। यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत जरूरी है।
मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तप: ‘ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है। वैसे तप की राह रेगिस्तान को जाती होगी, मोक्ष की राह वह नहीं है। ठाठ देकर मन को बंद कर रखना जड़ता है। 1 ‘मन खाली होने’ का अर्थ है-निश्चित लक्ष्य न होना। ‘मन बंद होने’ का अर्थ है-इच्छाओं का समाप्त हो जाना। बाजार दर्शन प्रश्न-उत्तरबाजार दर्शन प्रश्न-उत्तर इस प्रकार हैं: प्रश्न 1: बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता हैं? उत्तर – जब बाज़ार का जादू चढ़ता है तो व्यक्ति फिजूल की खरीददारी करता है। वह उस सामान को खरीद लेता है जिसकी उसे ज़रूरत नहीं होती। वास्तव में जादू का प्रभाव गलत या सही की पहचान खत्म कर देता है। लेकिन जब यह जादू उतरता है तो उसे पता चलता है कि बाज़ार की चकाचौंध ने उन्हें मूर्ख बनाया है। जादू के उतरने पर वह केवल आवश्यकता का ही सामान खरीदता है ताकि उसका पालन-पोषण हो सके। प्रश्न 2: बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता हैं? क्या आपकी नजर में उनका आचरण समाज में शांति-स्थापित करने में मददगार हो सकता हैं? उत्तर – बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का यह सशक्त पहलू उभरकर आता है कि उनका अपने मन पर पूर्ण नियंत्रण है। वे चौक-बाजार में आँखें खोलकर चलते हैं। बाजार की चकाचौंध उन्हें भौचक्का नहीं करती। उनका मन भरा हुआ होता है, अत: बाजार का जादू उन्हें बाँध नहीं पाता। उनका मन अनावश्यक वस्तुओं के लिए विद्रोह नहीं करता। उनकी जरूरत निश्चित है। उन्हें जीरा व काला नमक खरीदना होता है। वे केवल पंसारी की दुकान पर रुककर अपना सामान खरीदते हैं। ऐसे व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकते हैं क्योंकि इनकी जीवनचर्या संतुलित होती है। प्रश्न 3: ‘बाजारूपन’ से तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते है अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमे है ? उत्तर –बाज़ारूपन से तात्पर्य है कि बाजार की चकाचौंध में खो जाना। केवल बाजार पर ही निर्भर रहना। वे व्यक्ति ऐसे बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं जो हर वह सामान खरीद लेते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत भी नहीं होती। वे फिजूल में सामान खरीदते रहते हैं अर्थात् वे अपना धन और समय नष्ट करते हैं। लेखक कहता है कि बाजार की सार्थकता तो केवल ज़रूरत का सामान खरीदने में ही है तभी हमें लाभ होगा। प्रश्न 4: बाज़ार किसी का लिंग ,जाति ,धर्म या क्षेत्र नहीं दिखाया ? वह देखता है सिर्फ़ उसकी क्रय -शक्ति को। इस रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत है ? उत्तर – यह बात बिलकुल सही है कि बाजार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता। वह सिर्फ ग्राहक की क्रय-शक्ति को देखता है। उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि खरीददार औरत है या मर्द, वह हिंदू है या मुसलमान; उसकी जाति क्या है या वह किस क्षेत्र-विशेष से है। बाजार में उसी को महत्व मिलता है जो अधिक खरीद सकता है। यहाँ हर व्यक्ति ग्राहक होता है। इस लिहाज से यह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आज जीवन के हर क्षेत्र-नौकरी, राजनीति, धर्म, आवास आदि-में भेदभाव है, ऐसे में बाजार हरेक को समान मानता है। यहाँ किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाता क्योंकि बाजार का उद्देश्य सामान बेचना है। प्रश्न 5: आप अपने तथा समाज से कुछ ऐसे प्रकार का उल्लेख करें – उत्तर –
जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ – समाज में ऐसे अनेक प्रसंग हैं जिसमें पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।’निठारी कांड’ में पैसे की ताकत साफ़ दिखाई देती है। प्रश्न 6: ‘बाजार दर्शन‘ (Bajar Darshan)
पात में बाजार जाने या न जाने के संर्दभ में मन की कहूँ स्थितियों का जिक आया हैं। जाप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुमबी‘ का वर्णन कीजिए। उत्तर – कई बार तो मन करता है कि बाज़ार जाकर इस उपभोक्तावादी संस्कृति के अंग बन जाएँ। सारा सामान खरीद लें ताकि बाजारवाद का प्रभाव हम पर भी पड़ सके। प्रश्न 7: ‘बाजार दर्शन‘ (Bajar Darshan) पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बताइए है?आप स्वयं की किस श्रेर्णा का प्राहक मानते/मानती हैं? उत्तर – “बाजार दर्शन (Bajar Darshan) है पाठ में कई प्रकार के ग्राहकों की बाते हुई हैं उगे निम्नलिखित है– प्रश्न 8: आप बाजार की भिन्न -भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होगे । मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती हैं? उत्तर – आज बाजार मुख्यतः तीन संस्कृतियों में बँटा नज़र आता है। वास्तव में इन्हीं तीन संस्कृति के बाजार आज पूरे देश में फैले हुए हैं। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाजार की संस्कृति में बहुत. अंतर है। इसी प्रकार सामान्य बाज़ार में तथा हाट में काफ़ी अंतर है। सबसे महँगा मॉल है क्योंकि इसमें ब्रांडेड वस्तुएँ बेची जाती हैं। जबकि सामान्य बाजार में स्थानीय मार्का का सामान मिल जाता है। हाट की संस्कृति निम्न मध्यवर्गीय में बहुत प्रचलित है। हाट मुख्यतः ग्रामीण बाज़ार संस्कृति में है। पर्चेजिंग पावर तो मात्र मॉल में ही नजर आती है। प्रश्न 9: लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाजार में आवश्यकताएं शोषण का रूप धारण कर लेती हैं ।क्या आप इस विचार से सहमत है? तर्क सहित उत्तर दीजिए? उत्तर– हम इस विचार से पूर्णतया सहमत है कि कभी…कभी बाजार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है । आमतौर पर देखा जाता है कि जब गाहक अपनी आवश्यकता को बताता है तो दुकानदार उस वस्तु के दाम बढा देता है । हाल ही में चीनी के दामों में भारी उछाल आया क्योंकि इसकी कमी का अंदेशा था तथा यह आम आदमी के लिए जरूरी वस्तु थी । प्रश्न 10: ‘स्त्री माया न जोड़े‘ यहाँ ‘माया‘ शब्द किम और संकेत कर रहा हैं? स्कियो‘ दवारा माया जांड़ना प्रकृतिश्लेप्रदत्न नहीं बल्कि परिस्थितिवश हें । वे कौन–यो गांव/झा/दागों जी स्वी की माया जांड़न के लिए विवश कर देती हैं? उत्तर– कबीर जैसे कालजयी कवियों ने ‘माया’ को स्त्री माना है। यहाँ जैनेंद्र ने माया शब्द का अर्थ पैसा-रुपया बताया है। लेखक कहता है कि परिस्थितियों के कारण ही स्त्रियाँ पैसा जोड़ती हैं वरना पैसा जोड़ना तो वे सीखी ही नहीं है। स्त्रियाँ कई परिस्थितियों में पैसा जोड़ने पर विवश हो जाती हैं; यथा बाजार दर्शन MCQsबाजार दर्शन MCQs नीचे दिए गए हैं- 1. ‘बाज़ार दर्शन (Bajar Darshan)’ के रचयिता हैं- Ans- D. जैनेंद्र कुमार 2. ‘बाज़ार दर्शन (Bajar Darshan) ‘ का प्रतिपाद्य है-| Ans- A. बाज़ार के उपयोग का विवेचन 3. लेखक का मित्र किसके साथ बाज़ार गया था? Ans- C. पत्नी के साथ 4. क्या फालतू सामान खरीदने के लिए पत्नी को दोष देना उचित है? Ans- B. नहीं 5. लेखक के अनुसार पैसा क्या है? Ans- A. पावर है 6. भगत जी किस प्रकार के व्यक्ति हैं? Ans- B. संतोषी 7. बाज़ार के जादू का प्रभाव कब पड़ता है? Ans- A. जब ग्राहक का मन खाली होता है 8. हमें किस स्थिति में बाजार जाना चाहिए? Ans- B. जब मन खाली न हो 9. बाज़ार किसे देखता है? Ans- D. क्रय-शक्ति को 10. ‘बाज़ारूपन’ से क्या अभिप्राय है? Ans- B. बाज़ार से अनावश्यक वस्तुएँ खरीदना FAQsबाज़ारूपन से क्या अभिप्राय है? बाज़ारूपन से लेखक का अभिप्राय है कि बाज़ार को अपनी आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि दिखाने के लिए प्रयोग में लाना। इस प्रकार हम अपने सामर्थ्य से अधिक खर्च करते हैं और अनावश्यक वस्तुएँ खरीद लाते हैं, तो हम बाज़ारूपन को बढ़ावा देते हैं। बाजार का बाजारूपन कौन लोग बनाते हैं? जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। बाजार दर्शन पाठ में भगत क्या बेचता था? बाजार दर्शन पाठ में भगत चूरन बेचता था आशा करते हैं कि आपको Bajar Darshan Class 12 NCERT Solutions का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। यदि आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं, तो आज ही 1800 572 000 पर कॉल करके हमारे Leverage Edu के विशेषज्ञों के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें। वे आपको उचित मार्गदर्शन के साथ आवेदन प्रक्रिया में भी आपकी मदद करेंगे। बाजार को सार्थकता कौन दे सकता है?लेखक का मानना है कि बाजार को सार्थकता वह मनुष्य देता है जो अपनी जरूरत को पहचानता है। जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। ये कपट को बढ़ाते हैं जिससे सद्भाव घटता है।
बाजार कब कृतार्थ होता है?मन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ न कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे।
बाज़ार दर्शन पाठ का क्या संदेश है?इसे सुनेंरोकेंबाजार दर्शन पाठ का उद्देश्य अपनी चाह का पता न हो तो ऐसे ही होता है कि क्या सामान खरीदें। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं। इसके विपरीत, बाजार की चमक-दमक में फेंसने के बाद हम असंतोष, तृष्णा और ईष्या से घायल होकर सदा के लिए बेकार हो सकते हैं।
बाजार दर्शन का प्रतिपादन क्या है?'बाजार दर्शन' जैनेंद्र जी का एक महत्त्वपूर्ण निबंध है जिसमें गहन वैचारिकता और साहित्य सुलभ लालित्य का मणिकांचन संयोग दृष्टिगोचर होता है। यह लेखक का एक विचारात्मक निबंध है जिसमें उन्होंने रोचक कथात्मक शैली का प्रयोग किया है। उनकी भाषा सहज, सरल, प्रसंगानुकूल है। (i) अंग्रेज़ी-बंडल, एनर्जी, पर्चेजिंग पावर आदि।
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