चमड़ा में कौन सी संज्ञा है - chamada mein kaun see sangya hai

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

चमड़ा संज्ञा पुं॰ [सं॰ चर्म + अप॰ डा (स्वा॰ प्रत्य॰)]

१. प्राणियों के सारे शरीर का वह ऊपरी आवरण जिसके कारण मांस, नसें आदि दिखाई नहीं देतीं । चर्म । त्वचा । जिल्द । विशेष—चमड़े के दो विभाग होते हैं, एक भीतरी और दूसरा ऊपरी । भीतरी एसे तंतु पात्र के रूप में होता है जिसके अंदर रक्त, मजा आदि रहते और संचारित होते हैं । इसमें छोटी छोठी गुलथियाँ होती हैं । स्वेदधारक गुलयियाँ एक नली के रूप में होती है जिनका ऊपरी मुँह बाहरी चमड़े के ऊपर तक गया रहता है और निचला भाग कई फेरों में घूमी हुई गुलझटी के रूप में होता है । इसका अंश न पिघलकर अलग होता है और न छिलके के रूप में छूटता है । बाहरी चमड़ा या तो समय समय पर झिल्ली के रूप में छूटता या पिघलकर अलग होता है । यह वास्तव में चिपटे कोशों से बनी हुई सूखी कड़ी झिल्ली है जो झड़ती है और जिसके नाखून, पेंजे, खुर, बाल बनते हैं । मुहा॰—चमड़ा उधेड़ना या खींचता = (१) चमड़े को शरीर से अलग करना । (२) बहुत मार मारना । विशेष—दे॰ 'खाल खींचना' ।

२. प्राणियों के मृत शरीर पर से उतरा हुआ चर्म जिससे जुते, बैग आदि बहुत सी चीजें बनती हैं । खाल । चरसा । विशेष—काम में लाने के पहले चमड़ा सिझाकर नरम किया जाता है । सिझाने की क्रिया एक प्रकार की रासायनिक क्रिया है, जिसमें टनीन, फिटकरी, कसीस आदि द्रव्यों के संयोग से चर्मस्थित द्रव्यों में परिवर्तन होता है । भारतवर्ष में चमड़े को सिझाने के लिये उसे उसे बबूल, बहेड़े, कत्थे, बलूत, आदि की छाल के काढ़े में डुबाते हैं । पशुभेद से चमड़ों के भिन्न भिन्न नाम होते हैं । जैसे—बरदी (बैर का), भैंसोरी (भैंस का), गोखा (गाय का), किरकिल, कीमुख्त, (गदहे या घो़ड़े का दानेदार), मुरदरी (मरी लाश का), साबर, हुलाली इत्यादि । मुहा॰—चमड़ा सिझाना—चमड़े को बबूल की छाल, सज्जी, नमक आदि के पानी में डालकर मुलायम करना ।

३. छाल । छिलका ।

चमड़ा जानवरों की खाल को कमा कर प्राप्त की गयी एक सामग्री है। कमाना या चर्मशोधन एक प्रक्रिया है जो पूयकारी खाल को एक टिकाऊ और विभिन्न प्रयोगों मे आने वाली सामग्री में परिवर्तित कर देती है। चमड़ा बनाने में मुख्यतः गाय और भैंस की खाल का प्रयोग किया जाता है। लकड़ी और चमड़ा ही दो ऐसी सामग्री हैं जो अधिसंख्य प्राचीन तकनीकों का आधार हैं। चमड़ा उद्योग और लोम उद्योग अलग अलग उद्योग हैं और उनकी यह भिन्नता उनके द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल के महत्व से पता चलती है। जहां चमड़ा उद्योग का कच्चा माल मांस उद्योग का एक उपोत्पाद है वहीं लोम चर्म उद्योग में लोम की मांस से अधिक महत्वता है। चर्मप्रसाधन भी जानवरों की खालों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इसमें आमतौर पर सिर और पीठ का हिस्सा ही प्रयोग में आता है। चर्म और खाल से गोंद और सरेस (जिलेटिन) का उत्पादन भी किया जाता है।

उपयोग[संपादित करें]

चमड़े का उपयोग अनेकों कामों में होता है, जैसे जूता, कपड़ा, दास्ताने, पुस्तकों की बाइण्डिंग, मूर्ति, फर्नीचर, एवं शस्त्र आदि।

  • दास्ताने

  • पुस्तक की बाइंडिंग

  • चमड़े के जयपुरी बैग

  • चमड़े की जयपुरी जूती

  • चमड़े की जयपुरी जूतियाँ

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • चमड़ा उद्योग

चमड़ा में संज्ञा क्या है?

चमड़ा संज्ञा अर्थ : मृत पशुओं की उतारी हुई छाल जिससे जूते आदि बनते हैं। उदाहरण : वह चमड़े का काम करता है।

गेहूं में कौन सी संज्ञा है?

'गेहूँ' और 'जौ' अलग-अलग किस्म के अनाजों के नाम हैं इसलिए ये दोनों व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं और 'अनाज' जातिवाचक संज्ञा है।

चमड़े का दूसरा नाम क्या है?

चर्म । त्वचा । जिल्द । विशेष—चमड़े के दो विभाग होते हैं, एक भीतरी और दूसरा ऊपरी ।

गाय में कौन सी संज्ञा है?

Detailed Solution. 'गाय' 'जातिवाचक' संज्ञा है क्योंकि इससे सम्पूर्ण 'गाय' जाति का बोध हो रहा है।

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