मात्रा कैसे गिनें और मात्रा गणना कैसे करें-matra kaise gine-matra count kese kare
हिंदी भाषा जो कि हमारी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है जिसके बिना हम किसी के सामने अपने भाव प्रस्तुत नहीं कर पाते हैं इस हिंदी भाषा में मात्राओं का एक अहम योगदान होता है। एक रचना तभी रची जाती है जब उसमें मात्राओं का ध्यान रखा गया हो। इतना ही नहीं छंद वाली रचनाओं में एक-एक मात्रा का बहुत ही ज्यादा योगदान होता है। केवल एक मात्रा की गलती से पूरी रचना गलत हो जाती है। मात्रा गणना दोहा लिखना, रोला लिखना, गजल आदि लिखने में सहायक होती है। हिंदी में छंद में दो तरह से रचनाएं लिखी जाती है। पहली मात्रिक छंद में दूसरी वर्णिक छंद में। मात्रिक छंद में रचनाएं लिखने के लिए मात्रा गणना आना बहुत ही जरूरी होता है।
मात्रा गणना क्या है-matra ganna kya hai
कविताओं में कई सारी विधाएं ऐसी होती है जिनमें मात्राओं के नियम होते हैं कि उनमें उतनी ही मात्राएं होना अनिवार्य होता है। हर विधा का अपना-अपना मात्राओं से जुड़ा एक नियम होता है। उसके लिए हमें मात्राएं गिनके उस रचना को लिखना होता है। वही मात्रा गणना कहलाती है।
मात्रा कैसे गिनते हैं-matra kaise ginte hain
मात्राएं गिनने के लिए मात्राओ को दो भागों में बांटकर गिना जा सकता है पहला लघु और दूसरा दीर्घ। लघु मात्राओं को 1 और दीर्घ मात्राओं को 2 गिनते हैं।
जैसे जितने भी सिंगल वर्ण होते हैं जिन पर कोई मात्राएं नहीं होती है उन्हें और छोटी मात्राओं से जुड़े वर्ण को 1 गिना जाता है। इसके अलावा बड़ी मात्राओं से जुड़े वर्णों को 2 गिना जाता है। इसके साथ ही अनुस्वार वाले वर्ण को भी 2 गिना जाता है।
जैसे-
गगन में निम्नलिखित मात्राएं हैं-
ग-1
ग-1
न-1 यानि गगन में 111 का मात्रा भार है और कुल मात्राएं 3 होगी।
दी-2
पि-1
का-2 यानि दीपिका शब्द में 212 का मात्रा भार है और कुल मात्राएं 5 होगी।
अब मात्रा गणना में एक प्रश्न सबके दिमाग में होता है कि अर्द्ध वर्णों को कैसे गिना जाता है।
अर्द्ध वर्ण को कैसे गिने-ardh varn kese count kare
किसी भी शब्द में आए गए अर्द्ध वर्ण को शून्य माना जाता है। जैसे- प्यार शब्द में प्+या+र यानि 0+2+1 होगा। इसी तरह लघु वर्ण के बाद यदि अर्द्ध वर्ण आता है तो उस अर्द्ध वर्ण से पहला लघु वर्ण दीर्घ मात्रा यानि 2 गिनाता है। जैसे- अध्याय शब्द में अ+ध्+या+य यानि 1+1+2+1 या 221 का मात्रा भार होगा।
तो दोस्तों उम्मीद करते हैं आपको मात्रा गणना के बारें में अच्छी जानकारी मिल गई होगी और आपको अब मात्रा गिनने में कठिनाई का अनुभव नहीं होगा। अगर आपको हमारी ये जानकारी पसंद आई हो, तो आप हमारी वेबसाइट को रोजाना देखा करें। मिलते हैं फिर से एक ऐसी ही पोस्ट के साथ तब तक के लिए लिखते रहिए।
-लेखक योगेन्द्र जीनगर ‘‘यश‘‘
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मात्रा गणना क्या है : - किसी ध्वनि-खंड को बोलने में लगनेवाले समय के आधार पर मात्रा गिनी जाती है। हिन्दी साहित्य में कई विधाएं ऐसी होती है जिसमे मात्रा निश्चित होती है एवम् उनके मात्राओं के नियम के अनुसार ही उनकी रचना संभव होती है।
मात्रा गणना नियम : -
छन्द बद्ध रचना के लिये मात्राभार की गणना का ज्ञान आवश्यक है , इसके निम्नलिखित नियम हैं :-
(१) ह्रस्व स्वरों की मात्रा १ होती है
जिसे लघु कहते हैं , जैसे - अ, इ, उ, ऋ
(२) दीर्घ स्वरों की मात्रा २
होती है जिसे गुरु कहते हैं,जैसे-आ, ई, ऊ,
ए,ऐ,ओ,औ
(३) व्यंजनों की मात्रा १ होती है , जैसे -
.... क,ख,ग,घ / च,छ,ज,झ,ञ / ट,ठ,ड,ढ,ण / त,थ,द,ध,न /प,फ,ब,भ,म /. य,र,ल,व,श,ष,स,ह
(४) व्यंजन में ह्रस्व इ , उ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार १ ही रहती है
(५) व्यंजन में दीर्घ स्वर आ,ई,ऊ,ए,ऐ,ओ,औ की मात्रा लगने पर उसका मात्राभार
.... २ हो जाता है
(६) किसी भी वर्ण में अनुनासिक लगने से
मात्राभार में कोई अन्तर नहीं पडता है,
.... जैसे - रँग=११ , चाँद=२१ , माँ=२ , आँगन=२११, गाँव=२१
(७) लघु वर्ण के ऊपर अनुस्वार लगने से उसका मात्राभार २ हो
जाता है , जैसे -
.... रंग=२१ , अंक=२१ , कंचन=२११ ,घंटा=२२ , पतंगा=१२२
(८) गुरु वर्ण पर अनुस्वार लगने से उसके मात्राभार में कोई अन्तर
नहीं पडता है,
.... जैसे - नहीं=१२ , भींच=२१ ,
छींक=२१ ,
.... कुछ विद्वान इसे अनुनासिक मानते हैं लेकिन मात्राभार
यही मानते हैं,
(९) संयुक्ताक्षर का मात्राभार १ (लघु) होता है , जैसे -
स्वर=११ , प्रभा=१२
.... श्रम=११ , च्यवन=१११
इसे ऐसे पढ़ा जाता है - स्व+र=११ , प्र+भा=१२, श्र+म=११ , च्य+वन=12
(१०) संयुक्ताक्षर में ह्रस्व मात्रा लगने से उसका मात्राभार १
(लघु) ही रहता है ,
..... जैसे - प्रिया=१२ , क्रिया=१२ , द्रुम=११ ,च्युत=११,
श्रुति=११
(११) संयुक्ताक्षर में दीर्घ मात्रा लगने से उसका
मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
..... जैसे - भ्राता=२२ , श्याम=२१ ,
स्नेह=२१ ,स्त्री=२ , स्थान=२१ ,
(१२) संयुक्ताक्षर से पहले वाले लघु वर्ण का मात्राभार २ (गुरु) हो जाता है ,
जैसे - नम्र=२१ , सत्य=२१ , विख्यात=२२१, कुल्हड़=211 सत्कर्म=221 धर्म=21 आदि। क्योंकि इन्हें क्रमशः नम्+र, सत्+य, विख्+यात और कुल्+हड़ पढ़ा जाता है। इनमें आधे अक्षर का भर पूर्व वर्ण पर पड़ता है।
(१३) संयुक्ताक्षर लघु वर्ण हो और उससे पूर्व गुरु वर्ण हो तो पूर्व वर्ण ले मात्राभार में कोई
अन्तर नहीं पडता है, अर्थात आधे अक्षर का मात्रा भार नहीँ गिना जाता है।
जैसे - हास्य=२१, शाश्वत=२११ , भास्कर=२११.
(14) अगर सयुंक्ताक्षर दीर्घ वर्ण हो और उसके
पूर्व भी दीर्घ वर्ण हो तो आधे वर्ण का मात्रा भार 1 गिना जाता है। जैसे-
रास्ता -2+1+2=5
आस्माँ-2+1+2=5
इसमें आधे अक्षर की 1 मात्रा मानी गई है। क्योंकि रास्ता को रास्+ता और आस्माँ को आस्+माँ पढ़ा जाता है।
अपवाद-
आत्मा को आ+त्मा पढ़ा जाता है इसलिए इसका मात्रा भार 2+2=4 होती है।
(15) संयुक्ताक्षर सम्बन्धी नियम (१२) के कुछ अपवाद भी हैं , जिसका आधार पारंपरिक उच्चारण है , अशुद्ध उच्चारण नहीं। देखना यह होता है कि उच्चारण मैं आधे अक्षर का भार किसके साथ जुड़ रहा है पूर्व वर्ण के साथ या बाद के वर्ण के साथ।
जैसे- तुम्हें=१२ , तुम्हारा/तुम्हारी/
तुम्हारे=१२२, जिन्हें=१२, जिन्होंने=१२२, कुम्हार=१२१, कन्हैया=१२२ , मल्हार=121, कुल्हाड़ी=122
इन सभी में आधे अक्षर का भार पूर्व वर्ण की बजाय संयुक्ताक्षर के साथ ही रहता है। इसलिए यहाँ पूर्व लघु वर्ण के मात्रा भार में कोई वृद्धि नहीं होती है। जैसे तु+म्हें=१२, तु+म्हा+रा/तु+म्हा+री/तु+म्हा+रे=१२२, जि+न्हें=१२, जि+न्हों+ने=१२२, कु+म्हा+र=१२१, क+न्है+या=१२२, कु+ल्हा+ड़ी=122