डिप्रेशन कितने दिन में ठीक हो जाता है? - dipreshan kitane din mein theek ho jaata hai?

अवसाद का इलाज उपलब्ध है। बस सतर्कता यह बरतनी है कि बीच में दवा न छोड़ें। इससे बीमारी गंभीर हो सकती है और लंबे समय तक दवा खानी पड़ सकती है। तनाव से इस रोग का फैलाव तेजी से हो रहा है।

गोरखपुर, जेएनएन : अवसाद का इलाज उपलब्ध है। बस सतर्कता यह बरतनी है कि बीच में दवा न छोड़ें। इससे बीमारी गंभीर हो सकती है और लंबे समय तक दवा खानी पड़ सकती है। भागदौड़ की जिंदगी में होने वाले तनाव से इस रोग का फैलाव तेजी से हो रहा है। इससे बचने के लिए सुबह-शाम टहलें। व्यायाम या योगाभ्यास करें। रुचिकर व सृजनात्मक कार्यों में समय व्यतीत करें। मन को प्रसन्न रखें। अवसाद हमेशा दूर रहेगा। यह सलाह जिला अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. अमित शाही ने दी है। वह दैनिक जागरण के लोकप्रिय कार्यक्रम 'हैलो डाक्टर' में मौजूद थे। लोगों ने फोन पर उनसे तनाव, अनिद्रा व अन्य बीमारियों के संबंध में सवाल पूछे। डा.शाही ने सभी को उचित परामर्श देकर संतुष्ट किया। प्रस्तुत हैं सवाल-जवाब।

सवाल- हमेशा तनाव रहता है। लगता है जैसे मस्तिष्क में कुछ चल रहा है।

जवाब- आधा घंटा तेज टहलिए। दूध व फलों का सेवन करें। पर्याप्त नींद लें।

सवाल- सिर में हल्का दर्द बना रहता है। घबराहट होती है।

जवाब- तनाव की वजह से ऐसा हो सकता है। ऐसा कोई काम न करें या सोचें जो तनाव दे। जिला अस्पताल में सोमवार, बुधवार या शुक्रवार को आकर दिखा लें।

सवाल- पत्नी को घबराहट होती है और अकारण संदेह करती हैं।

जवाब- डेरवा स्वास्थ्य केंद्र पर मैं हर माह के पहले गुरुवार को बैठता हूं। वहां या जिला अस्पताल आकर दिखा लें।

सवाल- रात को नींद नहीं आती है, बेचैनी रहती है।

जवाब- दिन में सोने की बजाय अपना समय रचनात्मक कार्यों में लगाएं, जिनसे आपको आनंद मिलता हो।

सवाल- अनिद्रा से परेशान हूं।

जवाब- दिन में न सोएं। रात 10 बजे के बाद मोबाइल, टीबी या इंटरनेट का उपयोग न करें।

सवाल- पत्नी को सिर व सीने में दर्द रहता है। सांस फूलती है, कभी-कभी उल्टी हो जाती है।

जवाब- माइग्रेन के लक्षण दिख रहे हैं। जिला अस्पताल में आकर दिखा लें।

सवाल- दो साल से रात में नींद नहीं आती है। चिड़चिड़ापन बना रहता है। घबराहट होती है।

जवाब- रुचिकर कार्य करें। दूध व फलों को भोजन में शामिल करें। सुबह टहलें, योग-व्यायाम करें। आराम न मिले तो जिला अस्पताल में दिखा लें।

सवाल- अवसाद की दवा कितने दिन चलती है?

जवाब- पहली बार अवसाद हुआ है तो दो माह में ठीक हो जाता है, लेकिन दवा लगभग नौ माह चलती है। इस बीच दवा छोडऩी नहीं चाहिए। दोबारा होगा तो दवा लंबी चल सकती है।

सवाल- मेरा बच्चा ढाई साल का है। 19 माह तक बोलता था। अचानक बोलना बंद कर दिया है।

जवाब- उसे लेकर जिला अस्पताल आ जाएं। देखने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

सवाल- पढ़ाई में मन नहीं लगता है। बहुत कोशिश के बाद भी कुछ याद नहीं होता है।

जवाब- जब पढ़ाई में मन नहीं लगेगा तो याद भी नहीं होगा। पढ़ने या सुनने के बाद उसे अपने मन से लिखें भी। अवसाद के लक्षण

-नींद न आना या अधिक नींद आना

-भूख न लगना या अधिक भूख लगना

-वजन बढ़ना या कम होना

-किसी काम में मन न लगना

-हमेशा उदास रहना, किसी से बात न करना

-लोगों के बीच उठने-बैठने से बचना

-हमेशा थकान महसूस करना

-आत्महत्या के विचार आना।

Edited By: Rahul Srivastava

तनाव, घबराहट, मूड ऑफ होना या फिर उदासी, ये सब लक्षण जिंदगी में एक बार नहीं आते। ये हर दिन आते-जाते रहते हैं। एक दिन में कई बार भी आ सकते हैं। इनके आने और जाने की प्रक्रिया चलती रहती है। लेकिन इन वजहों से हमारे काम, हमारा रुटीन, हमारी बॉडी लैंग्वेज, शरीर में ऊर्जा का स्तर अमूमन ज्यादा प्रभावित नहीं होता। जब ऐसे इमोशंस आकर ठहर जाएं और किसी के मन में अपना घर बनाने लगें तो दिक्कत है। जिस वजह से हमारे सामान्य काम भी प्रभावित होने लगें या उदासी का स्तर उस जगह तक पहुंचने लगे कि मन के भीतर से ऐसी आवाज आने लगे कि अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता, किसी से बात करने का मन बिलकुल न हो। उन सभी चीजों से मन पूरी तरह हट जाए जिनमें पहले काफी दिलचस्पी थी। डिप्रेशन का पूरी तरह इलाज मुमकिन
रातों की नींद उड़ जाए तो समझिए मामला गड़बड़ है। बड़ी बात यह है कि हर तरह के डिप्रेशन का पूरी तरह इलाज मुमकिन है। शुरुआत काउंसलिंग से हो सकती है और ज्यादा दिक्कत होगी तो शुगर और बीपी की तरह इसे दवा और लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ मैनेज किया जा सकता है। अगर लक्षणों पर ध्यान दें तो ज्यादातर बीमारियों को गंभीर होने से पहले रोका जा सकता है। डिप्रेशन भी हमारी ऐसी ही मानसिक परेशानी होती है। यह उदासी से किस तरह अलग है? कब डॉक्टर के पास जाएं, किन लक्षणों के आने के बाद इसे टालना खतरनाक हो सकता है, क्या इसकी दवा कभी बंद नहीं होती? ऐसे ही तमाम अहम सवालों के जवाब देश के बेहतरीन एक्सपर्ट्स से बात करके दे रहे हैं लोकेश के. भारती

कैसे होता है डिप्रेशन?
हमारे दिमाग तक संदेश पहुंचाने के लिए कुछ न्यूरोट्रांसमीटर होते हैं। इनमें सबसे अहम है सेरेटोनिन। यह हमारे मूड को भी रेग्युलेट करता है। इतना ही नहीं हमारे पाचन तंत्र के लिए भी यह दिमाग का संदेश पहुंचाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी कमी से डिप्रेशन की स्थिति बन सकती है। सेरेटोनिन की कमी से नींद में भी खलल पड़ता है। अमूमन दवा इसी को बढ़ाने के लिए दी जाती है।

सेरेटोनिन, डोपामाइन का भी है रोल
सेरेटोनिन के अलावा दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर भी अहम काम करते है। ऐसा ही एक न्यूरोट्रांसमीटर है डोपामाइन। यह हमारे मिड ब्रेन से निकलता है। इसे हैपी हॉर्मोन भी कहते हैं। जब इस हॉर्मोन की कमी होने लगती है तो हम अमूमन उदास रहने लगते हैं। इसी तरह दूसरे न्यूरोट्रांसमीटर हॉर्मोन हैं जो हमारी भावनाओं को काबू में रखते हैं। जब इनके स्तर में कमी आने लगती है तब डिप्रेशन वाली स्थिति बन सकती है। दिमाग के किस भाग से ये हॉर्मोन निकल रहे हैं और इनमें कितनी कमी आ रही है, इस आधार पर ही डिप्रेशन के मरीज में लक्षण भी उभरते हैं। ये हो सकते हैं कारण:

  • जेनेटिक यानी परिवार में किसी को पहले हो चुका है। इसलिए ऐसे लोग सचेत रहें।
  • कोई ऐसी घटना जिसके बाद लगे कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।
  • किसी करीबी के गुजर जाने से होने वाला खालीपन, जो भर न पाए।
  • जॉब या बिजनेस में नुकासन के बाद ऐसा लगे कि अब मैं शायद इससे उबर नहीं पाऊंगा।

सवाल: उदासी और डिप्रेशन में क्या फर्क है?
हर शख्स दिन में कई बार या हर दूसरे दिन किसी न किसी बात को लेकर कुछ वक्त के लिए उदास हो सकता है। इसका यह कतई मतलब नहीं कि वह डिप्रेशन में है। यह उदासी आती है और फिर कुछ समय बाद चली भी जाती है। अगर यह उदासी हर दिन में लगातार 10-15 घंटों से ज्यादा बनी रहे और यह क्रम कम से कम 14-15 दिनों तक चले। हंसना मुश्किल हो जाए या फिर कोई बनावटी हंसी हंसे तो वह डिप्रेशन का मरीज हो सकता है। उदासी भी डिप्रेशन का एक कारण है।


ये हैं डिप्रेशन की कैटिगरी
सवाल: क्या डिप्रेशन को कैटिगरी में भी बांट सकते हैं और डॉक्टर की जरूरत कब पड़ती है?
लक्षण और इसकी गंभीरता के आधार पर डिप्रेशन को 3 कैटिगरी में बांट सकते हैं:
1. माइल्ड डिप्रेशन: इसे डिप्रेशन की शुरुआत कह सकते हैं। डॉक्टर की जरूरत यहीं से पड़ती है। कई बार हम इस स्थिति को हल्के में ले लेते हैं। इसमें अमूमन दवा शुरू करने की जरूरत नहीं पड़ती।
हर दिन का रुटीन प्रभावित होने लगे।
उदासी हावी होने की कोशिश करे, पर पूरी तरह न हो पाए।
नींद खराब हो, लेकिन कुछ घंटे फिर भी सो पाएं।
भूख का कम या ज्यादा लगने लगे।
अपनी पसंद की चीजों से मन हटने लगे।
सिर दर्द की शिकायत भी शुरू हो जाए।
खुदकुशी का ख्याल मन में आने लगे।
बहुत जल्दी चिढ़न होने लगे।
सेक्स की इच्छा काफी कम हो जाए।
नशे की तरफ झुकाव हो जाए।
नोट: ये सभी चीजें लगातार 14 दिनों तक चलें तो काउंसलर से संपर्क करें।
क्या करें:
  • कभी-कभी दवाएं भी दी जाती हैं। मान लें कि किसी शख्स में बाकी लक्षण उसे परेशान नहीं कर रहे, लेकिन नींद में खलल उसे परेशान कर रहा है तो यह मुमकिन है कि उसे नींद बेहतर करने की ही दवा दी जाए।
  • अपना रुटीन दुरुस्त करने की कोशिश करें। इस स्थिति में खुद की कोशिश से लाइफस्टाइल में बदलाव हो सकता है। इसके बाद मुश्किल हो जाता है।

2. मॉडरेट डिप्रेशन
इसे माइल्ड डिप्रेशन से आगे की स्टेज कह सकते हैं। लेकिन इसमें लक्षण गंभीर होने लगते हैं। ऐसे में डॉक्टर के पास जाना बहुत जरूरी हो जाता है।
हर दिन का काम पूरी तरह डिस्टर्ब हो जाए। वह बात तो करे, लेकिन अपने ऑफिशल काम करने में सक्षम न हो।
  • नींद की स्थिति ज्यादा बुरी हो सकती है।
  • भूख बिलकुल न लगे या बहुत ही ज्यादा लगने लगे।
  • खुद को नुकसान पहुंचाने या खुदकुशी की इच्छा होने लगे।
  • सब कुछ छोड़कर कहीं भाग जाने का मन करने लगे।
  • जल्दी चिढ़ने लगे या कई बार हिंसक भी होने लगे।
  • बात करने से ही भागने लगे।
  • सेक्स की इच्छा न के बराबर हो जाए।
  • डिप्रेशन की वजह से नशे की शुरुआत हो जाए।
क्या करें:
- किसी सायकायट्रिस्ट से मिलें। अमूमन दवा दी जाती है। कई बार ये दवाएं 3 से 5 महीनों तक ही दी जाती हैं। डॉक्टर जो भी दवा दें, उन्हें लें।
- अगर अपना रुटीन दुरुस्त करने की स्थिति में हों तो जरूर करें। इसमें दवा और काउंसलिंग दोनों की जरूरत हो सकती है।

3. सीवियर डिप्रेशन
नाम से ही पता चल रहा है कि सीरियर डिप्रेशन में मरीज की स्थिति काफी गंभीर हो जाती है।

  • कुछ भी करना अच्छा नहीं लगे।
  • अपने हर पसंदीदा काम से खुद को अलग करने लगे।
  • प्रफेशनल ज़िंदगी लगभग खत्म हो जाए।
  • एनर्जी लेवल जीरो पर पहुंच जाए।
  • खाना खाए बिना रहने लगे।
  • सेक्स की इच्छा खत्म हो जाए।
  • खुद को नुकसान पहुंचाए या खुदकुशी की कोशिश करने लगे।
  • नशे की लत लग जाए।
  • खुद को Hopeless, Helpless और Worthless महसूस करना।

ध्यान दें कि सभी डिप्रेशन की कैटिगरी में, सभी डिप्रेशन के मरीजों में सारे लक्षण मौजूद होना जरूरी नहीं है। हां, इनमें से ज्यादातर लक्षण हो सकते हैं।
क्या करें:
  • सायकायट्रिस्ट की हर बात मानें।
  • कभी भी दवा को मिस न करें। एक बार भी मिस न करें। अगर किसी दवा को सुबह लेने के लिए कहा गया है और सुबह लेना भूल गए हैं तो उसे दोपहर, शाम या यहां तक कि रात तक भी याद आए तो ले लें क्योंकि जितनी देर तक दवा नहीं लेंगे, बीमारी के लक्षण उभरने लगेंगे।
  • अपनी मर्जी से कभी भी दवा बंद न करें। अगर ऐसा लगे कि मरीज पूरी तरह ठीक हो गया है, लेकिन डॉक्टर दवा दे रहा है तो दवा खाएं। ऐसा इसलिए क्योंकि डिप्रेशन कुछ समय बाद फिर लौटकर आ सकता है।
  • ECT और RTMS जैसी थेरपी भी कुछ लोगों को देनी पड़ जाती है। इनके बारे में हम 28 अगस्त के अंक में विस्तार से पढ़ेंगे।


डिप्रेशन का असर शरीर के दूसरे अंगों पर
  • चूंकि इसमें खानपान डिस्टर्ब हो जाता है। रुटीन पूरी तरह डिस्टर्ब हो जाता है। इसलिए हमारी इम्यूनिटी भी कम हो जाती है।
  • शरीर में दूसरे विटामिन्स और मिनरल्स भी कम हो जाते हैं।
  • अगर डिप्रेशन के साथ कोई दूसरी बीमारी भी हो तो उसके बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है क्योंकि दवा सही टाइम पर नहीं ले पाते। खानपान का भी ध्यान नहीं रख पाते।
  • डिप्रेशन के मरीज दवा व काउंसलिंग से नॉर्मल ज़िंदगी में लौट जाते हैं। पर्सनल और प्रफेशनल दोनों काम बढ़िया तरीके ने निपटाते हैं। लेकिन इलाज ठीक से न मिले तो परिवार और समाज पर बोझ बन सकते हैं।

ये डिसॉर्डर भी करते हैं परेशान
Seasonal Affective Disorder (SAD): इस तरह का डिप्रेशन सीजन यानी मौसम के साथ होता है। आमतौर पर सर्दियों में होता है और बसंत व गर्मी आने तक खत्म भी हो जाता है। अमूमन यह डिप्रेशन माइल्ड होता है। लेकिन किसी मामले में स्थिति गंभीर हो जाए तो साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट की मदद ले सकते हैं।

Premenstrual Dysphoric Disorder (PMDD): यह महिलाओं में होता है। इसके लक्षण पीरियड्स आने से पहले सप्ताह में दिखते हैं और पीरियड्स शुरू होने के बाद कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं। जो महिलाएं पीएमडीडी का अनुभव करती हैं, वे अक्सर पूरी क्षमता से काम नहीं कर पातीं। इसमें भी अमूमन वही लक्षण दिखते हैं तो डिप्रेशन में दिखते हैं। चिड़चिड़ापन, गुस्सा, घबराहट, उदासी रहती है। कुछ महिलाओं के मन में खुदकुशी तक का विचार आ जाता है।
वहीं मेनोपॉज के बाद भी कई महिलाओं में डिप्रेशन के लक्षण देखे जाते हैं। इस समय हॉर्मोनल तब्दीली आती है। ऐसे में महिलाएं जल्दी गुस्सा हो जाती हैं। उनमें कुछ खालीपन का अहसास होने लगता है। ऐसे में परिवार के दूसरे सदस्यों की यह जिम्मेदारी है कि उनका ख्याल रखें।

आयुर्वेद मेंडिप्रेशन के लिए उपाय

  • ब्राह्मी, जटामांसी, शंखपुष्पी, अश्वगंधा आदि का इस्तेमाल डिप्रेशन के इलाज में किया जाता है। इनसे दवाएं बनाई जाती हैं।
  • अश्वगंधारिष्ट, सारस्वतारिष्ट तैयार किया जाता है। ये हर्बल वाइन होते हैं। इनका उपयोग भी इलाज में किया जाता है।
  • शिरोधारा से भी फायदा होता है। इसमें तिल के तेल आदि में जटामांसी या दूसरी चीजें मिलाई जाती हैं। फिर सिर पर 45 मिनट के लिए धारा डाली जाती है।
  • योग और मेडिटेशन से भी फायदा होता है। यह इलाज का अहम हिस्सा है।
  • दवाओं की मात्रा क्या होगी, कब तक दवा देनी है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि लक्षण कैसे हैं और ये लक्षण किन वजहों से मरीज में आए हैं।

दवा से लेकर काउंसलिंग तक
सवाल: क्या डिप्रेशन के सभी मरीजों को दवा, काउंसलिंग और मेडिटेशन की जरूरत होती है?
इसके लिए हमें यह समझना होगा कि डिप्रेशन की वजह क्या है? डिप्रेशन शरीर की भीतरी और बाहरी, दोनों गड़बड़ियों की वजह से हो सकता है।

Endogenous Depression: जब डिप्रेशन की परेशानी शरीर के भीतरी कारण की वजह से जैसे: न्यूरोट्रांसमीटर (सेरेटोनिन, डोपामाइन) आदि की कमी हो तो इलाज में दवा की जरूरत पड़ती है। यह दवा कितने दिनों तक खानी है, यह काफी हद तक उसकी गंभीरता पर निर्भर करता है।

Exogenous depression: जब डिप्रेशन की वजह बाहरी कारण, जैसे कोई नजदीकी मर जाता है, जॉब या बिजनेस में भारी नुकसान हुआ हो तो कई बार काउंसलिंग से ही काम चल जाता है। इसमें मेडिटेशन भी काम करता है। कई लोग हवा-पानी बदलने की बात करते हैं यानी कहीं घुमाकर लाने या घूम आने के लिए कहते हैं। लेकिन कुछ लोगों को दवा भी लेनी पड़ सकती है।

आज का एक्‍सपर्ट पैनल


सवाल: बहुत सारे लोग सलाह देते हैं कि डिप्रेशन की दवाओं से बचना चाहिए, उनसे दिमागी हालत खराब हो जाती है या दवाओं पर निर्भरता हमेशा के लिए बन जाती है। सही क्या है?
इसमें दवा को दिमाग खराब करने के लिए नहीं, उसे ठीक करने के लिए दी जाती है। यह बीमारी भी दूसरी शारीरिक बीमारियों जैसे: डायबीटीज या हाइपरटेंशन जैसी ही है। इसलिए दवाएं भी उसी तरह दी जाती हैं। यह सोच पहले बन गई थी कि एक बार अगर दिमाग के लिए दवाएं शुरू कर देते हैं तो हमेशा ही लेनी पड़ती हैं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। इसमें दवा कब शुरू होगी और कब तक चलेगी, यह भी ठीक किसी शुगर या बीपी के मरीज की तरह तय होता है। अगर डिप्रेशन कम है तो चार-पांच महीने में दवा बंद कर देते हैं। अगर परेशानी बड़ी है तो यह साल-डेढ़ भी चल सकती हैं। कुछ लोगों में ऐसा देखा जाता है कि डिप्रेशन दोबारा आ जाता है। ऐसे लोगों को दोबारा दवा शुरू करनी पड़ती है।

सवाल: क्या डिप्रेशन को कम करने में खानपान भी मददगार हो सकता है?
मेंटल हेल्थ से जुड़ी हुई किसी भी समस्या से बचे रहने के लिए ब्रेन बूस्टर फूड्स का सेवन करें। ये ऐंटिऑक्सिडेंट (भोजन के पाचन के दौरान बनने वाले खतरनाक केमिकल्स को कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं और नई कोशिकाओं को बनाने में भी अहम भूमिका निभाते हैं।) से भरपूर और प्रोटीन युक्त होने चाहिए:

  • हर दिन 2 अखरोट या 8 बादाम रात में भिगोकर लेना चाहिए। बच्चों के लिए इसकी मात्रा आधी कर सकते हैं।
  • हर दिन एक मुट्ठी पंपकिन सीड्स (कद्दू के बीज)
  • सब्जियों में हल्दी की सही मात्रा, अगर दूध पचने में परेशानी न हो तो एक गिलास दूध में आधा या एक चम्मच हल्दी मिलाकर लें।
  • हर दिन एक या दो मौसमी ताजा फल, जैसे अमरूद, एक प्लेट पपीता, एक सेब आदि लें।
  • 20 से 30 ग्राम डार्क चॉकलेट लें। दरअसल इसमें ऑक्सीडेटिव पाए जाते हैं जो तनाव पैदा करने वाले हार्मोन को काबू में करते हैं।
  • माना जाता है कि शरीर में विटामिन-डी की कमी हो तो न्यूरोट्रांसमीटर भी कम होने लगते हैं। इसलिए हर दिन सुबह 8 से 11 बजे के बीच में 30 से 40 मिनट के लिए धूप में जरूर बैठें। इस दौरान जितना हो सके अपना शरीर खुला रखें। अगर विटामिन-डी की कमी ज्यादा हो तो सप्लिमेंट्स जरूर लें। विटामिन-डी के बारे में ज्यादा जानकारी चाहिए तो हमारे फेसबुक पेज SundayNbt पर जाएं और सर्च में vitamin-d टाइप करें। जानकारी ऊपर ही मिल जाएगी।
सवाल: क्या खुश दिखने वालों को भी डिप्रेशन होता है?
खुश रहने वाले अमूमन डिप्रेशन में कम होते हैं, लेकिन यह गारंटी नहीं होती। अगर यह खुशी ऊपरी है, बनावटी है तो खुश दिखने वाले भी डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। ऐसे लोगों से कुछ देर बात करने पर ही पता चल जाता है कि वे डिप्रेशन का शिकार हैं क्योंकि चेहरे पर खुशी जरूर दिखे, लेकिन बातों से नेगेटिविटी, उदासी झलकती है। साथ ही, उनकी रातों की नींद खराब होगी। वे प्रफेशनल काम भी ठीक से नहीं कर पाते हैं।

सवाल: किसी को डिप्रेशन है, इसका पता उसे खुद चल सकता है या कोई दूसरा ही बता सकता है?
ज्यादातर लोगों को यह पता चल जाता है कि उनके साथ सब कुछ सामान्य नहीं है। उनका रुटीन बदल गया है। उनका काम में बिलकुल मन नहीं लगता। हां, इलाज में वे कई बार कोताही कर सकते हैं। ऐसे में उनके करीबी और दोस्तों की भी यह जिम्मेदारी है कि उन्हें सायकायट्रिस्ट के पास ले जाएं। हां, बच्चों के मामलों में पेरंट्स को ध्यान देने की जरूरत होती है। अमूमन बच्चे समझ नहीं पाते कि उनके साथ जो असामान्य हो रहा है, वह कोई बीमारी है।

सवाल: क्या बच्चे भी डिप्रेशन में जा सकते हैं, लक्षण क्या हैं?
डिप्रेशन की परेशानी बच्चों में कम देखी जाती है, लेकिन ऐसे मामले होते हैं। खासकर ऐसे बच्चों में जिनके पेरंट्स आपस में ज्यादा लड़ते हैं। यह लड़ाई अगर हिंसक हो जाए तो स्थिति और बुरी हो सकती है। वहीं जिनके पेरंट्स अलग-अलग रहते हों, उन बच्चों में भी ऐसे मामले देखे जा सकते हैं। दरअसल, ऐसे बच्चों में अपने भविष्य को लेकर चिंता घर कर जाती है। वे डर जाते हैं। चूंकि वे मम्मी और पापा, दोनों के साथ रहना चाहते हैं, लेकिन मजबूरी में उन्हें किसी एक को चुनना पड़ता है। यह उनके मन पर चोट करता है।
लक्षण:

  • पढ़ाई में मन बिलकुल नहीं न लगे।
  • अपने दोस्तों और भाई या बहन से बिना मतलब लड़ाई करें।
  • बहुत ज्यादा उदास रहें।
  • उस खेल से भी मुंह मोड़ लें, जो बहुत पसंद था।
  • स्कूल नहीं जाने के बहाने खोजें।
  • अक्सर अकेले में उदास बैठे रहें या रोते रहें।
  • हमेशा कुछ सोचते रहें।
सवाल: किस उम्र में डिप्रेशन की परेशानी ज्यादा देखी जाती है?
60 साल यानी रिटायरमेंट के बाद डिप्रेशन की परेशानी ज्यादा देखी जाती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा होती है। उन्हें समाज और परिवार में हर दिन उन्हें अपनी ज़िंदगी में इतने समझौते करने पड़ते हैं कि कई बार तन्हाई घेर लेती है।

सवाल: क्या हर टेंशन डिप्रेशन में बदल सकती है?
ऐसा बिलकुल भी नहीं है। टेंशन या स्ट्रेस या घबराहट सभी को होती है, लेकिन कुछ ही लोगों को डिप्रेशन होता है। हां, यह जरूर है कि डिप्रेशन में स्ट्रेस की भूमिका होती है। लेकिन दूसरे कारण भी जिम्मेदार होते हैं।

सवाल : अगर कोई डिप्रेशन का मरीज है और हिंसक हो जाए तो क्या करना चाहिए?
जितनी जल्दी हो सके उसे सायकायट्रिस्ट के पास ले जाना चाहिए। एक तरह से यह पैनिक अटैक होता है। उसके साथ मारपीट न करें और न ही उकसाने वाली बातें, जैसे: इसने मेरा जीना मुश्किल कर दिया है, यह मेंटल है, पागल है आदि। इससे उसकी हिंसात्मक प्रवृत्ति बढ़ सकती है या वह खुद का ही नुकसान कर सकता है।

सवाल: क्या ज्यादा नशा करने वालों को डिप्रेशन होने का चांस ज्यादा होता है?
ऐसा जरूर होता है। अल्कोहल या दूसरी नशा की चीजों का सेवन करने से यह हमारे न्यूरोट्रांसमीटर की कार्यशैली को प्रभावित करते हैं। इसलिए नशा करने वाले लोग डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। वहीं, कुछ लोग डिप्रेशन का मरीज बनने के बाद नशे की लत लगा बैठते हैं।

एक्सपर्ट पैनल

  • डॉ. निमेष जी. देसाई, वरिष्ठ मनोचिकत्सक, पूर्व निदेशक, IHBAS
  • डॉ. अनिल निश्चल, प्रफेसर, सायकायट्री KGMU
  • डॉ. समीर पारिख, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. आर. एन. साहू, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी, सीनियर सायकायट्रिस्ट
  • डॉ. पुनीत कथूरिया, कंसल्टेंट सायकायट्रिस्ट
  • निहारिका सैनी, क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट, अकॉर्ड हॉस्पिटल
  • डॉ. राजेश राठी, कंसल्टेंट सायकायट्रिस्ट
  • पूजा प्रियंवदा, मेंटल हेल्थ फर्स्ट एड प्रोवाइडर
  • डॉ. अर्जुन राज, आयुर्वेदिक चिकित्सक

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डिप्रेशन ठीक होने में कितना समय लगता है?

जवाब- पहली बार अवसाद हुआ है तो दो माह में ठीक हो जाता है, लेकिन दवा लगभग नौ माह चलती है। इस बीच दवा छोडऩी नहीं चाहिए। दोबारा होगा तो दवा लंबी चल सकती है।

क्या डिप्रेशन को जड़ से खत्म किया जा सकता है?

मेडिटेशन और इसके विभिन्न आयामों की मदद से डिप्रेशन का बिना किसी दवा के इलाज संभव हो पाया है और अभी भी इसपर काफी शोध चल रहा है । आपको क्या खाना पंसद है, कौन सा खेल पसंद है, क्या घुमना अच्छा लगता है या तैराकी करना या फिर कुछ और जिसे करने को आपका मन बैचेन रहता है । डिप्रेशन से बाहर आने का यह भी एक सफलतम इलाज देखा गया है ।

डिप्रेशन की सबसे अच्छी दवा क्या है?

दुनिया में सबसे प्रसिद्ध एंटी डिप्रेसेंट है प्रौजैक प्रौजैक डिप्रेशन दूर करने की सबसे आम दवा मानी जाती है । यह 1988 में अमेरिका में आई थी, इसके एक साल बाद इसेब्रिटेन आई । बॉन इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी के अनुसार 2010 में यूरोप का हर 10 में से एक यह दवा लेता था।

डिप्रेशन से बाहर कैसे निकल?

कैसे करें अपना डिप्रेशन दूर?.
सबसे पहले डिप्रेशन दूर करने के लिए आठ घंटे की नींद लें। नींद पूरी होगी तो दिमाग तरोताजा होगा और नकारात्मक भाव मन में कम आएंगे।.
प्रतिदिन सूरज की रोशनी में कुछ देर जरूर रहें। इससे अवसाद जल्दी हटेगा।.
बाहर टहलने जाएं। ... .
अपने काम का पूरा हिसाब रखें। ... .
ध्यान व योग को दिनचर्या में शामिल करें।.

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