गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

हम आज तक यह पहेली बुझाते रहे हैं कि आख़िर वसंत पंचमी के अवसर पर पीले रंग का ही माहात्म्य क्यों है? इसका एक तर्कसंगत कारण यह लगता है कि खाने में पीले रंग को निरापद रूप से शामिल किए जाने के लिए जिन क़ुदरती पदार्थों को इस्तेमाल किया जाता था, उनकी तासीर गर्म (जाड़े को विधिवत भगाने वाली, शरीर को मौसम-बदलाव के अनुकूल और रोग-निरोध के लिए पुष्ट बनाने वाली) मानी जाती है।

यह बात केसर और हल्दी दोनों पर ही लागू होती है। हल्दी को तो निर्धन का केसर नाम दिया गया था, भारत में ही नहीं पश्चिमी देशों में भी।

पीत से जुड़ी स्वाद की रीत
एक नज़र डालें कि कितने पीले व्यंजन देश के विभिन्न हिस्सों में पकाए, खाए, खिलाए जाते रहे हैं। पीले चावलों का चलन हिंदी पट्टी में है, जो मीठे भी हो सकते हैं और हलके नमकीन भी। दक्षिणी क्षेत्र में ‘लेमन राइस’ की छटा पीली ही रहती है। अवध, हैदराबाद तथा दिल्ली में ‘ज़र्दा’ मिष्टान्न के रूप में परोसा जाता है और केसर से सुवासित मेवों से सम्पन्न भी रहता है। शायद यह याद दिलाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए कि वसंत पंचमी का पर्व सरस्वती पूजा का दिन है और इसीलिए भोजन शाकाहारी ही रहता है।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

पंजाब में गुड़ वाले चावल हों या कर्नाटक का केसरी भात या तमिलनाडु का केसरी : ये सभी वसंत के व्यंजन हैं। अफ़सोस इस बात का है कि आजकल इनमें पीलापन लाने के लिए बेहिचक कृत्रिम रंग का इस्तेमाल किया जाने लगा है। हमारी समझ में यह आसान परंतु ख़तरनाक नुस्ख़ा है।

महंगाई की दलील न दें क्योंकि हल्दी यह काम बख़ूबी कर सकती है। लेकिन हम रेडीमेड फ़ैक्ट्री में पिसे हल्दी पाउडर के इस क़दर आदी हो चुके हैं कि रोज़ाना रसोई में इसे बरतते इसकी सुवास, स्वाद और औषधीय गुणों को भूल चुके हैं। राजस्थान में जाड़ों में कच्ची हल्दी की सब्ज़ी चाव से खाई जाती रही है- गरम मसालों को इसमें शामिल किया जाता है गरम तासीर को और पुख़्ता करने के लिए। यहां एक और ग़लतफ़हमी दूर करने की ज़रूरत है। पीले रंग का अर्थ सिर्फ़ केसरिया नहीं। मकई के दानों की बिल्कुल हलकी रंगत से लेकर चमकदार नारंगी तक, तमाम झलक पीले की ही है- लाली मेरे लाल की वाले अंदाज़ में।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

सुनहरे भुने बेसन के लड्डुओं की बात करें, या बेसन के चीलों की अथवा ताज़ा झारी गई बूंदी: सब पीले कलेवर का कमाल दिखलाते हैं। चने से तैयार होने वाले बेसन का पीला रंग बिना केसर या हल्दी के ही अपना कमाल दिखलाता है। गुजरात के नाश्ते फरसाण में प्रमुख खमण, ढोकला और खांडवी का ललचाने वाला पीला रंग और नमकीन स्वाद निश्चय ही वसंत पंचमी के स्वागत के अनुकूल है। कढ़ी चाहे उत्तरप्रदेश की हो या पंजाब अथवा राजस्थान-गुजरात की, यह भी पीले रंग की ही होती है। जैन सम्प्रदाय में तरह-तरह की बेसन की सात्विक सब्ज़ियां बनाई जाती हैं- सबकी सब पीताम्बर! चबैने की बात करें तो तले चिवड़े का ही नहीं, बीकानेरी भुजिया, रतलामी, भावनगरी सेव, केरल वाले केले, कटहल के चिप्स तथा पापड़ भी तो पीले ही होते हैं! पके कटहल का पीलापन ऐसा कि देखते ही मुंह में पानी भर आता है।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

बंगाल में मिठाई का ज़िक्र हो और बयां ‘सौन्देश’ का न हो, नामुमकिन है। केसर के कुछ ही क़तरे इसमें नहीं दिखलाई देते। नरम संदेश में छेने को दूध में भिगोए केसर के साथ मसलकर पीलापन प्रदान किया जाता है। फिर बारी आती है कमलाभोग की, जो हल्के पीले रंग का रसगुल्ला है। कमला बांग्ला भाषा में संतरे को कहते हैं। वहीं संतरे की खीर भी चखने को मिलती है और कमला काफी की सब्ज़ी भी। काफी अर्थात फूलगोभी- इस सब्ज़ी में संतरे की फांकें डाली जाती हैं, जिनकी पीली शोभा निराली होती है। मगर इस सूबे में जो छटा सरसों के पीलेपन की बिखरती है, उसकी तुलना यहां के बाशिंदों के लिए हल्दी या केसर से करना आसान नहीं। राई-सरसों पीसकर जो ‘कासुंदी’ तैयार की जाती है, वह नाना प्रकार की मछलियों और दर्जनों पाकविधियों का अभिन्न अंग है। ओडिशा में इसे बेसार नाम देते हैं। इससे यह न समझें कि सरसों-राई अपना जादू सामिष व्यंजनों में ही जगाते हैं। कासुंदी का उपयोग पनीर की पतूरी बनाने के लिए किया जा चुका है और लपटवां तरी के साथ छोटे छोटे ‘सरसों वाले आलुओं की तरकारी’ का तो जवाब ही नहीं! उत्तराखंड में पिसी राई का रंग और उसका तीखापन दोनों ही पके खीरे या मूली के रायते को जानदार बनाते हैं। यही मौसम है गाजर के हलुए का मज़ा लेने का। ग़नीमत है कि अभी तक इसके क़ुदरती रंग को परवान चढ़ाने के लिए कृत्रिम रंग का उपयोग नहीं किया जाता है, भले ही इसमें खोया-पनीर-मेवे आदि सजावट के नाम पर इस कदर ठूंसे जाने लगे हैं कि गाजर का नारंगी रंग वाला आकर्षण हाशिए पर पहुंचा दिया लगता है।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

परदेसी पीलें का लें आस्वाद
अपने प्रिय पाठकों से आग्रह है कि इस बार वसंत पंचमी पर पीले चावलों तक ही सीमित न रहें। कुछ शुद्ध शाकाहारी परदेसी व्यंजनों को भी अपनी थाली में जगह दें। सबसे पहले याद आती है थाईलैंड की ‘यैलो करी’। वैसे इसे परदेसी कहना शायद ठीक नहीं, क्योंकि स्वयं थाईलैंड वाले मानते हैं कि यह भारत से ही वहां पहुंची है। इसका रंग हल्दी का उपहार है और स्वाद में भी इसी की जुगलबंदी गलांगल नामक अदरक से साधी जाती है। सुवास के लिए ‘लेमन ग्रास’ का प्रयोग होता है और ख़ास ज़ायक़े के लिए लाइम के पत्तों तथा रस की चंद बूंदों का। यह काग़ज़ी नींबू बंगाल के गौंधराज का ही बिरादर है। तरी बनाई जाती है नारियल के दूध से। इसके शाकाहारियों के लिए सात्विक अवतार में आप मनचाही सब्ज़ियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर याद करें तो तमिलनाडु तथा केरल में मिली-जुली जो रसेदार सब्जि़यां अवियल के नाम से पारम्परिक रूप से बनाई जाती हैं, उसी का प्रतिबिम्ब यहां देखने को मिलता है।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

पीले रंग वाले सेहत के लिए बेहद फ़ायदेमंद समझे जाने वाले पेयों की लोकप्रियता हाल के दिनों में विदेशों में तेज़ी से बढ़ी है। फ्रांस में इधर ‘टर्मरिक लाते’ (हल्दीवाले दूध) का हल्ला है तो शर्तिया कायाकल्प करने का दावा करने वाले पश्चिमी चलन के आरोग्याश्रमों (हेल्थ स्पा-रिज़ोर्ट) में ‘टर्मरिक-जिंजर टी’ पैर पसार रही है। इनके मूल रूप का निर्यात भारत ने ही किया है। सर्दी-ज़ुकाम से बचाव के लिए या हल्की चोट-पटक के उपचार के लिए हल्दी वाला दूध घरेलू हिंदुस्तानी नुस्ख़ा रहा है। चाय में भी गुणवान अदरक डाली जाती थी। दिलचस्प बात यह है कि हल्दी-अदरक की चाय में चाय की पत्तियों का ही कोई स्थान नहीं! न ही दूध या चीनी का। मिठास का अभाव लगता हो तो शहद काम ला सकते हैं।

गाजर का पीला रंग क्यों होता है? - gaajar ka peela rang kyon hota hai?

शहद से याद आता है ख़राश-खांसी का पारम्परिक उपचार- शहद में हल्दी या अदरक। शहद का रंग भी कितना आकर्षक पीला होता है! जाने क्यों इसका उपयोग खीर को इसी रंग से अलंकृत करने के लिए नहीं करते? केसरिया खीर का नाम सार्थक करने के लिए ऊपर से छिड़के केसर के कुछ रेशे ही काफ़ी नहीं। खीर हो या फिरनी, इनमें पीला रंग और सुवास रचे-बसे होने चाहिए। यों प्रयोगधर्मी मित्रों ने हल्दी की कुल्फ़ी भी ईजाद की है, पर ज़ाहिर है वह इस मौसम के माफ़िक नहीं। हां, बेल और गाजर के पीले तथा नारंगी मुरब्बों को आप वसंत पंचमी पर अपने खानपान में शामिल कर कम से कम होली तक इनका लाभ उठा सकते हैं।

गाजर का रंग पीला क्यों होता है?

कैरोटीन प्रकाश-संश्लेषित रंजकता है जो गाजर के संतरी रंग का होने के लिए उत्तरदायी है जिसके लिए इस रासायनिक वर्ग का नामकरण किया गया है। एनथोसाइनिनूस के कारण कुछ गाजर पीले होते हैं। कैरोटीन शुष्क पर्णसमूह (Foliage) के नारंगी रंग (लेकिन सभी पीले नहीं होते) होने के लिए भी उत्तरदायी है।

क्या गाजर का रंग लाल होता है?

गाजर एक सब्ज़ी का नाम है। यह लाल, काली, नारंगी, कई रंगों में मिलती है। यह पौधे की मूल (जड़) होती है।

गाजर लाल और पालक हरी क्यों होती है?

गाजर का रंग लाल कैरोटीन के कारण होता है.