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गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान क्यों बताया है?
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Solution
गोपियों ने अपने लिए कृष्ण को हारिल की लकड़ी के समान इसलिए बताया है क्योंकि जिस प्रकार हारिल पक्षी अपने पंजे में दबी लकड़ी को आधार मानकर उड़ता है उसी प्रकार गोपियों ने अपने जीवन का आधार कृष्ण को मान रखा है।
Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A)
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Chapter 1: सूरदास - पद - अतिरिक्त प्रश्न
Q 3Q 2Q 4
APPEARS IN
NCERT Class 10 Hindi - Kshitij Part 2
Chapter 1 सूरदास - पद
अतिरिक्त प्रश्न | Q 3
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निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये
हमारैं हरि हारिल की लकरी।
मन क्रम बचन नंद-नंदन उर, यह दृढ़ करि पकरी।
जागत सोवत स्वप्न दिवस-निसि, कान्ह-कान्ह जक री।
सुनत जोग लागत है ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु तौ व्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करो।
यह तो ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपो, जिन के मन चकरी।।
गोपियाँ कृष्ण को ‘हारिल की लकड़ी’ क्यों कहती
हैं?
गोपियों ने कृष्ण को हारिल पक्षी के समान माना था। हारिल पक्षी सदा अपने पंजों में कोई-न-कोई लकड़ी का टुकड़ा या तिनका पकड़े रहता है और गोपियों के हृदय में भी सदा श्रीकृष्ण बसते थे।
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गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं?
गोपियों ने उद्धव को अनेक उदाहरणों के माध्यम से उलाहने दिए थे। उन्होंने उसे ‘बड़भागी’ कह कर प्रेम से रहित माना था जो श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी प्रेम का अर्थ नहीं समझ पाया था। उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग के संदेशों के कारण वे वियोग में जलने लगी थीं। विरह के सागर में डूबती गोपियो को पहले तो आशा थी कि वे कभी-न-कभी तो श्रीकृष्ण से मिल ही जाएंगी पर उद्धव के द्वारा दिए जाने वाले योग साधना के संदेश के बाद तो प्राण त्यागना ही शेष रह गया था। उद्धव का योग तो कड़वी ककड़ी के समान व्यर्थ था। वह तो योग रूपी बीमारी उन्हें देने वाला था। गोपियों ने उद्धव को वह गुरु माना था जिसने श्रीकृष्ण को भी राजनीति की शिक्षा दे दी थी। गोपियों ने वास्तव में जिन उदाहरणों के माध्यम से वाक्चातुरी का परिचय दिया है और उद्धव धव को उलाहने दिए हैं। वह उनके प्रेम का आंदोलन है। उनसे गोपियों के पक्ष की श्रेष्ठता और उद्धव के निर्गुण की हीनता का प्ररतिपादन हुआ है।
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उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेशों ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
गोपियों को श्रीकृष्ण के वियोग की अग्नि सदा जलाती रहती थी। वे हर समय उन्हें याद करती थीं; तड़पती थीं पर फिर भी उनके मन में एक आशा थी। उन्हें पूरी तरह से यह उम्मीद थी कि श्रीकृष्ण जब मथुरा से वापिस ब्रज क्षेत्र में आएंगे तब उन्हें उनका खोया हुआ प्रेम वापिस मिल जाएगा। वे अपने हृदय की पीड़ा उनके सामने प्रकट कर सकेंगी पर जब श्रीकृष्ण की जगह उद्धव उनकी योग-साधना का संदेश लेकर गोपियों के पास आ पहुँचा तो गोपियों की सहनशक्ति जवाब दे गई। उन्होंने श्रीकृष्ण के द्वारा भेजे जाने वाले ऐसे योग संदेश की कभी कल्पना भी नहीं की थी। इससे उन का विशवास टूट गया था। विरह-अग्नि में जलता हुआ उनका हृदय योग के वचनों से दहक उठा था। योग के संदेशों ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया था। इसीलिए उन्होंने उद्धव को सामने और श्रीकृष्ण की पीठ पर मनचाही जली-कटी सुनाई थी।
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‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है?
गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम के कारण अपना सब सुख-चैन खो दिया था। उन्होंने घर-बाहर का विरोध करते हुए अपनी मान-मर्यादा की परवाह भी नहीं की थी जिस कारण उन्हें सबसे भला-बुरा भी सुनना पड़ा था। पर जब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें उद्धव के माध्यम से योग-साधना का संदेश भिजवा दिया था तब उन्हें ऐसा लगा था कि कृष्ण के द्वारा उन्हें त्याग देने से तो उनकी पूरी मर्यादा ही नष्ट हो गई थी। उनकी प्रतिष्ठा तो पूरी तरह से मिट ही गई थी।
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गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
गोपियों के द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में व्यंग्य का भाव छिपा हुआ है। उद्धव तो मथुरा में श्रीकृष्ण के साथ ही रहते थे पर फिर भी उन के हृदय में पूरी तरह से प्रेमहीनता थी। वे प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त थे। उनका मन किसी के प्रेम में डूबता ही नहीं था। श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी वे प्रेमभाव से वंचित थे।
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उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल की मटकी से की गई है। कमल का पला पानी में डूबा रहता है पर उस पर पानी की एक बूंद भी दाग नहीं लगा पाती, उस पर पानी की एक बूंद भी नहीं टिकती। तेल की मटकी को जल में डुबोने से उस पर एक बूंद भी नहीं ठहरती। उद्धव भी पूरी तरह से अनासक्त था। वह श्रीकृष्ण के निकट रह कर भी प्रेम के बंधन से पूरी तरह मुक्त था।
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