गीता में मांस के बारे में क्या लिखा है? - geeta mein maans ke baare mein kya likha hai?

दोस्तों आज के समय में सभी लोग किसी न किसी रूप में मांसाहारी भोजन का सेवन जरूर करते हैं परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि जो मनुष्य मांसाहारी भोजन करता है और फिर ईश्वर की पूजा करता है क्या ऐसे मनुष्य के पूजा ईश्वर स्वीकार करते हैं, अगर नहीं सोचा तो आज मैं आपको इसी सवाल का जवाब बताने जा रहा हूँ जिसका वर्णन स्कंद पुराण और भगवत गीता जैसे हिंदू धर्म ग्रंथों में विस्तार से किया गया।

 मांसाहार भोजन सात्विक लोगों के लिए सही है या नहीं?

स्कंद पुराण काशी खंड तीसरे अध्याय में बताया गया है कि जो मनुष्य मांस खाता है उसके जीवन को धिक्कार है ऐसे मनुष्य को ना तो मृत्यु लोक में सुख मिलता है और ना ही मृत्यु के बाद दूसरे लोक में सुख मिलता है। साथ ही स्कंद पुराण में एक प्रसंग का और वर्णन मिलता है जिसके अनुसार जब एक बार सभी देवता गण काशी पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एक बाघ जैसे हिंसक पशु भी वहां घास खा रहे है। इसके अलावा स्कंद पुराण में यह भी बताया गया है कि यदि भूख से किसी प्राणी की मृत्यु होने को हो तो भी उसे मांस नहीं खाना चाहिए। इतना ही नहीं है स्कंद पुराण के अनुसार भगवान शिव उन लोगों की भक्ति यह पूजा कभी स्वीकार नहीं करते जो लोग मांस-मदिरा का सेवन करते हैं।

स्कंद पुराण के अलावा वराह पुराण में भी इस बात का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार भगवान विष्णु के वराह अवतार पृथ्वी देवी के पूछने पर कहते है कि जो मनुष्य मांस का भक्षण करते है मैं ना तो उसकी पूजा स्वीकार करता हूँ और ना ही उसको अपना भक्त मानता हूँ। साथ ही भगवान विष्णु के वराह अवतार पृथ्वी देवी से यह कहते हैं कि जो मनुष्य मछली या दूसरे पशुओं के मांस का सेवन करता है मेरे लिए उससे बड़ा अपराधी और कोई भी नहीं। इसके अलावा भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यह भी बताया है कि मनुष्य को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। भगवान कृष्ण के अनुसार मांस एक तामसिक भोजन है जिसके सेवन से मनुष्य की बुद्धि छीन होने लगती है और मनुष्य अपनी इंद्रियों पर से नियंत्रण खो देता है, उसके बाद मनुष्य ना चाहते हुए भी कई तरह के अपराधों का भागी बन जाता है और ऐसा मनुष्य जब मेरी पूजा करता है या मुझे याद करता है तो मैं उसके पास नहीं जाता हूँ।

इसके बाद भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि मांसाहारी भोजन राक्षसों के लिए है न की इंसानों के लिए। भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने आहार को तीन भागों में विभाजित किया गया है जोकि राजसिक तामसिक और सात्विक भोजन है। जिसके अनुसार सात्विक भोजन लंबी आयु देने वाला,मन को शुद्ध करने वाला, बल बुद्धि प्राप्त और तृप्ति प्रदान करने वाला है। हिंदू धर्म में मांस खाना सही है कि नहीं इसके बारे में कई लोगों को भ्रम है और इसका मुख्य कारण यह है कि लोगों को धर्म शास्त्र में वर्णित ज्ञान का ना होना।

 कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि वेद मांस भक्षण को जायज बताता है लेकिन यह सच नहीं है सच तो यह है कि वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि पशु हत्या अर्थात पशु बलि आप की श्रेणी में आता है। वेदों का सार उपनिषद और उपनिषदों का सार भगवत गीता है जिसके अनुसार वेदों में मांस खाने की संबंध में स्पष्ट मना किया गया है। वेदों में बताया गया है कि जो मनुष्य नर, अश्व अथवा अन्य किसी पशु का मांस का सेवन कर उसको अपने शरीर का भाग बनाता है, गौ की हत्या कर अन्य जनों को दूध आदि से वंचित करता है उससे बड़ा पापी इस सृष्टि में कोई भी नहीं। यजुर्वेद में बताया गया कि सभी मनुष्य को परमात्मा के सभी रचनाओं को अपनी आत्मा के सामान तुल्य मानना चाहिए अर्थात वे अपने जैसे हित चाहते हैं उसी तरह अन्य का भी हित करें।

 अथर्ववेद में कहा गया कि हे मनुष्य तुम चावल दाल गेहूं आदि खाद्य पदार्थ आहार के रूप में ग्रहण करो यही तुम्हारे लिए सबसे उत्तम और रमणीय खाद पदार्थों का भाग है, तुम किसी भी नर या मादा की कभी हिंसा मत करो। वह लोग जो नर एवं मादा भ्रूण और अंडों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पका कर खाते हैं तुम्हें उनका विरोध करना चाहिए। इसके अलावा ऋग्वेद में भी बताया गया है कि गाय जगत की माता है और उनकी रक्षा में ही समाज की उन्नति है मनुष्य को उनके समान सभी चार पैर वाले पशुओं की रक्षा करनी चाहिए।

वहीं गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु पक्षीराज गरुड़ को एक कथा सुनाते हुए कहते हैं कि – जो मनुष्य मांस का भक्षण करता है या फिर मदिरा का सेवन करता है उसकी भक्ति या फिर पूजा कोई भी देवता स्वीकार नहीं करते और ऐसे मनुष्य को ना ही कोई देवता मदद करते हैं इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह सात्विक भोजन करें ताकि उसके जीवन काल और मृत्यु के बाद भी ईश्वर का शरण मिल सके। आगे भगवान विष्णु कहते हैं कि जो मनुष्य स्वाद के लिए दूसरे पशुओं की हत्या करता है उसे मृत्यु के बाद पशुओं की उसी योनि में कई जन्मो तक भटकना पड़ता है और वह भी उसी तरह मारा जाता है जिस तरह खाने के लिए उसने पशु को मारा था। इसलिए मित्रों यदि आप पूजा या फिर ईश्वर की भक्ति में विश्वास रखते हैं तो फिर मांसाहार का सेवन करना बंद कर दीजिए वैसे भी मांसाहार भोजन को वैज्ञानिक रूप से उचित नहीं माना गया है यह मनुष्य को कई तरह के रोगों से भी ग्रसित कर देता है और जहां तक धार्मिक मान्यताओं की बात है उम्मीद करता हूं आप लोगों को समझ आ गई ही होगी।

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मांस खाने पर श्रीकृष्ण ने गीता में क्या कहा?

गीता के अनुसार अन्न से ही मन और विचार बनते हैं। जो मनुष्य सात्विक भोजन ग्रहण करता है उसकी सोच भी सात्विक होगी। अत: सात्विकता के लिए सात्विक भोजन, राजसिकता के लिए राजसिक भोजन और तामसी कार्यों के लिए तामसी भोजन होता है। यदि कोई सात्विक व्यक्ति तामसी भोजन करने लगेगा तो उसके विचार और कर्म भी तामसी हो जाएंगे।

क्या श्री कृष्ण मांसाहारी थे?

वे मांस का सेवन नहीं करते थे लेकिन ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि क्योंकि उस काल में युद्ध के लिए जाने पर परदेश में, जंगल में, मरुस्थल या कठिन प्रदेशों में जाने पर अक्सर लोगों को उनके मन का भोजन नहीं मिलता है, लेकिन मांस सभी जगह उपलब्ध हो जाता है।

क्या देवता मांस खाते थे?

अंत में अंबेडकर लिखते हैं, "इस सुबूत के साथ कोई संदेह नहीं कर सकता कि एक समय ऐसा था जब हिंदू, जिनमें ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण दोनों थे, न सिर्फ़ मांस बल्कि गोमांस भी खाते थे."

क्या कुरान में मांस खाना लिखा हुआ है?

कुरान में मांस खाने का आदेश अल्लाहु अकबर का नहीं है | Sant.

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