मेजर ध्यानचंद...भारतीय हॉकी टीम का सितारा जो आज ही के दिन 43 साल पहले 1979 में इस दुनिया को अलविदा कहकर चला गया। लेकिन, अपने पीछे सैकड़ों कहानियां छोड़ गया। कभी कहा गया कि उनकी हॉकी में चुंबक है तो कभी अफवाह उड़ी हॉकी स्टिक में गोंद लगाकर मैदान में उतरते थे। लेकिन सच्चाई यह थी कि दुनिया का हर हॉकी प्रेमी यह जानता था कि ध्यानचंद से बेहतर खिलाड़ी उस वक्त दुनिया में कोई नहीं था। आज हम ध्यानचंद की उन्हीं कहानियों को जानेंगे। कहानियों में उनकी महानता, उनका त्याग और देश के प्रति समर्पण जानेंगे। दूसरी तरफ उस शहर के बारे में भी बात करेंगे जहां किसी को पता ही नहीं कि ध्यानचंद उनके शहर में पैदा कहां हुए थे। शहर में उनके नाम से न कोई स्टेडियम है और न ही कोई स्मारक। आइए जानते हैं। प्रयागराज में कहां पैदा हुए, किसी को नहीं पता ध्यानचंद का जन्म प्रयागराज में हुआ। लेकिन इस जिले में उनके नाम से न कोई स्मारक है और न ही कोई स्टेडियम। ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में हुआ। इलाहाबाद का नाम अब प्रयागराज हो गया है। ध्यानचंद का जन्म जिले में कहां हुआ इसे लेकर कोई कन्फर्म नहीं। कुछ लोग मुट्ठीगंज बताते हैं तो कुछ ओल्ड कैंट। दोनों ही पक्षों का अपना तर्क है। ओल्ड कैंट वाले कहते हैं, "ध्यानचंद के पिता सोमेश्वर सिंह ब्रिटिश-इंडियन आर्मी में क्लर्क थे। ओल्ड कैंट में थे तभी ध्यानंचद का जन्म हुआ।" मुट्ठीगंज वालों का कहना है, "यहीं एक पुराना मंदिर था उसी के बगल सोमेश्वर जी रहते थे तब ध्यानचंद का जन्म हुआ।" चांद की रोशनी ने बदल दिया था नाम
तीनों ओलंपिक में सबसे ज्यादा गोल ध्यानचंद ने ही किया था। जर्मनी ने अभ्यास मैच में हराया तो उसका बदला फाइनल में पूरा हुआ भारत बिना गोल खाए फाइनल में पहुंचा कांग्रेस के झंडे को सलाम किया और गोल की झड़ी लगा दी यह उस फाइनल मैच की फोटो है। हॉकी इंडिया ने इसे शेयर किया है। बर्लिन के हॉकी स्टेडियम में फाइनल मैच देखने 40 हजार लोग आए थे। टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने बैग से कांग्रेस का झंडा निकाला, सभी खिलाड़ियों ने उसे सैल्यूट किया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस वक्त देश का कोई अपना झंडा नहीं था। जर्मनी के सारे बड़े अधिकारी अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए मौजूद थे। भारत की तरफ से बड़ौदा के महाराजा और भोपाल की बेगम स्टेडियम में थे। खेल शुरू हुआ। पहले 35 मिनट तक भारत डिफेंसिव रहा। मात्र एक गोल ही दागे। इसके बाद ध्यानचंद ने अपना स्पाइक का जूता उतार दिया। नंगे पाव खेलते हुए दनादन गोल करना शुरू किया। टीम 8-1 से आगे हो गई तभी जर्मन आक्रामक हॉकी खेलने लगे। जर्मनी के गोलकीपर की हॉकी ध्यान चंद के मुंह में इतनी तेज लगी कि उनका दांत टूट गया। मुंह सूज आया। खेल थोड़ी देर रुका, इलाज के तुरंत बाद ध्यानचंद फिर से मैदान में आए और टीम के साथियों से कहा, अब कोई गोल नहीं करना। विरोधियों को दिखाना है कि गेंद पर नियंत्रण कैसे किया जाता है। टीम ने यही किया। 1928 और 1932 के ओलंपिक के बाद 1936 का भी गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया। हिटलर के सेना में सबसे बड़े पद का प्रस्ताव ठुकरा दिया जर्मनी के तानाशाह हिटलर के प्रस्ताव को ठुकराने के बाद ध्यानचंद की जमकर तारीख हुई। उस वक्त लोग हिटलर के सामने नजर झुकाकर खड़े होते थे। पूरी दुनिया ध्यानचंद के खेलों से प्रभावित थी। उस वक्त जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने ध्यानचंद के सामने जर्मनी की तरफ से खेलने का प्रस्ताव रखा। इसके एवज में सेना में सबसे ऊंचे पद का लालच दिया। ध्यानचंद उस वक्त भारतीय सेना में मात्र लांस नायक थे। लेकिन उन्होंने जर्मनी की तरफ से खेलने से मना कर दिया। कहा, "मैने भारत का नमक खाया है, मैं भारत के लिए ही खेलूंगा।" हॉलैंड में लोगों ने हॉकी स्टिक तोड़कर चुंबक चेक किया ठीक इसी तरह जापान में जापान के खिलाड़ियों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को इसलिए चेक किया था क्योंकि उन्हें शक था कि उनकी स्टिक में गोंद लगी है जिसकी वजह से गेंद सिर्फ उन्हीं के पास रहती है। यहां भी चेक करने के बाद जापान के खिलाड़ियों को निराशा हाथ लगी। एक साल में 133 गोल करके विश्व रिकॉर्ड बना लिया भारतीय टीम ने 1932 में कुल 37 मैच खेले थे। पूरी टीम ने मिलकर विपक्षी टीम के खिलाफ 338 गोल किए। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसमें 133 गोल सिर्फ ध्यानचंद ने किया। वह तीन ओलंपिक में भारतीय टीम की तरफ से 12 मैच खेले। कुल 37 गोल किया। तीनों ही बार भारत ने हॉकी में गोल्ड मेडल जीता। आखिरी वक्त में शायरी लिखते थे ध्यानचंद 3 दिसंबर 1979 को वह हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गए। लेकिन उनका नाम और काम अमर हो गया। आखिर में ये ध्यानचंद के जीवन से जुड़ा ये ग्राफिक देखिए। |