हाथीपाला का नाम हाथीपाला क्यों पड़ा - haatheepaala ka naam haatheepaala kyon pada

Students must start practicing the questions from RBSE 12th Hindi Model Papers Board Model Paper 2022 with Answers provided here.

समय :2 घण्टे 45 मिनट
पूर्णांक : 80

परीक्षार्थियों के लिए सामान्य निर्देश:

  • परीक्षार्थी सर्वप्रथम अपने प्रश्न – पत्र पर नामांक अनिवार्यतः लिखें।
  • सभी प्रश्न हल करने अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न का उत्तर दी गई उत्तर – पुस्तिका में ही लिखें।
  • जिन प्रश्नों में आंतरिक खण्ड हैं, उन सभी के उत्तर एक साथ ही लिखें।

खण्ड – (अ)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित अपठित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए – (6 x 3 = 6)

‘सतसई’ शब्द संस्कृत के ‘सप्तशती’ शब्द का अपभ्रंश रूप है। पहले संस्कृत में सप्तशती, शतक, सहस्रनाम आदि संख्यावाचक ग्रन्थों की रचना भक्ति एवं स्रोत संबंधी साहित्य के लिए हुआ करती थी। इसलिए दुर्गासप्तशती, ‘शिव सहस्र – नाम’ विष्णु सहस्र नाम आदि ग्रन्थ संस्कृत में मिलते हैं। परन्तु जब से भारत में आभीर जाति का प्रवेश – हुआ और आभीरों के स्वच्छन्द एवम् ऐहिकता – मूलक जीवन का प्रभाव भारतीय जन मानस पर पड़ा और भारतीय – जन भी मोक्ष एवम् परलोक की चिन्ता छोड़कर आभीरों की ही भाँति ऐहिक जीवन की ओर आकृष्ट हुए और भक्ति परक साहित्य की रचना न करके साधारण जीवन में व्याप्त प्रेम भावनाओं, शृंगार संबंधी चेष्टाओं एवम् दैनिक हास – परिहासपूर्ण क्रिया – व्यापारों का वर्णन करने लगे। इसका सर्वप्रथम प्रयास हालकत ‘गा के अन्तर्गत दिखाई देता है। ‘गाथा सप्तशती’ के उपरान्त इस सतसई – साहित्य की परम्परा में भर्तृहरि कृत ‘शृंगार – शतक’ आता है। हिन्दी में श्रृंगार संबंधी सतसई काव्य का श्रीगणेश ‘बिहारी सतसई’ से होता है। वैसे “बिहारी सतसई’ में भी नीति, ज्योतिष, गणित, भक्ति आदि विविध विषयों का समावेश मिलता है, किन्तु इसमें शृंगार रस की ही प्रधानता है।

(i) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक है (1)
(अ) सतसई परम्परा
(ब) बिहारी सतसई
(स) वृंद – सतसई
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(अ) सतसई परम्परा

(ii) ‘सतसई’ शब्द है (1)
(अ) तत्सम शब्द
(ब) तद्भव शब्द
(स) अपभ्रंश शब्द
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर :
(स) अपभ्रंश शब्द

(iii) निम्न में से किस ग्रन्थ की भाषा संस्कृत नहीं है (1)
(अ) दुर्गासप्तशती
(ब) शिव सहस्र नाम
(स) वैराग्य शतक
(द) बिहारी सतसई
उत्तर :
(द) बिहारी सतसई

(iv) ‘गाथा सप्तशती’ के रचयिता हैं – (1)
(अ) मतिराम
(ब) कवि हाल
(स) वृन्द
(द) बिहारी
उत्तर :
(ब) कवि हाल

(v) हिन्दी में ‘शृंगार रस प्रधान’ सतसई का श्रीगणेश किया (1)
(अ) बिहारी ने
(ब) वृन्द ने
(स) मतिराम ने
(द) हाल ने
उत्तर :
(अ) बिहारी ने

(vi) ‘बिहारी सतसई’ में निम्न विषय का समावेश है (1)
(अ) नीति
(ब) शृंगार
(स) भक्ति
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी

निम्नलिखित अपठित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर अपनी उत्तर पुस्तिका में कोष्ठक में लिखिए (6 x 1 = 6)

वर्षों तक वन में घूम – घूम, बाधा विघ्नों को चूम – चूम
सह धूप – घाम, पानी – पत्थर, पाण्डव आए कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें आगे क्या होता है
मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आए, पाण्डव का संदेशा लाए
दो न्याय अगर तो आधा दो, पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रखो अपनी धरती तमाम
हम वहीं खुशी से खाएँगे, परिजन पर असि न उठाएँगे।
दुर्योधन वह भी दे न सका, आशीष समाज की ले न सका
उल्टे हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला
जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है।

(i) भगवान कृष्ण पाण्डवों का संदेश लेकर कहाँ गए थे? (1)
(अ) कुरुक्षेत्र
(ब) हस्तिनापुर
(स) इन्द्रप्रस्थ
(द) मथुरा
उत्तर :
(ब) हस्तिनापुर

(ii) ‘असि’ शब्द का अर्थ है – (1)
(अ) तलवार
(ब) भाला
(स) बाण
(द) त्रिशूल
उत्तर :
(अ) तलवार

(iii) कृष्ण ने युद्ध टालने हेतु कितने गाँव माँगे थे (1)
(अ) पाँच
(ब) दस
(स) पन्द्रह
(द) बीस
उत्तर :
(अ) पाँच

(iv) दुर्योधन के लिए असाध्य कार्य था (1)
(अ) समाज का आशीष लेना
(ब) कृष्ण को बाँधना
(स) युद्ध को टालना
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(द) उपर्युक्त सभी

(v) ‘उल्टे हरि को बाँधने चला।’ यहाँ ‘हरि’ शब्द का अर्थ है (1)
(अ) भीष्म
(ब) विदुर
(स) पाण्डव
(द) कृष्ण
उत्तर :
(द) कृष्ण

(vi) ‘जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है’ पंक्ति को चरितार्थ करती लोकोक्ति है (1)
(अ) विनाश काले विपरीत बुद्धि
(ब) आग लगने पर कुआँ खोदना
(स) अब पछातए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
(द) आए थे हरि भजन को औटन लगे कपास
उत्तर :
(अ) विनाश काले विपरीत बुद्धि

प्रश्न 2.
दिए गए रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए (6 x 1 = 6)

(i) ओज गुण में ……………………………… वर्ण की प्रधानता होती है। (1)
उत्तर :
ढ तथा ण,

(ii) केशवदास ने ‘कवि प्रिया’ में ……………………………… दोषों का विवेचन किया है। (1)
उत्तर :
चार

(iii) ‘दोहा’ छंद में प्रथम व तृतीय चरण में ……………………………… मात्राएँ होती हैं, दूसरे व चौथे चरण में मात्राएँ होती हैं। (1)
उत्तर :
13 – 13,
11 – 11

(iv) ‘सोरठा’ दोहे का ……………………………… होता है। (1)
उत्तर :
उलटा

(v) ‘अनुप्रास’ अलंकार में किसी वर्ण की ……………………………… होती है। (1)
उत्तर :
आवृत्ति

(vi) ‘उपमा’ अलंकार के ……………………………… अंग होते हैं। (1)
उत्तर :
चार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अति लघूत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द – सीमा 20 शब्द है। (12 x 1 = 12)

(i) ‘अनुप्रास’ अलंकार से युक्त कोई एक मौलिक उदाहरण लिखिए। (1)
उत्तर :
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण – मधुर मधुर मुस्कान मनोहर, मनुज वेश का उजियाला।

(ii) ‘यमक’ अलंकार की परिभाषा लिखिए। (1)
उत्तर :
यमक अलंकार की परिभाषा – जहाँ एक या एक से अधिक शब्दों की आवृत्ति हो, किन्तु उनके अर्थ भिन्न – भिन्न हों, वहाँ यमक अलंकार होता है।

(iii) मीडिया की भाषा में ‘बीट’ का क्या तात्पर्य है? (1)
उत्तर :
विषय विशेष में लेखन का दायित्व सौंपा जाता है। मीडिया की भाषा में इसको बीट कहते हैं।

(iv) सामान्य लेखन का कौनसा सर्वमान्य नियम विशेष लेखन पर भी लागू होता है? (1)
उत्तर :
लेखन में शुद्धता के साथ ही विचारों की तारतम्यता होने का सर्वमान्य नियम विशेष लेखन पर भी लागू होता है।

(v) विशेष लेखन के विभिन्न क्षेत्रों में से किन्हीं चार क्षेत्रों के नाम लिखिए। (1)
उत्तर :
विशेष लेखन के चार क्षेत्र –

  • खेल
  • कारोबार
  • सिनेमा
  • स्वास्थ्य।

(vi) रामचन्द्र शुक्ल जी के पिताजी को किसके नाटक अतिप्रिय थे? (1)
उत्तर :
रामचन्द्र शुक्ल जी के पिताजी को भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाटक अतिप्रिय थे।

(vii) ‘धर्म’ के कितने लक्षण बताए गए हैं? ‘सुमिरिनी के मनके’ अध्याय के आधार पर उत्तर लिखिए। (1)
उत्तर :
सुमरिनी के मनके’ पाठ में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं।

(vii) ‘देवसेना का गीत’ के कवि का क्या नाम है? (1)
उत्तर :
‘देवसेना’ का गीत कवि जयशंकर प्रसाद रचित है।

(ix) ‘सरोज स्मृति’ कविता किस पर केन्द्रित है? (1)
उत्तर :
‘सरोज स्मृति’ कविता निराला की दिवंगत पुत्री सरोज पर केन्द्रित है।

(x) ‘कविता’ किस परंपरा के रूप में जन्मी है? (1)
उत्तर :
दादी – नानी की लोरियों, खेत – खलिहान में श्रम करते किसान और मजदूर तथा महिलाओं द्वारा पर्वो – उत्सवों पर गाए जाने की परंपरा से कविता का जन्म हुआ है।

(xi) एक नाटक में मुख्यतः कितने अंक होते हैं? (1)
उत्तर :
एक नाटक में अनेक अंक हो सकते हैं। न्यूनतम 2 अंक का भी नाटक हो सकता है।

(xii) कहानी का केन्द्रीय बिन्दु क्या होता है? (1)
उत्तर :
कहानी का केन्द्रीय बिन्दु कथानक होता है। केन्द्रीय बिन्दु कहानी का संक्षिप्त रूप होता है।

खण्ड – (ब)

निर्देश – प्रश्न सं. 04 से 15 तक प्रत्येक प्रश्न के लिए अधिकतम शब्द सीमा 40 शब्द है।

प्रश्न 4.
समाचार लेखन और फीचर लेखन शैली को संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
समाचार लेखन में तथ्यों की शुद्धता पर जोर दिया जाता है जबकि फीचर में लेखक अपनी राय भी लिख सकता है।

समाचार लेखन के ठीक विपरीत फीचर लेखन में उल्टा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं होता। समाचारों की भाषा के विपरीत फीचर की भाषा सरल, आकर्षक एवं मन पर प्रभाव डालने वाली होती है। समाचारों की तरह फीचर में शब्दों की कोई अधिकतम सीमा नहीं होती। 250 शब्दों से लेकर 2000 शब्दों तक के फीचर समाचार पत्रों में छपते हैं।

प्रश्न 5.
पत्रकार कितने प्रकार के होते हैं? संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
तीन प्रकार के होते हैं

  • पूर्णकालिक पत्रकार किसी समाचार संगठन में काम करने वाला नियमित वेतनभोगी कर्मचारी होता है
  • अंशकालीन पत्रकार को स्ट्रिंगर भी कहते हैं। यह किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर काम करता है।
  • फ्रीलांसर पत्रकार भुगतान के आधार पर अलग – अलग अखबारों के लिए काम करता है।

प्रश्न 6.
‘पसोवा’ नामक स्थान की विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
पसोवा एक बड़ा जैन तीर्थ स्थल है, जहाँ प्राचीन काल से प्रतिवर्ष जैनों का एक बड़ा मेला लगता है जिसमें हजारों यात्री आते हैं। इसी स्थान पर एक छोटी – सी पहाड़ी की गुफा में बुद्धदेव व्यायाम करते थे। यह भी किंवदंती थी कि सम्राट अशोक ने यहाँ एक स्तूप बनवाया था। अब पसोवे में व्यायामशाला और स्तूप के चिह्न तो शेष नहीं हैं परन्तु पहाड़ी अभी तक है।

प्रश्न 7.
‘मैंने देखा एक बूंद’ कविता में कवि ‘अज्ञेय’ के द्वारा किसके महत्व की प्रतिष्ठा की गई है? (2)
उत्तर :
कवि ने अपनी कविता में क्षण को महत्त्व दिया है। जीवन में एक क्षण का बड़ा महत्त्व है। संध्याकाल में सागर की एक बूंद सागर के पानी से अलग होती है किन्तु क्षणभर में ही वह सागर में विलीन हो जाती है। उस एक क्षण की। पृथकता का बड़ा महत्त्व है। उसे नश्वरता के कलंक से एक क्षण मुक्ति प्रदान कर देती है।

छोटी – सी कविता में एक क्षण का महत्त्व बताया है। यदि मनुष्य व्यक्तिगत स्वार्थों को भूलकर समाज का ध्यान रखे तो इससे उसका और समाज दोनों का भला हो सकता है। व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है।

प्रश्न 8.
‘केशवदास’ अथवा ‘विद्यापति’ में से किसी एक कवि का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाव – पक्ष – केशवदास की रचनाओं में उनके तीन रूप मिलते हैं – आचार्य, महाकवि और इतिहासकार। आचार्य होने के कारण वह संस्कृत की शास्त्रीय पद्धति को हिन्दी में लाने के लिए प्रयासरत थे। उन्होंने रीति ग्रन्थों की रचना की। केशव ने रामकथा को लेकर काव्य रचना की है।

केशव के काव्य में नाटकीयता है तथा उनकी संवाद – योजना अत्यन्त सशक्त और प्रभावशाली है। कला – पक्ष – केशव ने ब्रजभाषा में रचनाएँ की हैं। उनकी भाषा में कोमलता और माधुर्य के स्थान पर क्लिष्टता पाई जाती है। उनको रीतिकाल का प्रवर्तक माना जाता है। उनके काव्य में शब्दों के चमत्कार पर अधिक बल दिया। गया है अतः उनके काव्य में सहृदयता तथा मधुरता का अभाव है।

काव्य में क्लिष्टता के कारण उनको ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा जाता है। केशव के काव्य में संवाद – योजना अत्यन्त प्रभावशाली है। केशव ने अपने काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग किया है।

कृतियाँ –
1. रामचन्द्र चन्द्रिका (रामकथा पर आधारित महाकाव्य), रसिक प्रिया, कवि प्रिया, छन्दमाला, विज्ञान गीता, वीरसिंह देव चरित, जहाँगीर जसचन्द्रिका, रतनबावनी। )

अथवा

साहित्यिक परिचय – भाव – पक्ष – विद्यापति भक्ति और श्रृंगार के कवि हैं। श्रृंगार उनका प्रधान रस है। वयः सन्धि, नख – शिख वर्णन, सद्यः स्नाता एवं नायिका के अभिसार का चित्रण विद्यापति के प्रिय विषय हैं। विद्यापति को मैथिल कोकिल तथा अभिनव जयदेव कहा जाता है। उनकी वाणी में कोयल जैसी मधुरता है। कला – पक्ष – विद्यापति का संस्कृत, अवहट्ट (अपभ्रंश) तथा मैथिली पर पूरा अधिकार था। उन्होंने इन तीनों भाषाओं में रचनाएँ की हैं।

उनकी पदावली के गीतों में भक्ति और श्रृंगार तथा ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ में दरबारी संस्कृति और अपभ्रंश काव्य परम्परा का प्रभाव दिखाई देता है। उनकी रचनाओं में मिथिला क्षेत्र के लोक व्यवहार तथा संस्कृति का सजीव चित्रण है। पद – लालित्य, मानवीय प्रेम और व्यावहारिक जीवन के विविध रंग उनके पदों को मनोहर बनाते हैं।

कृतियाँ –
(i) संस्कृत रचनाएँ –

  • भू – परिक्रमा,
  • पुरुष परीक्षा,
  • लिखनावली,
  • विभागसार,
  • शैव सर्वस्वसार,
  • गंगा वाक्यावली,
  • दुर्गा भक्ति तरंगिणी,
  • दान वाक्यावली,
  • गयापत्तलक,
  • वर्षकृत्य,
  • पांडव विजय,
  • मणि मंजरी।

(ii) अवहट्ट (अपभ्रंश में रचित) रचनाएँ –

  • कीर्तिलता
  • कीर्तिपताका।

(iii) मैथिली भाषा में रचित रचना – पदावली।

प्रश्न 9.
बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया ने हरगोबिन को क्यों बुलाया? संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
बड़ी बहू बड़ी हवेली की बड़ी बहुरिया थी। उसके पति की अकाल मृत्यु हो गई थी तथा शेष बचे तीनों देवर अब शहर में रहने लगे थे। बड़ी बहू की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई थी कि अब उसके खाने – पीने तक का ठिकाना न था।

बेचारी बथुआ – साग खाकर गुजारा करती थी। उसने हरगोबिन संवदिया को अपनी माँ के घर संवाद पहुँचाने के लिए बुलाया था। उसने कहलवाया था कि वह अकेली है तथा बड़ी गरीबी में गाँव में रहकर गुजारा कर रही है परन्तु अब और अधिक समय तक वह ऐसा नहीं कर सकती।

प्रश्न 10.
श्रीराम के अश्वों की किससे तुलना की गई है और क्यों? संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
राम के वियोग में अयोध्या के नर – नारी ही नहीं. घोडे तक दखी हैं। कौशल्या कहती है कि यद्यपि तम्हा से भरत सौ गुनी देखभाल उन घोड़ों की करते हैं, क्योंकि वे तुम्हारे प्रिय घोड़े हैं, तथापि तुम्हारे बिना वे घोड़े इस ना दिन दुर्बल होते जा रहे हैं जैसे पाला पड़े से कमल दिनों – दिन मुरझाता जाता है। यहाँ राम के अश्वों की तुलना पाले से मुरझाए हुए कमलों से की है।

प्रश्न 11.
‘ममता कालिया’ अथवा ‘निर्मल वर्मा’ में से किसी एक साहित्यकार का साहित्यिक परिचय लिखिए। (2)
उत्तर :
साहित्यिक परिचय – भाषा – ममता कालिया का भाषा पर पूरा अधिकार है। साधारण शब्दों का प्रयोग वह इस प्रकार करती हैं कि उसका प्रभाव जादू के समान होता है। ममता जी को शब्दों की अच्छी परख है। भाषा में तत्सम शब्दावली के साथ तद्भव और लोक – प्रचलित शब्दों का प्रयोग भी आपने किया है। आपकी भाषा प्रवाहपूर्ण तथा वर्ण्य – विषय के अनुकूल है।

विषय के अनुकूल सहज भावाभिव्यक्ति उनकी विशेषता है। ममता जी ने वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। उसमें कहीं – कहीं व्यंग्य के छींटे हैं। पात्रों के चरित्र – चित्रण में लेखिका ने मनोविश्लेषण शैली को अपनाया है।

प्रमुख कृतियाँ –

  • उपन्यास – बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानी, लड़कियाँ, दौड़ इत्यादि।
  • कहानी – संग्रह सम्पूर्ण कहानियाँ, ‘पच्चीस साल की लड़की’ तथा ‘थियेटर रोड के कौवे’।

पुरस्कार – ममता जी को कहानी – साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान से ‘साहित्य भूषण’ सम्मान सन् 2004 में मिल चुका है। इसी संस्था से ‘कहानी – सम्मान’, उनके सम्पूर्ण साहित्य पर अभिनव भारती कलकत्ता का ‘रचना पुरस्कार’ तथा ‘सरस्वती प्रेस’ और ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ का श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार भी आपको मिल चुके हैं।

अथवा

साहित्यिक परिचय हिन्दी के कथा – साहित्य के क्षेत्र में वर्मा जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे नयी कहानी आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं। निर्मल वर्मा की भाषा सशक्त, प्रभावपूर्ण और कसावट से युक्त है। उनकी भाषा में उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के शब्दों को स्थान मिला है। उन्होंने मिश्र और संयुक्त वाक्यों को प्रधानता दी है। शब्द – चयन स्वाभाविक है। वर्मा जी ने वर्णनात्मक तथा विवरणात्मक शैलियों को अपनी रचनाओं में अपनाया है। आपके निबन्धों में ली को भी स्थान मिला है। कहानियों तथा उपन्यासों में संवाद शैली. मनोविश्लेषण शैली, व्यंग्य शैली आदि को भी लेखक ने यथास्थान अपनाया है।

कृतियाँ
(क) कहानी – संग्रह परिंदे, जलती झाड़ी, तीन एकांत, पिछली गरमियों में, कव्वे और काला पानी, सूखा तथा अन्य कहानियाँ।
(ख) उपन्यास – वे दिन, लाल टीन की छत आदि।
(ग) यात्रा संस्मरण – हर बारिश में, चीड़ों पर चाँदनी, धुंध से उठती धुन।
(घ) निबन्ध – संग्रह शब्द और स्मृति, कला का जोखिम तथा ढलान से उतरते हुए। आपको सन् 1985 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कव्वे और काला पानी) तथा सन् 1999 में भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

प्रश्न 12.
किस घटना के कारण सूरदास की बदनामी होती है? ‘सूरदास’ की झोंपड़ी’ अध्याय के आधार पर संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
भैरों एक दुष्ट व्यक्ति था। वह अपनी पत्नी सुभागी को मारता था। एक दिन सुभागी मार की डर से सूरदास की झोंपड़ी में आकर छिप गई। भैरों ने उसे वहाँ देख लिया और उसने यह प्रतिवाद शुरू कर दिया कि सूरदास ने उसकी पत्नी पर डोरे डाले हैं, उसे भगाकर ले गया है, उसकी आबरू बिगाड़ी है। भैरों के इस प्रकार के आक्षेप से सूरदास की बदनामी होती है।

प्रश्न 13.
रूप ने भूपदादा को धक्का क्यों दिया? ‘आरोहण’ अध्याय के आधार पर उत्तर संक्षेप में लिखिए। (2)
उत्तर :
रूप वर्षों पहले अपने घर से देवकुंड भाग गया था। भूप दादा उसे खोजते हुए आए थे और उसे पकड़ लिया था।

वह फिर से न भाग जाय, यह सोचकर दादा ने उसकी कलाई कसकर पकड़ रखी थी। वे गाँव लौट रहे थे। पहाड़ी रास्ते पर चलते समय उनसे छुटकारा पाने के लिए रूप ने उनको धक्का दिया था। वे सँभल न सके और फिसल गए। हाथ पकड़ा होने के कारण रूप भी उनके साथ खिंच गया।

वे ढलान पर लुढ़कने लगे। रास्ते में खड़े एक पेड़ के एक तरफ रूप तथा दूसरी तरफ दादा लटके हुए थे। दादा बहुत मजबूत इंसान थे। उन्होंने जैसे – तैसे रूप को खींचा और ऊपर ले आए और उसका हाथ छोड़ दिया।

प्रश्न 14.
‘हाथीपाला’ का नाम ‘हाथीपाला’ क्यों पड़ा? ‘अपना मालवा – खाऊ – उजाडू सभ्यता में’ अध्याय के आधार पर संक्षेप में लखिए। (2)
उत्तर :
हाथीपाला का नाम इसलिए हाथीपाला पड़ा कि कभी वहाँ की बहने वाली नदी को पार करने के लिए हाथी पर जाना पड़ता था। चंद्रभागा पुल के नीचे उतना पानी रहा करता था, जितना महाराष्ट्र की चंद्रभागा नदी में। इंदौर के बीच से निकलने और मिलने वाली ये नदियाँ कभी उसे हरा – भरा और गुलजार रखती थीं। लेकिन आज वे सड़े नालों में बदल गई हैं।

प्रश्न 15.
सरदास के रुपये किसने और क्यों लिए? (2)
उत्तर :
भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह अपनी पत्नी सुभागी को मारता – पीटता था। एक बार सुभागी उसकी पिटाई से बचने के लिए सूरदास की झोपड़ी में आकर छिप गई। भैरों उसे मारने के लिए सूरदास की झोपड़ी में घुस आया। परन्तु सूरदास ने उसे बचा लिया तब से वह सूरदास से द्वेष करने लगा तथा सूरदास के चरित्र पर लांछन लगाने लगा। उसकी सूरदास के प्रति ईर्ष्या इतनी बढ़ गई कि उसने सूरदास की अनुपस्थिति में उसकी झोंपड़ी में घुसकर बचाकर रखे हुए : उसके रुपयों की पोटली चुरा ली और उसकी झोपड़ी में आग लगा दी।

खण्ड – (स)

प्रश्न 16.
‘चार हाथ’ लघुकथा पूँजीवादी व्यवस्था में मजदूरों के शोषण को उजागर करती है। कैसे? इस कथन का अभिप्राय कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (उत्तर – सीमा 60 शब्द) (3)
उत्तर :
असगर वजाहत की लघु कथा ‘चार हाथ’ का उद्देश्य इस तथ्य को उजागर करना है कि मिल – मालिक मजदूरों का शोषण करते हैं। वे उत्पादन बढ़ाने के लिये निर्दयता की सीमाओं का भी उल्लंघन कर जाते हैं। एक मिल – मालिक ने सोचा कि यदि मजदूरों के चार हाथ हों तो उत्पादन दुगुना हो सकता है।

तरह – तरह के उपाय करके उसने मजदूरों के चार हाथ लगाने का प्रयास किया पर सफलता न मिली। लोहे के हाथ जबरदस्ती मजदूरों के फिट करवा दिए परिणामतः मजदूर मर गये। अचानक उसके दिमाग में यह बात कौंध गई कि यदि मजदूरी आधी कर दूँ और दुगुने मजदूर काम पर रख लूँ तो उतनी ही मजदूरी में उत्पादन दोगुना हो जायेगा। उसने यही किया।

बेचारे लाचार मजदूर आधी मजदूरी पर काम करने लगे क्योंकि उनके पास और कोई चारा न था। पूँजीपति संवेदनहीन हैं, वे अधिक से। अधिक लाभ कमा रहे हैं और मजदूरों की लाचारी का फायदा उठा रहे हैं। लेखक का दृष्टिकोण इस लघु कथा में पूर्णतः प्रगतिवादी है।

अथवा

लेखक के द्वारा शंकर भगवान की मूर्ति को गाँव वालों को क्यों लौटा दिया गया? ‘कच्चा चिट्ठा’ अध्याय के आधार पर विस्तार से उत्तर लिखिए। (उत्तर – सीमा 60 शब्द) (3)
उत्तर :
व्यास जी किसी गाँव के बाहर एक पेड़ के नीचे रखी चतुर्मुखी शिव की मूर्ति को उठा लाए थे जिसकी पूजा – अर्चना गाँव वाले करते थे। जब गाँव वालों को इस बात का पता चला कि शिवजी अंतर्धान हो गए हैं तो उन्होंने ठान लिया कि जब तक शिवजी वापस नहीं आ जाएँगे तब तक वे उपवास पर रहेंगे और एक बूंद पानी तक न पियेंगे।

गाँव के मुखिया ने व्यास जी के कार्यालय में आकर इस सम्बन्ध में उन्हें सूचित किया और विनम्र अनुरोध किया कि आप हमें शिवजी की उस मूर्ति को वापस ले जाने की आज्ञा दें। जब व्यास जी ने वह मूर्ति उन्हें वापस कर दी तभी गाँव वालों ने अपना उपवास तोड़ा। व्यास जी लिखते हैं कि यदि उन्हें पता होता कि गाँव वालों की इतनी ममता उस मूर्ति पर है तो वे उसे उठाकर लाते ही नहीं।

प्रश्न 17.
हिमालय किधर है? इस प्रश्न का बालक ने क्या उत्तर दिया और क्यों? क्या आपकी दृष्टि में यह उत्तर सही है? विस्तार से उत्तर दीजिए। (उत्तर – सीमा 60 शब्द) (3)
उत्तर :
केदारनाथ सिंह की ‘दिशा’ कविता लघु आकार की है और बाल मनोविज्ञान पर आधारित है। इसमें बच्चों की निश्छलता और स्वाभाविक सरलता का मार्मिक वर्णन है। कवि ने कविता के माध्यम से यथार्थ को परिभाषित किया है। कवि पतंग उड़ाते बच्चों से सहज रूप में पूछता है कि हिमालय किधर है ? बच्चे भी अपनी सहज प्रवृत्ति के अनुसार उत्तर देते हैं, कि हिमालय उधर है जिधर उनकी पतंग उड़ रही है।

कवि सोचता है कि प्रत्येक व्यक्ति का यथार्थ अलग होता है। बच्चे यथार्थ को अपने ढंग से देखते हैं। कवि बालकों के इस सहज ज्ञान से प्रभावित हो जाता है। कवि की धारणा है कि हम बच्चों से भी कुछ न कुछ सीख सकते हैं। कवि के विचार से हम सहमत हैं क्योंकि बच्चे की दुनिया छोटी होती है, इसलिए वह अपने अनुसार सोचता है। उसे हर चीज पतंग की दिशा में दीख रही थी।

अथवा

“एक कम’ कविता के आधार पर स्वतन्त्रता पश्चात् भारतवर्ष की स्थिति का चित्रण विस्तार से कीजिए। (उत्तर – सीमा 60 शब्द) (3)
उत्तर :
कवि ने आजादी के बाद भारत के अनेक लोगों को आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है।

छल – कपट, धोखाधड़ी, विश्वासघात, भ्रष्टाचार, स्वार्थपरता एवं अन्याय के बल पर लोगों ने अपनी स्थिति को सुधारा है। अनैतिक तरीकों से लोग धनवान बने हैं और दूसरों को धक्का देकर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति को ही उन्होंने अपनी उन्नति का साधन बनाया है। इस पंक्ति में एक व्यक्ति कम है। वह है भिखारी। हाथ फैलाने वाले अर्थात् भीख माँगने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार इसलिए कहा है क्योंकि अन्य लोगों की तरह वह धोखाधड़ी, बेईमानी या रिश्वतखोरी नहीं कर सका इसीलिए वह धनवान नहीं बन सका और आज इतना गरीब है कि पेट भरने के लिए उसे दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा है।

प्रश्न 18.
‘हमारे आज के शहर नियोजकों और इंजीनियरों तथा पुरातन नियोजकों में क्या अंतर बताया गया है? अपना मालवा – खाऊ – उजाडू सभ्यता में अध्याय के आधार पर विस्तृत उत्तर लिखिए। (उत्तर – सीमा 80 शब्द) (4)
उत्तर :
रिनेसां अर्थात् पुनर्जागरण काल योरोप में बहुत पहले नहीं आया था। यह बीसवीं शताब्दी में वहाँ आया। इसके।

कारण ब्रिटेन में औद्योगिक क्रान्ति हुई और योरोप में तकनीकी ज्ञान बढ़ा। वहाँ से यह विश्व के अन्य देशों में पहुँचा। विदेशियों को यह भ्रम सदा रहा है कि भारत को सभ्यता उन्होंने ही सिखाई है। सत्य यह है कि भारत की सभ्यता तथा संस्कृति प्राचीनकाल में भी अत्यन्त विकसित थी। उज्जैन के शासक विक्रमादित्य ईसा से भी पहले हुए थे। वे एक प्रतापी तथा कुशल राजा थे। महाराजा भोज और मुंज भी कुशल प्रजापालक शासक थे।

राज्य की से वे अवगत थे। उन्होंने मालवा में तालाब खुदवाए थे, कुओं तथा बावड़ियों का निर्माण जानते थे कि पठार के पानी को रोककर रखने के लिए इन विकास कार्यों की जरूरत है। इससे बरसात का पानी रुका रहता था और गर्मियों में लोगों के काम आता था। इससे भूगर्भ के जल का स्तर भी सुरक्षित रहता था। उसका अनावश्यक दोहन भी नहीं होता था।

अथवा

‘तुम खेल में रोते हो’, इस कथन को सुनकर सूरदास पर क्या प्रभाव पड़ा? ‘सूरदास की झोंपड़ी’ अध्याय के आधार पर विस्तार से उत्तर लिखिए। (उत्तर – सीमा 80 शब्द) (4)
उत्तर :
झोंपड़ी के जलने से सूरदास अत्यन्त दुःखी था। पूरी राख को तितर – बितर करने पर भी उसे अपने संचित रुपये अथवा उनकी पिघली हुई चाँदी नहीं मिली थी। उसकी सभी योजनाएँ इन रुपयों के माध्यम से ही पूरी होनी थीं। अब वे अधूरी ही रहने वाली थीं। दुःखी और निराश सूरदास रोने लगा था।

अचानक उसके कानों में आवाज आई – “तुम खेल में रोते हो।” इन शब्दों ने सूरदास की मनोदशा को एकदम बदल दिया। उसने रोना बन्द कर दिया। निराशा उसके मन से दूर हो गई। उसका स्थान विजय – गर्व ने ले लिया। उसने मान लिया कि वह खेल में रोने लगा था। यह अच्छी बात नहीं थी। वह राख को दोनों हाथों से हवा में उड़ाने लगा।

प्रश्न 19.
निम्नलिखित पठित काव्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1 + 4 = 5)

जो है वह खड़ा है
बिना किसी स्तंभ के
जो नहीं है उसे थामे है
राख और रोशनी के ऊँचे – ऊँचे स्तंभ
आग के स्तंभ
और पानी के स्तंभ
धुएँ के
खुशबू के
आदमी के उठे हुए हाथों के स्तंभ
किसी अलक्षित सूर्य को
देता हुआ अर्घ्य
शताब्दियों से इसी तरह
गंगा के जल में
अपनी दूसरी टाँग से.
बिलकुल बेखबर!
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश ‘बनारस’ कविता से उद्धृत है जिसके रचयिता श्री केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित है।

प्रसंग – इन पंक्तियों में एक ओर बनारस के प्राचीन भव्य स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है तो दूसरी ओर बनारस की आधुनिकता का वर्णन है। इसमें बनारस के एक विशिष्ट रूप को प्रस्तुत किया गया है। सदियों से चली आ रही आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक वैभव का भी वर्णन है।

व्याख्या – कवि का कहना है कि बनारस में जो कुछ विद्यमान है वह सभी बिना किसी आधार के, बिना किसी सहारे के खड़ा है। बनारस की प्राचीनता, आस्था, आध्यात्मिकता, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा और सामूहिक गति सभी विरासत के रूप में यहाँ के जनजीवन में व्याप्त हैं। उसका मिथकीय रूप आज भी सुरक्षित है। जो अस्तित्व में नहीं है उसे राख, रोशनी के ऊँचे खम्भे, आग के स्तम्भ, पानी के खम्भे, धुएँ की सुगन्ध और आदमी के उठे हाथ थामे हुए हैं अर्थात् बनारस में आध्यात्मिकता की दोनों शैलियों के मिले – जुले रूप देखने को मिलते हैं।

यह बनारस शहर सदियों से किसी अज्ञात, अदृश्य सूर्य को अर्घ्य देता हुआ गंगा के जल में अपनी एक टौंग पर खड़ा है और दूसरी टौंग से अनजान है। सूर्य को ब्रह्म का प्राचीनतम रूप मानकर सदियों से यहाँ पूजा जा रहा है। यह परम्परा आज की नहीं बहुत प्राचीन है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी गंगा के बीच में खड़े होकर उसके जल से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।

बनारस का एक भाग आज भी प्राचीन परम्परा में दृढ़ है तो दूसरा आधुनिकता से प्रभावित है। इस प्रकार बनारस में प्राचीनता के साथ आधुनिकता का समावेश है।

अथवा

कुसुमित कानन हेरि कमलमुखि,
मूदि रहए दु नयान,
कोकिल – कलरव,
मधुकर – धुनि सुनि,
कर देइ झापइ कान।।
माधव, सुन – सुन बचन हमारा।
तुअ गुन सुंदरि अति भेल दूबरि
गुनि – गुनि प्रेम तोहारा।।
धरनी धरि धनि कत बेरि बइसइ,
पुनि तहि उठड़ न पारा।
कातर दिठि करि, चौदिस हेरि – हेरि
नयन गरए जल – धारा।।
उत्तर :
सन्दर्भ – प्रस्तुत पंक्तियों मैथिल कोकिल विद्यापति द्वारा रचित ‘पदावली’ से ली गई हैं जिन्हें ‘पद’ शीर्षक के अन्तर्गत हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अन्तरा भाग – 2’ में संकलित किया गया है।

प्रसंग – विरहिणी नायिका की विरह दशा का वर्णन करती हुई कोई सखी नायक श्रीकृष्ण से कहती है कि पुष्पित वन और कोयल की कूक उसे लेशमात्र नहीं सुहाती, वह अत्यन्त दुर्बल हो गई है, पृथ्वी पर बैठ जाये तो उठ भी नहीं पाती। नायिका की इसी विरह विकल दशा का वर्णन विद्यापति ने इस पद में किया है।

व्याख्या – दती ने जाकर श्रीकृष्ण से कहा-हे कृष्ण! तुम्हारे विरह में नायिका राधा अत्यन्त विकल हो रही है। वह कमलमुखी जब पुष्पित उपवनों को देखती है तो दोनों नेत्र बन्द कर लेती है और जब कोयल की मधुर कूक और भौरों का मधुर गुंजार सुनती है तो दोनों हाथों से कान ढक लेती है। उसे यह सब लेशमात्र भी नहीं सुहाता। हे कृष्ण! मेरी बात को ध्यान से सुनो।

तुम्हारे गुणों पर मुग्ध वह विरहिणी राधा तुम्हारे विरह में अत्यन्त दुर्बल हो की है और निरन्तर तुम्हारे ही बारे में सोचती रहती है। कितनी ही बार वह पृथ्वी पर बैठ जाती है किन्तु दुर्बलता के कारण अपने आप उठ भी नहीं पाती। तुम्हारे आगमन की प्रतीक्षा करती हुई वह राधा कातर (पैनी) दृष्टि से चारों दिशाओं में देखती रहती है और उसकी आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होती रहती है।

तुम्हारे विरह में उसका शरीर उसी तरह प्रतिक्षण क्षीण होता जा रहा है जैसे चतुर्दशी का चन्द्रमा प्रतिदिन छोटा होता जाता है। विद्यापति कवि कहते हैं कि मिथिला के राजा शिवसिंह रानी लक्ष्मणादेवी पर मुग्ध हैं और उनके साथ रमण करते हैं।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित पठित गद्यांशों में से किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिए – (1 + 4 = 5)
धर्म के रहस्य जानने की इच्छा प्रत्येक मनुष्य न करे, जो कहा जाए वही कान ढलकाकर सुन ले, इस सत्ययुगी मत के समर्थन में घड़ी का दृष्टांत बहुत तालियाँ पिटवाकर दिया जाता है। घड़ी समय बतलाती है। किसी घड़ी देखना जानने वाले से समय पूछ लो और काम चला लो। यदि अधिक करो तो घड़ी देखना स्वयं सीख लो किंतु तुम चाहते हो कि घड़ी का पीछा खोलकर देखें, पुर्जे गिन लें, उन्होंने खोलकर फिर जमा दें, साफ करके फिर लगा लें – यह तुमसे नहीं होगा। तुम उसके अधिकारी नहीं। यह तो वेदशास्त्र धर्माचार्यों का ही काम है कि घड़ी के पुर्जे जानें, तुम्हें इससे क्या – क्या इस उपमा से जिज्ञासा बंद हो जाती है?
उत्तर :
संदर्भ – प्रस्तुत पंक्तियाँ पण्डित चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ जी द्वारा रचित पाठ ‘सुमिरिनी के मनके’ से ली गई हैं। यह अंश इस पाठ के दूसरे खण्ड ‘घड़ी के पुर्जे’ से उद्धृत किया गया है जिसे हमारी पाठ्य – पुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित किया गया है।

प्रसंग – धर्म का उपदेश देने वाले विद्वान घड़ी का उदाहरण देकर धर्म के विषय में बताते हैं। घड़ी में केवल समय देखो। उसको खोलकर मत देखो। धर्म के उपदेश सुनो, उस पर तर्क मत करो।

व्याख्या – धर्मोपदेशक प्रायः यह कहा करते हैं कि तुम्हें धर्म के बारे में जो कुछ बताया जाए उसे चुपचाप कान खोलकर सुन लो, उस पर कोई टीका – टिप्पणी मत करो, कोई जिज्ञासा न करो क्योंकि तुम्हें धर्म का रहस्य जानने की कोई आवश्यकता नहीं। इस धर्मरूपी घड़ी का उपयोग तुम्हें केवल समय जानने के लिए करना है न कि घड़ी को पीछे से खोलकर उसके पुों को देखने, खोलने, साफ करने या पुनः जोड़ने की जरूरत है।

जब धर्मोपदेशक धर्म की तुलना घड़ी से करते हैं तो श्रोता ताली बजाकर उनका समर्थन करते हैं। इस प्रकार तालियाँ पिटवाकर उपदेशक लोगो के मन में धर्म का रहस्य जानने के लिये उठी जिज्ञासा को बेमानी बताकर उसे शात करना चाहते हैं। किन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं। हर व्यक्ति के मन में धर्म का रहस्य जानने की कुछ जिज्ञासा रहती है। साथ ही जो शंकाएँ उसके मन में उठती हैं उनका वह समाधान भी करना चाहता है।

अथवा

ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘शरणार्थी’ हैं, जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावत ने अपनी घर – जमीन से उखाड़कर हमेशा के लिए निर्वासित कर दिया है। प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है। बाढ़ या भूकंप के कारण लोग अपना घरबार छोड़कर कुछ अरसे के लिए जरूर बाहर चले जाते हैं, किन्तु आफत टलते ही वे दोबारा अपने जाने – पहचाने परिवेश में लौट भी आते हैं। किन्तु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को उन्मूलित करता है, तो वे फिर कभी अपने घर वापस नहीं लौट सकते। आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश और आवास स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
उत्तर :
संदर्भ -प्रस्तुत पंक्तियाँ निर्मल वर्मा के यात्रावृत्त ‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ से ली गई हैं। इसे हमारी पाठ्य – पुस्तक “अंतरा भाग – 2′ में संकलित किया गया है।

प्रसंग – सामान्यत: व्यक्ति प्राकृतिक विपदाओं के कारण अपना घर – बार छोड़कर कुछ समय के लिए विस्थापित होता है पर आधुनिक भारत में औद्योगीकरण के झंझावात ने तमाम लोगों को विस्थापित होकर सदा के लिए शरणार्थी बनने को विवश कर दिया है।

व्याख्या – प्रायः व्यक्ति को प्राकृतिक विपदाओं भूकम्प, बाढ़ आदि के कारण अपना घरबार छोड़कर थोड़े समय के लिए विस्थापित होकर कहीं अन्यत्र शरण लेनी पड़ती है। जैसे ही प्राकृतिक विपदा शांत हुई वे अपने पुराने घर में, पुराने परिवेश में वापस लौट आते हैं किन्तु औद्योगीकरण के झंझावात (तूफान) से जो विस्थापन लोगों को झेलना पड़ता है वह स्थायी किस्म का होता है जिसमें व्यक्ति को सदा के लिए अपना घर – बार छोड़कर इधर शरण लेनी पड़ती है।

औद्योगीकरण के कारण विस्थापित ये आधुनिक भारत के नए शरणार्थी हैं जिन्हें अपनी जमीन से अपने घर से सदा के लिए उखाड़कर निर्वासित कर दिया गया है। प्राकृतिक प्रकोप तो कुछ समय के लिए ही होता है और जैसे ही वह समाप्त होता है, विस्थापित लोग पनः अपने घर लौट आते हैं। औद्योगीकरण में विकास और प्रगति के नाम पर जो विस्थापित होता है उसमें घर – जमीन से उखड़े लोग सदा के लिए अपना घर छोड़ने को विवश हो जाते हैं और फिर कभी वापस नहीं आ पाते। आधुनिक औद्योगीकरण ने ग्रामीणों को उनके परिवेश से काट दिया है, उनके आवास स्थलों को सदा के लिए नष्ट कर दिया है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर 400 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए। (6)
(अ) बढ़ती तकनीक – सुविधा या समस्या
(ब) प्राकृतिक आपदाएँ कारण और निवारण
(सं) यदि मैं शिक्षा – मंत्री होता
(द) दैनिक जीवन में विज्ञान
(य) कोरोनाकाल और शिक्षा

(अ) बढ़ती तकनीक – सुविधा या समस्या रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना
  2. नई तकनीकें, नए मुद्दे
  3. नई तकनीकों के लाभ
  4. अनैतिक पक्ष
  5. उपसंहार।

(1) प्रस्तावना – व्यक्ति का विकास और पूरे देश का विकास नई – नई लाभकारी तकनीकों से जुड़ा हुआ है। आज की दुनिया में मानव जीवन का कुशल – क्षेम और अस्तित्व विज्ञान और तकनीक के बुद्धिमानी से प्रयोग पर आधारित हो गया है। नई – नई तकनीकों के प्रयोग ने मानव जीवन को सहजजीवी, सुविधाजनक और रोचक बनाया है, इसमें : संदेह नहीं लेकिन नई तकनीकों से जुड़े नैतिक पक्षों पर उँगलियाँ भी उठने लगी हैं। ऐसे मानकों को लागू करने की माँग उठने लगी है जो तकनीक को नैतिक नियंत्रण में बाँधे रखे।

(2) नई तकनीकें, नए मुद्दे – विज्ञान के उन्नत होने के साथ ही नई तकनीकें भी सामने आती रही हैं। इसके साथ ही नए – जए मुद्दों पर भी बहस प्रारम्भ हुई है। ज्ञान और प्रयोग – कौशल के संयोग से ही तकनीक जन्म लेती है। नई तकनीक से जुड़े नवीनतम मुद्दों को लेकर विवादों ने भी जन्म लेना आरम्भ कर दिया। रोबोट तकनीक से उद्योगों और कठिन कार्यों के संपादन में सहायता मिली।

अंतरिक्ष अभियानों ने ब्रह्माण्ड के संबंध में हमारा ज्ञानवर्धन किया। लेकिन इन पर होने वाले करोड़ों – अरबों के बजट की सार्थकता पर सवाल उठे हैं। इसी तरह GM. फसलों से पैदावार में जहाँ वृद्धि हुई है वहीं उनसे जुड़ी कंपनियों के एकाधिकार पर और GM. फसलों से अन्य फसलों के कुप्रभावित होने पर विवाद होते आ रहे हैं।

कृषि वैज्ञानिक स्वामी नाथन ने B.T. कपास को लेकर और किसानों की आजीविका की सुरक्षा को लेकर संदेह ‘व्यक्त किया है। यह नई तकनीक का ही परिणाम है।

इसी प्रकार चीनी वैज्ञानिक द्वारा ‘डिजाइनर बेबी’ को जन्म देने की तकनीक भी विवादों में घिर चुकी है। नई तकनीकों को अपनाए जाने के अनेक लाभ गिनाए जाते हैं जैसे

  • B.T. Cotton की खेती से उत्पादन अधिक मात्रा में होता है।
  • रोबोटिक्स की तकनीक अपनाकर अनेक संकटपूर्ण प्रयोग, बिना हानि के संपन्न किए जा सकते हैं। उद्योगों – में रोबोट के प्रयोग से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
  • जीन एडिटिंग (जीन के स्तर पर बदलाव) से मनचाहे गुणों वाले ‘डिजायनर बेबी’ उत्पन्न किए जा सकते है।
  • GM. फसलों से अन्न उत्पादन में वृद्धि करके भूख की समस्या हल की जा सकती है।
  • B.T. Cotton की खेती से कपास का उत्पाद सुरक्षित और मात्रा में काफी अधिक होता है। नई तकनीक से ही अमेरिका में जीन संवर्द्धित सुनहले चावल पैदा किए गए।
  • जीन एडिटिंग द्वारा कई असाध्य रोगों का उपचार हो सकता है।

इन लाभों के साथ ही इनसे जुड़े हुए अनैतिकता के आक्षेप भी हैं। जैसे –

  • GM. फसलों ने जहाँ उत्पादन बढ़ाया है वहीं बीज निर्माता कंपनी को मनमाने दाम वसूलने का अधिकार भी दे दिया है।
  • GM. फसलों के चारे को पशुओं को खिलाए जाने के दुष्परिणाम भी सामने आए हैं। दुधारू पशुओं पर इस चारे का नकारात्मक प्रभाव हुआ है।
  • किसान GM. फसलों से अपने लिए बीज पैदा नहीं कर सकते, क्योंकि बड़ी बीज कंपनियों के उस पर प्रापर्टी राइट (एकाधिकार) होते हैं।
  • जीन तकनीक व्यक्ति में चिकित्सकीय सुधार तक ही सीमित नहीं रह सकती। उसके द्वारा बनाए गए ‘डिजायनर बेबी’ समाज में जैविक असमानता उत्पन्न कर सकते हैं। इससे समाज या तकनीकी रूप से समृद्ध वर्ग तेजी से विकास करते हुए आगे बढ़ जाएगा बाकी लोग पिछड़ जाएँगे।
  • जीन एडिटिंग (जीन में सुधार) से व्यक्तिगत पहचान कठिन हो सकती है।

(5) उपसंहार – नैतिक आचरण को मान्यता देते हुए एक सभ्य और समानता युक्त समाज को सुरक्षित बनाए रखना संवैधानिक दृष्टि से भी परम आवश्यक है। नई तकनीक का प्रयोग मानव जीवन के उत्थान के लिए हो। लेकिन अन्य प्राणियों की विविधता और सुरक्षा पर भी पूरा ध्यान रखा जाये। नई तकनीक का बहिष्कार भी बुद्धिमानी नहीं है। उसके हर पक्ष पर बारीकी से विचार करते हुए अपनाना ही उचित है।

(ब) प्राकृतिक आपदाएँ : कारण और निवारण रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना
  2. प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार
  3. आपदाओं के कारण
  4. निवारण के उपाय
  5. जनता और सरकारी प्रयासों में तालमेल
  6. उपसंहार।

(1) प्रस्तावना – जब से इस धरती पर मानव का निवास प्रारम्भ हुआ है, उसे निरंतर प्रकृति से संघर्ष करना पड़ा है। जिसे हम प्रकृति का कोप या प्राकृतिक आपदा कहते हैं वह प्रकृति में घटने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन परिस्थितिवश या अपने स्वार्थों और सुख – साधनों की पूर्ति के लिए मानव द्वारा ऐसे कार्य किए जा रहे हैं जिन से भयंकर प्राकृतिक आपदाएँ सदा मनुष्य के सिर पर मँडराती रहती हैं।

(2) प्राकृतिक आपदाओं के प्रकार – प्राकृतिक आपदाएँ अनेक रूपों में मनुष्य पर प्रहार करती आ रही हैं। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूमि का धंसना, भूकंप, समुद्री तूफान, बादल फटना, बिजली गिरना, जंगलों में भयंकर आग लगना आदि प्राकृतिक आपदाओं के विविध स्वरूप हैं।

(3) आपदाओं के कारण – प्राकृतिक आपदाओं के लिए प्राकृतिक घटनाएँ ही जिम्मेदार नहीं होती। मनुष्य का प्रकृति पर विजय पाने का अहंकार भी इसका कारण होता है। विकास के नाम किए जाने वाले अनेक कार्य ही विनाश का कारण बन जाते हैं। भूमंडल के तापमान में वृद्धि होने के कारण पर्वतों में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इससे नदियों में बाढ़ें आ रही हैं। ध्रुव प्रदेशों की बर्फ पिघलने से समुद्र का जल स्तर ऊँचा हो रहा है।

इससे समुद्र तटीय नगरों और बस्तियों के समुद्र में समा जाने का खतरा बढ़ रहा है। वनों की अंधाधुंध कटाई से वर्षा का जल धरती की उपजाऊ परतों को बहाकर ले जा रहा है। बड़े – बड़े बाँधों के बनाने से भूकंप और जल प्रलय की विनाशलीला को निमंत्रण दिया जा रहा है। पहाड़ी प्रदेशों में विघटन के नाम पर सड़कों का निर्माण, खुदाई और विस्फोट, पर्वतों के संतुलन को बिगाड़ रहा है और चट्टानों का टूटकर गिरना, एक आम बात हो गई है।

(4) निवारण के उपाय – प्राकृतिक आपदाओं पर नियंत्रण कर पाना मनुष्य की शक्ति से परे है। हम प्राकृतिक आपदाओं के स्वरूप और उनसे हुए विनाश को ध्यान में रखकर केवल आत्मरक्षा और त्वरित सहायता के उपाय ही कर सकते हैं। प्रकृति का स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति से शोषण रोकना होगा।

विशाल बाँधों का निर्माण बद करना होगा। उद्योगों के लिए वनों का काटना कम से कम करना होगा। वक्षारोपण को एक आंदोलन का रूप देना होगा। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए सदा तैयारी रखें। बाढ़, भूकंप जैसी आपदाओं के लिए व्यवस्थित संगठन होने चाहिए।

(5) जनता और सरकारी प्रयासों में तालमेल – प्राकृतिक आपदाओं के आने पर जनता और सरकार के बीच तालमेल होना आवश्यक है। स्वैच्छिक सहायता – संगठनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। विपत्ति के समय सरकारी विभाग तो अपना कार्य करते ही हैं, जनता को भी आपदा के शिकार लोगों की तन, मन और धन से सहायता को आगे आना चाहिए।

(6) उपसंहार – प्राकृतिक आपदा कभी भी आ सकती है। धरती के गर्भ में क्या प्राकृतिक क्रियाएँ चल रही हैं, यह पता लगाना आसान काम नहीं है। भूकंप आने पर ही पता चलता है कि उसका केन्द्र कहाँ था। कितनी शक्ति का भूकंप था? आग लगने पर कुआँ खोदने वाले अपनी हँसी तो कराते ही हैं साथ ही आपदा का प्रहार भी इन्हें झेलना पड़ सकता है। प्रकृति पर मनुष्य कभी पूर्ण विजय पा लेगा और प्राकृतिक आपदाएँ आना बंद हो जाएँगी, ऐसा कभी होने वाला नहीं है। अतः अपने सारे ज्ञान और तकनीकों से प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली क्षति को न्यूनतम करने के उपाय करते रहना ही बुद्धिमानी है।

(स) यदि मैं शिक्षा मंत्री होता रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना
  2. शिक्षा का उद्देश्य
  3. वर्तमान शिक्षा और परीक्षा प्रणाली
  4. शिक्षा का माध्यम
  5. व्यवसायपरक शिक्षा हो
  6. उपसंहार।

(1) प्रस्तावना – अपने अब तक के छात्र जीवन में मुझे जो अनुभव हुए हैं, जो समस्याएँ सामने आई हैं, उनसे मेरे मन में एक सपना जाग गया है कि यदि मैं शिक्षा मंत्री होता तो अपने प्रदेश की शिक्षा प्रणाली में क्या – क्या परिवर्तन करना चाहता। एक छात्र के रूप में मेरी शिक्षा मंत्रालय से क्या – क्या अपेक्षाएँ होती।

(2) शिक्षा का उददेश्य – प्रश्न उठता है कि शिक्षा का उददेश्य क्या है? विचार करने पर उत्तर आता है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होना चाहिए। केवल डिग्रियाँ बाँट देने से शिक्षा का लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता। छात्र के वर्तमान और भावी जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की योग्यता विकसित करना भी शिक्षा का ही उद्देश्य है।

छात्र को अपना व्यवसाय चुनने और उसे लक्ष्य बनाकर तैयारी करने का अवसर शिक्षा द्वारा मिलना चाहिए। शिक्षित व्यक्ति के आचार – विचार, वेशभूषा, व्यवहार आदि में शालीनता होनी चाहिए। शिक्षा छात्र को उसके कर्तव्यों और अधिकारों का ज्ञान कराने वाली होनी चाहिए। तन – मन से स्वस्थ सामाजिक दायित्वों का आदर करने वाले नागरिक तैयार करना भी शिक्षा का ही लक्ष्य होता है।

(3) वर्तमान शिक्षा और परीक्षा प्रणाली – क्या वर्तमान शिक्षा प्रणाली से छात्रों की उपर्युक्त अपेक्षाएँ पूरी हो रही हैं? इसी के साथ यह भी प्रश्न जुड़ा हुआ है कि क्या हमारी परीक्षा प्रणाली अत्र की शैक्षिक योग्यता का सही मूल्यांकन कर पा रही है। हमारी शिक्षा और प्रणालियाँ संतोषजनक नहीं हैं। एक शिक्षा मंत्री के रूप में शिक्षा व्यवस्था को समयानुकूल बनाने के लिए मेरी जो योजनाएँ होती, वे संक्षेप में इस प्रकार हैं

  • पाठ्यपुस्तकों का बोझ कम करना आज बच्चे अपने बोझिल स्कूल बैग को कंधों पर लादे बड़े दयनीय दिखाई देते हैं। मैं केवल उपयोगी और शिक्षा – विशेषज्ञों द्वारा चुनी गई पुस्तकों को ही पाठ्यक्रम में स्थान दिलाता।
  • माध्यम की भाषा – आज शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी भाषा को बनाने की विद्यालयों में होड़ लगी है। अभिभावक भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूलों में ही प्रवेश दिलाना चाहते हैं। मैं छात्र की मातृभाषा – और प्रदेश में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाए जाने पर बल देता।
  • मैं विद्यालयों में किताबा शिक्षा के साथ – साथ पाठयता क्रिया कलापों जैसे खेल, अभिनय, समाज सेवा आदि को भी सम्मिलित करता।
  • व्यावसायपरक शिक्षा की सुविधाएँ प्रदान कराना – मेरा प्रयास होगा कि छात्र जब शिक्षा पूरी करके बाहर जाएँ तो उन्हें रोजगार के लिए न भटकना पड़े। वे क्रियात्मक रूप से व्यवसाय में दक्ष बनें। अपना व्यवसाय आरंभ करना – चाहने वाले छात्रों को बैंकों से शिक्षा ऋण असानी से प्राप्त हो सकें।
  • प्रतिभाशाली छात्र – छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति का प्रबन्ध कराना भी मेरे दायित्वों में शामिल होगा।
  • विद्यालयों के वातावरण को शिक्षा के प्रति अनुकूल बनाने पर मेरा विशेष ध्यान रहेगा।
  • शिक्षकों, अभिभावकों और शिक्षा प्रणाली के विशेषज्ञों की समितियाँ बनवाकर उनके विचारों और अनुभवों से लाभ उठाया जाएगा।

(6) उपसंहार – शिक्षा मंत्री के रूप में मैं सदा ध्यान रखेंगा कि मुझे एक ऐसे विभाग को सँभालने का दायित्व मिला है।

जो देश की भावी पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने वाली कार्यशाला है। हमारी शिक्षा व्यवस्था न केवल भारत को बल्कि विश्व को गेसे नागरिक, उद्यमी, वैज्ञानिक, शिक्षक, समाज सुधारक और राजनेता प्रदान करे जिनसे विश्व शान्ति और समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त हो। आदर्श शिक्षा प्रणाली ही भारत को पुनः विश्व गुरु के आसन पर प्रतिष्ठित करा सकती है।

(द) दैनिक जीवन में विज्ञान रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना
  2. आज का सामाजिक जीवन
  3. दैनिक जीवन में विज्ञान की व्यापक उपस्थिति और प्रभाव
  4. उपसंहार।

(1) प्रस्तावना – विज्ञान क्या है? विज्ञान को किसी निश्चित परिभाषा में बाँध पाना कठिन है। यह कहा जा सकता है कि क्रमबद्ध रूप में प्रयोग सिद्ध विशिष्ट ज्ञान ही विज्ञान है। जीवन के हर क्षेत्र से संबंधित ज्ञान विज्ञान की परिधि में आ सकता है। जब से मानव ने इस धरती पर जीना आरंभ किया तभी से उसकी स्मृति में नए – नए अनुभव जुड़ते चले गए अनुभवों का यह भण्डार ही विज्ञान कहा जा सकता है।

(2) आज का सामाजिक जीवन – आज मनुष्य का सामाजिक जीवन अपने पूर्वजों से बहुत भिन्न रूप ले चुका है।

अज्ञान, अंधविश्वास और अक्षमताओं से भरे मानव जीवन में विज्ञान एक प्रकाश स्तम्भ के समान ज्योति बिखेर रहा है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने सामाजिक जीवन को सुख, सुविधा और सुरक्षा से पूर्ण बनाया है। मानव जीवन को – प्रकृति के प्रहारों से बचाते हुए निरंतर विकास के पथ पर चलाया है। यही कारण है कि आज का समाज विज्ञान का ऋणी बना हुआ है। नई – नई तकनीकों के आविष्कार ने उसकी अनेक समस्याओं का निदान किया है।

(3) दैनिक जीवन में विज्ञान की व्यापक उपस्थिति और प्रभाव – जीवन के हर क्षेत्र में विज्ञान की उपस्थिति और उसका प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई देता है। वह हमारी हर चुनौती में सहृदय सहयोगी बना दिखाई देता है। हर पेशे को विज्ञान से नई दिशा और नए उपकरण प्राप्त होते रहे हैं। हम छात्र हैं तो वह शिक्षा को सुलभ बना रहा है हम उद्यमी हैं तो वह उत्पादन बढ़ाने के रास्ते बता रहा है।

हम आस्थावान धर्मानुयायी हैं तो विज्ञान हमें सुदूर तीर्थस्थलों की सुगम यात्रा करा रहा है। हम महत्त्वाकांक्षी राजनीतिक व्यक्ति हैं तो वह विज्ञान हमारे विचारों और वायदों को जन – जन तक पहुँचा रहा है। विज्ञान को लरदान मानने वाले इसके पक्ष में ढेरों उदाहरण प्रस्तुत करते आ रहे हैं।

रोटी, कपड़ा और मकान से जुड़ी आवश्यकताओं में बिना हमारः महयोगी है। अन्न उत्पादन को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों ने लाभदायक खाद और

बीजों का आविष्कार किया है। सिंचाई के उन्नत साधनों का निर्माण हुआ है। वस्त्र निर्माण के कारखानों में नाना प्रकार के वस्त्रों का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है। सबको आवास उपलब्ध कराने की सरकारी योजनाएँ विज्ञान द्वारा आविष्कृत यंत्रों पर निर्भर हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में असाध्य रोगों का उपचार नए अनुसंधानों और तकनीकों के प्रयोग से ही संभव हुआ है। जीन में सुधार संभव हो जाने से आनुवंशिक बीमारियों का दूर होना संभव हो गया है। सुरक्षा के क्षेत्र में देखें तो हमारे अपने ही देश में एक से. एक बढ़कर अस्त्र – शस्त्रों का निर्माण जारी है। हमारे पास अन्तर महाद्वीपीय मिसाइलें हैं। रूस द्वारा दी गई मिसाइल ध्वंसक तकनीक प्रणाली विज्ञान का ही उपहार है।

वैज्ञानिक उपकरणों के बल पर ही हम पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों पर काबू रख पा रहे हैं। गृहणियों के लिए तो विज्ञान ने अनेक घरेलू यंत्र निर्मित कर दिए हैं। खाना बनाने के लिए गैस चूल्हे, कुकर, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि यंत्रों ने महिलाओं के बोझिल जीवन को सरल बना दिया है। अब महिलाएँ निश्चिन्त होकर कोई भी लाभकारी काम कर सकती हैं। बच्चों को समय दे सकती हैं, विश्राम और मनोरंजन भी कर सकती हैं।

अंतरिक्ष में भारत की धाक जमाने वाले उसके प्रतिभाशाली वैज्ञानिक ही हैं। परमाणु शक्ति के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रगति भी अनेक उज्ज्वल संभावनाओं का विश्वास दिला रही है। नए – नए ईंधन और ऊर्जा स्रोत आविष्कृत हो रहे हैं। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल शक्ति आदि के माध्यम से विज्ञान मानव समाज के भविष्य को सँवार रहा है।

(4) उपसंहार – विज्ञान न केवल दैनिक जीवन में बल्कि मानव जीवन के वर्तमान और आगामी जीवन में आने वाली हर संभावित चुनौती का हल लेकर हमारे द्वार पर खड़ा है। वह मानव जाति का विश्वसनीय सहयोगी है। बस विज्ञान को अपने चिंतन और व्यवहार पर हावी नहीं होने देना है। उसका समुचित उपयोग करना है।

(द) कोरोना काल और शिक्षा रूपरेखा –

  1. प्रस्तावना
  2. शिक्षा संस्थाओं पर प्रभाव
  3. ऑन लाइन शिक्षा की विफलता
  4. शिक्षा पर वैश्विक कुप्रभाव के प्रमाण
  5. सुधार के उपाय
  6. उपसंहार।

(1) प्रस्तावना – जिन रोगों से बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होती है और जो संक्रमण से फैलते हैं, उन्हें महामारी कहा जाता है। महामारियों से मानव समाज का पराना परिचय रहा है। प्लेग. हैजा. चेचक. डेंग. फ्ल्य आदि रोगों में एक और महामारी का नाम जुड़ गया है। वह है कोविड 19 या कोरोना। इस प्राकृतिक आपदा ने लाखों लोगों को अपना शिकार बनाया है।

वैसे तो सारा सामाजिक ताना – बाना इससे चरमरा गया लेकिन विश्व की शिक्षा व्यवस्था पर इस विपत्ति का गहरा प्रभाव हुआ है। कोरोना का आरंभ चीन से माना जाता है। थोड़े ही समय में इस रोग ने लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। चिकित्सा सेवाएँ नाकाफी साबित हुईं। सतर्क देशों ने इस संकट की भयंकरता को भाँप कर लाक डाउन व्यवस्था प्रारंभ कर दी। सारी सामाजिक गतिविधियों पर विराम – सा लग गया। लोग घरों में बंद हो गए। विद्यालय बंद कर दिए गए। मास्क और 6 फीट की दूरी आवश्यक बना दी गई।

(2) शिक्षा संस्थाओं पर प्रभाव – शिक्षा संस्थाओं परं इस विपत्ति का प्रहार कई रूपों में हुआ। छात्रों को घर में रोकना कठिन हो गया। शैक्षिक वर्ष व्यर्थ जाने की आशंकाएँ मँडराने लगी। शिक्षा संस्थाओं के कर्मचारियों का वेतन चुकाने के लाले पड़ने लगे।

(3) ऑन लाइन शिक्षा की विफलता – छात्रों का अध्ययन चलता रहे, इसके लिए ऑन लाइन शिक्षण की व्यवस्था प्रारंभ की गई। कई कारणों से यह विकल्प संतोषजनक सिद्ध नहीं हुआ। मोबाइल फोन या कम्प्यूटर पर कक्षा जैसा वातावरण बन पाना संभव नहीं था। निर्धन परिवार के छात्र – छात्राओं के लिए स्मार्ट फोन का प्रबंध करना एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया।

(4) शिक्षा पर वैश्विक कुप्रभाव के प्रमाण – सारे विश्व की शिक्षा व्यवस्था पर इस महामारी का दुष्प्रभाव पड़ा है। कुछ संस्थाओं ने इसके प्रमाण जुटाए हैं। ह्यूमेन राइट्स वाच (Human Rights, Watch) नामक संस्था की रिपोर्ट बताती है कि महामारी के कारण स्कूल बंद होने से बच्चों के शिक्षा पाने के अधिकार में बाधाएँ आई हैं। ऑन लाइन शिक्षण की सुविधाएँ हर देश अपने छात्रों को नहीं दे पाया।

संस्था ने अप्रैल 2020 से अप्रैल 2021 तक 60 देशों में छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों का साक्षात्कार करके साक्ष्य जुटाए। ह्यूमेन राइट्स संस्था ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा कि लाखों छात्रों के लिए स्कूलों का बंद होना उनकी शिक्षा में व्यवधान मात्र नहीं है बल्कि इससे उनकी पढ़ाई दोबारा आरंभ हो पाना कठिन हो गया है। इस संस्था द्वारा एकत्र किए गए अधिकांश बयान नकारात्मक और निराशाजनक हैं।

(5) सुधार के उपाय – अब धीरे – धीरे कोरोना का प्रभाव घट रहा है। शैक्षिक गतिविधियाँ प्रारंभ हो गई हैं। अब शिक्षा की बेपटरी हुई गाड़ी को पुनः पटरीयों पर लाने के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। कुछ सुझाव शिक्षा – विशेषज्ञों, शिक्षकों, अभिभावकों और सरकारी विभागों से सामने आए हैं

  • शिक्षकों को डिजिटल तरीकों से अध्यापन करने का प्रशिक्षण दिलाया जाना चाहिए।
  • निर्धन परिवारों के छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा में आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  • महामारी के दौरान जिन छात्रों की शिक्षा बंद हो गई है, उन्हें सरकारें पुनः स्कूलों में प्रवेश दिलाएँ।
  • महामारी से जिन छात्रों के अभिभावक दिवंगत हो गए, उनको विशेष आर्थिक अनुदान और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना विश्व के सभी देशों की सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
  • ग्रामीण क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों और समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए।

(6) उपसंहार – महामारी ने सारे विश्व के नागरिकों को जहाँ बुरी तरह प्रभावित किया है वहीं उसने चेतावनी भी दी है कि वह अभी गई नहीं है। कोरोना नए – नए रूप बदलकर और अधिक आक्रामक रूप में सामने आ रहा है। डेल्टा और ओमिक्रान इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।

समाचार पत्र बता रहे हैं कि देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण की दर बढ़ रही है। अतः यदि हम चाहते हैं कि विद्यार्थियों की शिक्षा में फिर से बाधा न आए तो हमें कोरोना से संबंधित दिशा – निर्देशों का पालन करना होगा।

ध्यान रहे –
‘दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी।’
‘भीड़ में गया, वह भाड़ में गया।’

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