Comprehension
निर्देश : नीचे दिए गए अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
बच्चों की दुनिया में कोई लड़ाई नहीं होती। उनके लिए दुनिया है और वे इस दुनिया में आना चाहते हैं। बच्चों को यह सुनना अच्छा नहीं लगता कि यह दुनिया इतनी बेकार है, यहाँ करने के काबिल कुछ भी नहीं है और इससे बचकर कितना दूर भागा जा सकता है। संभवतः सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि न्यू लिटिल स्कूल के शिक्षक खुले और सच्चे हैं अर्थात्, ये लोग उन सभी विषयों पर बात करने के लिए तत्पर रहते हैं जिन पर बच्चे बात करना चाहते है। वे अपने सच्चे विचार प्रकट करते हैं और कोई बात अगर वे नहीं जानते तो स्वीकार कर लेते है। ज़्यादातर शिक्षकों के साथ ऐसा नहीं है। सर्वेक्षण से यह स्पष्ट होता है कि 90 प्रतिशत अमेरिकी शिक्षक विवादास्पद विषयों के बारे में स्कूल में बात करने में विश्वास नहीं करते तथा बच्चों को भी इन विषयों के बारे में बात नहीं करने देते। हालाँकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि बच्चों की इन विषयों में सबसे अधिक रुचि होती है। इसलिए पारंपरिक स्कूलों में बच्चे ज़्यादा बात नहीं कर सकते और जब करते भी हैं तब वे जो चाहते हैं वह बात नहीं कर सकते और ईमानदारी से नहीं कर सकते। इसके अलावा शिक्षकों को प्रशिक्षण में बार-बार सिखाया जाता है कि अपनी अज्ञानता, अनिश्चय और उलझन को कभी स्वीकार नहीं करें। सबसे अहम बात यह है कि उनमें कूट-कूट कर यह भरा जाता है कि छात्रों से एक पेशेवर दूरी रखें और अपनी व्यक्तिगत जिंदगी और भावनाओं के बारे में कभी खुलकर बात नहीं करें। लेकिन यही वे बातें हैं जिनमें बच्चों की सबसे ज़्यादा जिज्ञासा होती है, क्योंकि इसी से वे महसूस कर सकते हैं कि बड़ा होना क्या होता है।
'ईमानदारी' शब्द है-
This question was previously asked in
CTET Dec 2018 Paper I (L - I/II: Hindi/English/Sanskrit) (Hinglish Solution)
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- भाववाचक संज्ञा
- व्यक्तिवाचक संज्ञा
- समूहवाचक संज्ञा
- जातिवाचक संज्ञा
Answer (Detailed Solution Below)
Option 1 : भाववाचक संज्ञा
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Child Development and Pedagogy Mock Test
10 Questions 10 Marks 10 Mins
'ईमानदारी' शब्द भाववाचक संज्ञा है। अतः 'भाववाचक संज्ञा' सही विकल्प है, अन्य सभी विकल्प असंगत है।
- संज्ञा: किसी प्राणी, वस्तु, भाव आदि का नाम ही उसकी संज्ञा कही जाती है।
- जैसे: राम, आगरा, नर्मदा आदि।
- संज्ञा के पांच प्रकार:
व्यक्तिवाचक संज्ञा |
जातिवाचक संज्ञा |
द्रव्यवाचक संज्ञा |
समूहवाचक संज्ञा |
भाववाचक संज्ञा |
भाववाचक संज्ञा | किसी भाव, गुण, दशा आदि का ज्ञान कराने वाले शब्द भाववाचक संज्ञा होते है। | क्रोध, मिठास, यौवन |
भाववाचक संज्ञा | भाववाचक संज्ञाओं का निर्माण जातिवाचक संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया तथा अव्यय में - आव, त्व, पन, अन, इमा, ई, ता, हट आदि प्रत्यय जोड़कर किया जाता है। | घबराहट,निकटता, भोलापन |
Last updated on Oct 25, 2022
Detailed Notification for CTET (Central Teacher Eligibility Test) December 2022 cycle released on 31st October 2022. The last date to apply is 24th November 2022. The CTET exam will be held between December 2022 and January 2023. The written exam will consist of Paper 1 (for Teachers of class 1-5) and Paper 2 (for Teachers of classes 6-8). Check out the CTET Selection Process here. Candidates willing to apply for Government Teaching Jobs must appear for this examination.
ईमानदारी: एक नैतिक मूल्य
- 28 Dec 2019
- 10 min read
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में ईमानदारी के विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं का विश्लेषण किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारतीय संस्कृति के अनुसार, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे बाल्यावस्था में उसके अभिभावकों ने ‘ईमानदार’ रहने की शिक्षा न दी हो। विद्यालय की वाद-विवाद प्रतियोगिता में “ईमानदारी ही सर्वश्रेष्ठ नीति है” जैसी उक्तियों को विषय के रूप में खूब प्रयोग किया जाता था। अंग्रेज़ी भाषा के महान लेखक विलियम शेक्सपियर ने कहा है कि “कोई भी प्रसिद्धि ईमानदारी जितनी समृद्ध नहीं होती”। शेक्सपियर की ये पंक्तियाँ भले ही व्यावहारिक जगत के लिये निरर्थक और अव्यवहारिक दिखाई दें, परंतु इनकी प्रासंगिकता अभी भी भौतिक समृद्धि और विकास की दौड़ में अपना अस्तित्व बनाए हुए है। ऐसे में यह आवश्यक है कि हम ईमानदारी के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण कर यह जानने का प्रयास करें कि बचपन में सिखाए जाने वाले मूल्य किस प्रकार वर्तमान में उपयोगी हो सकते हैं।
क्या है ‘ईमानदारी’?
- ईमानदारी एक नैतिक अवधारणा है। सामान्यतः इसका तात्पर्य सत्य से होता है, किंतु विस्तृत रूप में ईमानदारी मन, वचन तथा कर्म से प्रेम, अहिंसा, अखंडता, विश्वास जैसे गुणों के पालन पर बल देती है। यह व्यक्ति को विश्वासपात्र तथा निष्पक्ष बनाती है।
- ईमानदारी को सत्य के रूप में परिभाषित करना एक जटिल अवधारणा के सरलीकृत दृष्टिकोण के रूप में देखा जा सकता है।
- विद्वानों का मानना है कि सत्यता कई बार व्यावहारिक और सैद्धांतिक रूप से असंभव प्रतीत होती है, साथ ही इसे नैतिक रूप से अनावश्यक भी माना जाता है।
- महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या ईमानदारी को किसी विशिष्ट परिस्थिति से निपटने के एक व्यावहारिक उपाय के रूप में देखा जाए या किसी भी स्थिति के लिये बस एक नैतिक प्रतिक्रिया के रूप में?
- जब किसी व्यक्ति को एक विकल्प का चुनाव करना पड़ता है, तो वह या तो सहज प्रतिक्रिया करता
है या एक उचित एवं तर्कपूर्ण निर्णय लेता है। उदाहरण के लिये एक ऑटो चालक को अपने वाहन में एक यात्री का पर्स मिलता है, अब उसके समक्ष कई विकल्प हैं जैसे- वह पर्स के मालिक की तलाश कर सकता है, वह पर्स को पुलिस के पास जमा कर सकता है, इस संदर्भ में वह अपने स्वामी को सूचित कर सकता है। उक्त सभी स्थितियों में वह तब तक ईमानदार रहेगा जब तक वह पर्स में मौजूद पैसों को अपने पास न रख ले।
- वस्तुतः पर्स लौटाने पर भले भी उसके इस ईमानदारीपूर्ण कृत्य को पुरस्कृत किया जाए अथवा नहीं, परंतु उसने अपने विवेक से इस प्रकार का निर्णय लेकर नि:संदेश एक सराहनीय कार्य किया है।
- हालाँकि यह एक सरल उदाहरण प्रतीत हो सकता है, परंतु एक नीति के रूप में ईमानदारी के साथ सदैव एक मूल्य निहित होता है। धर्म के समान ईमानदारी का रास्ता भी काफी कठिन होता है और जिस प्रकार कठिन रास्तों पर चलने से वाहनों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है उसी प्रकार ईमानदारी के रास्ते पर हमें भी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है।
- विद्वानों के अनुसार, एक ईमानदार व्यक्ति की अनिवार्य विशेषता यह है कि वह सद्मार्गी होता है। उसके द्वारा किये गए कृत्य अंतरात्मा की आवाज़ पर आधारित होते हैं जो उसे उचित और अनुचित के मध्य विभेद करने में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
- यह सोचना गलत होगा कि जो लोग ईमानदारी के साथ नहीं रहते वे बेईमान होते हैं, क्योंकि ईमानदार न होने और बेईमान होने में अंतर होता है और हमारे लिये इस अंतर को समझना आवश्यक है। आमतौर पर लोग ईमानदारी का साथ नहीं देते क्योंकि वे डरते हैं और डर को हम कभी भी बेईमानी के साथ संबद्ध नहीं कर सकते।
ज्ञान और ईमानदारी
- ज्ञान का तात्पर्य किसी विषय से संबंधित सैद्धांतिक अथवा व्यावहारिक जानकारी से है। यह बताता है कि विभिन्न परिस्थितियों में कार्यों का निष्पादन किस प्रकार करना है।
- ज्ञान के बिना ईमानदारी कमज़ोर होती है क्योंकि बिना उचित ज्ञान के व्यक्ति सूचनाओं तथा तर्क के अभाव में चाहकर भी कार्य का सही ढंग से निष्पादन नहीं कर पाता। उदाहरण के लिये यदि किसी शिक्षक में ज्ञान का अभाव हो तो वह स्वयं ईमानदार होकर भी छात्रों को उचित शिक्षा नहीं दे पाएगा।
- यद्यपि इसका एक अन्य पक्ष भी है जिसके अनुसार, ईमानदारी के अभाव में ज्ञान खतरनाक हो जाता है। वस्तुतः ईमानदारी एक ऐसा गुण है जो इस ज्ञान के उचित प्रयोग को सुनिश्चित करती है। उदाहरण के लिये ज्ञान से युक्त एक अधिकारी ईमानदारी के अभाव में भ्रष्ट होकर संपूर्ण समाज का नुकसान कर सकता है। इसके अलावा ईमानदारी से रहित एक ज्ञानी व्यक्ति अपने ज्ञान का प्रयोग समाज को नुकसान पहुँचाने के लिये भी कर सकता है।
शासन में ईमानदारी
- सामाजिक न्याय की प्राप्ति तथा प्रशासन में दक्षता के लिये शासन व्यवस्था में ईमानदारी अनिवार्य होती है। जानकार मानते हैं कि शासन में ईमानदारी की उपस्थिति के लिये प्रभावी कानून, नियम, विनियम आदि की आवश्यकता होती है।
- साथ ही यह भी आवश्यक है कि इनका अनुपालन प्रभावी तरीके से कराया जाए। पारदर्शिता तथा उत्तरदायित्व जैसे गुण शासन में ईमानदारी को बढ़ाने में सहायक माने जाते हैं।
- ‘सूचना का अधिकार अधिनियम’ जैसे कदमों द्वारा पारदर्शिता तथा ‘सिटीज़न चार्टर’ व ‘सर्वोत्तम मॉडल’ जैसे कदमों ने उत्तरदायित्व की भावना को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- जहाँ एक ओर ईमानदारी आंतरिक रूप से अनुशासन से संबंधित होती है वहीं भारत में लोक जीवन से अनुशासन दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
- पश्चिमी देशों में व्यक्ति उच्च पदों पर पहुँचने के साथ ही कानून के प्रति सम्मान का भाव विकसित कर लेते हैं और शासन वर्ग भी कानूनों का पालन ईमानदारी व अनुशासन के साथ करता है।
- परंतु भारत में अधिक-से-अधिक शक्ति का संकेन्द्रण इस तथ्य का सूचक होती है कि वह किस सीमा तक कानून से परे जाकर कम कर सकता है।
शासन तथा ईमानदारी के दार्शनिक आधार
शासन तथा ईमानदारी का आधार पारंपरिक दर्शन तथा राजनीतिक दर्शन दोनों में देखा जा सकता है। प्लेटो, अरस्तू और हीगल जैसे कई दार्शनिकों ने शासन तथा ईमानदारी का विवेचन किया है।
- प्लेटो:
- प्लेटो के दार्शनिक राजा के सिद्धांत के अनुसार, राजा ऐसा होना चाहिये जिसमें विवेक प्रमुख हो लालच या भोग नहीं। यदि व्यापारी शासन चलाएंगे तो लोभ में वे राज्य को हानि पहुँचा सकते हैं। इसलिये राजा को लोभ से मुक्त होना चाहिये; अर्थात शासन में ईमानदारी होनी चाहिये।
- अरस्तू:
- अरस्तू के अनुसार, “राज्य ही व्यक्ति को व्यक्ति बनाता है।” इस कथन का भाव यह है कि राज्य अपनी मूल प्रकृति में ही नैतिक संस्था है और कोई भी नैतिक संस्था बेईमानी के आधार पर नहीं चल सकती। अरस्तू के अनुसार, राज्य अस्तित्त्व में इसलिये आया था कि मनुष्य का जीवन सुरक्षित रहे किंतु यह निरंतर इसलिये चला क्योंकि यह मनुष्यों के जीवन को बेहतर बनाता है।
- श्रीमद्भगवद्गीता:
- गीता का बल स्वधर्म पालन पर है। राजा का धर्म बिना स्वार्थ के ईमानदारी से राज-काज का संचालन करना है। अतः राज्य व प्रशासन में ईमानदारी अनिवार्य है।
प्रश्न: नैतिक मूल्य के रूप में ईमानदारी से आप क्या समझते हैं? शासन में ईमानदारी की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।