आजादी की अनसुनी कहानी, महात्मा गांधी के आह्वान पर हुआ था जंगल सत्याग्रह Show
इस सत्याग्रह में आदिवासियों के एक महानायक का नाम था सरदार गंजन सिंह कोरकू. कहा जाता है कि क्रांतिकारी गंजन सिंह कोरकू के नाम से अंग्रेज कांपते थे और उसकी एक झलक पाने के लिये लोगों का हुजूम उमड़ता था.इस सत्याग्रह में आदिवासियों के एक महानायक का नाम था सरदार गंजन सिंह कोरकू. कहा जाता है कि क्रांतिकारी गंजन सिंह कोरकू के नाम से अंग्रेज कांपते थे और उसकी एक झलक पाने के लिये लोगों का हुजूम उमड़ता था.
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों ने कई सत्याग्रह आन्दोलन किए थे. उन्हीं में से एक आन्दोलन था जंगल सत्याग्रह.1930 में महात्मा गाँधी के आह्वान पर मध्य भारत के बैतूल जिले से जंगल सत्याग्रह की शुरुआत हुई थी. जिसके बाद पूरे देश के वनवासी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इस जंगल सत्याग्रह में शामिल हुए थे. इस सत्याग्रह में आदिवासियों के एक महानायक का नाम था सरदार गंजन सिंह कोरकू. कहा जाता है कि क्रांतिकारी गंजन सिंह कोरकू के नाम से अंग्रेज कांपते थे और उसकी एक झलक पाने के लिये लोगों का हुजूम उमड़ता था. सन 1930 में ब्रिाटिश सरकार ने सरदार गंजन सिंह पर 500 रुपयों का ईनाम भी घोषित किया था. लेकिन देश की आजादी में वनवासियों को एकजुट करने वाले इस महानायक का परिवार आज खुद गुमनामी में जी रहा है. घोड़ाडोंगरी ब्लॉक के छतरपुर गाँव में पहुंचकर मामले की पड़ताल करने पर मालूम हुआ कि सरदार गंजन सिंह के वंशज मजदूरी करके या मवेशी चराने जैसे काम करके अपनी गुजर बसर कर रहे हैं. कई दशक पहले उनकी जमीन जायदाद सरकार ने नीलाम करवा दी. गंजन सिंह के परिवार में किसी के पास सरकारी नौकरी या सरकारी मदद के नाम पर कुछ नहीं है. 15 अगस्त हो या 26 जनवरी इनकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं होता जबकि शहीद सरदार गंजन सिंह के इकलौते बेटे नंदर सिंह आज भी मौजूद हैं. देश की आजादी के बाद से अब तक सरदार गंजन सिंह के पुत्र नंदर सिंह और उनका पूरा परिवार मेहनत मजदूरी करके गुजरबसर कर रहा है. मजदूरी कर रहे नंदर सिंह जंगल सत्याग्रह के महानायक शहीद सरदार गंजन सिंह कोरकू के इकलौते बेटे हैं. जिस गंजनसिंह के नाम से अंग्रेजी हुकूमत कांपती थी और जिस गंजन सिंह ने देश की आजादी के लिए वनवासियों को क्रांतिकारी बनाया था उस गंजनसिंह का परिवार आज फांकाकशी में जी रहा है. 15 अगस्त हो या 26 जनवरी महानायक गंजनसिंह के परिवार की सुध लेने कोई नहीं आता. पिछले दिनों बैतूल के ही लेखक कमलेश ने अपनी किताब सतपुड़ा के गुमनाम शहीद में शहीद सरदार गंजन सिंह के परिवार का जिक्र किया था. उनके मुताबिक बैतूल में केवल गंजन सिंह ही नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसे आदिवासी क्रांतिकारी थे जिन्हें लोगों ने वक्त के साथ भुला दिया. अपनी किताब मे कमलेश ने तफ्सील से सरदार गंजनसिंह और उनकी बहादुरी के किस्सों का ब्यौरा दिया है. कहते हैं कि सन 1947 में देश की आजादी के बाद खुशी में झूमते सरदार गंजन सिंह बैतूल जिले के जंगलों में तिरंगा लेकर घूमा करते थे और वनवासियों को देश की आजादी का जश्न मनाने की सलाह देते थे. साल 1963 में सरदार गंजन सिंह के देहांत के बाद से उनका परिवार यूं ही किसी तरह जीवन गुजार रहा है. 15 अगस्त के दिन तो कम से कम लोगों को ये जान लेना जरूरी है कि परदे के पीछे भी कुछ महानायक होते हैं जिनके योगदान को भुला देना एक शर्मनाक पहलू है. आपके शहर से (बैतूल)बैतूल
बैतूल
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी| Tags: Betul district, Betul news FIRST PUBLISHED : August 15, 2017, 19:59 IST जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ था?1930 के जंगल सत्याग्रह की स्मृति में केंद्र सरकार महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में स्थित पुसद में एक संग्रहालय का निर्माण करवाने जा रही है।
मध्यप्रदेश में जंगल सत्याग्रह कहाँ हुआ था?जंगल सत्याग्रह की शुरुआत मध्य प्रदेश में तुरिया (सिवनी) और घोड़ा डोंगरी (बैतूल) से हुई। बैतूल जंगल में सत्याग्रह का नेतृत्व बंजारी सिंह कोरकू के साथ गंजन सिंह कोरकू ने किया था।
जंगल सत्याग्रह क्या था वर्णन?जनवरी 1922 के प्रथम सप्ताह में जंगल सत्याग्रह की घोषणा की गई। इस सत्याग्रह के सूत्रधार थे श्यामलाल सोम। निर्णय लिया गया कि जंगल से जलाऊ लकड़ी काटकर जंगल कानून तोड़ा जाए और गिरफ्तारी दी जाए।
जंगल सत्याग्रह कैसे हुआ?स्वतंत्रता आन्दोलन:-
गंज और दादा साहब खापरे ने 11 मई 1906 को इस जगह का दौरा किया। छिंदवाड़ा के लोगों ने रोलेक्ट अधिनियम, असहयोग आंदोलन, सिमन आयोग, झडा सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, भारत छोड़ो आंदोलन, धनौरा कांड आदि के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया।
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