जल प्रदूषण को रोकने के उपाय लिखिए - jal pradooshan ko rokane ke upaay likhie

वायु प्रदूषण वैश्विक स्तर पर गंभीर समस्या बन चुका है। वायु प्रदूषण के कारण विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ हो रही हैं और साफ हवा में खुल कर साँस लेना महज़ एक ख़्वाब बनकर रह गया है। हालांकि ऊपर बताये गए सभी उपायों को ध्यान में रखकर आप वायु प्रदूषण रोक सकते हैं और ऐसे भारत का निर्माण कर सकते हैं जहाँ खुली हवा में सांस लेना स्वास्थ्य पर भारी पड़े। हमारे सौर उत्पादों के बारे में अधिक जानने के लिए हमसे आज ही संपर्क करें और खरीदने के लिए आप हमारे ऑनलाइन स्टोर पर जा सकते हैं।

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जल प्रदूषण भारत में व्याप्त सबसे बड़े संकटों में से एक है। इसका सबसे बड़ा स्रोत है, बिना ट्रीटमेंट किया सीवेज का पानी। यह साफ दिखता है। इसे देखने के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। प्रदूषण के कई अन्य स्त्रोत भी हैं। जैसे- खेतों से आता पानी, छोटे और अनियंत्रित उद्योगों से आने वाला पानी। हालात इतने गंभीर हैं कि भारत में कोई भी ऐसा जल स्रोत नहीं बचा है, जो जरा भी प्रदूषित न हो। हकीकत तो यह है कि देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा जल स्त्रोत बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुके हैं। इनमें भी वह जल स्त्रोत ज्यादा प्रदूषित हैं, जिनके आसपास बड़ी संख्या में आबादी रहती है। गंगा और यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है।

भारत में जल प्रदूषण के कारण

भारत में जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण शहरीकरण और उसकी अनियंत्रित दर है। पिछले एक दशक में शहरीकरण की दर बहुत तेज गति से बढ़ी है या हम ऐसा भी कह सकते हैं कि इस शहरीकरण ने देश के जल स्त्रोतों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। इसकी वजह से लंबी अवधि के लिए कई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा हो गई हैं। इनमें जल आपूर्ति की कमी, पानी के प्रदूषित होने और उसके संग्रहण जैसे पहलू प्रमुख हैं। इस संबंध में प्रदूषित पानी का निपटान और ट्रीटमेंट एक बहुत बड़ा मुद्दा है। नदियों के पास कई शहर और कस्बे हैं, जिन्होंने इन समस्याओं को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

इन इलाकों में अनियंत्रित शहरीकरण से सीवेज का पानी बह रहा है। शहरी इलाकों में नदियों, तालाबों, नहरों, कुओं और झीलों के पानी का इस्तेमाल घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए होता है। हमारे घरेलू इस्तेमाल का 80 प्रतिशत पानी खराब हो जाता है। ज्यादातर मामलों में पानी का ट्रीटमेंट अच्छे से नहीं होता और इस तरह जमीन की सतह पर बहने वाले ताजे पानी को प्रदूषित करता है।

यह प्रदूषित जल सतह से गुजरकर भूजल में भी जहर घोल रहा है। एक अनुमान के मुताबिक एक लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में 16,662 मिलियन लीटर खराब पानी एक दिन में निकलता है। आश्चर्य इस बात का है कि इन शहरों के 70 प्रतिशत लोगों को सीवेज की सुविधा मिली हुई है। गंगा नदी के किनारों पर बसे शहरों और कस्बों में देश का करीब 33 प्रतिशत खराब पानी पैदा होता है।

भारत में जल प्रदूषण के बढ़ते स्तर के प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:

1- औद्योगिक कूड़ा

2- कृषि क्षेत्र में अनुचित गतिविधियां

3- मैदानी इलाकों में बहने वाली नदियों के पानी की गुणवत्ता में कमी

4- सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाज, जैसे पानी में शव को बहाने, नहाने, कचरा फेंकने

5- जहाजों से होने वाला तेल का रिसाव

6- एसिड रैन (एसिड की बारिश)

7- ग्लोबल वार्मिंग

8- यूट्रोफिकेशन

9- औद्योगिक कचरे के निपटान की अपर्याप्त व्यवस्था

10- डीनाइट्रिफिकेशन

भारत में जल प्रदूषण के प्रभावः

जिस जल स्त्रोत का पानी जरा-भी प्रदूषित होता है, उसके आसपास रहने वाले प्रत्येक जीवन पर जल प्रदूषण का किसी न किसी हद तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक निश्चित स्तर पर प्रदूषित पानी फसलों के लिए भी नुकसानदेह साबित होता है। इससे जमीन की उर्वरक क्षमता कम होती है। कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र और देश को भी प्रभावित करता है। समुद्र का पानी प्रदूषित होता है तो उसका बुरा असर समुद्री जीवन पर भी होता है। जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पानी की क्वालिटी में गिरावट होती है। इसके सेवन से कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं।

हकीकत तो यह है कि भारत में, खासकर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य के निम्न स्तर का एक बड़ा कारण जल प्रदूषण ही है। प्रदूषित पानी की वजह से कॉलरा, टीबी, दस्त, पीलिया, उल्टी-दस्त जैसी बीमारियां हो सकती हैं। भारत में पेट के विकारों से पीड़ित 80 प्रतिशत मरीज प्रदूषित पानी पीने की वजह से बीमार हुए हैं।

भारत में जल प्रदूषण का समाधान

जल प्रदूषण का सबसे अच्छा समाधान है, इसे न होने देना। इसका सबसे प्रमुख समाधान है मिट्टी का संरक्षण। मिट्टी के कटाव की वजह से भी जल प्रदूषित होता है। ऐसे में, यदि मिट्टी का संरक्षण होता है तो हम कुछ हद तक पानी का प्रदूषण रोक सकते हैं। हम ज्यादा से ज्यादा पौधे या पेड़ लगाकर मिट्टी के कटाव को रोंक सकते हैं। खेती के ऐसे तरीके अपना सकते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता की चिंता करें और उसे बिगाड़ने के बजाय सुधारें। इसके साथ ही जहरीले कचरे के निपटान के सही तरीकों को अपनाना भी बेहद महत्वपूर्ण है। शुरुआत में, हम ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल न करें या कम करें जिनमें उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले जैविक यौगिक शामिल हों। जिन मामलों में पेंट्स, साफ-सफाई और दाग मिटाने वाले रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है, वहां पानी का सुरक्षित निपटान बेहद जरूरी है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी है।

यह कहा जाता है कि – कारों या मशीनों से निकलने वाला- तेल का रिसाव भी जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों में से एक है। इस वजह से कारों और मशीनों की देखभाल करना बेहद जरूरी है। नियमित रूप से यह देखा जाए कि तेल का रिसाव तो नहीं हो रहा। काम पूरा होने के बाद -खासकर जिन फैक्टरियों और कारखानों में तेल का इस्तेमाल होता है- खराब तेल को साफ करन या सुरक्षित निपटान या बाद में इस्तेमाल के लिए रखने में सावधानी बरतनी जरूरी है। यहां हम नीचे कुछ तरीके बता रहे हैं, जिनके जरिए इस समस्या को दूर किया जा सकता हैः

जल प्रदूषण रोकने के कौन कौन से उपाय हैं?

जल प्रदूषण रोकने के उपाय निम्नलिखित हैं- जल स्रोतों के पास गंदगी फैलाने, साबुन लगाकर नहाने तथा कपड़े धोने पर प्रतिबन्ध हो पशुओं के नदियों, तालाबों आदि मे नहलाने पर प्रतिबन्ध सभी प्रकार के अपशिष्टों तथा अपशिष्ट युक्त बहिःस्रावों को नदियों तालाबों तथा अन्य जलस्रोतों मे बहाने पर प्रतिबन्ध औद्योगिक बहिःस्राव या अपशिष्ट का ...

जल प्रदूषण को कैसे रोकें निबंध?

जल प्रदूषण को रोकने के उपाय खेतों में कीटनाशकों का उपयोग ना करें या कोशिश करें की इसकी वजह से भूगर्भ जल दूषित ना हो। ऐसे उद्योग-कारखानों पर कार्यवाही हो जो गंदा पानी नदी व नालों में डालते हों। समुद्र के किनारे साफ-सफाई रखना। प्लास्टिक आदि को समुद्र किनारे नहीं फेंकना चाहिए।

जल प्रदूषण के क्या कारण है जल प्रदूषण को रोकने के 5 उपाय लिखिए?

घरेलू बहिःस्राव : विभिन्न घरेलू अपशिष्ट domestic waste जो कि दैनिक घरेलू कार्यों जैसे; खाना पकाने, स्नान करने, कपड़ा धोने, सफाई कार्य इत्यादि से निकलते हैं जल प्रदूषण के कारण बनते हैं। ... .
औद्योगिक अपशिष्ट बहिःस्राव : ... .
कृषि बहिःस्राव : ... .
उष्मीय या तापीय रेक्टरों के कारण जल प्रदूषण ... .
तेल रिसाव ... .
रेडियोएक्टिव अपशिष्ट से जल प्रदूषण.