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कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से हुई है नागों की उत्पत्ति, गरुड़ के हैं भाई
रिलिजन डेस्क. सांप एक ऐसा जीव है, जो हमेशा से लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। लोग इससे डरते भी और कई त्योहारों पर पूजा भी करते हैं। अनेक ग्रंथों में भी नागों से संबंधित कथाएं पढ़ने को मिलती है। महाभारत के आदि पर्व में नागों की उत्पत्ति और राजा जनमेजय द्वारा किए गए नागदाह यज्ञ से संबंधित कथा का वर्णन है। यह कथा बहुत ही रोचक है। आज हम आपको नाग वंश की उत्पत्ति से संबंधित वही कथा बता रहे हैं।
ऐसे हुई नाग वंश की उत्पत्ति
- महाभारत के
अनुसार, महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं। इनमें से कद्रू भी एक थी। सभी नाग कद्रू की संतान हैं। महर्षि कश्यप की एक अन्य पत्नी का नाम विनता था। पक्षीराज गरुड़ विनता के ही पुत्र हैं।
- एक बार कद्रू और विनता ने एक सफेद घोड़ा देखा। उसे देखकर कद्रू ने कहा कि इस घोड़े की पूंछ काली है और विनता ने कहा कि सफेद। इस बात पर दोनों में शर्त लग गई।
- तब कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि वे अपना आकार छोटा कर घोड़े की पूंछ से लिपट जाएं, जिससे उसकी पूंछ काली नजर आए और वह शर्त जीत
जाए।
- कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो।
- श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी। शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई।
- जब गरुड़ को पता चला कि उनकी मां दासी बन गई है तो उन्होंने कद्रू और उनके सर्प पुत्रों से पूछा कि तुम्हें मैं ऐसी कौन सी वस्तु लाकर दूं जिससे कि मेरी
माता तुम्हारे दासत्व से मुक्त हो जाए।
- तब सर्पों ने कहा कि तुम हमें स्वर्ग से अमृत लाकर दोगे तो तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएगी। अपने पराक्रम से गरुड़ स्वर्ग से अमृत कलश ले आए और उसे कुशा (एक प्रकार की धारदार घास) पर रख दिया।
- अमृत पीने से पहले जब सर्प स्नान करने गए तभी देवराज इंद्र अमृत कलश लेकर उठाकर पुन: स्वर्ग ले गए।
- यह देखकर सांपों ने उस घास को चाटना शुरू कर दिया जिस पर अमृत कलश रखा था, उन्हें लगा कि इस स्थान पर थोड़ा अमृत का अंश
अवश्य होगा। धारदार घास को चाटने से नागों की जीभ के दो टुकड़े हो गए।
हैलो नमस्कार दोस्तों आपका बहुत - बहुत स्वागत है, इस लेख कश्यप ऋषि की कथा (Kashyap rishi ki katha) में। दोस्तों यहाँ पर आप
कश्यप ऋषि की कथा के साथ कश्यप ऋषि कौन थे? कश्यप ऋषि की पत्नियों के नाम, जानेंगे। तो आइये शुरू करते है, यह लेख कश्यप ऋषि की कथा:-
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कश्यप ऋषि कौन थे Who was kashyap rishi
कश्यप ऋषि वैदिक धर्म के एक वह महान ऋषि थे, जिन्हे इस सृष्टी का सृजनकर्ता माना जाता है। कश्यप ऋषि के पिता का नाम मारिची ऋषि था, जो स्वयं ब्रम्हा जी के सात मानस पुत्रों में से एक थे,
जबकि उनकी माता का नाम कला था, जो महान ऋषि कर्दम की पुत्री थी। कश्यप की गणना वैदिक धर्म के प्रमुख सात ऋषियों में की जाती है, इनके द्वारा ही संसार के सभी देव, दानव, नाग, असुर, पशु, पक्षी, मानव आदि
उत्पन्न हुए है इसलिए कश्यप ऋषि के वंशज सृष्टि के प्रसार में सहायक माने जाते है, उन्होंने कई ग्रंथो जैसे कश्यप सहिंता, स्मृति ग्रन्थ आदि की रचना की।
कश्यप ऋषि की पत्नियों के नाम Kashyap rishi ki patniyon ke naam
दक्ष प्रजापति ब्रम्हा के मानस पुत्र थे उन्होंने सृष्टि के प्रसार के लिए अपनी पत्नी के गर्भ से 66 कन्याओ को उत्पन्न किया जिनमें से 17 कन्याओं का विवाह उन्होंने ऋषि मारिची के पुत्र कश्यप से कर दिया।
महाभारत तथा विष्णु पुराण के अनुसार ऋषि कश्यप की 17 पत्नियों के नाम निम्नप्रकार है:- अदिति, दिति, दनु, अनिष्ठा, काष्ठा, सुरसा, इला, मुनि, सुरभि, कद्रू, विनता, यामिनी, ताम्रा, तिमि, क्रोधवशा, सरमा, पातंगी।
किन्तु अन्य ग्रंथो में कश्यप ऋषि की 13 और 9 पत्नियों की ही चर्चा मिलती है। कश्यप ऋषि की प्रमुख पत्नियाँ चार थी जो अदिति, दिति, कद्रु और विनता थी।
कश्यप ऋषि की पत्नी आदिति ने 12 पुत्रों को जन्म दिया जो आदित्य कहलाये और उन्हें देवता कहा जाता है, जो विवस्वान ,भग, मित्र, अर्यमा, धाता, इन्द्र, पूषा, विधाता,त्रिविक्रम, त्वष्टा, वरूण, सविता है।
जबकि कश्यप ऋषि की दूसरी पत्नी दिति ने हिरण्यकश्यप, हिरण्याक्ष और सिंहिका दो पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया, दिति से जन्मे इसलिए दैत्य कहलाये और इन दोनों दैत्य का वध स्वयं
भगवान विष्णु ने किया, किन्तु कई पौराणिक ग्रंथो में दिति के 49 पुत्रों की चर्चा मिलती है। कश्यप ऋषि की तीसरी पत्नी दनु से 61 पुत्र जन्मे।
दनु से जन्मे होने के कारण उनको दानव कहा गया। कद्रु से 1000 नाग पुत्रों ने जन्म लिया तो वनिता से गरुण और वरुण ने जन्म लिया, जो भगवान विष्णु और सूर्यदेव की सेवा में समर्पित है।
इसके आलावा ऋषि कश्यप की अन्य पत्नियों से भी मनुष्य, गंधर्व, जलचर, वनस्पति, नभचर, नाग, सांप, बिच्छू, जानवर कीड़े सभी जन्मे।
कश्यप ऋषि की कथा Kashyap rishi ki katha
कश्यप ऋषि सृष्टि के सृजनकार है उनके द्वारा ही देव, दानव, नाग असुर मनुष्य पशु, पक्षी वृक्ष लतायें आदि उत्पन्न हुए इसलिए उनसे सम्बंधित कई कथाएँ प्रचलित है, जिनमें से यहाँ कुछ वर्णित है:-
- ब्रम्हा जी ने कश्यप ऋषि को श्राप दिया Bramha ji ne kashyap rishi ko diya shrap
एक बार कश्यप ऋषि ने एक बडे यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ मे लगने वाले सामग्री की पूर्तता के लिए उन्होणे वरुण देवता का आव्हान किया और वरुण देवता ने कश्यप ऋषि को एक दिव्य गाय दी
और साथ मे यह भी कहा की यज्ञ समाप्ती के बाद वो उस गाय को अपने साथ ले जाएंगे। कुछ समय बाद यज्ञ समाप्त हो गया और वरुण देव उस गाय को लेने आये तो कश्यप ऋषि ने उस दिव्य गाय को
देने से मना कर दिया। तब वरुण देव यह सारी बात ब्रम्हा जी को बताई। तब ब्रम्हा जी ने स्वयं कश्यप ऋषि को कहा कि वे वरुण देव को उनकी गाय वापिस दे दें,
किन्तु कश्यप ऋषि ने ब्रम्हा जी की बात मानने से इन्कार किया। तब ब्रम्हा जी ने क्रोध में आकार कश्यप जी को श्राप दिया की आपने इस गाय के लोभ मे अपनी बुद्धी को भ्रष्ठ किया है
अत: तुम पृथ्वी लोक मे गोपालक के रूप मे जन्म लोगे। श्राप सुनकर कश्यप ऋषि को अपनी गलती का एहसास हुआ और ब्रम्हा जी से क्षमा मांगी।
तब ब्रम्हा जी ने श्राप को परिवर्तित करते हुए कहा की तुम्हारा जन्म यदू वंश मे होगा और स्वयं भगवान विष्णु तुम्हारे पुत्र के रूप मे जन्म लेंगे।
इस प्रकार ऋषि कश्यप ऋषि ने वासुदेव के रूप मे जन्म लिया और भगवान श्रीहरी विष्णु ने श्रीकृष्णा के रूप में उनके घर जन्म लिया।
- कश्यप ऋषि ने भगवान शिव को दिया श्राप Kashyap rishi ne shiv ji ko diya shrap
दो भयानक राक्षस माली और सुमाली ने भगवान शिव को प्रसन्न करके कई वरदान और सिद्धिया शक्तियाँ प्राप्त की। किन्तु भगवान शिव से मिलि हुई शक्ति से वे अहंकारी हो हुए और उन्होंने देवी देवता की
पूजा करने ऋषि मुनियों को यज्ञ पूजा अनुष्ठान करने पे प्रतिबंद लगा दिया। तब सूर्य देवता ने दोंनो को श्राप दिया, और श्राप के डर से माली और सुमाली भगवान शिव के पास गये तब भगवान शिव ने
सूर्यदेव पर अपने त्रिशूल से वार कर किया जिससे सूर्य देव मूछित हो गए। पुत्र सूर्यदेव की हालत देख के कश्यप ऋषि ने भगवान शिव को श्राप दिया की जिस तरह मेरे पुत्र की हालत आपने की है
उस तरह आपके पुत्र का सर धड से अलग होगा। कश्यप ऋषि का श्राप सुनकर भगवान शिव शांत हो गए और फिर से सूर्य देवता को पुनर्जीवित किया।
भोलेनाथ जी ने अपने भक्त कश्यप ऋषि को माफ किया और उनका श्राप स्वीकार किया। जो कालांतर में भगवान गणेश का सिर धड से अलग होने पर पूर्ण हुआ।
- कश्यप ऋषि और कश्मीर Kashyap rishi or kashmir
माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही भारत देश के मुकुट कश्मीर नाम रखा गया था। इससे सम्बंधित एक कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार बताया जाता है कि जलोद्भव नामक राक्षस था
जिसने ब्रह्मा जी की तपस्या करके के वरदान और कई मायावी शक्तियों का स्वामी बन गया तथा अपनी शक्तियों के मद में ऋषि मुनियों, मनुष्यों देवताओं को सताने लगा। इसलिए देवताओं के आग्रह पर पक्षी रूप में भगवती ने चोंच में पत्थर रखकर
उस राक्षस का वध कर दिया और वह पत्थर हरी पर्वत हो गया और महर्षि कश्यप ने सर का जल निकालकर इस स्थान को बसाया था, जिसके बाद से ये स्थान कश्मीर के नाम से अभी तक पहचाना जाता है।
दोस्तों आपने यहाँ पर कश्यप ऋषि की कथा (Kashyap rishi ki katha) तथा अन्य तथ्य पढ़े। आशा करता हुँ, आपको यह लेख अच्छा लगा होगा।
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