मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा।
यह राजस्थान के प्रमुख नृत्य मे से एक है।
यह प्राचीनतम नृत्य है
"//hi.wikipedia.org/w/index.php?title=कठपुतली_नृत्य&oldid=5413510"
से प्राप्त
श्रेणी:
कठपुतली विश्व के प्राचीनतम रंगमंच पर खेला जाने वाले मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्योंकि पूर्व में भी लकड़ी अर्थात
काष्ठ से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा। प्रत्येक वर्ष २१ मार्च [1] को
विश्व कठपुतली दिवस भी मनाया जाता है।
धागों से संचालित कठपुतली
इतिहास[संपादित करें]
कठपुतली के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में महाकवि पाणिनी के अष्टाध्याई ग्रंथ हमें पुतला नाटक का उल्लेख मिलता है। इसके जन्म
को लेकर कुछ पौराणिक मत इस प्रकार भी मिलते हैं कि भगवान शिव जी ने काठ की मूर्ति में प्रवेश कर माता पार्वती का मन बहला कर इस कला को प्रारंभ किया इसी प्रकार उज्जैन नगरी के राजा विक्रमादित्य के सिंहासन में जड़ित 32 पुतलियों का उल्लेख
सिंहासन बत्तीसी नामक कथा में भी मिलता है [2]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "UNION INTERNATIONALE DE LA MARIONNETTE". मूल से 5 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अप्रैल
2017.
- ↑ "भारतीय राज्यों के प्रमुख कठपुतली परंपराओं की सूची". Jagranjosh.com. 2018-07-31. अभिगमन तिथि
2020-06-26.
विश्व कठपुतली दिवस कब मनाया जाता है?
भारतीय विरासत और संस्कृतिकठपुतली
- कठपुतली नृत्य को लोकनाट्य की ही एक शैली माना गया है। कठपुतली अत्यंत प्राचीन नाटकीय खेल है जिसमें लकड़ी, धागे, प्लास्टिक या प्लास्टर ऑफ पेरिस की गुड़ियों द्वारा जीवन के प्रसंगों की अभिव्यक्ति तथा मंचन किया जाता है।
- ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनी के अष्टाध्यायी में
नटसूत्र में पुतला नामक नायक का उल्लेख मिलता है।
- पुतली कला की प्राचीनता के संबंध में तमिल ग्रंथ ‘शिल्पादिकारम्’ (2nd cent B.C) में भी जानकारी मिलती है।
- चर्चित कथा ‘सिंहासन बत्तीसी’ में विक्रमादित्य के सिंहासन की बत्तीस पुतलियों का उल्लेख मिलता है।
- शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकलांग बच्चों को अपने शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिये प्रेरित करने में पुतली कला का सफलता से उपयोग किया गया है।
- पुतली कला कई कलाओं का मिश्रण है, यथा-लेखन, नाट्य कला, चित्रकला, वेशभूषा,
मूर्तिकला, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य आदि।
- पहले अमर सिंह राठौड़, पृथ्वीराज, हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद की कथाएँ ही कठपुतली खेल में दिखाई जाती थीं, लेकिन अब सामाजिक विषयों के साथ-साथ हास्य-व्यंग्य तथा ज्ञान संबंधी अन्य मनोरंजक कार्यक्रम भी दिखाए जाने लगे हैं।
- पुतलियों के निर्माण तथा उनके माध्यम से विचारों के संप्रेषण में जो आनंद मिलता है, वह बच्चों के व्यक्तित्व के चहुँमुखी विकास में सहायक होता है।
- भारत में सभी प्रकार की पुतलियाँ पाई जाती
हैं, यथा-धागा पुतली, छाया पुतली, छड़ पुतली, दस्ताना पुतली आदि।
भारत की पुतली कला शैलियाँ
धागा पुतली
- इसमें अनेक जोड़युक्त अंगों का धागों द्वारा संचालन किया जाता है, जिस कारण ये पुतलियाँ काफी लचीली होती हैं।
- राजस्थान, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु में धागा पुतली कला पल्लवित हुई।
- राजस्थान की कठपुतली, ओडिशा की कुनदेई, कर्नाटक की गोम्बयेट्टा तथा तमिलनाडु की बोम्मालट्टा धागा पुतली कला के प्रमुख
उदाहरण हैं।
छाया पुतली
- छाया पुतलियाँ चपटी होती हैं और चमड़े से बनाई जाती हैं।
- इसमें पर्दे को पीछे से प्रदीप्त किया जाता है और पुतली का संचालन प्रकाश स्रोत तथा पर्दे के बीच से किया जाता है। ये छायाकृतियाँ रंगीन भी हो सकती हैं।
- छाया पुतली की यह परंपरा ओडिशा, केरल, आंध्र, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में प्रचलित है।
- तोगलु गोम्बयेट्टा (कर्नाटक), तोलु बोम्मालट्टा (आंध्र प्रदेश), रावण छाया (ओडिशा) आदि छाया पुतलियों के
प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
छड़ पुतली
- छड़ पुतली वैसे तो दस्ताना पुतली का ही अगला चरण है, लेकिन यह उससे काफी बड़ी होती है तथा नीचे स्थित छड़ों (डंडे) पर आधारित रहती है और उन्हीं से संचालित होती है।
- पुतली कला का यह रूप वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में पाया जाता है।
- बंगाल का पुत्तल नाच, बिहार का यमपुरी आदि छड़ पुतली के उदाहरण हैं।
- ओडिशा की छड़ पुतलियाँ बहुत छोटी होती हैं।
- जापान की ‘बनराकू’ की तरह पश्चिम बंगाल
के नदिया ज़िले में आदमकद पुतलियाँ होती थीं, किंतु यह रूप अब विलुप्त हो गया है।
दस्ताना पुतली
- इसे भुजा, कर या हथेली पुतली भी कहा जाता है।
- इसके संचालन हेतु पहली उँगली मस्तक पर रखी जाती है तथा मध्यमा और अंगूठा पुतली की दोनों भुजाओं में; इस प्रकार अंगूठे और दो उँगलियों की सहायता से दस्ताना पुतली सजीव हो उठती है।
- भारत में दस्ताना पुतली की परंपरा उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और केरल में लोकप्रिय है।
पावाकूथू
(केरल)
- केरल में पारंपरिक पुतली नाटकों को पावाकूथू कहा जाता है।
- इसका उद्भव 18वीं शताब्दी में वहाँ के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य नाटक कत्थकली के पुतली-नाटकों पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण हुआ।
- केरल के ये पुतली-नाटक रामायण तथा महाभारत की कथाओं पर आधारित हैं।
×
राजस्थान में कठपुतली कौन से जिले की प्रसिद्ध है?
यह वीडियो राजस्थान के उदयपुर में बागोर की हवेली में पुतली संसार नामक पुतली संग्रहालय पर एक प्रस्तुति है। उदयपुर का सुंदर शहर अपने महलों, हवेलियों और संग्रहालयों के लिए जाना जाता है।
कठपुतली कहाँ है?
पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा। यह राजस्थान के प्रमुख नृत्य मे से एक है।
कठपुतली की कला का आरंभ कहाँ से हुआ?
बोलती कठपुतली कला का सबसे पुराना उदाहरण इंग्लैंड में 1753 में मिलता है , जहां ऐसा प्रतीत होता है की सर जॉन पार्नेल अपने हाथ के माध्यम से,विलियम होगार्थ के रूप में बोल रहे है। 1757 में ऑस्ट्रिया के बैरन डी मेंगें ने अपने प्रदर्शन में एक छोटी सी गुड़िया को प्रयुक्त किया था।
कठपुतली का जनक कौन है?
कठपुतली विश्व के प्राचीनतम रंगमंच पर खेला जाने वाले मनोरंजक कार्यक्रम में से एक है कठपुतलियों को विभिन्न प्रकार की गुड्डे गुड़ियों, जोकर आदि पात्रों के रूप में बनाया जाता है इसका नाम कठपुतली इस कारण पड़ा क्योंकि पूर्व में भी लकड़ी अर्थात काष्ठ से बनाया जाता था इस प्रकार काष्ठ से बनी पुतली का नाम कठपुतली पड़ा।