जीवन परिचय-नई कविता के समर्थकों में शमशेर बहादुर सिंह की एक अलग छवि है। इनका जन्म 13 जनवरी, सन 1911 को देहरादून में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में ही हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। चित्रकला में इनकी रुचि प्रारंभ से ही थी। इन्होंने प्रसिद्ध चित्रकार उकील बंधुओं से चित्रकारी में प्रशिक्षण लिया। इन्होंने सुमित्रानंदन पंत के पत्र ‘रूपाभ’ में कार्य किया। 1977 ई. में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इन्हें कबीर सम्मान सहित अनेक पुरस्कार मिले। सन 1993 में अहमदाबाद में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ- शमशेर बहादुर सिंह ने अनेक विधाओं में रचना की। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं Show
(क) कलसंह-कुटकवताएँ कुछऔकवताएँ चुकभी नाह में इने पास आने वातबले कलहुसेह काव्यगत विशेषताएँ- वैचारिक रूप से प्रगतिशील एवं शिल्पगत रूप से प्रयोगधर्मी कवि शमशेर को एक बिंबधर्मी कवि के रूप में जाना जाता है। इनकी बिंबधर्मिता शब्दों में माध्यम से रंग, रेखा, एवं सूची की अद्भुत कशीदाकारी का माद्दा रखती है। इन्होंने अपनी कविताओं में समाज की यथार्थ स्थिति का भी चित्रण किया है। ये समाज में व्याप्त गरीबी का चित्रण करते हैं। कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है। प्रकृति के नजदीक रहने के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत जीवंत लगते हैं। ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण है। कविता का प्रतिपादय एवं सारप्रतिपाद्य- प्रस्तुत कविता ‘उषा’ में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित होने वाली प्रकृति का शब्द-चित्र उकेरा है। कवि ने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का अद्भुत प्रयास किया है। कवि भोर की आसमानी गति की धरती के हलचल भरे जीवन से तुलना कर रहा है। इसलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है-वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है और स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ हैं। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए 1. प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे राख से लीपा हुआ चौका शब्दार्थ- भोर-प्रभात । नभ-आकाश। चौका-रसोई बनाने का स्थान। (i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया है। प्रश्न (क) प्रात:कालीन आकाश की तुलना किससे की गई हैं और क्यों? उत्तर- (क) प्रात:कालीन आकाश की तुलना नीले शंख से की गई है, क्योंकि वह शंख के समान पवित्र माना गया है। 2. बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से शब्दार्थ- सिल –मसाला पीसने के लिए बनाया गया पत्थर। केसर- विशेष फूल। मल देना- लगा देना। (i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है। प्रश्न (क) आसमान का सौंदर्य दशनेि के लिए कवि ने किन उपमानों का प्रयोग किया हैं? उत्तर- (क) आसमान का सौंदर्य दर्शाने के लिए कवि ने सिल और स्लेट उपमानों के माध्यम से प्रात:कालीन नभ के लाल-लाल धब्बों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। 3. नील जल में या किसी की और ……. शब्दार्थ- गौर-गोरी। झिलमिल- मचलती हुई। देह– शरीर। जादू- आकर्षण, सौंदर्य। उषा- प्रात:काल। सूर्योदय- सूर्य का उदय होना। (i) कवि ने उषा का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है। प्रश्न (क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता किससे की गई हैं? उत्तर- (क) गोरी देह के झिलमिलाने की समानता सुबह के सूर्य से की गई है। सुबह वातावरण में नमी तथा स्वच्छता होने के कारण सूर्य चमकता प्रतीत होता है। काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- [CBSE Sample Paper, 2015] प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे मल दी हो किसी ने प्रश्न 1: (क) काव्यांश में प्रयुक्त उपमानों का उल्लेख कीजिए। अथवा किन उपमानों से पता चलता है कि गाँव की सुबह का वर्णन हैं? नील जल में या किसी की उत्तर- (क) काव्यांश में निम्नलिखित उपमान प्रयुक्त किए गए हैं- (i) नीला शंख (सुबह के आकाश के लिए)। (ख) (i) कवि ने नए उपमानों का प्रयोग किया है। अथवा निम्नलिखित उपमानों से पता चलता है कि यह गाँव की सुबह का वर्णन है- (i) राख से लीपा हुआ चौका (ग) कवि कहना चाहता है कि सुबह सूर्योदय से पहले नीले आकाश में नमी होती है। स्वच्छ वातावरण के कारण सूर्य अत्यंत सुंदर दिखाई देता है। ऐसा लगता है जैसे नीले जल में गोरी युवती की सुंदर देह झिलमिला रही है। प्रश्न 2: (क) कोष्ठकों के प्रयोग से कविता में क्या विशेषता आ गई है? समझाइए। उत्तर- (क) कवि ने कोष्ठकों का प्रयोग किया है। कोष्ठक अतिरिक्त जानकारी प्रदान करते हैं; जैसे कविता में कोष्ठक में दी गई जानकारी (अभी गीला पड़ा है) से आसमान की नमी व ताजगी की जानकारी मिलती है। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नकविता के साथ 1. कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है। अथवा ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील शब्द-चित्र है-सोदाहरण प्रतिपादित कीजिए। [CBSE (Delhi de Foreign), 2014] उत्तर- 2. भोर का नभ उत्तर- नयी कविता के कवियों ने नए-नए प्रयोगों से स्वयं को अलग दिखाना चाहा है। शमशेर बहादुर सिंह ने कोष्ठकों का प्रयोग किया है। कोष्ठकों में दी गई सामग्री मुख्य सामग्री से संबंधित है तथा पूरक का काम करती है। वह कथन को स्पष्टता प्रदान करती है। यहाँ (अभी गीला पड़ा है) वाक्य कोष्ठकों में दिया गया है जो प्रात:कालीन सुबह की नमी व ताजगी को व्यक्त करता है। कोष्ठकों से पहले के वाक्य से काम की पूर्णता का पता तो चलता है, परंतु स्थिति स्पष्ट नहीं होती। गीला पड़ने से कथन अधिक प्रभावपूर्ण बन जाता है। अपनी रचना ● अपने परिवेश के उपमानों का प्रयोग करते हुए सूर्योदय और सूयस्ति का शब्द-चित्र खींचिए। उत्तर- सुबह के समय सूर्य उदित होते समय ऐसा लगता है मानो कोई नीले सरोवर में स्नान करके बाहर आ रहा हो। सूर्य की किरणें धीरे-धीरे आकाश पर छा जाती हैं। ओस के कणों पर सूर्य की किरणें अद्भुत दृश्य उत्पन्न करती हैं तथा प्रकृति के दृश्य पल-पल में बदलते हैं। पक्षी चहचहाने लगते हैं। पशुओं व मानवों में नयी शक्ति का संचार हो जाता है। जीवन सजीव हो उठता है। अन्य हल प्रश्नलघूत्तरात्मक प्रश्न 1. सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? ‘उषा’ कविता के आधार पर बताइए। [CBSE Sample Paper; 2007. (Foreign), 2009] अथवा ‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दूश्यों का चित्रण कीजिए। उत्तर- सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा नीला था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौके जैसा हो गया। सुबह की नमी के कारण वह गीला प्रतीत होता है। सूर्य की प्रारंभिक किरणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सिल पर थोड़ा लाल केसर डालकर उसे धो दिया गया हो या फिर काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दी गई हो। सूर्योदय के समय सूर्य का प्रतिबिंब ऐसा लगता है जैसे नीले स्वच्छ जल में किसी गोरी युवती का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो। 2. ‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है। [CBSE (Outside), 2009, 2010] उत्तर- सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। भोर के समय सूर्य की किरणें जादू के समान लगती हैं। इस समय आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण में परिवर्तित होता रहता है। यह उषा का जादू है। नीले आकाश का शंख-सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलाता प्रतिबिंब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही ये दृश्य समाप्त हो ज़ाते हैं। 3. ‘स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने। ‘ -इसका आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर- कवि कहता है कि सुबह के समय अँधेरा होने के कारण आकाश स्लेट के समान लगता है। उस समय सूर्य की लालिमा-युक्त किरणों से ऐसा लगता है जैसे किसी ने काली स्लेट पर लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों के बारे में बताना चाहता है। 4. भार के नभ को ‘ राख से लीपा, गीला चौका ‘ की संज्ञा दी गई है। क्यों ? उत्तर- कवि कहता है कि भोर के समय ओस के कारण आकाश नमीयुक्त व धुंधला होता है। राख से लिपा हुआ चौका भी मटमैले रंग का होता है। दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को ‘राख से लीपा, गीला चौका’ की संज्ञा दी है। दूसरे, चौके को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है। इसी तरह भोर का नभ भी पवित्र होता है। 5. ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता व उज्ज्वलता से संबंधित पंक्तियों को बताइए। उत्तर- पवित्रता- राख से लीपा हुआ चौका। नीले जल में या किसी की 6. सिल और स्लेट का उदाहारण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है ? उत्तर- कवि ने सिल और स्लेट के रंग की समानता आकाश के रंग से की है। भोर के समय आकाश का रंग गहरा नीला-काला होता है और उसमें थोड़ी-थोड़ी सूर्योदय की लालिमा मिली हुई होती है। 7. ‘उषा’ कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई हैं और क्यों? [CBSE (Delhi), 2015] उत्तर- ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की गई है। इस समय आकाश नम एवं धुंधला होता है। इसका रंग राख से लिपे चूल्हे जैसा मटमैला होता है। जिस प्रकार चूल्हा-चौका सूखकर साफ़ हो जाता है उसी प्रकार कुछ देर बाद आकाश भी स्वच्छ एवं निर्मल हो जाता है। कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्यों कहा ह ैं?कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि सुबह का आकाश कुछ-कुछ धुंध के कारण मटमैला व नमी- भरा होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी सुबह के इस कुदरती रंग से अच्छा मेल खाता है। अत: उन्होंने भोर के नभ की उपमा राख से लीपे गीले चौके से की है।
भोर के नभ और राख से ली पे चौके में क्या समानता है?कवि ने भोर के नभ की तुलना राख से पुते हुए गीले चौके से की है, क्योंकि भोर का नभ श्वेतवर्ण और नीलिमा का मिश्रित रूप लिए हुए है। उसमें ओस की नमी भी है अत: वह गीले चौके के समान प्रतीत होता है।
राख से लीपा हुआ चौका गीला पड़ा होने से क्या अभिप्राय है?'अभी गीला पड़ा है'- इस पंक्ति को पढ़कर पता चल रहा है कि राख से लीपे चौके की लिपाई अभी-अभी समाप्त हुई है। इस पंक्ति को यदि भोर से जोड़ा जाए, तो पता चलता है कि सूर्य के उदय होने से पहले आसमान से रात की कालिमा हटने लगी है। अतः राख के समान आसमान का रंग स्लेटी हो गया है। सुबह की ओस ने इसे गीला कर दिया है।
कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों?'उषा' कविता में भोर के नभ की तुलना किससे की गई है और क्यों ? उत्तर: 'उषा' कविता में प्रात:कालीन नभ की तुलना राख से लीपे गए गीले चौके से की है। इस समय आकाश नम तथ धुंधला होता है।
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