आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ग्रंथावली -3 Show 'दृश्य' शब्द के अंतर्गत केवल नेत्रों के विषय का ही नहीं, अन्य ज्ञानेंद्रियों के विषयों (जैसे शब्द, गंधा, रस) का भी ग्रहण समझना चाहिए। 'महकती हुई मंजरियों से लदी और वायु के झकोरों से हिलती हुई आम की डाली पर काली कोयल बैठी मधुर कूक सुना रही है।' इस वाक्य में यद्यपि रूप, शब्द और गंध तीनों का विवरण है, पर इसे एक 'दृश्य' ही कहेंगे। बात यह है कि कल्पना द्वारा अन्य विषयों की अपेक्षा नेत्रों के विषयों का ही सबसे अधिक आनयन होता है, और सब विषय गौण रूप से आते हैं। वाह्यकरणों के सब विषय अंत:करण में 'चित्र' रूप से प्रतिबिंबित हो सकते हैं। इसी प्रतिबिंब को हम 'दृश्य' कहते हैं। 1. देखिए, वर्ड्सवर्थ की 'ऐडमानिशन टु ए टै्रवेलर' शीर्षक कविता। 1. पर्वत की नदियाँ सर्ज और कदंब के फूलों से मिश्रित, पर्वतधातुओं (गेरू) से लाल नए गिरे जल से कैसी शीघ्रता से बह रही हैं, जिनके साथ मोर बोल रहे हैं। रस से भरे भौंरे के समन काले काले जामुन के फलों को लोग खा रहे हैं। अनेक रंग के पके आम के फल वायु के झोंकों से टूटकर भूमि पर गिरते हैं। प्यासे पक्षी, जिनके पंख पानी से बिगड़ गए हैं, मोती के समन इंद्र के दिए हुए जल को, जो पत्तोंर की नोंक पर लगा है, हर्षित होकर पी रहे हैं। 1. वन की भूमि, जिसकी हरी हरी घास पाला गिरने से कुछ गीली हो गई है, नई धूप पड़ने से कैसी शोभा दे रही है। अत्यंत प्यासा जंगली हाथी बहुत शीतल जल के स्पर्श से अपनी सूँड़ सिकोड़ता है। बिना फूल के वन समूह कुहरे के अंधकार में सोए से जान पड़ते हैं। नदियाँ, जिनका जल कुहरे से ढका हुआ है और जिनमें के सारस पक्षी केवल शब्द से जाने जाते हैं, हिम से आर्द्र बालू के तटों से ही पहचानी जाती हैं। कमल, जिनके पत्तो जीर्ण होकर झड़ गए हैं जिनके केसर और कर्णिका टूट फूटकर छितरा गई हैं, पाले से धवस्त होकर नालमात्र खड़े हैं। 1. समय के फेर में काले पड़े हुए चूनेवाले मंदिरों में, जिनके इधर उधर घास के अंकुर उगे हैं, रात्रि के समय मोती की माला के समन वे चंद्रकिरणें अब प्रकाश नहीं करतीं। रात्रि में दीपक के प्रकाश से रहित और दिन में स्त्रियों के मुख की कांति से शून्य, जिनमें से धुंए का निकलना बंद हो गया है ऐसे झरोखे मकड़ियों के जालों से ढक गए हैं। 1. मेघदूत, पूर्वमेघ 32। सभ्यता के आवरण और कविता ज्यों ज्यों मनुष्य के व्यापार बहुरूपी, गूढ़ और जटिल होते गए, त्यों त्यों भावों के आदिम लक्ष्यों के अतिरिक्त और और लक्ष्यों की भी स्थापना होती गई, और वासनाजन्य व्यापारों के अतिरिक्त बुद्धि द्वारा स्थिर व्यापारों का विधान भी भावों के शासन के भीतर आता गया। जैसे आदि में भय का लक्ष्य अपने शरीर और अपनी संतति की रक्षा तक ही था, पर पीछे गाय, बैल, अन्न आदि की रक्षा आवश्यक हुई; यहाँ तक कि होते होते धान, मन, अधिकार, प्रभुत्व आदि अनेक बातों की रक्षा के संबंध में आशंका ने मनुष्य के हृदय में घर किया, और रक्षा के उपाय भी वासनाजन्य प्रवृत्ति से भिन्न प्रकार के होने लगे। इसी प्रकार क्रोध, घृणा, शोक आदि अन्य भावों के संबंध में भी समझ लेना चाहिए। कुछ भावों के विषय अमूर्त तक होने लगे, जैसे कीर्ति की लालसा। ऐसे भावों को ही बौद्धादर्शन में 'अरूपराग' कहते हैं। प्र शब्द का अर्थ क्या होता है?एक उपसर्ग जो क्रियाओं में संयुक्त होने पर 'आगे', 'पहले', 'सामने', 'दूर' का अर्थ देता है, विशेषणों में संयुक्त होने पर'अधिक', 'बहुल', 'अत्याधिक' का अर्थ देता है, जैसे, प्रकृष्ठ, प्रमत्त आदि और संज्ञा शब्दों में संयुक्त होने पर 'प्रारंभ' (प्रयाण), 'उत्पत्ति' (प्रभव, प्रपौत्र), 'लंबाई' (प्रवालभूसिक), 'शक्ति' (प्रभु), ' ...
काव्य कितने प्रकार के होते हैं?काव्य दो प्रकार का माना गया है, दृश्य और श्रव्य। दृश्य काव्य वह है जो अभिनय द्वारा दिखलाया जाय, जैसे, नाटक, प्रहसन, आदि जो पढ़ने और सुनेन योग्य हो, वह श्रव्य है। श्रव्य काव्य दो प्रकार का होता है, गद्य और पद्य। पद्य काव्य के महाकाव्य और खंडकाव्य दो भेद कहे जा चुके हैं।
उर शब्द का क्या अर्थ है class 8?उर का अर्थ होता है छाती।
काव्य रूप क्या है?काव्य वह वाक्य रचना है जिससे चित्त किसी रस या मनोवेग से पूर्ण हो अर्थात् वह जिसमें चुने हुए शब्दों के द्वारा कल्पना और मनोवेगों का प्रभाव डाला जाता है। छन्दबद्ध रचना काव्य कहलाती हैं। आचार्य विश्वनाथ ने काव्य को परिभाषित करते हुए लिखा हैं " वाक्यं रसात्मकं काव्यम्य " मतलब रसयुक्त वाक्य को ही काव्य कहा कहा जाता है।
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