लोहे का छल्ला पहनने की विधि - lohe ka chhalla pahanane kee vidhi

शनि का छल्ला पहनने से पहले इन बातों का रखें ध्यान, नहीं तो उठाना पड़ेगा नुकसान

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला Published by: Shashi Shashi Updated Tue, 09 Feb 2021 08:46 PM IST

ज्योतिष में शनि को न्याय प्रिय ग्रह माना गया है। ये अच्छे कर्म करने वालों को लाभ पहुंचाते हैं तो वहीं बुरे कर्म करने वालों को ये दंडित करते हैं। शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा में तमाम तरह की परेशानियों से बचने के लिए लोग उपाय करने के साथ ही लोहे का छल्ला भी धारण करते हैं। शनि की के बुरे प्रभावों से बचने के लिए लोहे की अंगूठी और घोड़े की नाल की अंगूठी धारण करते हैं, लेकिन इसे पहनने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। अन्यथा आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। तो चलिए जानते हैं लोहे का छल्ला धारण करने के नियम...

लोहे का छल्ला पहनने से पहले कुंडली की जांच जरूर करवानी चाहिए। यदि आप बिना कुंडली की जांच के छल्ला धारण करते हैं तो अन्य ग्रहों की स्थिति के कारण आपको इसके विपरीत प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। 

जिन लोगों की कुंडली में शनि शुभ फल प्रदान कर रहे हो उन्हें लोहे का छल्ला धारण नहीं करना चाहिए।

शनि का छल्ला किसी भी उंगली में धारण नहीं करना चाहिए। लोहे का छल्ला हमेशा दाहिने हाथ की माध्यम उंगली में धारण करना चाहिए, तभी आपको उचित फल की प्राप्ति होती है। क्योंकि मध्यमा उंगुली के नीचे शनि पर्वत स्थित होता है।

लोहे का छल्ला धारण करने के लिए भी दिन और नक्षत्र का भी ध्यान रखना चाहिए। लोहे का छल्ला धारण करने के लिए शनिवार को शाम का समय उत्तम रहता है। पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र में लोहे का छल्ला धारण करना सर्वश्रेष्ठ रहता है।

यदि आपने लोहे का छल्ला धारण किया हुआ है या धारण करने की सोच रहे हैं तो इन बातों को ध्यान में रखने के साथ यह भी ध्यान रखें की उस छल्ले को समय-समय पर साफ करके चमकाते रहे।

शनि ग्रह के लिए तीन तरह की अंगूठी होती है, पहला नीलम की अंगूठी, दूसरा लोहे की अंगूठी और तीसरा घोड़े के नाल की अंगूठी। लोहे के छल्ले या अंगुठी को शनि का छल्ला कहा जाता है। यहां लाल किताब के अनुसार लोहे की अंगूठी पहनने के 10 नियम जानिए।

1. शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा में तमाम तरह की परेशानियों से बचने के लिए लोहे का छल्ला पहना जाता है। सामान्यतया इसका प्रयोग शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभावों और बुरी आत्माओं से बचने के लिए किया जाता है।

2. लाल किताब के अनुसार कुंडली की जांच करने के बाद ही लोहे का छल्ला पहना चाहिए अन्यथा इसके विपरित प्रभाव भी हो सकते हैं। जैसे कुंडली में सूर्य, शुक्र और बुध मुश्तर्का हो तो खालिस चांदी का छल्ला मददगार होगा। ऐसे में लोहे का छल्ला धारण करना नुकसानदायक हो सकता है।

3. कुंडली में सूर्य, शुक्र और बुध मुश्तर्का हो तो खालिस चांदी का छल्ला मददगार होगा। लेकिन जब बुध और राहु हो तो छल्ला बेजोड़ खालिस लोहे का होगा।

4. बुध यदि 12वें भाव में हो या बुध एवं राहु मुश्तर्का या अलग अलग भावों में मंदे हो रहे हों तो यह छल्ला जिस्म पर धारण करेंगे तो मददगार होगा, हाथ में धारण करने से नुकसान होगा।

5. बारहवां भाव, खाना या घर राहु का घर भी है। खालिस लोहे का छल्ला बुध शनि मुश्तर्का है। बुध यदि 12वें भाव में है तो वह 6टें अर्थात खाना नंबर 6 के तमाम ग्रहों को बरबाद कर देता है। अक्ल (बुध) के साथ अगर चतुराई (शनि) का साथ नंबर 2-12 मिल जावे तो जहर से मरे हुए के लिए यह छल्ला अमृत होगा। मतलब किस्मत को चमका देगा।

6. उपर यह स्पष्ट हो गया है कि कुंडली में सूर्य, शुक्र और बुध मुश्तर्का हो तो लोहे का छल्ला नहीं पहनना चाहिए।

7. दूसरा यह कि जिस की कुंडली में शनि ग्रह उत्मम फल दे रहा हो उसे भी यह छल्ला नहीं पहनना चाहिए।

8. इसे दाहिने हाथ की माध्यम अंगुली में धारण किया जाता है क्योंकि इसी अंगुली के नीचे शनि पर्वत होता है।

9. शनिवार के दिन शाम के समय इसे धारण करें। इसके लिए पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ हैं।

10. यदि लाल किताब द्वारा बतायी गई स्थिति के अनुसार यह छल्ला धारण कर रखा है तो इस छल्ले को समय समय पर रेत से चमकाते रहें या घिसते रहें।

लोहे के छल्ले या अंगुठी को शनि का छल्ला कहा जाता है। कुछ लोग घोड़े की नाल की अंगुठी बनवाकर पहनते हैं। ज्योतिषानुसार शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा में तमाम तरह की परेशानियों से बचने के लिए लोहे का छल्ला पहना जाता है। शनि पीड़ा से व्यक्ति को स्नायु तंत्र और लंबी बीमारी की परेशानी हो जाती है। लेकिन लाल किताब के सिद्धांत इससे अलग हैं।


लाला किताब का रूल- लाल किताब में धातुओं के छल्ले को पहनने का उल्लेख मिलता है। लाल किताब के अनुसार कुंडली की जांच करने के बाद ही लोहे का छल्ला पहना चाहिए अन्यथा इसके विपरित प्रभाव भी हो सकते हैं।

जैसे कुंडली में सूर्य, शुक्र और बुध मुश्तर्का हो तो खालिस चांदी का छल्ला मददगार होगा। ऐसे में लोहे का छल्ला धारण करना नुकसानदायक हो सकता है। लेकिन जब बुध और राहु हो तो छल्ला बेजोड़ खालिस लोहे का होगा। मतलब यह कि तब लोहे का छल्ला अंगुली में धारण करना चाहिए। लेकिन यदि बुध यदि 12वें भाव में हो या बुध एवं राहु मुश्तर्का या अलग अलग भावों में मंदे हो रहे हों तो यह छल्ला जिस्म पर धारण करेंगे तो मददगार होगा।

12वां भाव, खाना या घर राहु का घर भी है। खालिस लोहे का छल्ला बुध शनि मुश्तर्का है। बुध यदि 12वें भाव में है तो वह 6टें अर्थात खाना नंबर 6 के तमाम ग्रहों को बरबाद कर देता है। अक्ल (बुध) के साथ अगर चतुराई (शनि) का साथ नंबर 2-12 मिल जावे तो जहर से मरे हुए के लिए यह छल्ला अमृत होगा। मतलब किस्मत को चमका देगा।


किसे नहीं पहनना चाहिए- उपर यह स्पष्ट हो गया है कि कुंडली में सूर्य, शुक्र और बुध मुश्तर्का हो तो लोहे का छल्ला नहीं पहनना चाहिए। दूसरा यह कि जिस की कुंडली में शनि ग्रह उत्मम फल दे रहा हो उसे भी यह छल्ला नहीं पहनना चाहिए।

क्यों धारण करते हैं छल्ला- सामान्यतया इसका प्रयोग शनि, राहु और केतु के दुष्प्रभावों और बुरी आत्माओं से बचने के लिए किया जाता है।

किस अंगुली में धारण करें- इसे दाहिने हाथ की माध्यम अंगुली में धारण किया जाता है क्योंकि इसी अंगुली के नीचे शनि पर्वत होता है।

कब धारण करें- शनिवार के दिन शाम के समय इसे धारण करें। इसके लिए पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ हैं।

धारण करने के बाद क्या करें- यदि लाल किताब द्वारा बतायी गई स्थिति के अनुसार यह छल्ला धारण कर रखा है तो इस छल्ले को समय समय पर रेत से चमकाते रहें या घिसते रहें।

चेतावनी- ये अंगूठी धारण करने से पहले किसी ज्योतिषी से परामर्श अवश्य करें।

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लोहे का छल्ला कब और कैसे पहने?

क्यों और कैसे पहनें लोहे की अंगूठी लोहे की अंगूठी पुरुष को दाएं हाथ की बीच वाली उंगली में धारण करना चाहिए. क्योंकि शनि का क्षेत्र मध्यमा उंगली के नीचे होता है. हालांकि विशेष परिस्थिति में इसे बाएं हाथ की मध्यमा उंगली में भी धारण किया जा सकता है. इसके अलावा लोहे की अंगूठी हमेशा शनिवार की शाम धारण करना शुभ होता है.

हाथ में लोहे का छल्ला पहनने से क्या होता है?

लोहे के छल्ले या अंगुठी को शनि का छल्ला कहा जाता है। कुछ लोग घोड़े की नाल की अंगुठी बनवाकर पहनते हैं। ज्योतिषानुसार शनि की ढैय्या, साढ़े साती, दशा, महादशा या अन्तर्दशा में तमाम तरह की परेशानियों से बचने के लिए लोहे का छल्ला पहना जाता है।

लोहे का छल्ला कब धारण करना चाहिए?

शनि के प्रकोप और बुरी आत्माओं से बचने के लिए लोगों को लोहे का छल्ला पहनने की सलाह दी जाती है. इसी कारण इसे शनि का छल्ला भी कहते हैं. घोड़े की नाल का छल्ला दाहिने हाथ की बीच वाली उंगली में धारण किया जाता है. मध्यम अंगुली के नीचे शनि का स्थान होता है.

लोहे की अंगूठी कौन सी उंगली में पहने?

इसे दाहिने हाथ की माध्यम अंगुली में धारण किया जाता है क्योंकि इसी अंगुली के नीचे शनि पर्वत होता है। 9. शनिवार के दिन शाम के समय इसे धारण करें। इसके लिए पुष्य, अनुराधा, उत्तरा, भाद्रपद एवं रोहिणी नक्षत्र सर्वश्रेष्ठ हैं।

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