लंका कौन से पर्वत पर स्थित है? - lanka kaun se parvat par sthit hai?

आखिर रावण की श्रीलंका कहां थी? इस बारे में खोजकर्ता अपने-अपने मत रखते हैं जिनमें वे उन ऐतिहासिक तथ्‍यों को नजरअंदाज कर देते हैं, जो कि रामायण में बताए गए हैं या कि देशभर में बिखरे हुए हैं। एक शोधकर्ता लंका की स्थिति को आंध्रप्रदेश में गोदावरी के मुहाने पर बताते हैं तो दूसरे उसे मध्यप्रदेश के अमरकंटक के पास। हालांकि इनका सराहनीय शोधकार्य आने वाले शोधार्थियों को प्रेरणा दे सकता है। जरूरी है कि भारतीय इतिहास पर समय-समय पर शोधकार्य होते रहे और हम किसी एक निर्णय पर निष्पक्ष रूप में पहुंचे।

अमरकंटक में थी लंका : लंका की स्थिति अमरकंटक में बताने वाले विद्वान हैं इंदौर निवासी सरदार एमबी किबे। इन्होंने सन् 1914 में 'इंडियन रिव्यू' में रावण की लंका पर शोधपूर्ण निबंध में प्रतिपादित किया था कि रावण की लंका बिलासपुर जिले में पेंड्रा जमींदार की पहाड़ी में स्थित है। बाद में उन्होंने अपने इस दावे में संशोधन किया और कहा कि लंका पेंड्रा में नहीं, अमरकंटक में थी।

इस दावे को लेकर उन्होंने सन् 1919 में पुणे में प्रथम ऑल इंडियन ओरियंटल कांग्रेस के समक्ष एक लेख पढ़ा। जिसमें उन्होंने बताया कि लंका विंध्य पर्वतमाला के दुरूह शिखर में शहडोल जिले में अमरकंटक के पास थी। किबे ने अपना ये लेख ऑक्सफोर्ड विश्‍वविद्यालय में संपन्न इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ ओरियंटलिस्ट्स के 17वें अधिवेशन और प्राच्यविदों की रोम-सभा में भी पढ़ा था। हालांकि उनके दावे में कितनी सचाई है यह तो कोई शोधार्थी ही बता सकता है।

किबे के दावे को दो लोगों ने स्वीकार किया। पहले हरमन जैकोबी और दूसरे गौतम कौल। पुलिस अधिकारी गौतम कौल पहले रावण की लंका को बस्तर जिले में जगदलपुर से 139 किलोमीटर पूर्व में स्थित मानते थे। कौल सतना को सुतीक्ष्ण का आश्रम बताते हैं और केंजुआ पहाड़ी को क्रौंचवन, लेकिन बाद में उन्होंने रावण की लंका की स्थिति को अमरकंटक की पहाड़ी स्वीकार किया। इसी तरह हरमन जैकोबी ने पहले लंका को असम में माना, पर बाद में किबे की अमरकंटक विषयक धारणा को उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसी तरह रायबहादुर हीरालाल और हंसमुख सांकलिया ने लंका को जबलपुर के समीप माना, पर रायबहादुर भी बाद में किबे की धारणा के पक्ष में हो गए जबकि सांकलियाजी हीरालाल शुक्ल के पक्ष में हो गए।

लंका कौन से पर्वत पर स्थित है? - lanka kaun se parvat par sthit hai?

अन्य विद्वानों का मत : सन् 1921 में एनएस अधिकारी ने इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप को लंका सिद्ध करने के 20 साल बाद सीएम मेहता ने कहा कि श्री हनुमान ने विमान से समुद्र पार किया था और लंका की खोज ऑस्ट्रेलिया में करनी चाहिए। सन् 1904 में अयप्पा शास्त्री राशि वडेकर ने मत व्यक्त किया कि लंका सम्प्रति उज्जयिनी के समानांतर समुद्र तट से 800 मील दूर कहीं समुद्र में जलमग्न है।

लंका की स्थिति भूमध्य रेखा पर मानने के कारण वाडेर ने आधुनिक मालदीव या मलय को लंका माना जबकि टी. परमाशिव अय्यर ने सिंगापुर से लेकर इन्द्रगिरि रिवेरियन सुमात्रा तक व्याप्त भूमध्यरेखीय सिंगापुर को लंका घोषित किया। 14वीं सदी में ज्योतिर्विद भास्कराचार्य ने लंका को उज्जयिनी की ही अक्षांश रेखा पर भूमध्य रेखा में स्थित माना था। एक विद्वान विष्णु पंत करंदीकर ने लंका को इंदौर जिले में महेश्वर के पास नर्मदा तट पर स्थित माना है। 

सुकेश के 3 पुत्र थे- माली, सुमाली और माल्यवान। माली, सुमाली और माल्यवान नामक 3 दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल (सुमेरु) पर्वत पर बसाई गई थी लंकापुरी। माली को मारकर देवों और यक्षों ने कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी। अपने नाना के उकसाने पर रावण ने अपनी सौतेली माता इलविल्ला के पुत्र कुबेर से युद्ध की ठानी थी और लंका को फिर से राक्षसों के अधीन लेने की सोची।

रावण ने सुंबा और बाली द्वीप को जीतकर अपने शासन का विस्तार करते हुए अंगद्वीप, मलय द्वीप, वराह द्वीप, शंख द्वीप, कुश द्वीप, यव द्वीप और आंध्रालय पर विजय प्राप्त की थी। इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया। लंका पर कुबेर का राज्य था, परंतु पिता ने लंका के लिए रावण को दिलासा दी तथा कुबेर को कैलाश पर्वत के आसपास के त्रिविष्टप (तिब्बत) क्षेत्र में रहने के लिए कह दिया। इसी तारतम्य में रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया।

आज के युग के अनुसार रावण का राज्य विस्तार, इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका पर रावण का राज था। श्रीलंका की श्रीरामायण रिसर्च कमेटी के अनुसार रामायण काल से जुड़ी लंका वास्तव में श्रीलंका ही है। कमेटी के अनुसार श्रीलंका में रामायण काल से जुड़ी 50 जगहों पर रिसर्च की गई है और इसकी ऐतिहासिकता सिद्ध की है।

कुबेर रावण का सौतेला भाई था। कुबेर धनपति था। कुबेर ने लंका पर राज कर उसका विस्तार किया था। रावण ने कुबेर से लंका को हड़पकर उस पर अपना शासन कायम किया। ऐसा माना जाता है कि लंका को भगवान शिव ने बसाया था। भगवान शिव ने पार्वती के लिए पूरी लंका को स्वर्णजड़ित बनवाया था।

एक बार माता पार्वती को महसूस किया कि महादेव तो देवों के भी देव हैं। सारे देव तो सुंदर महलों में रहते हैं लेकिन देवाधिदेव श्मशान में, इससे तो देव की प्रतिष्ठा भी बिगड़ती है। उन्होंने महादेव से हठ किया कि आपको भी महल में रहना चाहिए। आपका महल तो इंद्र के महल से भी उत्तम और भव्य होना चाहिए। उन्होंने जिद पकड़ी कि अब ऐसा महल चाहिए जो तीनों लोक में कहीं न हो।

महादेव ने समझाया कि हम तो ठहरे योगी, महल में तो चैन ही नहीं पड़ेगा। महल में रहने के बड़े नियम-विधान होते हैं। मस्तमौला औघड़ों के लिए महल उचित नहीं है।

परंतु देवी का वह तर्क अपनी जगह पर कायम था कि देव यदि महल में रहते हैं तो महादेव क्यों श्मशान में और बर्फ की चट्टानों पर? महादेव को झुकना पड़ा। उन्होंने उन्होंने विश्वकर्मा जी को बुलाया।

उन्हें ऐसा महल बनाने को कहा जिसका सुंदरता की बराबरी का महल त्रिभुवन में कहीं न हो। वह न तो धरती पर हो न ही जल में।

विश्वकर्मा जी जगह की खोज करने लगे। उन्हें एक ऐसी जगह दिखी जो चारों ओर से पानी से ढकी हुई थी बीच में तीन सुन्दर पहाड़ दिख रहे थे। उस पहाड़ पर तरह-तरह के फूल और वनस्पति थे। यह लंका थी।

विश्वकर्माजी ने माता पार्वती को उसके बारे में बताया तो माता प्रसन्न हो गईं और एक विशाल नगर के ही निर्माण का आदेश दे दिया। विश्वकर्मा जी ने अपनी कला का परिचय देते वहां सोने की अद्भुत नगरी ही बना दी।

माता ने गृह प्रवेश को मुहूर्त निकलवाया। विश्रवा ऋषि को आचार्य नियुक्त किया गया। सभी देवताओं और ऋषियों को निमंत्रण मिला। जिसने भी महल देखा वह उसकी प्रशंसा करते नहीं थका।

गृहप्रवेश के बाद महादेव ने आचार्य से दक्षिणा मांगने को कहा। महादेव की माया से विश्रवा का मन उस नगरी पर ललचा गया था इसलिए उन्होंने महादेव से दक्षिणा के रूप में लंका ही मांग लिया।

महादेव ने विश्रवा को लंकापुरी दान कर दी। पार्वती जी को विश्रवा की इस धृष्टता पर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने क्रोध में आकर शाप दे दिया कि तूने महादेव की सरलता का लाभ उठाकर मेरे प्रिय महल को हड़प लिया है।

मेरे मन में क्रोध की अग्नि धधक रही है। महादेव का ही अंश एक दिन उस महल को जलाकर कोयला कर देगा और उसके साथ ही तुम्हारे कुल का विनाश आरंभ हो जाएगा।

कथा श्रुति के अनुसार विश्रवा से वह पुरी पुत्र कुबेर को मिली लेकिन रावण ने कुबेर को निकाल कर लंका को हड़प लिया। शाप के कारण शिव के अवतार हनुमान जी ने लंका जलाई और विश्रवा के पुत्र रावण, कुंभकर्ण और कुल का विनाश हुआ। श्रीराम की शरण में होने से विभीषण बच गए।

लंका कौन से पर्वत पर स्थित थी?

भगवान शिव ने बनवाई थी लंका रावण ने लंका नहीं बनाई थी, बल्कि लंका का निर्माण भगवान शिव के कहने पर देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा और कुबेर ने मिलकर समुद्र के मध्य त्रिकुटाचल पर्वत पर इसका निर्माण किया था. त्रिकुटाचल के बारे में कहा जाता है कि त्रि यानि तीन और अकुटाचल यानि पर्वत.

रावण की लंका कौन से पर्वत पर थी?

माली, सुमाली और माल्यवान नामक 3 दैत्यों द्वारा त्रिकुट सुबेल (सुमेरु) पर्वत पर बसाई गई थी लंकापुरी। माली को मारकर देवों और यक्षों ने कुबेर को लंकापति बना दिया था। रावण की माता कैकसी सुमाली की पुत्री थी

लंका कहाँ स्थित है?

श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है।

रावण से पहले लंका का राजा कौन था?

रावण ब्राह्मण का भेस धारण कर शिवजी के पास गया और दान में सोने की लंका मांग ली। शिव ने सोने की लंका उसे दे दी। इस तरह रावण ने धोखे से सोने की लंका हथिया ली। ये भी कहा जाता है कि रावण ने धनपति कुबेर से सोने की लंका छीन ली थी