लोकतंत्र की समस्याओं का समाधान कौन कर सकता है - lokatantr kee samasyaon ka samaadhaan kaun kar sakata hai

पुस्तक समीक्षा

पी. के. खुराना

राजनीतिक रणनीतिकार

जनहित के कानून बनना अब मुश्किल

अपनी पुस्तक ‘भारतीय लोकतंत्र —समस्याएं और समाधान’ के जरिए बहुत सरल भाषा में पीके खुराना ने यह सिद्ध किया है कि संसद की सर्वोच्चता एक झूठ है, फरेब है, मुखौटा है, दरअसल संसद की अहमियत पूरी तरह से खत्म कर दी गई है और सांसदों के असली काम, यानी कानून बनाने में उनकी कोई भूमिका नहीं है। संसद में सिर्फ वही बिल पास हो पाते हैं, जिन्हें सरकार पेश करे। सवाल यह है कि यदि विपक्ष का पेश किया कोई बिल कानून नहीं बन सकता, तो विपक्ष की क्या आवश्यकता है और यदि सरकार का पेश किया गया हर बिल कानून बन जाता है, तो संसद की आवश्यकता क्यों है? एक और गंभीर मुद्दा यह है कि व्हिप की प्रथा के कारण हर सांसद और विधायक अपने दल की नीतियों के अनुसार वोट देने के लिए विवश है तो किसी बिल पर मतदान से पहले ही स्पष्ट हो जाता है कि बिल के पक्ष और विपक्ष में कितने वोट पड़ेंगे, इस नियम के कारण बिलों पर मतदान की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है। इस एक अकेली व्यवस्था के कारण संसद, मंत्रिपरिषद और विपक्ष सब अर्थहीन हो गए हैं।

क्रमिक रूप से नष्ट किया गया संविधान

पीके खुराना की यह पुस्तक अंधेरी काली रात में जलते हुए दीपक के समान है, जो हमें सही राह दिखाती है। इस पुस्तक का महत्त्व इसी तथ्य में निहित है कि इसमें किसी राजनीतिक दल या विचारधारा का समर्थन या विरोध करने के बजाए, उनके कामों की समीक्षा की गई है। श्री खुराना की बेबाकी की दाद देनी होगी कि उन्होंने इतने संवेदनशील विषय को इतनी प्रखरता से उठाया है, उसका सांगोपांग विश्लेषण किया है और समस्याओं का निदान करते हुए यह भी बताया है कि समस्या के हल के लिए हम क्या कर सकते हैं। समस्या यह है कि हमारे देश में प्रचलित शासन व्यवस्था के बारे में आम जनता को असल जानकारी नहीं है। उससे भी बड़ी समस्या यह है कि इस ‘आम जनता’ की श्रेणी में वे लोग भी शामिल हैं जो बहुत पढ़े-लिखे हैं, ज्ञानवान हैं, अपने-अपने क्षेत्र में स्थापित हैं, लेकिन देश की व्यवस्थागत कमियों से पूरी तरह अनजान हैं। क्या यह खेद का विषय नहीं है कि सन् 1990 में चंद्रशेखर की सरकार ने दो घंटे से भी कम समय में 18 बिल पास कर दिए। सन् 1999 में सदन की कुल 20 बैठकें हुईं, लेकिन उनमें 22 बिल पास कर दिए गए। सन् 2001 में 32 घंटों में 33 बिल पास हो गए। सन् 2007 में लोकसभा ने 15 मिनट में तीन बिल पास कर दिए। जनता की भलाई से जुड़े बिलों का इस तरह कानून बन जाना न केवल खेदजनक है, बल्कि बहुत डरावना भी है। श्री खुराना ने यही बताने का प्रयत्न किया है कि ऐसा क्यों हो रहा है, इसके क्या परिणाम हैं और इस स्थिति को बदलने के लिए क्या किया जा सकता है

इस जानकारी ने नींदें उड़ा दीं

श्री खुराना कहते हैं कि मैं तो यह जानकर सन्न ही रह गया कि हमारा संविधान व्यावहारिक रूप से एक अकेले व्यक्ति को लगभग असीमित शक्तियां दे देता है और वह एक व्यक्ति किसी तानाशाह की ही तरह देश को किसी भी दिशा में हांक सकता है। इस लोकतंत्र में जनता की भागीदारी की तो छोडि़ए, विधायकों, सांसदों और विपक्ष किसी की भी भागीदारी नहीं है। शासन-प्रशासन एक व्यक्ति के इशारे पर चलता है। राज्य सरकारें कठपुतलियों की तरह बेबस हैं और स्थानीय स्वशासन का अस्तित्व भी कागजी है। इन सब कारणों से भ्रष्टाचार बढ़ता है और चापलूस और अक्षम लोग नेता बन जाते हैं। ये सारे सवाल प्रासंगिक हैं और इनका जवाब आवश्यक है। यह अत्यंत खेदजनक स्थिति है कि देश की अधिकांश जनता को तो यह भी मालूम नहीं है कि उन्हें अपने प्रतिनिधियों से पूछना क्या चाहिए। असल स्थिति यह है कि हम लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र के मुखौटे में जी रहे हैं।

प्रकाशन : गुरुकूल पब्लिशिंग,  हैदराबाद

मूल्यः 195/-रुपए

भारतीय लोकतंत्र ही है तमाम समस्‍याअों की जड़!

देश की तमाम समस्याओं की जड़ भारतीय लोकतंत्र है। मैंने लोकतंत्र को दोष न देकर भारतीय लोकतंत्र पर दोषारोपण किया है। क्योंकि भारत में लोकतंत्र ही सत्ता तक पहुंचने का मार्ग है और भारतीय लोकतंत्र अभी इसके लिए परिपक्व नहीं है, जिसका लाभ आयोग्य और सत्ता के लालची जैसे लोग उठा रहे हैं। ऐसे लोगों को इस कदर सत्ता की भूख रहती है कि देश में किसी भी प्रकार की अराजकता को अंजाम देकर वोट बैंक सुरक्षित करते हैं। यहां तक कि भारत की विविधता का पूरा लाभ उठाते हैं और उनकी एकता में फूट भी डालने का काम करते हैं।

एक जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि कोई भी सरकारी या गैर सरकारी संस्था इस अराजकता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं डाल पायी है। भारतीय लोकतंत्र तमाम राजनीतिक समस्याओं का कारण है। भारत की जो मूल समस्या है, वह इस व्यवस्था का शिकार बन चुकी है, जो अनिश्चित काल तक रहने वाली है।

इसी उदार राजनीतिक व्यवस्था का लाभ उठाकर शिक्षा का स्तर गिराया जा रहा है, ताकि लोगों की समझ न विकसित हो पाए। लोकतंत्र भारतीय राजनीति में इसलिए शामिल किया गया, ताकि समाज में समानता बनी रहे, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। भारतीय राजनीति में तमाम असमानताएं व्याप्त हैं। एक योग्य आम नागरिक की पहुंच से बाहर है राजनीति करना।

राजनीतिक दल यह साबित करने में लगे रहते हैं कि यह लोकतंत्र की जीत है, जबकि यह सब महज एक मिथ्या है और कुछ भी नहीं। मैं तो यहां तक कहूंगा कि अगर राजनीतिक दलों में सत्ता की भूख की वजह से आपसी मतभेद न होता, तो मतदान और मतगणना भी सुरक्षित नहीं होती। राजनीतिक दल राष्ट्र को कम महत्व देकर अपनी-अपनी विचारधारा को प्राथमिकता देते हैं।


समस्या और समाधान पर एक नजर


भारत देश के पास आज वह सब कुछ है, जिससे देश की तमाम समस्याओं का समाधान हो सके, लेकिन किसी एक समस्या का भी निदान पूर्णत: नहीं हो पाता है। गरीबी, अशिक्षा, बढ़ती जनसंख्या, स्वास्थ्‍य समस्‍या, सांप्रदायिकता, जातिवाद, वर्गवाद, आतंकवाद, भ्रष्टाचार आदि ये सब समस्याएं एक-दूसरे के पूरक हैं।

इन समस्याओं में से भारत और राज्य की सरकारें मात्र दो समस्या शिक्षा और गरीबी पर पूरी ईमानदारी, निष्ठा और बिना पक्षपात के तथा सत्ता के लालच को छोड़कर और राज्य के स्वार्थ को सर्वोपरि रखकर काम करें, तो इन सब समस्याओं से निजात पाया जा सकता है।

कुछ मूल समस्याएं जो सब नजरअंदाज करते हैं, आज विश्व के बेहद गरीबों में एक तिहाई गरीब भारत के हैं। पांच साल से कम उम्र में सबसे अधिक बच्चों की मृत्यु भारत में होती है। दुनिया में सबसे अधिक भूखे, दुनिया में सबसे अधिक अस्वस्थ लोग भारत में हैं। भारत की स्थिति आंतरिक्ष प्रोग्राम (isro) में छोड़कर सभी में दयनीय है।

आओ गरीबी को एक पहलू से समझने का प्रयास करते हैं

भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्तमान भारत की उत्पादन क्षमता काफी अच्छी है। देश के GDP में लगभग 15 प्रतिशत योगदान कृषि का है। साथ ही 50 प्रतिशत से भी अधिक लोगों की आय का स्रोत कृषि ही है, लेकिन किसान खेती-बाड़ी मजबूरी में करता है। किसान की हालात बद से बदतर होती जा रही है। वो कर्ज में डूबता जा रहा है। आत्महत्या कर रहा है। बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दिलवा पाता है तथा हर संभव प्रयास करता है कि उसकी संतान कृषि न करे, चाहे कोई भी रोजगार कर ले।

भारतीय कृषक की इतनी बुरी दुर्दशा क्यों है। क्या भारत इस बीमारी से लड़ने में सक्षम नहीं है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है और ऐसा भी नहीं है कि इसका प्रयास नहीं किया जा रहा, लेकिन जो प्रयास हो रहे हैं और जिस तरीके से हो रहे हैं, इससे समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता, यह तय है।


भारत के पास विषय विशेषज्ञ हैं और तकनीकी भी है, लेकिन सही रणनीति और क्रियान्वयन का अभाव है। कृषि संबंधी समस्या से निजात पाने के लिए कोई जरूरत नहीं समझी जा रही है, क्योंकि किसानों का गरीबी से बहुत नजदीकी संबंध है, जो देश का सबसे बड़ा मुद्दा है। अगर लोगों की गरीबी जैसी समस्या का समाधान हो जाए, तो लोगों की जीविका सरल हो जाएगी। इससे देश के वर्तमान राजनीति के आधार में से एक बहुत महत्वपूर्ण पिलर टूट जाएगा। अब तक अधिक ध्यान जातिवाद और धर्म पर दिया जाता है, लेकिन वर्तमान में गरीबी सबसे अहम मुद्दा है।


गरीबी ही है, जो देश में तमाम अराजकताओं को जन्म देती है, जैसे चोरी, लूटपाट, सांप्रदायिकता, अशिक्षा, आंतरिक असुरक्षा आदि। शिक्षा का व्यावसायीकरण होने से गरीब अच्छी शिक्षा नहीं ले पाते, जिसकी वजह से वे रोजगार से वंचित रह जाते हैं और बेरोजगारी उनको नये तरीके से गरीब बना देती है। शिक्षा न पाने से वे जीवन के अन्य पहलुओं को समझने में सक्षम नहीं होते और फिर अराजकता को अंजाम देते हैं।

सरकार एक समय तक मुफ्त शिक्षा का इंतजाम भी करती है, लेकिन उसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में रहती है। सरकार द्वारा सामाजिक कल्याण के लिए उठाया गया कोई भी कदम सही परिणाम तक नहीं पहुचता, जबकि इन सबके लिए भारत में एक जटिल सिस्टम का जाल है। शिक्षा में क्या कमी है इससे आप सब परिचित हैं। जो व्यवस्था चल रही है, यह सब तब तक नहीं सुधरेगी, जब तक आप जागरूक होकर पूरी जिम्मेदारी से अव्यस्था के खिलाफ सवाल नहीं खड़ा करेंगे। देश हमारा है, सर्वोच्च संविधान हमारा है, राजनीति हमारी है, फिर यह सब क्यों?

लोकतंत्र की चुनौतियों से निपटने के लिए सुझाव क्या कहते हैं?

लोकतंत्र की विभिन्न चुनौतियों के बारे में सभी सुझाव या प्रस्ताव 'लोकतांत्रिक सुधार' या 'राजनीतिक सुधार' कहे जाते हैं ।

वर्तमान लोकतंत्र क्या है?

लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।

भारतीय लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं?

1947 की आजादी के बाद दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इसके राष्ट्रवादी के आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व के तहत बनाया गया था। संसद का चुनाव हर 05 साल में एक बार आयोजित किया जाता है। वर्तमान में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के मुखिया हैं, जबकि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्र के मुखिया हैं।

लोकतांत्रिक प्रशासन क्या है?

लोक प्रशासन (अंग्रेज़ी: Public administration) मोटे तौर पर शासकीय नीति (government policy) के विभिन्न पहलुओं का विकास, उन पर अमल एवं उनका अध्ययन है। प्रशासन का वह भाग जो सामान्य जनता के लाभ के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है। लोकप्रशासन का संबंध सामान्य नीतियों अथवा सार्वजनिक नीतियों से होता है।

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