Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers. Show
JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूतेJAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. रचना और अभिव्यक्ति – प्रश्न 7. प्रश्न 8. भाषा-अध्ययन – प्रश्न 9.
प्रश्न 10. JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – 1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है ! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है। जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 3. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा ज़मीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं ! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : 4. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमज़ोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति भी ! अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न : 5. होरी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का नायक था जिसका दीन-हीन जीवन प्रेमचंद से मिलता-जुलता था। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो – मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे? अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न : प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindiलेखक परिचय : जीवन परिचय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त सन् 1922 ई० को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ स्वतंत्र लेखन कार्य करने का निर्णय किया। परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहाँ के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हजार रुपए के ‘चकल्लस पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान भी रहे। हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ – परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है – कहानियाँ – ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाकवाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’। उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’। निबंध संग्रह – ‘ तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’। भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा अत्यंत व्यावहारिक तथा सहज है किंतु इनके व्यंग्य – बाण बहुत तीखे हैं। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेख में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी तथा एक लेखक की फटेहाली का यथार्थ अंकन किया है। लेखक ने उपहास, आग्रह, आनुपातिक, प्रवर्तक जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ फ़ोटो, केनवस, पोशाक, अहसास, क्लिक, ट्रेजडी, बरकरार जैसे विदेशी तथा पन्हैया, पतरी जैसे देशज शब्दों का प्रयोग भी किया है। हौसले पस्त होना, चक्कर काटना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में पैनापन आ गया है। लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें कहीं-कहीं चित्रात्मकता के भी दर्शन हो जाते हैं, जैसे प्रेमचंद के व्यक्तित्व का यह शब्द – चित्र उनके रूप को स्पष्ट कर देता है – ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’ इस प्रकार इनकी भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा होते हुए भी किसी भी स्थिति पर कटाक्ष करने में सक्षम है – पाठ का सार : हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति कर कटाक्ष किया है। लेखक प्रेमचंद और उनकी पत्नी का फोटो देखकर सोचता है कि यदि प्रेमचंद की फोटो खिंचाने की पोशाक सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती, केनवस के जूते और बाएँ जूते के बड़े से छेद में से बाहर निकलती हुई अँगुली है तो, उनकी आम पहनने की पोशाक कैसी होगी ? लेखक को हैरानी होती है कि क्या प्रेमचंद को फोटो खिंचवाते समय यह पता नहीं था कि उनका जूता फटा हुआ है जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही है ? उन्हें इस पर न लज्जा आई, न संकोच हुआ। वे यदि धोती को जरा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढक सकती थी। फोटो खिंचवाते समय इनके चेहरे पर बेपरवाही और बहुत विश्वास दिखाई देता है। इनके चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान है जो किसी का उपहास करती प्रतीत होती है। लेखक सोचता है कि यह कैसा आदमी है जो फटे हुए जूते पहनकर फोटो खिंचवा रहा है और किसी पर हँस भी रहा है। इसे ठीक जूते पहनकर फोटो खिंचवानी चाहिए थी। लगता है कि पत्नी के आग्रह पर जैसा वह था, वैसे ही फोटो खिंचवाने चल पड़ा होगा। उसे इस बात का दुख है कि इस आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छा जूता न था। उसे लगता है कि प्रेमचंद फोटो का महत्व नहीं समझते, नहीं तो किसी से जूते माँगकर ही फोटो खिंचवाते। लोग माँगे के कोट से वर दिखाई देते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। प्रेमचंद के समय में टोपी आठ आने में और जूते पाँच रुपए में मिल जाते होंगे। अब तो एक जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ जाती हैं। प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक को फोटो में फटे जूते पहने देखकर लेखक बहुत दुखी है। लेखक का अपना जूता भी कोई खास अच्छा नहीं है। वह ऊपर से अच्छा है परंतु उसके अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकली हुई थी परंतु लेखक का पंजा नीचे से घिस रहा है। उसे अपनी अँगुली ढके होने का लाभ यह है कि उसके जूते के फटे हुए तले का किसी को पता नहीं चलता, क्योंकि वह परदे में है। प्रेमचंद फटा जूता ठाठ से पहनते हैं पर लेखक को ऐसा करने में संकोच का अनुभव होता है। वह आजीवन ऐसा फोटो नहीं खिंचवाएगा। प्रेमचंद की मुसकान उसे चुभती हुई लगती है। वह सोचता है कि इस मुसकान का अर्थ यह तो नहीं है कि होरी का गोदान हो गया अथवा पूस की रात में नीलगाय हल्कू का खेत चर गईं या डॉक्टर के न आने से सुजान भगत का लड़का मर गया। उसे लगता है कि जब माधो औरत के कफ़न के चंदे से शराब पी गया था तो यह उस समय की मुसकान है। लेखक फिर से प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर सोचता है कि शायद बनिए के तगादे से बचने के लिए मील- दो-मील का चक्कर लगाकर घर लौटने के कारण इनके जूते फट गए थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया होगा तो उन्हें कहना पड़ा- ‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम।’ जूता तो चलने से घिसता या फटता नहीं, तो तुम्हारा जूता कैसे फटा ? लेखक को लगता है कि प्रेमचंद किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे होंगे जिससे उनका जूता फट गया होगा। वे उस सख्त चीज़ को ठोकर मारे बिना भी निकल सकते थे, जैसे नदियाँ पहाड़ फोड़ने के स्थान पर रास्ता बदलकर घूम कर चली जाती हैं। प्रेमचंद समझौतावादी नहीं थे। इसलिए उनके पाँव की अँगुली उस ओर संकेत करती हुई लगती है कि जो घृणित है, उसकी ओर हाथ की नहीं पाँव की अँगुली से तुम इशारा करते हो। वास्तव में तुम उन सब पर हँसते हो जो अँगुली छिपाते हैं और तलुआ घिसते हैं, जो समझौतावादी हैं। प्रेमचंद ने तो अँगुली जूते को फाड़कर बाहर निकाल ली पर पाँव तो बचा लिया था, परंतु जो तलुवे घिस रहे हैं उनका तो पाँव ही घिस जाएगा। वे चलेंगे कैसे ? लेखक प्रेमचंद के फटे जूते और अँगुली के इशारे को समझ रहा है और उनकी व्यंग्य-भरी मुसकान का अर्थ भी जानता है। लेखक की नजर में लोग फोटो के लिए क्या क्या करते हैं?Answer. Answer: लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के फोटो में प्रेमचंद कैसे नजर आ रहे हैं?उत्तर : फोटो में प्रेमचंद अत्यंत साधारण-सी वेषभूषा में नजर आ रहे थे। उनके साथ में उनकी पत्नी थी। वे कुर्ता-धोती पहने, सिर पर टोपी लगाए थे। पाँवों में कैनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते थे, जिनकी लोहे की पतरी गायब थी।
जो लोग फोटो का महत्व समझते हैं लेखक के अनुसार वे क्या करते हैं?समझते होते, तो किसी से फोटो खिचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो ञखचाने के लिए बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते।
प्रेमचन्द की फोटो में उनके जूते देखकर लेखक क्या सोचने लगता है?व्याख्यात्मक हल:. प्रेमचंद जैसे साहित्यकार की फोटो में उनके फटे जूते देखकर परसाई जी का मन रोने को करता है। उन्हें प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार की बदहाली से बहुत दुःख होता है।. उनवेळ पास विशेष अवसरों पर पहनने के लिए भी अच्छे कपड़े और जूते नहीं थे। उनकी आर्थिक दुरावस्था की कल्पना से लेखक बहुत अधिक दुःखी हो रहे थे।. |