लेखक की नजर में लोग फ़ोटो के लिए क्या क्या करते हैं? - lekhak kee najar mein log foto ke lie kya kya karate hain?

Jharkhand Board JAC Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Exercise Questions and Answers.

JAC Board Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 6 प्रेमचंद के फटे जूते

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभर कर आती हैं ?
उत्तर :
इस पाठ के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद एक सीधे-सादे व्यक्ति थे। वे धोती-कुरता पहनते थे। वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का साधारण जूता पहनते थे। अपनी वेशभूषा पर वे विशेष ध्यान नहीं देते थे। उनके फटे जूते से उनकी अँगुली बाहर निकली होने पर भी उन्हें संकोच या लज्जा नहीं आती थी। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही तथा विश्वास का भाव रहता था। वे जीवन-संघर्षों से नहीं घबराते थे। वे निरंतर कार्य करते रहते थे।

प्रश्न 2.
सही उत्तर के सामने (✓) का निशान लगाइए –
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुस्कान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ अँगूठे से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) ✗
(ख) ✓
(ग) ✗
(घ) ✗

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प्रश्न 3.
नीचे दी गई पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए –
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
(ग) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो ?
उत्तर :
(क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महँगा होता है, इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियाँ खरीदी जा सकती हैं। टोपी तो नई पहनी जा सकती है पर जूता नया नहीं लिया जा सकता।
(ख) लेखक कहता है कि आज के युग में सभी अपनी कमियों, कमजोरियों तथा बुराइयों को छिपाकर रखते हैं इसलिए सभी परदे के महत्व को स्वीकार करते हैं परंतु प्रेमचंद किसी प्रकार के दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे, इसलिए परदे का महत्व नहीं समझते थे। आज के आडंबर- प्रिय लोग बाहरी तड़क-भड़क में विश्वास करते हैं इसलिए परदे की प्रथा पर न्योछावर हो रहे हैं।
(ग) प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। वे जिसे पसंद नहीं करते थे उसकी खुलकर आलोचना करते थे। इसलिए लेखक ने लिखा है कि जिसे प्रेमचंद घृणा करते थे, उसकी ओर हाथ की नहीं पैर की अंगुली से संकेत करते थे।

प्रश्न 4.
पाठ में एक जगह पर लेखक सोचता है कि ‘फ़ोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है तो पहनने की कैसी होगी ? लेकिन अगले ही पल वह विचार बदलता है कि ‘नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी।’ आपके अनुसार इस संदर्भ में प्रेमचंद के बारे में लेखक के विचार बदलने की क्या वजह हो सकती है ?
उत्तर :
प्रेमचंद के बारे में लेखक का विचार इसलिए बदल गया, क्योंकि उसे लगा कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे। वे अपनी वेशभूषा के बारे में अधिक ध्यान नहीं देते थे। वे एक सामान्य व्यक्ति के समान उपलब्ध साधनों के अनुसार ही वेशभूषा धारण करते थे। उन्हें दिखावे में विश्वास नहीं था। वे जैसे हैं वैसे ही दिखाई देना चाहते थे

प्रश्न 5.
आपने यह व्यंग्य पढ़ा। इसे पढ़कर आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं ?
उत्तर :
इस व्यंग्य को पढ़कर मुझे लेखक की निम्नलिखित बातें आकर्षित करती हैं –
1. लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है- ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’
2. लेखक ने प्रेमचंद के जूते का पूरा विवरण दिया है। जूता केनवस का है। इसके बंध उन्होंने बेतरतीब बाँधे हैं। बंध के सिरे की लोहे की पतरी निकल गई है। जूते के छेदों में बंध डालने में परेशानी होती है। दाहिने पाँव का जूता ठीक है, परंतु बाएँ जूते के आगे बड़ा-सा छेद है, जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
3. लेखक ने प्रचलित अंग्रेजी शब्दों का सहज रूप से प्रयोग किया है, जैसे- ‘रेडी प्लीज़’, ‘क्लिक’, ‘थैंक्यू’, ‘ट्रेजडी, फोटो।
4. गोदान, पूस की रात, कुंभनदास आदि के उदाहरण।

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प्रश्न 6.
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किन संदर्भों को इंगित करने के लिए किया गया होगा ?
उत्तर :
पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग जीवन में आनेवाले संघर्षों, मुसीबतों, कठिनाइयों, समस्याओं, परेशानियों आदि के लिए किया गया है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 7.
प्रेमचंद के फटे जूते को आधार बनाकर परसाई ने यह व्यंग्य लिखा है। आप भी किसी व्यक्ति की पोशाक को आधार बनाकर एक व्यंग्य लिखिए।
उत्तर :
अपनी मनपसंद पोशाक पहनना सबकी निजी पसंद होती है। कोई कुछ भी पहने इस पर किसी को कुछ कहने का अधिकार तो नहीं है परंतु पोशाक की विचित्रता पर हँसा तो जा ही सकता है। मेरे पड़ोसी लगभग साठ वर्ष के हैं; व्यापारी हैं और वर्षों से यहीं रह रहे हैं। उनकी लाल पैंट पर भड़कीली हरी कमीज़ और सिर पर पीली टोपी सहसा सबका ध्यान अपनी ओर खींच लेती है। पता नहीं उनके पास इस तरह की रंग-बिरंगी पोशाकें कितनी हैं पर जब-जब वे बाहर निकलते हैं, सड़क पर चलती-फिरती होली के रंगों की बहार लगते हैं। जो उन्हें पहली बार देखता है वह तो बस उनकी ओर देखते ही रह जाता है, पर इसका कोई असर उनकी सेहत पर नहीं पड़ता।

प्रश्न 8.
आपकी दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है ?
उत्तर :
आजकल लोग अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत जागरूक हो गए हैं। वे अवसर के अनुकूल वेशभूषा का चयन करते हैं। विद्यालयों में निश्चित वेशभूषा पहनकर जाना होता है। घरों में तथा विभिन्न त्योहारों, शादियों, सभाओं, समारोहों आदि के अवसर पर हम अपनी पसंद की वेशभूषा धारण कर सकते हैं। लड़के अधिकतर पैंट-शर्ट अथवा जींस तथा टी-शर्ट पहनना पसंद करते हैं। वे अच्छे जूते पहनते हैं। लड़कियाँ भी सलवार-सूट के साथ मैचिंग दुपट्टा और सैंडिल अथवा टॉप- जींस अथवा साड़ी पहनती हैं। सबको अपने व्यक्तित्व को निखारने वाले रंगों के वस्त्र पहनने अच्छे लगते हैं। आज वेशभूषा से ही किसी व्यक्ति के स्वभाव, स्तर आदि का ज्ञान हो जाता है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी वेशभूषा के प्रति बहुत सजग हो गया है।

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भाषा-अध्ययन –

प्रश्न 9.
पाठ में आए मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :

  • न्योछावर होना – माँ अपने बेटे की वीरता पर न्योछावर हो रही थी।
  • ठाठ से रहना – अनिल दस लाख रुपए की लॉटरी निकलते ही ठाठ से रहने लग गया है।
  • चक्कर काटना – शौकत से अपना कर्जा वसूलने के लिए पठान बार-बार उसके घर के चक्कर काट रहा है।
  • ठोकर मारना – सीमा ने ठोकर मारकर रोशनी को गिरा दिया।
  • भरा-भरा – शेर सिंह का चेहरा उसकी घनी मूँछों के कारण भरा-भरा लगता है।

प्रश्न 10.
प्रेमचंद के व्यक्तित्व को उभारने के लिए लेखक ने जिन विशेषणों का उपयोग किया है उनकी सूची बनाइए।
उत्तर :
मोटे, चिपकी, घनी, फटा, तीखा।

JAC Class 9 Hindi प्रेमचंद के फटे जूते Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पठित पाठ के आधार पर प्रेमचंद के व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर :
इस पाठ में प्रेमचंद को एक साधारण व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है। उनके सिर पर मोटे कपड़े की टोपी है। वे कुरता-धोती पहनते हैं। उनकी कनपटी चिपकी हुई तथा गालों की हड्डियाँ उभरी हुई हैं। उनकी घनी मूँछें उनके चेहरे को भरा-भरा बना देती हैं। वे केनवस के जूते पहनते हैं। उन्हें जूतों के फटे होने की भी चिंता नहीं रहती है। उनके चेहरे पर सदा बेपरवाही और विश्वास का भाव रहता है। उन्हें अपनी इस सामान्य वेशभूषा पर लज्जा अथवा संकोच नहीं होता है।

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प्रश्न 2.
लेखक के विचार में फ़ोटो कैसे खिंचवानी चाहिए ?
उत्तर :
लेखक का विचार है कि फ़ोटो खिंचवाने के लिए ठीक वेशभूषा पहननी चाहिए। यदि अपने पास अच्छे वस्त्र और जूते न हों तो किसी से माँग लेने चाहिए, क्योंकि लोग तो वर दिखाई देने के लिए कोट और बारात निकालने के लिए मोटर तक माँग लेते हैं कुछ लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिंचवाते हैं कि शायद फोटो में सुगंध आ जाए।

प्रश्न 3.
लेखक के विचार में प्रेमचंद का जूता कैसे फटा होगा ?
उत्तर
लेखक का विचार है कि प्रेमचंद का जूता परिस्थितियों से समझौता न कर सकने के कारण फट गया होगा। उनकी आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि वे नया जूता ख़रीद सकते। वे अपने फटे जूते को तब तक पहने रखना चाहते थे जब तक कि वह पूरी तरह फट न जाए।

प्रश्न 4.
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है ?
उत्तर :
‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के माध्यम से लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन करते हुए लेखकों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। प्रेमचंद युग-प्रवर्तक कथाकार एवं उपन्यास सम्राट कहे जाते हैं, परंतु उन्हें फटे जूते पहनकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा। वे इतने सहज थे कि उन्हें अपनी फटेहाली पर लज्जा या संकोच नहीं होता था। वे बेपरवाह तथा दृढ़ विश्वासी थे। इसके विपरीत आज का समाज प्रदर्शन-प्रधान हो गया है। प्रेमचंद की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था।

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प्रश्न 5.
लेखक का साहित्यिक पुरखे से क्या अभिप्राय है और वह उसे क्या समझाना चाहता है ?
उत्तर :
लेखक का साहित्यिक पुरखे से अभिप्राय मुंशी प्रेमचंद से है क्योंकि वे लेखक से पहले के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार, कथाकार, निबंधकार और युग प्रवर्तक साहित्यकार थे। लेखक उन्हें यह समझाना चाहता है कि उनका जूता फटा हुआ था जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही थी। वह उसी फटे जूते को पहनकर फोटो खिंचाने चले गए। उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिए था। फोटो खिंचाते समय धोती को थोड़ा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढँक सकती थी।

प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार मुंशी प्रेमचंद का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर :
मुंशी प्रेमचंद बहुत ही सीधे स्वभाव के व्यक्ति थे। वे अपने में मस्त रहते थे। उन्हें अपने पहनावे की कोई चिंता नहीं रहती थी। उन्हें फटा जूता पहनने में भी कोई लज्जा या संकोच नहीं था। वह अपनी ग़रीबी छिपाने के लिए कोई प्रबंध नहीं करते थे। उनके चेहरे पर बेपरवाही और विश्वास दिखाई देता था।

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प्रश्न 7.
लोग क्या- क्या माँगकर अपनी आर्थिक स्थिति छिपाते हुए कार्य पूरे करते हैं ?
उत्तर :
लेखक कहता है कि प्रेमचंद जी को फोटो खिंचवाने के लिए जूते माँग लेने चाहिए थे। लोग तो बहुत कुछ माँगकर अपने जीवन के बड़े- से- बड़ा काम पूरे करते हैं। कोट माँगकर वर दिखाई करते हैं। मोटर माँग कर बारात निकालते हैं। कई बार फोटो अच्छी आए, इसलिए बीवी तक माँग ली जाती है। इस तरह लोग अपने जीवन की कमी को छिपाकर बड़े-से-बड़ा काम पूरा कर लेते हैं।

प्रश्न 8.
लेखक को आज क्या बात चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
फोटो में प्रेमचंद का जूता फटा हुआ है। यह देखकर लेखक को उसके जीवन की दयनीय स्थिति बहुत चुभ रही थी। इसका कारण यह था कि मुंशी प्रेमचंद महान कथाकार, उपन्यास सम्राट, युग प्रवर्तक लेखक आदि थे परंतु विडंबना यह थी कि ऐसे महान साहित्यकार ने संपूर्ण जीवन संघर्षमय व्यतीत किया है।

प्रश्न 9.
लेखक और मुंशी प्रेमचंद के जूते में क्या समानता और अंतर था ?
उत्तर :
लेखक और मुंशी प्रेमचंद दोनों के जूते फटे हुए थे। उनके संघर्षमय जीवन की कथा का वर्णन कर रहे थे। एक साहित्यकार दूसरों के जीवन की प्रेरणा बनता है परंतु स्वयं जीवन की कठिनाइयों से जूझता रहता है। दोनों के फटे जूते में अंतर यह था कि मुंशी प्रेमचंद का जूता सामने से फटा हुआ था, जिससे पैर की अंगुली बाहर निकल रही थी जबकि लेखक का जूता नीचे से घिसने के कारण उसका तला फट गया था, जिससे उसकी अँगुली ढकी रहती थी परंतु पंजा नीचे से घिसता रहता था।

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प्रश्न 10.
प्रेमचंद तथा गोदान के पात्र होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
उत्तर :
दोनों सामाजिक तथा सांस्कृतिक मर्यादाओं में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। अपनी नैतिकता बिल्कुल भी नहीं छोड़ते। अपना संपूर्ण जीवन गरीबी में व्यतीत करते हैं, परंतु दोनों की कमज़ोरी के दायरे भिन्न थे। होरी की कमज़ोरी एक बंधन बन गई जिससे वह लड़ता हुआ अंत में मर जाता है जबकि प्रेमचंद के लिए उसकी कमज़ोरी बंधन नहीं बन पाती, बल्कि ताकत बन जाती है इसलिए वे आजादी भरा जीवन व्यतीत करते थे। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।

प्रश्न 11.
प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ? मगर तुम चलोगे कैसे?
उत्तर :
प्रेमचंद ने ऐसा इसलिए कहा है कि वे अपने जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों से लड़ते हुए आगे बढ़ते रहे। उन्होंने कभी भी तंगहाली को छिपाने का प्रयास नहीं किया है। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे परंतु उसकी मुसकान दूसरे लोगों को कह रही है कि दिखावा – पसंद जीवन व्यतीत करने वाले लोग समझौता करते रहते हैं। अपनी तंगहाली को छिपाकर दुनिया में अपनी शान बढ़ाना चाहते हैं परंतु एक दिन सब कुछ सामने आने पर वे लोग जीवन में आगे बढ़ना भूल जाएँगे। वे चल भी नहीं पाएँगे।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

1. मैं चेहरे की तरफ देखता हूँ। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अँगुली बाहर दिख रही है ? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है ? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है ? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अँगुली ढक सकती है ? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. लेखक ने ‘साहित्यिक पुरखे’ किसे कहा है ?
2. लेखक किस लज्जा की बात करता है ?
3. लेखक के अनुसार अँगुली कैसे ढक सकती थी ?
4. लेखक क्यों कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है ?
उत्तर :
1. लेखक ने मुंशी प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखे कहा है।
2. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया जिससे उनकी अँगुली बाहर दिख रही है। इस पर उन्हें लज्जा आनी चाहिए थी, मगर उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप नजर नहीं है
3. लेखक के अनुसार यदि प्रेमचंद अपनी धोती थोड़ा नीचे खींच लेते तो उनकी जूते से बाहर दिख रही अँगुली ढक सकती थी।
4. लेखक देखता है कि प्रेमचंद का जूता फट गया है और उनकी अँगुली दिख रही है। उन्हें इस बात का ज़रा भी अहसास नहीं। उनके चेहरे पर लज्जा, संकोच या झेंप का कोई निशान नहीं। इसलिए लेखक उन्हें कहता है कि मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है।

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2. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है। जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. जूते उस जमाने में कितने रुपये के मिलते होंगे ?
2. लेखक क्यों कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं ?
3. लेखक को कौन-सी विडंबना चुभ रही है और क्यों ?
उत्तर :
1. जूते उस जमाने में पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे।
2. जूते हमेशा टोपियों से कीमती रहे हैं। एक जोड़ी जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ सकती हैं। इसलिए लेखक कहता है कि एक जूते पर पच्चीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
3. लेखक जब प्रेमचंद का फटा जूता देखता है तो उसे यह विडंबना लगती है। उसे लगता है कि प्रेमचंद भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। इसलिए वह फटा जूता पहने हुए है। लेखक की यही विडंबना चुभ रही है।

3. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती पर अँगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा ज़मीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित है। मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. कौन और कैसे लहूलुहान हो जाता है ?
2. ‘हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।’ आशय स्पष्ट कीजिए।
3. लेखक का जूता कैसा है ?
4. गद्यांश किस शैली का है ? अपना विचार लिखिए।
उत्तर :
1. लेखक के जूते का तला घिस गया है, जिस कारण उसका अँगूठा ज़मीन से घिसता है और कभी-कभी पैनी मिट्टी से रगड़ खाकर लहुलूहान
हो जाता है।
2. यहाँ परदे से आशय दिखावे की प्रवृत्ति से है। अंदर से इनसान चाहे कितना भी कमज़ोर या गरीब हो, वह बाहर से स्वयं को बलशाली और अमीर दिखाना चाहता है।
3. लेखक का जूता फटा हुआ है।
4. यह गद्यांश व्यंग्यात्मक शैली का है। इसमें लेखक ने प्रेमचंद और खुद के फटे जूते के बहाने समाज में व्याप्त दिखावे और आत्म-प्रदर्शन की प्रवृत्ति पर कड़ा प्रहार किया है।

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4. तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमज़ोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमज़ोरी ? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति भी !

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न :
1. होरी की क्या कमज़ोरी थी ?
2. होरी को उसकी कमज़ोरी कैसे ले डूबी ?
3. प्रेमचंद के लिए ‘नेम-धरम’ क्या और क्यों था ?
4. ‘नेम धरम’ उसकी भी जंज़ीर थी। आशय स्पष्ट कीजिए।
5. होरी कौन था जिसका उल्लेख किया गया है ?
उत्तर :
1. ‘नेम – धरम’ होरी की कमज़ोरी थी।
2. सामाजिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधे रहने के कारण होरी को सारा जीवन ग़रीबी में व्यतीत करते हुए बिताना पड़ा और अंत में अभावों से लड़ता हुआ मर गया।
3. प्रेमचंद के लिए अपने नैतिक मूल्यों का पालन करना तथा सामाजिक मर्यादाओं के अनुसार जीवन-यापन करना बंधन न होकर मुक्ति थी। यह सब उन्हें अच्छा लगता था।
4. वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक मर्यादाओं के बंधनों में बँधकर जीवन व्यतीत करता था।

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5. होरी मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ का नायक था जिसका दीन-हीन जीवन प्रेमचंद से मिलता-जुलता था। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो – मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अँगुली को ढाँकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर –

प्रश्न :
1. प्रेमचंद किन पर और क्यों हँस रहे हैं ?
2. ‘टीले को बरकाकर बाजू से निकलने से क्या तात्पर्य है ?
3. प्रेमचंद ने यह क्यों कहा कि मैं चलता रहा ?
4. प्रेमचंद को यह चिंता क्यों है कि तुम चलोगे कैसे?
5. लेखक के भाव किस प्रकार के हैं ?
उत्तर :
1. प्रेमचंद उन सब पर हँस रहे हैं जो अपनी कमजोरियाँ छिपाते हैं तथा दिखावा करते हैं। इस प्रकार ये लोग अपना ही नुकसान करते हैं। ये लोग अँगुली ढाँकने की चिंता में अपना तलुआ घिसा देते हैं।
2. इस कथन के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आज समाज में हम लोग समस्याओं को अनदेखा करते हैं। उनका कोई हल नहीं निकालते हैं। हम समझौतावादी बनकर उनसे बच निकलते हैं।
3. प्रेमचंद ने यह इसलिए कहा है कि वे समस्याओं से जूझते रहे हैं तथा जमाने को ठोकरें मारकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे हैं। उन्होंने कभी किसी प्रकार का दिखावा नहीं किया। वे जिस हाल में रहे, सदा सहज भाव से निरंतर आगे ही बढ़ते रहे।
4. प्रेमचंद को यह चिंता इसलिए है कि आजकल लोग आडंबर अधिक करते हैं। अपनी प्रदर्शनप्रियता के कारण वे जीवन में संघर्ष करने के स्थान पर निरंतर समझौते करते चलते हैं। इस कारण वे अपने लक्ष्य तक भी नहीं पहुँच पाते।
5. लेखक के भाव व्यंग्य से भरे हैं जिनमें पीड़ा के भाव छिपे हुए हैं।

प्रेमचंद के फटे जूते Summary in Hindi

लेखक परिचय :

जीवन परिचय – हिंदी के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का जन्म 22 अगस्त सन् 1922 ई० को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई थी। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। आपने कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य किया परंतु बार-बार स्थानांतरणों से तंग आकर अध्यापन कार्य छोड़ स्वतंत्र लेखन कार्य करने का निर्णय किया।

परसाई जी जबलपुर में बस गए और वहीं से कई वर्षों तक ‘वसुधा’ नामक पत्रिका निकालते रहे। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें यह पत्रिका बंद करनी पड़ी। परसाई जी की रचनाएँ प्रमुख पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1984 ई० में ‘साहित्य अकादमी’ ने इन्हें इनकी पुस्तक ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ के लिए पुरस्कृत किया था। मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग ने इन्हें इक्कीस हजार रुपए का पुरस्कार प्रदान किया, जिसे वहाँ के मुख्यमंत्री ने स्वयं इनके घर जबलपुर आकर दिया। इन्हें बीस हजार रुपए के ‘चकल्लस पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। परसाई जी प्रगतिशील लेखक संघ के प्रधान भी रहे।

हिंदी व्यंग्य लेखन को सम्मानित स्थान दिलाने में परसाई जी का महत्वपूर्ण योगदान है। सन् 1995 ई० में इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ – परसाई जी का व्यंग्य हिंदी साहित्य में अनूठा है। सुप्रसिद्ध पत्रिका ‘सारिका’ में इनका स्तंभ ‘तुलसीदास चंदन घिसे’ अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इन सामाजिक विकृतियों को इन्होंने सदा ही अपने पैने व्यंग्य का विषय बनाया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित है –

कहानियाँ – ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाकवाले लोग’, ‘माटी कहे कुम्हार से’।

उपन्यास – ‘रानी नागफनी की कहानी’ तथा ‘तट की खोज’।

निबंध संग्रह – ‘ तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेइमानी की परत’, ‘पगडंडियों का जमाना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘शिकायत मुझे भी है’, ‘ठिठुरता हुआ गणतंत्र’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘निठल्ले की डायरी’।

भाषा-शैली – परसाई जी की भाषा अत्यंत व्यावहारिक तथा सहज है किंतु इनके व्यंग्य – बाण बहुत तीखे हैं। ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ लेख में लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी तथा एक लेखक की फटेहाली का यथार्थ अंकन किया है। लेखक ने उपहास, आग्रह, आनुपातिक, प्रवर्तक जैसे तत्सम शब्दों के साथ-साथ फ़ोटो, केनवस, पोशाक, अहसास, क्लिक, ट्रेजडी, बरकरार जैसे विदेशी तथा पन्हैया, पतरी जैसे देशज शब्दों का प्रयोग भी किया है। हौसले पस्त होना, चक्कर काटना आदि मुहावरों के प्रयोग से भाषा में पैनापन आ गया है।

लेखक की शैली व्यंग्यात्मक है, जिसमें कहीं-कहीं चित्रात्मकता के भी दर्शन हो जाते हैं, जैसे प्रेमचंद के व्यक्तित्व का यह शब्द – चित्र उनके रूप को स्पष्ट कर देता है – ‘सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं।’ इस प्रकार इनकी भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा होते हुए भी किसी भी स्थिति पर कटाक्ष करने में सक्षम है –

लेखक की नजर में लोग फ़ोटो के लिए क्या क्या करते हैं? - lekhak kee najar mein log foto ke lie kya kya karate hain?

पाठ का सार :

हरिशंकर परसाई ने ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में प्रेमचंद की सादगी का वर्णन करते हुए समाज में व्याप्त दिखावे की प्रवृत्ति कर कटाक्ष किया है। लेखक प्रेमचंद और उनकी पत्नी का फोटो देखकर सोचता है कि यदि प्रेमचंद की फोटो खिंचाने की पोशाक सिर पर मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती, केनवस के जूते और बाएँ जूते के बड़े से छेद में से बाहर निकलती हुई अँगुली है तो, उनकी आम पहनने की पोशाक कैसी होगी ?

लेखक को हैरानी होती है कि क्या प्रेमचंद को फोटो खिंचवाते समय यह पता नहीं था कि उनका जूता फटा हुआ है जिसमें से अँगुली बाहर दिखाई दे रही है ? उन्हें इस पर न लज्जा आई, न संकोच हुआ। वे यदि धोती को जरा नीचे खींच लेते तो अँगुली ढक सकती थी। फोटो खिंचवाते समय इनके चेहरे पर बेपरवाही और बहुत विश्वास दिखाई देता है। इनके चेहरे पर एक अधूरी मुस्कान है जो किसी का उपहास करती प्रतीत होती है।

लेखक सोचता है कि यह कैसा आदमी है जो फटे हुए जूते पहनकर फोटो खिंचवा रहा है और किसी पर हँस भी रहा है। इसे ठीक जूते पहनकर फोटो खिंचवानी चाहिए थी। लगता है कि पत्नी के आग्रह पर जैसा वह था, वैसे ही फोटो खिंचवाने चल पड़ा होगा। उसे इस बात का दुख है कि इस आदमी के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छा जूता न था। उसे लगता है कि प्रेमचंद फोटो का महत्व नहीं समझते, नहीं तो किसी से जूते माँगकर ही फोटो खिंचवाते। लोग माँगे के कोट से वर दिखाई देते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। प्रेमचंद के समय में टोपी आठ आने में और जूते पाँच रुपए में मिल जाते होंगे।

अब तो एक जूते की कीमत में पच्चीसों टोपियाँ आ जाती हैं। प्रेमचंद जैसे कथाकार, उपन्यास सम्राट्, युग प्रवर्तक को फोटो में फटे जूते पहने देखकर लेखक बहुत दुखी है। लेखक का अपना जूता भी कोई खास अच्छा नहीं है। वह ऊपर से अच्छा है परंतु उसके अँगूठे के नीचे का तला घिस गया है। प्रेमचंद के जूते से अँगुली बाहर निकली हुई थी परंतु लेखक का पंजा नीचे से घिस रहा है। उसे अपनी अँगुली ढके होने का लाभ यह है कि उसके जूते के फटे हुए तले का किसी को पता नहीं चलता, क्योंकि वह परदे में है।

प्रेमचंद फटा जूता ठाठ से पहनते हैं पर लेखक को ऐसा करने में संकोच का अनुभव होता है। वह आजीवन ऐसा फोटो नहीं खिंचवाएगा। प्रेमचंद की मुसकान उसे चुभती हुई लगती है। वह सोचता है कि इस मुसकान का अर्थ यह तो नहीं है कि होरी का गोदान हो गया अथवा पूस की रात में नीलगाय हल्कू का खेत चर गईं या डॉक्टर के न आने से सुजान भगत का लड़का मर गया। उसे लगता है कि जब माधो औरत के कफ़न के चंदे से शराब पी गया था तो यह उस समय की मुसकान है।

लेखक फिर से प्रेमचंद के फटे जूते को देखकर सोचता है कि शायद बनिए के तगादे से बचने के लिए मील- दो-मील का चक्कर लगाकर घर लौटने के कारण इनके जूते फट गए थे। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया होगा तो उन्हें कहना पड़ा- ‘आवत जात पन्हैया घिस गई बिसर गयो हरि नाम।’

जूता तो चलने से घिसता या फटता नहीं, तो तुम्हारा जूता कैसे फटा ? लेखक को लगता है कि प्रेमचंद किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे होंगे जिससे उनका जूता फट गया होगा। वे उस सख्त चीज़ को ठोकर मारे बिना भी निकल सकते थे, जैसे नदियाँ पहाड़ फोड़ने के स्थान पर रास्ता बदलकर घूम कर चली जाती हैं। प्रेमचंद समझौतावादी नहीं थे। इसलिए उनके पाँव की अँगुली उस ओर संकेत करती हुई लगती है कि जो घृणित है, उसकी ओर हाथ की नहीं पाँव की अँगुली से तुम इशारा करते हो।

वास्तव में तुम उन सब पर हँसते हो जो अँगुली छिपाते हैं और तलुआ घिसते हैं, जो समझौतावादी हैं। प्रेमचंद ने तो अँगुली जूते को फाड़कर बाहर निकाल ली पर पाँव तो बचा लिया था, परंतु जो तलुवे घिस रहे हैं उनका तो पाँव ही घिस जाएगा। वे चलेंगे कैसे ? लेखक प्रेमचंद के फटे जूते और अँगुली के इशारे को समझ रहा है और उनकी व्यंग्य-भरी मुसकान का अर्थ भी जानता है।

लेखक की नजर में लोग फोटो के लिए क्या क्या करते हैं?

Answer. Answer: लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।

प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के फोटो में प्रेमचंद कैसे नजर आ रहे हैं?

उत्तर : फोटो में प्रेमचंद अत्यंत साधारण-सी वेषभूषा में नजर आ रहे थे। उनके साथ में उनकी पत्नी थी। वे कुर्ता-धोती पहने, सिर पर टोपी लगाए थे। पाँवों में कैनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते थे, जिनकी लोहे की पतरी गायब थी।

जो लोग फोटो का महत्व समझते हैं लेखक के अनुसार वे क्या करते हैं?

समझते होते, तो किसी से फोटो खिचाने के लिए जूते माँग लेते। लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैंफोटो ञखचाने के लिए बीवी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते।

प्रेमचन्द की फोटो में उनके जूते देखकर लेखक क्या सोचने लगता है?

व्याख्यात्मक हल:.
प्रेमचंद जैसे साहित्यकार की फोटो में उनके फटे जूते देखकर परसाई जी का मन रोने को करता है। उन्हें प्रेमचन्द जैसे महान साहित्यकार की बदहाली से बहुत दुःख होता है।.
उनवेळ पास विशेष अवसरों पर पहनने के लिए भी अच्छे कपड़े और जूते नहीं थे। उनकी आर्थिक दुरावस्था की कल्पना से लेखक बहुत अधिक दुःखी हो रहे थे।.