मच्छर के कितने आंख होते हैं - machchhar ke kitane aankh hote hain

नई दिल्ली, जेएनएन। बरसात के दिनों में मच्छर के काटने से होने वाली बीमारियों का खतरा बहुत बढ़ जाता है।इस मौसम में मच्छर के काटने से सबसे ज्यादा मौतें होती हैं। इनमें कुछ ही ऐसे मच्छर होते हैं, जो इंसानों को काटते हैं और उनसे इंसानों को खतरा है। आज जानते हैं मच्छरों की लाइफ कितनी लंबी होती है और कौन-कौन से मच्छर इंसानों के लिए खतरनाक होते हैं।

कितना जीते हैं मच्छर?

अगर मच्छरों की जिंदगी की बात करें तो मच्छर 2 महीने से ज्यादा दिन तक जीवित नहीं रह पाते हैं। वहीं मादा मच्छर, नर मच्छर के मुकाबले काफी ज्यादा दिनों तक जीता है। अगर नर मच्छरों की लाइफ के बारे में बात करें तो वो दिन ही जीवित रह पाते हैं और मादा मच्छर 6 से 8 हफ्तों तक जिंदा रहता है। दरअसल मादा मच्छर हर तीन दिन में अंडे देते हैं और मादा मच्छर करीब 2 महीने तक जीवित रह सकते हैं।

कौन से मच्छरों से है खतरा?

अगर इंसानों को सबसे ज्यादा खतरा है तो वो मादा मच्छरों से हैं, क्योंकि मादा मच्छर ही इंसान का खून चूसते हैं। वहीं नर मच्छर तो पेड़-पौधों के रस से काम चला लेते हैं। दरअसल मादा मच्छरों को अंडे देने के लिए खून की आवश्यकता होती है और एक मच्छर 500 से अधिक अंडे देता है। बता दें कि डेंगू जैसी गंभीर बीमारियां भी मादा मच्छरों को काटने से होती है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में मच्छरों की करीब 3 हजार 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन इनमें से ज़्यादातर नस्लें इसानों को बिल्कुल परेशान नहीं करतीं। ये वो मच्छर हैं जो सिर्फ फलों और पौधों के रस पर जिंदा रहते हैं। 

मच्छर एक हानिकारक कीट है। यह संसार के प्राय सभी भागो में पाया जाता है। यह विभिन्न प्रकार के रोंगो के जीवाणुओं को वहन करता है। मच्छर गड्ढ़े, तालाबों, नहरों तथा स्थिर जल के जलाशयों के निकट अंधेरी और नम जगहों पर रहता है। मच्छर एकलिंगी जन्तु हैं यानी नर और मादा मच्छर का शरीर अलग-अलग होते हैं। सिर्फ मादा मच्छर ही मनुष्य या अन्य जन्तुओं के रक्त चूसती है, जबकि नर मच्छर पेड़-पौधों का रस चूसते हैं। {{मलेरिया}

मच्छरों के काटने से प्रेरित होकर पेनलेस इंजेक्शन की शोध[संपादित करें]

ऑहियो स्टेट यूनिवर्सिटी एवं इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रोपड़ के शोधकर्ताओं देव गुरेरा, भारत भूषण एवं नवीन कुमार की सांझी खोज के अनुसार, मच्छर का भेदन दर्दरहित होता है क्यूंकि वह सर्वप्रथम त्वचा पर एक तरह से सुन्न करने वाले तरल का छिड़काव करता है ताकि नुकीले डंक से त्वचा को भेद सके जिसका उपयोग कई मिनट तक हमें बिना एहसास कराये हमारा खून चूसने में करता है। शोध में प्रमुख चार युक्तियों की पहचान की गई कि कैसे एक मच्छर शरीर को बिना दर्द के भेदता है - सुन्न करने वाले तरल सीरम का छिड़काव, एक नुकीली सुई; भेदी के दौरान कंपन एवं त्वचा पर मुलायम और कठिन भागों का संयोजन। इन्ही निष्कर्षों के आधार पर, अध्ययन पत्र में एक ऐसी सूक्ष्म सुई की तैयारियों पर विश्लेषण किया गया है जिसके अंदर दो सुइयों शामिल हैं। जहां एक का उपयोग सुन्न करने वाले तरल को छोड़ने को छोड़ने के लिए जबकि दूसरे का उपयोग महत्वपूर्ण तरल पदार्थ को इंजेक्ट करने या रक्त को दर्द रहित तरीके से निकालने के लिए किया जाएगा। सुई मच्छर भेदन के समान कंपन भी करेगी। [1] [2]

आंखें और दृष्टि, विकास और विशिष्टीकरण का ज़बर्दस्त चमत्कार हैं। अंधकार और प्रकाश के प्रति संवेदनशील कोशिकाएं लेंस द्वारा संकेंद्रित छवियां बनाने के लिए परिष्कृत की गर्इं। प्रकाश-संवेदी कोशिकाओं से मिलकर परदे बने। ये परदे और कुछ नहीं, बेजोड़ संवेदनशीलता और रंग भेद करने वाले ग्राहियों की जमावट हैं। उसके बाद आता है प्रोसेसिंग का कार्य ताकि इस तंत्र द्वारा एकत्रित सूचना से कुछ मतलब निकाला जा सके।   


जंतु एक कदम आगे बढ़े हैं और उनके पास दो आंखें होती हैं। इससे उनको गहराई की अनुभूति करने में मदद मिलती है। संधिपाद प्राणियों या बाह्र कंकाल वाले प्राणियों (आर्थोपोड्स) में इस विशेषता की इंतहा हो जाती है। उनमें एक जोड़ी संयुक्त आंखें होती हैं। या यों कहें कि जोड़ी की प्रत्येक आंख हज़ारों इकाइयों में विभाजित होती है जिससे दृश्य पटल काफी विस्तृत हो जाता है।
टेक्नॉलॉजी ने प्रकाश संवेदना का उपयोग कैमरे के रूप में किया है। कैमरे के लेंस और अधिक विशिष्ट हो गए हैं। और रेटिना का स्थान फोटो फिल्म के सूक्ष्म कणों या कैमरा स्क्रीन के पिक्सेल ने ले लिया है। संयुक्त नेत्र की नकल करते हुए, वैज्ञानिकों ने पोलीमर शीट्स पर लेंस का ताना-बाना विकसित किया है। इसे एक अर्धगोलाकार रूप दिया जा सकता है। ये लेंस सिलिकॉन फोटो-डिटेक्टर के एक ताने-बाने पर अलग-अलग छवियां छोड़ते हैं। 180 ऐसे सक्रिय लेंस वाले 2 से.मी. से भी छोटे एक उपकरण से और बढ़िया काम की उम्मीद जगी थी। लेकिन प्रकृति में मौजूद आंखों के नैनोमीटर स्तर के खंडों की नकल उतारना और ऐसे खंडों की पर्याप्त संख्या बनाकर एक बड़ी संयुक्त आंख तैयार करना पहुंच से बाहर साबित हुआ है।
अमेरिकन केमिकल सोसाइटी के जर्नल एसीएस एप्लाइड मटेरियल्स एंड इंटरफेसेस में जॉन हॉपकिंस युनिवर्सिटी के डोंगली शिन, तियानज़ू हुआंग, डेनिस नीब्लूम, माइकल ए. बेवन और जोएल फ्रेशेट ने एक विधि का विवरण दिया है जिसकी मदद से इन बाधाओं से पार पाया जा सकता है। सूक्ष्म घटकों के स्तर पर काम करने की बजाय जोएल फ्रेशेट की टीम ने नैनोमीटर आकार की तेल की बूंदों का उपयोग लेंस के रूप में किया है। इनको तेल की एक और बूंद पर एक परत के रूप में जमा किया गया ताकि यह एक लचीली कृत्रिम संयुक्त आंख के रूप में काम कर सके।
बाल्टिमोर के इस समूह ने मच्छर की आंख के मॉडल का उपयोग किया है। पेपर के अनुसार मच्छर की आंख के प्रकाशीय और सतह के गुणों ने टीम के लिए प्रेरणा स्रोत का काम किया। सूक्ष्म-लेंस के नैनो स्तर गुणधर्म एंटीफॉगिंग और एंटीरेफ्लेक्टिव गुण प्रदान करते हैं। लेंस की फोकस दूरी बहुत कम है, इसलिए सभी वस्तुएं फोकस में रहती हैं। सूक्ष्म लेंसों की गोलार्ध में जमावट चारों ओर से छवियों को पकड़ती है। मस्तिष्क इन्हें एकीकृत करता है। इसकी मदद से आंख को बगैर हिलाए-डुलाए आंखों की परिधि पर स्थित वस्तुएं भी देखी जा सकती हैं।
इस छोटी संयुक्त आंख की विशेषता यह है कि इसकी इकाइयां कम विभेदन वाली और काफी किफायती होती हैं। यह मस्तिष्क को भोजन की तलाश या खतरे को भांपने में कुशल बनाता है, जबकि गंध जैसी अन्य इंद्रियां बारीकियों का ख्याल रखती हैं। एएससी की एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार “संयुक्त आंख की सरलता और बहु-सक्षमता उन्हें दृष्टि की सूक्ष्म प्रणालियों के काबिल बनाती हैं जिसका उपयोग ड्रोन या रोबोट में किया जा सकता है।”  

पेपर के अनुसार इस संरचना की नकल करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। पूरा ध्यान लचीले धरातल पर कृत्रिम लेंसों को जमाकर इस संरचना की नकल करने पर रहा है, किंतु वास्तविक आंख की सूक्ष्मस्तरीय विशेषताएं भी नदारद रहीं और कृत्रिम संयुक्त नेत्र में एक साथ कई लेंसों के निर्माण की विधि भी। वर्तमान कार्य में, टीम ने इस चुनौती को बूंद-रूपी नैनो कणों में निहित वक्रता से संभाला। यह एक ऐसी संरचना है जिसे तरल कंचा कहते हैं।
तरल कंचा वास्तव में एक बूंद है जिस पर एक ऐसी सामग्री का लेप किया जाता है जो तरल पदार्थ को अन्य सामग्रियों से अलग रखता है। सामान्यत: पानी की गोलाकार बूंद कांच की शीट पर रखने पर फैल जाती है। अलबत्ता, कांच की शीट पर ग्रीस लगाकर इसे रोका जा सकता है। एक अन्य तरीका यह है कि बूंद पर ऐसी सामग्री का लेप किया जाए कि अंदर का तरल पदार्थ कांच के संपर्क में न आए। इस तरह से बूंद एक लचीली वस्तु होगी जो कंचे की तरह गोल बनी रहेगी। जब तेल और पानी को मिलाया जाता है तो तेल की बूंदें बन जाती हैं, लेकिन इन छोटी बूंदों को एकसार ढंग से पानी में फैलाया जा सकता है, जैसे पायस में होता है। लेकिन यदि इन बूंदों पर किसी पदार्थ का लेप करके उनको सीधे संपर्क में आने से न रोका जाए, तो ये छोटी-छोटी बूंदें आपस में जुड़कर बड़ी बूंदें बन जाएंगी।
बाल्टिमोर टीम ने तेल की नैनो बूंदें बनाने के लिए केश-नलिका उपकरण का उपयोग किया और इन बूंदों को सिलिकॉन के नैनो कणों से लेप दिया। लेप की वजह से बूंदें जुड़ी नहीं बल्कि एक नियमित, तैरते पटिए के आकार की इकहरी परत के रूप में जम गर्इं। इस तरह से एक बड़ी बूंद पर छोटी-छोटी बूंदों की एक परत बन गई। परिणामस्वरूप एक नैनोमीटर आकार के गोले पर उसी सामग्री की छोटी-छोटी बूंदों वाला एक तरल कंचा तैयार हो गया। यह संरचना ठीक संयुक्त आंख की संरचना जैसी होती है।
पेपर के अनुसार अंत में इस तरह बनी संरचना को संसाधित किया जाता है ताकि वह यांत्रिक दृष्टि से एक मज़बूत सामग्री के रूप में तैयार हो जाए। ठीक उसी तरह से जैसे एक संयुक्त आंख एक ही सामग्री के कई सारे लेंस से मिलकर बनी होती है।  

 यह प्रक्रिया निर्माण की पारंपरिक चुनौतियों से बचते हुए मच्छर की आंख के प्रकाशीय और एंटीफॉगिंग गुणों की नकल करती है। इस पेपर के अनुसार इस प्रक्रिया से तरल कंचा लेंस की आकृति में फेरबदल संभव हो जाता है। इसके चलते अन्य किस्म के लेंस भी बनाए जा सकेंगे। इस पेपर के अनुसार “इस प्रक्रिया का और विकास करके चिकित्सकीय इमेजिंग, टोही उपकरणों और रोबोटिक्स के क्षेत्र में लघुकरण को बढ़ावा मिलेगा।” (स्रोत फीचर्स)

मच्छर के कितनी आंखें होती है?

उनमें एक जोड़ी संयुक्त आंखें होती हैं।

मच्छर के मुंह में दांत कितने होते हैं?

दरअसल मच्छर अपने 47 दांतों की मदद से अपने शिकार पर अटैक करता है। किसी व्यक्ति का खून चूसते समय मच्छर इतनी तेज से अपने दांतों का इस्तेमाल करता है कि व्यक्ति की खाल में छेद हो जाता है। मच्छर के मुंह को प्रोबोसिस कहा जाता है जिसमें 47 धारदार स्टालेट्स और दो ट्यूब्स होती हैं

मच्छर एक बार में कितना खून पीता है?

एशियाई मच्‍छर एक बार में 0.005 मिलीलीटर खून पी सकती है. ये मात्रा सरसों के एक दाने जितनी है.

एक मच्छर 1 दिन में कितने अंडे देता है?

यह मच्छरों की प्रजाति पर निर्भर करता है, मच्छर की एक प्रजाति एक दिन में 200 अंडे तक दे सकती है।

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