मंगल पांडे की मृत्यु कैसे हुई थी? - mangal paande kee mrtyu kaise huee thee?

मंगल पाण्डेयजन्ममृत्युव्यवसायप्रसिद्धि कारणधार्मिक मान्यता
नगवा, बलिया, भारत
8 अप्रैल 1857
बैरकपुर, भारत
बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इन्फैण्ट्री की ३४वीं रेजीमेण्ट में सिपाही
भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी
हिन्दू

मंगल पाण्डेय ने इसी एन्फील्ड राइफल का प्रयोग २९ मार्च १८५७ को बैरकपुर छावनी में किया था

मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें बागी करार दिया जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के नायक के रूप में सम्मान देता है। भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को लेकर भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में सन् 1984 में एक डाक टिकट जारी किया गया। तथा मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी मिले कारतूस को मुँह से काटने से मना कर दिया था,फलस्वरूप उन्हे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई|

जीवन परिचय

मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में एक "ब्राह्मण" परिवार में हुआ था।[1][2][3]इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। " ब्राह्मण" होने के कारण मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना मे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की ३४वी बटालियन मे भर्ती किये गए, जिसमें ज्यादा संख्या मे ब्राह्मणो को भर्ती की जाती थी।

1857 का विद्रोह

विद्रोह का प्रारम्भ एक बंदूक की वजह से हुआ। सिपाहियों को पैटऱ्न १८५३ एनफ़ील्ड बंदूक दी गयीं जो कि ०.५७७ कैलीबर की बंदूक थी तथा पुरानी और कई दशकों से उपयोग में लायी जा रही ब्राउन बैस के मुकाबले में शक्तिशाली और अचूक थी। नयी बंदूक में गोली दागने की आधुनिक प्रणाली (प्रिकशन कैप) का प्रयोग किया गया था परन्तु बंदूक में गोली भरने की प्रक्रिया पुरानी थी। नयी एनफ़ील्ड बंदूक भरने के लिये कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है।

२९ मार्च १८५७ को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पाण्डेय जो दुगवा रहीमपुर(फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेण्ट बाग पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल जान हेएरसेये के अनुसार मंगल पाण्डेय किसी प्रकार के धार्मिक पागलपन में थे जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडेय को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। मंगल पाण्डेय ने अपने साथियों को खुलेआम विद्रोह करने के लिये कहा पर किसी के ना मानने पर उन्होने अपनी बंदूक से अपनी प्राण लेने का प्रयास किया। परन्तु वे इस प्रयास में केवल घायल हुये। ६ अप्रैल १८५७ को मंगल पाण्डेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और ८ अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।

विद्रोह का परिणाम

सन् १८५७ के सैनिक विद्रोह की एक झलक

मंगल पांडे द्वारा लगायी गयी विद्रोह की यह चिंगारी बुझी नहीं। एक महीने बाद ही १० मई सन् १८५७ को मेरठ की छावनी में कोतवाल धनसिंह गुर्जर के नेतृत्व में बगावत हो गयी। ओर गुर्जर धनसिंह कोतवाल इस के जनक के रूप में सामने आए यह विप्लव देखते ही देखते पूरे उत्तरी भारत में फैल गया जिससे अंग्रेजों को स्पष्ट संदेश मिल गया कि अब भारत पर राज्य करना उतना आसान नहीं है जितना वे समझ रहे थे। इसके बाद ही हिन्दुस्तान में चौंतीस हजार सात सौ पैंतीस अंग्रेजी कानून यहाँ की जनता पर लागू किये गये ताकि मंगल पाण्डेय सरीखा कोई सैनिक दोबारा भारतीय शासकों के विरुद्ध बगावत न कर सके।[4]

सन्दर्भ

  1. Mangal Pandey: True Story of an Indian Revolutionary, 2005, Rupa & Co. Mumbai
  2. "Mangal Pandey | Biography & Facts". Encyclopedia Britannica (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2021-07-20.
  3. "Mangal Pandey". www.liveindia.com. अभिगमन तिथि 2021-07-20.
  4. Indian Army Chief's. Prabhat Prakashan. मूल से 27 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 दिसंबर 2017.

बाहरी कड़ियाँ

  • गदर के पुरोधा[मृत कड़ियाँ] (अमर उजाला)

मंगल पांडे को क्यों मारा गया था?

Indian Rebellion of 1857: स्‍वाधीनता सेनानी मंगल पांडे ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोला था. 29 मार्च 1957 को मंगल पांडे ने दांत से काटने वाले कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया था, जिसके चलते उन्हें सेना से निकाल दिया गया था.

मंगल पांडे की मृत्यु कैसे होती है?

मंगल पांडे को दी गई फाँसी सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडे को इसके लिए मौत की सज़ा सुनाई गई और 8 अप्रैल, 1857 को सुबह साढ़े पाँच बजे उनके सैनिक साथियों के सामने उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया.

मंगल पांडे की मृत्यु कब और कहां हुई?

उनकी आजादी की चिंगारी भर ने ब्रिटिश हुकूमत को इतना डरा दिया कि निश्चित तारीख से दस दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। क्रांतिकारी मंगल पांडेय का जन्म बलिया के निकट नगवा गांव में 19 जुलाई 1827 को सरयुपारी ब्राह्मण के घर हुआ था।

मुंगी पांडे को फांसी क्यों दी गई थी?

लेकिन, गोली पसली से लगकर फिसलने से वो घायल हो गए और अंग्रेज़ों की गिरफ्त में आ गए. फिर भी न तो उन्होंने क्रांति की योजना के बारे में अंग्रेज़ों को कुछ बताया और न ही अपने साथियों के. उन्हें बगावत का दोषी कहकर अंग्रेज़ों ने फांसी की सज़ा दे दी.

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