महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को असहयोग आंदोलन खत्म होने के बाद देश द्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया. (तस्वीर: Wikimedia Commons)
18 मार्च 1922 को महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) के लिए अंग्रेजों ने देशद्रोह के आरोप में 6 साल के कारावास की सजा दी थी.
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- Last Updated : March 18, 2021, 06:47 IST
भारत के इतिहास (Indian History) में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की भूमिका केवल देश को आजादी दिलाने में ही नहीं थी. 20वीं सदी के शुरुआती दशकों में गांधी जी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत थे. 1919 में उन्होंने अंग्रेजों के रोलैट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement) शुरू किया. हिंसा का रूप मिलने पर गांधी जी ने इस आंदोलन को तो खत्म कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके उन पर देशद्रोह (Treason) का मुकदमा चलाया था. 18 मार्च 1922 को ही उन्हें इसके लिए छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी.
एक कानून से शुरू हुआ विरोध
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही अंग्रेजों ने भारत में प्रेस पर पाबंदी लगा दी थी. किसी को भी बिना जांच के कारावास की अनुमित दे दी गई थी. भारत के बहुत से लोगों ने अंग्रेजों का विश्वयुद्ध में साथ दिया था. लेकिन अंग्रेजों ने वही प्रावधान रोलैट एक्ट के जरिए भारत में हमेशा के लिए लागू करने की तैयारी शुरू कर दी
जिससे पूरे देश में रोष फैल गया था.
एक्ट पारित होते ही शुरू हो गया था विरोध
मार्च 1919 में जब अंग्रेजों ने रोलैट एक्ट पारित किया गया तो गांधी जी के नेतृत्व मे देश भर में लोगों ने इस दमनकारी कानून के खिलाफत शुरू कर दी. 19 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश भर गया. इसके बाद देशव्यापी असहयोग आंदोलन शुरू करने की तैयारी होने लगी.
असहयोग आंदोलन
जल्द ही अंग्रेजों के खिलाफ यह विरोध एक आंदोलन का स्वरूप बन देश भर में फैलने लगा. इस आंदोलन की पूरी योजना बनाई गई. यह भी तय किया गया है विरोध किस तरह से जताया जाएगा. छात्रों ने
स्कूल और कॉलेज जाने से इनकार कर दिया. देश भर में हड़तालें शुरू हो गईं. इसमें शहरी ग्रामीण, मजदूर, किसान सभी ने भाग लिया था. हर जगह और हर वर्ग में असहयोग का अलग स्वरूप दिखाई था, वह अंग्रेजी शासन के ही खिलाफ रहा था.
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चौरी चौरा कांड
इस
आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया था. फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में किसानों के समूह ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी. इसमें कई पुलिस कर्मी मारे गए. गांधी इस घटना से बहुत दुखी हुए और आंदोलन के इस हिंसात्म स्वरूप को सिरे से खारिज कर आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर दी. उन्होंने कहा कि किसी भी आंदोलन की सफलता की नींव हिंसा पर नहीं रखी जा सकती.
गिरफ्तारी और सजा
असहयोग आंदोलन खत्म होते है जैसे अंग्रेजों को मौका मिल गया. 10 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ़्तार किया गया. कई लोगों को हैरानी होती है, लेकिन अंग्रेजों
ने गांधी जी के देशद्रोह का आधार यंग इंडिया में प्रकाशित उनके तीन लेखों को बनाया था. उनके मुकदमे की सुनवाई कर रह न्यायाधीश ब्रूम फील्ड ने 18 मार्च 1922 को गांधी जी को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई.
21 साल बाद लिया जा सका था जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला
आंदोलन के दौरान अंग्रेज गांधी जी को गिरफ्तार करने से डर रहे थे. लेकिन जब बापू ने आंदोलन खत्म किया तो बहुत से लोग यहां तक कई कांग्रेसियों ने भी इसका विरोध किया. अंग्रेजों को यही मौका बढ़िया लगा और उन्होंने गांधी जी को गिरफ्तार किया. दो साल जेल में रहते हुए गांधी की तबियत खराब रहने लगी और उन्हें गांधी जी को रिहा करना पडा.undefined
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Tags: History, Mahatma gandhi, Research
FIRST PUBLISHED : March 18, 2021, 06:47 IST
अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 2 अक्टूबर को जयंती है. इस बार यह गांधी की 149 वीं जयंती है. गांधी जयंती के दिन उनके सम्मान में विश्व अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है. गांधी का देश की आजादी के आंदोलन में योगदान सर्वोपरि है. ऐतिहासिक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी गाथा लिखी जाएगी उसमें राष्ट्रपिता गांधी का नाम पहली पंक्ति में होगा.
नई दिल्ली: अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 2 अक्टूबर को जयंती है. इस बार यह गांधी की 149 वीं जयंती है. गांधी जयंती के दिन उनके सम्मान में विश्व अहिंसा दिवस भी मनाया जाता है. गांधी का देश की आजादी के आंदोलन में योगदान सर्वोपरि है. ऐतिहासिक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी गाथा लिखी जाएगी उसमें राष्ट्रपिता गांधी का नाम पहली पंक्ति में होगा.
गांधी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत अफ्रीका से 1915 में लौटकर भारत आने पर की. देश लौटते ही उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करना शुरू कर दिया. स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते गांधी जी कई बार जेल गए और सालों जेल की काल कोठरी में बंद रहे. अंग्रेजों के द्वारा दी गई यातनाओं से भी गांधी अपने संकल्प से कभी नहीं डिगे और दिन-रात भारतीय आजादी के सपने देखते रहें. इस साल 149वीं गांधी जयंती पर हम आपको बता रहे हैं अंग्रेजों से लड़ते आखिर कितनी बार गांधी जेल गए और कितने साल वो जेल में रहें.गांधी जब अफ्रीका से लौटे तो सबसे पहले वो 1917 में चंपारण में नील की खेती के अन्याय के खिलाफ लड़ रहे वहां के किसानों की लड़ाई लड़ने बिहार चले गए. चंपारण के किसानों की ओर से राजकुमार शुक्ल ने गांधी से निवेदन किया था कि वो यहां आकर किसानों को अग्रेजों के इस क्रूर कानून से मुक्ति दिलाएं. गांधी के चंपारण जाने से अंग्रेजी हुकूमत सकते में आ गई और उन्हें गिरफ्तार कर 2 महीने की सजा सुनाई गई. अगले दिन गांधी कोर्ट में पेश हुए लेकिन हजारों किसानों की भीड़ ने कोर्ट को घेर लिया. गांधी के के प्रति अथाह लोगों के समर्थन से फिरंगी शासन घबरा गई और उन्हें कुछ ही दिनों के अंदर रिहा कर दिया गया.
इसके बाद साल 1922 में गुजरात के साबरमति आश्रम के नजदीक गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया. इस बार गांधी की गिरफ्तारी यंग इंडिया नामक एक जर्नल में अंग्रेज सरकार के खिलाफ लेख लिखने के कारण हुई. उन्हें इस जुर्म में 6 साल की सजा सुनाई गई, लेकिन 6 साल से पहले ही उन्हें जेल रिहा कर दिया गया. वो 12 जनवरी, 1924 को जेल से छोड़ दिए गए. चंपारण सत्याग्रह के बाद गांधी का दूसरा बड़ा कदम था नमक सत्याग्रह. अत्याचारी नमक कानून के खिलाफ गांधी ने आवाज बुलंद की. उन्होंने नमक कानून को खत्म करने के लिए साबरमति आश्रम से डांडी यात्रा निकाली. डांडी के समुद्र तट पर पहुंचने के बाद गांधी ने अपने हाथों से नमक उठा इस कानून को भंग किया था. गांधी के इस कदम से फिरंगी हुकूमत तिलमिला उठी. उसने गांधी को गिरफ्तार कर लिया. इस गिरफ्तारी के बाद महात्मा गांधी को 8 महीने से अधिक समय तक जेल में बिताना पड़ा था.
दूसरे राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस से लौटने के बाद गांधी ने एक बार फिर से अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया. गांधी के निर्णय से अंग्रेजों को परेशान होना ही था और वही हुआ. महात्मा गांधी को 4 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर पुणे के येरवडा जेल में डाल दिया गया. इसी बीच अंग्रेज सरकार ने एससी- एसटी तबके के लोगों को अलग से निर्वाचन का अधिकार दे दिया. गांधी अंग्रेज सरकार के इस निर्णय से काफी आहत हुए और जेल में ही उन्होंने आमरण अनशन शुरू कर दिया. गांधी जी के इस हड़ताल का ब्रिटिश शासकों पर बड़ा असर हुआ और पूना पैक्ट के जरिए अलग निवार्चन के फैसले को बदल दिया गया. इसी दौरान उन्हें 8 मई, 1933 को जेल से रिहा कर दिया गया. साल 1993 में ही महात्मा गांधी को एक अगस्त को दुबारा गिरफ्तार किए गए और 23 अगस्त को उन्हें छोड़ दिया गया.
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1942 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ एक बार फिर तीव्र आंदोलन छेड़ दिया. 'अंग्रेजों भारत छोड़ों' नारे के साथ गांधी ने ब्रिटिश सरकार को भारत छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया. भारतीय युवाओं के जोश को गांधी ने "करो या मरो" के क्रांतिकारी नारे से परवान चढ़ा दिया था. देश का बच्चा- बच्चा अब अंग्रेजों भारत छोड़ो नारे को गीत की तरह गाने लगा था. गांधी के इस आंदोलन के चढ़ते परवान को फिरंगियों ने भांप लिया और उन्हें एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद उन्हें पुणे के आगा खान पैलेस जेल में बंद किया गया. गांधी इस बार जेल से 6 मई 1944 को निकले तब तक यह बहुत साफ हो गया था कि भारत में ब्रिटिश शासन अब महज कुछ दिनों की मेहमान है.