Last Updated on 13 January 2022, 6:50 PM IST: मकर संक्रांति (Makar Sankranti in Hindi), जिसे माघी या संक्रांति भी कहते हैं, भारत में रबी की फसलों के पकने की खुशी में मनाया जाता है। यह दिन सूर्य (देव) को समर्पित है। इस वर्ष मकर संक्रांति या पोंगल शुक्रवार, 14 जनवरी, 2022 को मनाई जाएगी। संक्रांति लंबे दिनों की शुरुआत और सर्द ऋतु का अंत भी है। इस मकर संक्रांति सभी लोक मान्यताओं से हट कर सत्य आध्यात्मिक ज्ञान को जानिए जो आपको मोक्ष प्राप्ति तथा पाप मुक्त जीवन जीने का मार्ग दर्शन करेगा। Show
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मकर संक्रांति (Makar Sankranti in Hindi) से जुड़े कुछ मुख्य बिंदु
मकर संक्रांति यानी सूर्य का दिशा बदलाव हैसूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो ज्योतिष में इस घटना को संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति (Makar Sankranti in hindi) के अवसर पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश होता है। Makar Sankranti in Hindi: मकर संक्रांति अनेकों नामों से जाना जाता हैमकर संक्रांति का त्यौहार देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, असम में माघ बिहू, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में माघी (पूर्व में लोहड़ी), उड़ीसा और तमिलनाडु में पोंगल, उत्तराखंड में मकर संक्रांति, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गोवा, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी संक्रांति, आंध्र प्रदेश में संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति (Makar Sankranti in Hindi) का आध्यात्मिक महत्वयह माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है। जो लोग संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा करते हैं उन्हें सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। धार्मिक मान्यताओं और लोकवेद के अनुसार मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का दरवाज़ा खुल जाता है। इसलिए इस दिन किया गया दान पुण्य अन्य दिनों में किए गए दान पुण्य से अधिक फलदायी होता है। (इस तथ्य का हमारे वेदों में कोई वर्णन नहीं मिलता है।)
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था। लोगों में ऐसी गलत धारणा भी फैलाई गई है कि जो व्यक्ति उत्तरायण में शुक्ल पक्ष में देह का त्याग करता है उसे मुक्ति मिल जाती है। जबकि उपरोक्त सभी बातें हमारे धर्म ग्रंथों और शास्त्रों के विपरीत मनमानी पूजा की ओर साफ़ संकेत दे रही हैं। प्रमाण देखने के लिए आगे पढ़ें। लोकमान्यतों पर आधारित है मकर संक्रांति (Makar Sankranti in Hindi)यह सभी लोक मान्यताएं तथा अंधविश्वास हमारे पंडितों/ब्राह्मणों द्वारा धनोपार्जन के लिए तथा जनता को भ्रमित करने के लिए फैलाई गईं जिन पर हमारे पूर्वजों ने अंधविश्वास इसलिए किया क्योंकि उन्हें हमारे धर्म ग्रंथों का वास्तविक ज्ञान बिल्कुल नहीं था और न ही उन्होंने स्वयं कभी शास्त्रों, वेदों का अध्ययन ही किया। तत्वज्ञान और तत्वदर्शी संत के अभाव में समाज आज इन रूढ़िवादी परंपराओं में फंसकर अपना जीवन व्यर्थ कर रहा है। ■ Read in English: Makar Sankranti: Date, Significance, Story, Meaning, Salvation ये सभी साधनाएँ शास्त्रों के विरुद्ध हैं क्योंकि जब तक जीव का जन्म-मरण समाप्त नहीं होता तो उसको मोक्ष प्राप्ति नहीं होती। ऐसे संतों की तलाश करो जो शास्त्रों के अनुसार पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब की भक्ति करते व बताते हों। फिर जैसे वे कहें केवल वही करना, अपनी मनमानी नहीं करना। मनुष्य को भक्ति धार्मिक ग्रंथों के अनुसार करनी चाहिएगीता अध्याय नं. 16 का श्लोक नं. 23
अनुवाद: जो पुरुष शास्त्र विधि को त्यागकर अपनी इच्छा से मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न परम गति को और न सुख को।
जो गुरु शास्त्रों के अनुसार भक्ति करता है और अपने अनुयाईयों अर्थात शिष्यों द्वारा करवाता है वही पूर्ण संत है। चूंकि भक्ति मार्ग का संविधान धार्मिक शास्त्र जैसे – कबीर साहेब की वाणी, नानक साहेब की वाणी, संत गरीबदास जी महाराज की वाणी, संत धर्मदास जी साहेब की वाणी, वेद, गीता, पुराण, क़ुरान, पवित्र बाईबल आदि हैं। जो भी संत शास्त्रों के अनुसार भक्ति साधना बताता है और भक्त समाज को मार्ग दर्शन करता है तो वह पूर्ण संत है अन्यथा वह भक्त समाज का घोर दुश्मन है जो शास्त्रों के विरूद्ध साधना करवा रहा है। वह भोले श्रद्धालुओं के इस अनमोल मानव जन्म के साथ खिलवाड़ कर रहा है। ऐसे नकली गुरु या संत को भगवान के दरबार में घोर नरक में उल्टा लटकाया जाएगा। उदाहरण के तौर पर जैसे कोई अध्यापक सिलेबस (पाठयक्रम) से बाहर की शिक्षा देता है तो वह उन विद्यार्थियों का दुश्मन है. इसलिए उस परमेश्वर की भक्ति करो जिससे पूर्ण मुक्ति होवे। वह परमात्मा पूर्ण ब्रह्म सतपुरुष (सत कबीर) है। इसी का प्रमाण गीता जी के अध्याय नं. 18 के श्लोक नं. 46 में है।
अनुवाद: जिस परमेश्वर से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है और जिससे यह समस्त जगत व्याप्त है, उस परमेश्वर की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परमसिद्धि अर्थात मोक्ष को प्राप्त हो जाता है। गीता अध्याय नं. 18 का श्लोक नं. 62:
अनुवाद: हे भरतवंशोभ्द्रव अर्जुन! तू सर्वभाव से उस एक ईश्वर की ही शरण में चला जा। उसकी कृपा से तू परम शान्ति को और अविनाशी परमपद को प्राप्त हो जायेगा। सर्वभाव का तात्पर्य है कि कोई अन्य पूजा न करके मन-कर्म-वचन से एक परमेश्वर में आस्था रखना। क्या मनोकामना की आशा से मकर संक्रांति (Makar Sankranti in Hindi) पर दान देना सार्थक है?
कबीर परमेश्वर जी ने बताया है कि बिना किसी मनोकामना के जो दान किया जाता है, वह दान फल देता है। वर्तमान जीवन में कार्य की सिद्धि भी होगी तथा भविष्य के लिए पुण्य जमा होगा और जो दान केवल मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है, वह कार्य सिद्धि के पश्चात् समाप्त हो जाता है। बिना मनोकामना पूर्ति के लिए किया गया दान आत्मा को निर्मल करता है, पाप नाश करता है। पहले गुरू धारण करो, फिर गुरूदेव जी के निर्देश अनुसार दान करना चाहिए। बिना गुरू के कितना ही दान करो और कितना ही नाम-स्मरण की माला फेरो, सब व्यर्थ प्रयत्न है। परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि:
अर्थात गुरु की आज्ञा के बिना यज्ञ, हवन तथा भक्ति करने से मोक्ष संभव नहीं है। प्रथम गुरू की आज्ञा लें, तब अपना नया कार्य करना चाहिए। वह कार्य सुखदायक होता है तथा मन की सब चिंता मिटा देता है।
भावार्थ :- आपके घर पर कोई अतिथि आ जाए तो आदर के साथ भोजन तथा बिछावना अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार सदा समय देना चाहिए।
भावार्थ :- जो गृहस्थी व्यक्ति दान नहीं करता, वह तो म्लेच्छ (दुष्ट ) व्यक्ति के समान है। इसलिए हे बुद्धिमान व्यक्ति ! नित (सदा) दान करो।
भावार्थ :- दान कुपात्र को नहीं देना चाहिए। सुपात्र को दान हर्षपूर्वक देना चाहिए। ‘सुपात्र’ गुरूदेव बताया है। फिर कोई भूखा है, उसको भोजन देना चाहिए। रोगी का उपचार अपने सामने धन देकर करना, बाढ़ पीड़ितों, भूकंप पीड़ितों को समूह बनाकर भोजन-कपड़े अपने हाथों देना, सुपात्र को दिया दान कहा है। इससे कोई हानि नहीं होती। मकर संक्रांति ( Makar Sankranti in Hindi) पर सूर्य देव की पूजा करते हैं, क्या यह करना ठीक है?सूक्ष्मवेद में कहा कि:- भजन करो उस रब का, जो दाता है कुल सब का।। श्रीमद् भगवत् गीता अध्याय 15 श्लोक 1 से 4 तथा 16,17 में कहा है कि यह संसार ऐसा है जैसे पीपल का वृक्ष है। जो संत इस संसार रूपी पीपल के वृक्ष की मूल (जड़ों) से लेकर तीनों गुणों रूपी शाखाओं तक सर्वांग भिन्न-भिन्न बता देता है। (सः वेद वित्) वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है अर्थात् वह तत्वदर्शी सन्त है। गीता अध्याय 15 के ही श्लोक 17 में कहा है कि (उत्तम पुरूषः) अर्थात् पुरूषोत्तम तो (अन्यः) अन्य ही है जिसे (परमात्मा इति उदाहृतः) परमात्मा कहा जाता है (यः लोक त्रायम्) जो तीनों लोकों में (अविश्य विभर्ती) प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है (अव्ययः ईश्वरः) अविनाशी परमेश्वर है, यह परम अक्षर ब्रह्म संसार रूपी वृक्ष की मूल (जड़) रूप परमेश्वर है। यह वह परमात्मा है जिसके विषय में सन्त गरीब दास जी ने कहा है:- यह असँख्यों ब्रह्माण्डों का मालिक है। यह क्षर पुरूष तथा अक्षर पुरूष का भी मालिक तथा उत्पत्तिकर्ता है।
सूक्ष्मवेद में परमेश्वर कबीर जी ने बताया है कि:-
एक मूल मालिक की पूजा करने से सर्व देवताओं की पूजा हो जाती है जो शास्त्रानुकूल है। जो तीनों देवताओं में से एक या दो (श्री विष्णु सतगुण तथा श्री शंकर तमगुण) की पूजा करते हैं या तीनों की पूजा इष्ट रूप में करते हैं तो वह गीता अध्याय 13 श्लोक 10 में वर्णित अव्यभिचारिणी भक्ति न होने से व्यर्थ है। जैसे कोई स्त्री अपने पति के अतिरिक्त अन्य पुरूष से शारीरिक सम्बन्ध नहीं करती, वह अव्यभिचारिणी स्त्री है। जो कई पुरूषों से सम्पर्क करती है, वह व्यभिचारिणी होने से समाज में निन्दनीय होती है। वह पति के दिल से उतर जाती है। शास्त्रानुकूल साधना अर्थात् सीधा बीजा हुआ भक्ति रूपी पौधे का चित्र व शास्त्रविरूद्ध साधना अर्थात् उल्टा बीजा हुआ भक्ति रूपी पौधा देखें। गीता अध्याय 3 श्लोक 10 से 15 में इसी उपरोक्त भक्ति का समर्थन किया है। शास्त्रानुकूल धार्मिक अनुष्ठान द्वारा देवताओं (संसार रूपी पौधे की शाखाओं) को उन्नत करो अर्थात् पूर्ण परमात्मा (मूल मालिक) को इष्ट मानकर साधना करने से शाखाएं अपने आप उन्नत हो जाती हैं । फिर वे देवता (शाखाएं बड़ी होकर फल देंगी) अर्थात् जब हम शास्त्रानुकूल साधना करेंगे तो हमारे भक्ति कर्म बनेंगे, कर्मों का फल ये तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी रूपी शाखाएं ही) देते हैं। (गीता अध्याय 3 श्लोक 11) शास्त्रानुकुल किए यज्ञ अर्थात् अनुष्ठानों द्वारा बढ़ाए हुए देवता अर्थात् संसार रूपी पौधे की शाखाएं बिना माँगे ही इच्छित भोग निश्चय ही देते रहेंगे। जैसे पौधे की मूल की सिंचाई करने से पौधा पेड़ बन जाता है व शाखाएं फलों से लदपद हो जाती हैं। फिर उस वृक्ष की शाखाएं अपने आप प्रतिवर्ष फल देती रहेंगी यानि आप जी का किया शास्त्रानुकूल भक्ति कर्म का फल जो संचित हो जाता है, उसे यही देवता आपको देते रहेंगे, आप माँगो या न माँगो। यदि उन देवताओं द्वारा दिया गया आपका कर्म संस्कार का धन पुनः धर्म में नहीं लगाया तो वह साधक भक्ति का चोर है। वह भविष्य में पुण्य रहित होकर हानि उठाता है। (गीता अध्याय 3 श्लोक 12) संक्रांति पर गंगा, यमुना, गोदावरी तथा अन्य नदियों में स्नान करने से पापमुक्त होना कहा है, क्या यह विचार उत्तम है?द्वापरयुग में श्री कृष्ण जी ने यादव कुल के लोगों को श्रापमुक्त होने के लिए यमुना में स्नान करने के लिए कहा, यह समाधान बताया था। उससे श्राप नाश तो हुआ नहीं, यादवों का नाश अवश्य हो गया। ( पूरी कथा जानने के लिए Satlok Ashram YouTube channel पर सत्संग सुनें ) विचार करें:- जो अन्य सन्त या ब्राह्मण जो ऐसे स्नान या तीर्थ करने से संकट मुक्त करने की राय देते हैं, वे कितनी कारगर हैं? अर्थात् व्यर्थ हैं क्योंकि जब भगवान त्रिलोकी नाथ द्वारा बताए समाधान से यमुना में स्नान करने से कुछ लाभ नहीं हुआ तो अन्य टट्पुंजियों, ब्राह्मणों व गुरूओं द्वारा बताए स्नान आदि समाधान से कुछ होने वाला नहीं है। मकर संक्रांति के दिन भिन्न मनमानी आध्यात्मिक क्रियाएं करने से मोक्ष प्राप्ति हो जाती है, क्या यह सत्य है?गीता ज्ञान दाता ब्रह्म की भक्ति स्वयं गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में अनुत्तम बताई है। उसने गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में परमेश्वर अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म की शरण में जाने को कहा है। यह भी कहा है कि उस परमेश्वर की कृपा से ही तू परम शान्ति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि जब तुझे गीता अध्याय 4 श्लोक 34 में वर्णित तत्वदर्शी संत मिल जाए उसके पश्चात उस परमपद परमेश्वर को भली भाँति खोजना चाहिए, जिसमें गए हुए साधक फिर लौट कर इस संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मृत्यु से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं। जब तक नादान प्राणी, दान भी करता है, गंगा स्नान, पाठ, पूजा परन्तु मनमाना आचरण (पूजा) के माध्यम से किया जो शास्त्र विधि के विपरीत होने के कारण लाभदायक नहीं होता। प्रभु का विधान है कि जैसा भी कर्म प्राणी करेगा उसका फल अवश्य मिलेगा। यह विधान तब तक लागू है जब तक तत्वदर्शी संत पूर्ण परमात्मा का मार्गदर्शक नहीं मिलता। प्रिय पाठकों! आप सभी से विनम्र निवेदन है कि तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग प्रवचन संत रामपाल जी महाराज YouTube Channel पर देखें जिससे आप जीवन का महत्व आसानी से समझ सकें। आप अपने फोन के Play Store से Sant Rampal Ji Maharaj App डाउनलोड करके सभी आध्यात्मिक प्रश्नों के उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। About the authorSA NEWSWebsite |+ posts SA News Channel is one of the most popular News channels on social media that provides Factual News updates. Tagline: Truth that you want to know मकर संक्रांति के दिन क्या क्या खाते हैं?इस दिन खरीफ की फसलों चावल, चना, मूंगफली, गुड़, तिल उड़द इन चीजों से बनी सामग्री से भगवान सूर्य और शनि देव की पूजा की जाती है। मकर संक्रांति के दिन चावल और उड़द की दाल से खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्य को भोग लगाया जाता है और इसे प्रसाद के रूप में लोग एक दूसरे के घर भेजते हैं और खाते भी हैं।
मकर संक्रांति में क्या खाकर गए हैं?मकर संक्रांति (Makar Sankranti) का पर्व देशभर के अलग-अलग भागों में अलग तरीके और अलग नाम से मनाया जाता है. लेकिन सब जगह एक बार कॉमन यह है कि इस दिन तिल-गुड़ खाना और इसका दान करना शुभ माना जाता है. सदियों से इस दिन काले तिल के लड्डू खाने की परंपरा चली आ रही है.
मकर संक्रांति पर क्या दान करना चाहिए?मकर संक्रांति को खिचड़ी के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन खिचड़ी (Khichdi) के दान से पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन चावल और काली उड़द की दाल खिचड़ी को दान करना चाहिए. काले उड़द से शनिदेव प्रसन्न होते हैं.
मकर संक्रांति की गुड़ की क्या वजह है?इसकी वजह यह थी कि शनि देव के घर कुंभ के जल जाने से शनिदेव के पास और कुछ नहीं था। पुत्र द्वारा तिल और गुड़ भेंट करने से सूर्य देव बहुत प्रसन्न हुए और शनिदेव से कहा कि जो भी मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगे उस पर शनि सहित मेरी भी कृपा बनी रहेगी।
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