मुकुंद कौशल की गजलों की दो विशेषताएं - mukund kaushal kee gajalon kee do visheshataen

मुकुंद कौशल की गजलों की दो विशेषताएं - mukund kaushal kee gajalon kee do visheshataen

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मोर चलव रे बैला नांगर के
मोर चलव रे बैला नांगर के
हम तोर कमाबो जांगर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के
हम तोर कमाबो जांगर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के~

धरती मांगय मेहनत पानी
जनम जनम के इहि कहानी
धरती मांगय मेहनत पानी
जनम जनम के इहि कहानी
हम तो करबो मेहनत संगी~~
हम तो करबो मेहनत संगी
पानी के मालिक बादर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के
हम तोर कमाबो जांगर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के~

माई पिल्ला जमो कमाथन
लहू पछीना रोज बोहाथन
माई पिल्ला जमो कमाथन
लहू पछीना रोज बोहाथन
रइथन हम खुसहाल रे संगी~~
रइथन हम खुसहाल रे संगी
खाथन पनियर पातर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के
हम तोर कमाबो जांगर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के~

दिन दिन सरग छुवय महंगाई
मेहनत आगर घात कमाई
दिन दिन सरग छुवय महंगाई
मेहनत आगर घात कमाई
सब कुछ बने करे तैं मालिक~~
सब कुछ बने करे तैं मालिक
पेट बनाये काबर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के
हम तोर कमाबो जांगर रे
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला
मोर चलव रे बैला नांगर के~


गायन शैली : ?
गीतकार : मुकुंद कौशल स्‍व. बसंत दीवान
रचना के वर्ष : ?
संगीतकार : केदार यादव
गायक : केदार यादव
एल्बम : ?
संस्‍था/लोककला मंच : नवा बिहान

मुकुंद कौशल की गजलों की दो विशेषताएं - mukund kaushal kee gajalon kee do visheshataen

केदार यादव

 

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गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …

यह आलेख प्रमोद ब्रम्‍हभट्ट जी नें इस ब्‍लॉग में प्रकाशित आलेख ' चारण भाटों की परम्परा और छत्तीसगढ़ के बसदेवा ' की टिप्‍पणी के रूप में लिखा है। इस आलेख में वे विभिन्‍न भ्रांतियों को सप्रमाण एवं तथ्‍यात्‍मक रूप से दूर किया है। सुधी पाठकों के लिए प्रस्‍तुत है टिप्‍पणी के रूप में प्रमोद जी का यह आलेख - लोगों ने फिल्म बाजीराव मस्तानी और जी टीवी का प्रसिद्ध धारावाहिक झांसी की रानी जरूर देखा होगा जो भट्ट ब्राह्मण राजवंश की कहानियों पर आधारित है। फिल्म में बाजीराव पेशवा गर्व से डायलाग मारता है कि मैं जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय हूं। उसी तरह झांसी की रानी में मणिकर्णिका ( रानी के बचपन का नाम) को काशी में गंगा घाट पर पंड़ितों से शास्त्रार्थ करते दिखाया गया है। देखने पर ऐसा नहीं लगता कि यह कैसा राजवंश है जो क्षत्रियों की तरह राज करता है तलवार चलता है और खुद को ब्राह्मण भी कहता है। अचानक यह बात भी मन में उठती होगी कि क्या राजा होना ही गौरव के लिए काफी नहीं था, जो यह राजवंश याचक ब्राह्मणों से सम्मान भी छीनना चाहता है। पर ऊपर की आशंकाएं निराधार हैं वास्तव में यह राजव

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क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है?

लेखक: Pankaj Oudhia फ़रवरी 18, 2008

8 . हमारे विश्वास, आस्थाए और परम्पराए: कितने वैज्ञानिक, कितने अन्ध-विश्वास? - पंकज अवधिया प्रस्तावना यहाँ पढे इस सप्ताह का विषय क्या सफेद फूलो वाले कंटकारी (भटकटैया) के नीचे गडा खजाना होता है? बैगनी फूलो वाले कंटकारी या भटकटैया को हम सभी अपने घरो के आस-पास या बेकार जमीन मे उगते देखते है पर सफेद फूलो वाले भटकटैया को हम सबने कभी ही देखा हो। मै अपने छात्र जीवन से इस दुर्लभ वनस्पति के विषय मे तरह-तरह की बात सुनता आ रहा हूँ। बाद मे वनस्पतियो पर शोध आरम्भ करने पर मैने पहले इसके अस्तित्व की पुष्टि के लिये पारम्परिक चिकित्सको से चर्चा की। यह पता चला कि ऐसी वनस्पति है पर बहुत मुश्किल से मिलती है। तंत्र क्रियाओ से सम्बन्धित साहित्यो मे भी इसके विषय मे पढा। सभी जगह इसे बहुत महत्व का बताया गया है। सबसे रोचक बात यह लगी कि बहुत से लोग इसके नीचे खजाना गडे होने की बात पर यकीन करते है। आमतौर पर भटकटैया को खरपतवार का दर्जा दिया जाता है पर प्राचीन ग्रंथो मे इसके सभी भागो मे औषधीय गुणो का विस्तार से वर्णन मिलता है। आधुनिक विज्ञ

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छत्‍तीसगढ का जसगीत

लेखक: 36solutions अक्तूबर 20, 2007

छत्‍तीसगढ में पारंपरिक रूप में गाये जाने वाले लोकगीतों में जसगीत का अहम स्‍थान है । छत्‍तीसगढ का यह लोकगीत मुख्‍यत: क्‍वांर व चैत्र नवरात में नौ दिन तक गाया जाता है । प्राचीन काल में जब चेचक एक महामारी के रूप में पूरे गांव में छा जाता था तब गांवों में चेचक प्रभावित व्‍यक्ति के घरों मै इसे गाया जाता था ।आल्‍हा उदल के शौर्य गाथाओं एवं माता के श्रृंगार व माता की महिमा पर आधारित छत्‍तीसगढ के जसगीतों में अब नित नये अभिनव प्रयोग हो रहे हैं, हिंगलाज, मैहर, रतनपुर व डोंगरगढ, कोण्‍डागांव एवं अन्‍य स्‍थानीय देवियों का वर्णन एवं अन्‍य धार्मिक प्रसंगों को इसमें जोडा जा रहा है, नये गायक गायिकाओं, संगीत वाद्यों को शामिक कर इसका नया प्रयोग अनावरत चालु है । पारंपरिक रूप से मांदर, झांझ व मंजिरे के साथ गाये जाने वाला यह गीत अपने स्‍वरों के ऊतार चढाव में ऐसी भक्ति की मादकता जगाता है जिससे सुनने वाले का रोम रोम माता के भक्ति में विभोर हो उठता है । छत्‍तीसगढ के शौर्य का प्रतीक एवं मॉं आदि शक्ति के प्रति असीम श्रद्धा को प्रदर्शित करता यह लोकगीत नसों में बहते रक्‍त को खौला देता है, यह अघ्‍यात्मिक आनंद का ऐ