मत्स्य देश का नया नाम क्या है? - matsy desh ka naya naam kya hai?

मत्स्य जनपद एक राजस्थान का जनपद था यह महाभारत काल के समय का माना जाता है यह जनपद राजधानी विराटनगर मानी जाती है तथा यो जयपुर अलवर के आसपास के क्षेत्र को कवर करता था यह महा जनपद यमुना नदी के पश्चिम मे और कुरु राज्य के दक्षिण मे था। राजस्थान के जयपुर, भरतपुर और अलवर के क्षेत्र इसमे आते है।

यहां मत्स्य लोग रहते थे जो आज मीना/मीणा/मीना/मेर आदि के रूप में यहां निवास करते हैं। जो की एक सूर्यवंशी क्षत्रिय योद्धा थे जो की सूर्यवंशी क्षत्रिय वंशज हैं

सन्दर्भ[संपादित करें]

{{जो की उस समय का सबसे संवृधे एवम सक्ति शाली राज्यो में से एक था जिसके राजा सोयम विराट नरेश थे जिनकी वीरता के सामने बड़े बड़े महाराजा भी जिन्हे पराजित नहीं कर सके यही एक मात्र राज्य था जिसे सोयम भीष्म पितामह भी नहीं जीत सके थे यह दापुर युग में एक मात्र सूर्यवंशी क्षत्रिय का शासन चलता जो जिन्होंने महाभारत कै युद्ध में सत्य का साथ दिया और पांडवों को अपना अज्ञातवास काटने कर लिए सारण दी नहीं तो पूरे भारत वर्ष में ऐसा कोई राज्य नहीं था जहा पर पाण्डव अपना अज्ञातवास बीता सकते थे क्योंकि वो जानते थे कि यह पर हस्तनापुर की सेना नहीं आ सकती हैं क्योंकि हस्तनापुर एवम विराट नगर एक दूसरे कर विरोधी राज्य थे,}} साँचा:महाभारत , मत्स्य पुराण साँचा:मत्स्य जनपद

यह लेख भारत की मत्स्य जनजाति के बारे में है। अन्य प्रयोगों के लिए, मत्स्य (बहुविकल्पी) देखें।

मत्स्य
विशेष निवासक्षेत्र
मत्स्य देश का नया नाम क्या है? - matsy desh ka naya naam kya hai?
 
भारत
धर्म
हिन्दू
सम्बन्धित सजातीय समूह
मीणा

  • Raychaudhuri, Hemchandra (1953). Political History of Ancient India: From the Accession of Parikshit to the Extinction of Gupta Dynasty. कलकत्ता विश्वविद्यालय.

  • मत्स्य राज, महाजनपद

मत्स्य जनपद मग 4000 ई.पू. आर्यों का अपने मूल स्थान से भारत में प्रवेश हआ और धीरे-धीरे भारत में फैलते चले गये । भारत में प्रारम्भिक आर्य संक्रमण के बाद राजस्थान में आर्य नों का प्रवेश हुआ और मत्स्य जनपद उन जनपदों में से एक था। इस प्रकार यह जनपद एकप्राचीन जनपद था। मत्स्य जनपद जयपुर-अलवर-भरतपुर के मध्यवर्ती क्षेत्र में फैला हआ ऐसा अनुमान है कि इसका विस्तार चम्बल की पहाड़ियों से पंजाब में सरस्वती नदी के सीमावर्ती जंगल तक था।

मत्स्य जनपद ऋग्वेद में मत्स्यों का एक प्रमुख आर्य समूह के रूप में उल्लेख किया गया है। कौषितकी उपनिषद् और शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थों में भी इस महाजनपद का उल्लेख मिलता है। शतपथ ब्राह्मण में ध्वसन द्वैतवन को मत्स्यों का राजा कहा गया है। इस राजा ने सरस्वती नदी के तट पर हुए अश्वमेध यज्ञ में भाग लिया था। अतः प्राचीनकाल में मत्स्य महाजनपद एक महत्वपूर्ण महाजनपद था।

महाभारतकाल में विराट नामक राजा मत्स्य महाजनपद का शासक था। ऐसी मान्यता है कि इसी ने जयपुर से 85 किलोमीटर की दूरी पर विराटनगर अथवा विराटपुर (वर्तमान बैराठ) बसाया था और इस नगर को मत्स्य जनपद की राजधानी बनाया। महाभारत के विवरणानुसार पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास का अन्तिम वर्ष छद्मवेष में विराट राजा की सेवा में व्यतीत किया था।

मत्स्य महाजनपद में दीर्घावधि तक राजतन्त्र बना रहा और उसकी शासन व्यवस्था वैदिक युग के अन्य राजतन्त्रात्मक जनपदों की भाँति ही रही होगी। मत्स्यों के पड़ोस में शाल्व बसे हुए थे। शाल्व जनपद वर्तमान अलवर क्षेत्र में फैला हुआ था।

मत्स्य महाजनपद को प्रारम्भ से ही अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ा। वस्तुतः आर्यों के संक्रमण काल में सभी प्रमुख आर्य जनपद अपनी-अपनी सीमाओं और राजनीतिक सत्ता के प्रभाव को बढ़ाने में संलग्न थे। शाल्वों की भांति चेदि महाजनपद भी मत्स्य का पड़ोसी था और दोनों के मध्य भी प्रायः संघर्ष हुआ करता था। एक बार चेदि महाजनपद ने बड़े पैमाने पर मत्स्य महाजनपद पर आक्रमण कर दिया। इस संघर्ष में मत्स्य बुरी तरह से पराजित हुए और चेदियों ने मत्स्य महाजनपद को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। महाभारत से ही यह जानकारी मिलती है कि सहज नामक राजा ने चेदि और मत्स्य दोनों महाजनपदों पर सम्मिलित रूप से शासन किया था परन्तु सहज का तिथिक्रम निर्धारित करना दुष्कर कार्य है। सम्भव है कि चेदियों का प्रभुत्व अधिक समय तक कायम नहीं रह पाया हो और कुछ समय बाद मत्स्य महाजनपद स्वतन्त्र हो गया।

सिकन्दर महान के आक्रमण का मत्स्य महाजनपद पर यद्यपि कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ा परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से उसके आक्रमण ने मत्स्यों के लिए नई समस्या उत्पन्न कर दी। सिकन्दर के आक्रमण से जर्जरित परन्तु अपनी स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने में उत्सुक दक्षिण पंजाब की मालव,शिवि तथा अर्जुनायन जातियाँ,जो अपने साहस एवं शौर्य के लिए प्रसिद्ध थीं, अन्य जातियों के साथ राजस्थान में आयीं और अपनी-अपनी सुविधानुसार यहाँ बस गईं। भरतपुर और अलवर के क्षेत्र में अर्जुनायन बस गये। अजमेर-टोंक मेवाड़ के आंचल में मालवों ने अपना निवास बनाया और चित्तौड़ के आस-पास (मध्यमिका नगरी) शिवियों ने अपना देश जमाया। इन नये पड़ौसियों के आगमन का मत्स्य के राजनैतिक प्रभाव पर प्रतिकूल प्रभाव पडा। शनैः शनैः उसकी शक्ति क्षीण होती गई और अर्जुनायन तथा मालवों की शक्ति सुदृढ़ हो गई।

चेदियों से स्वतन्त्र होने के बाद मत्स्य जनपद को मगध की साम्राज्य-लिप्सा का शिकार होना पड़ा। मगध के सम्राटों ने भारत के अन्य भागों के जनपदों के समान मत्स्य महाजनपद को भी जीतकर अपने साम्राज्य में मिला लिया। प्रामाणिक ऐतिहासिक सामग्री के अभाव में यह नहीं कहा जा सकता कि सबसे पहले इसे मगध के किस राजवंश ने जीता। अधिकांश विद्वानों की मान्यता है कि मगध के नन्द सम्राटों के समय में मत्स्य जनपद को अपनी स्वतन्त्रता से हाथ धोना पड़ा। मौयों ने तो निश्चित रूप से मत्स्य जनपद पर काफी लम्बे समय तक शासन किया था। मत्स्य की राजधानी विराट (बैराठ) से प्राप्त अशोककालीन अवशेष और बौद्ध स्मारक इसके प्रमाण हैं। संक्षेप में, राजस्थान का मत्स्य महाजनपद ईसा पूर्व की छठी सदी में और उससे भी अति प्राचीनकाल में प्राचीन भारत का एक प्रभावशाली महाजनपद था।

बैराठ की सभ्यता राजस्थान राज्य के उत्तर-पूर्व में जयपुर जिले के शाहपुरा उपखण्ड में विराटनगर कस्बा (बैराठ) एक तहसील मुख्यालय है। यह क्षेत्र पुरातत्त्व एवं इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। प्राचीनकाल में इस क्षेत्र का उल्लेख ‘मत्स्य जनपद’, मत्स्य देश के रूप में मिलता है। यह क्षेत्र वैदिक युग से वर्तमान काल तक अपना विशिष्ट महत्त्व प्रदर्शित करता रहा है। यह क्षेत्र चारों ओर से पर्वतों से घिरा हुआ है। यहाँ की खुदाई में प्राप्त सामग्री से अनुमान लगाया जाता है कि यह क्षेत्र सिन्धु घाटी के प्रागैतिहासिक काल का समकालीन है। बराठ सभ्यता के उत्खनन में 36 मुद्राएँ मिली हैं। इनमें से आठ पंच मार्क चाँदी की मुद्राएँ हैं और 28 इण्डो-ग्रीक तथा यूनानी शासकों की मुद्राएँ हैं । इस सभ्यता में भवन निर्माण के लिए मिट्टी की बनाई गई ईंटों का अधिक प्रयोग किया जाता था। उत्खनन से प्राप्त खण्डहर के अवशेषों से यहाँ गोदाम तथा चबूतरों के अस्तित्व का संकेत मिलता है। खुदाई में मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं जिन पर स्वास्तिक तथा त्रिरल चक्र के चिह्न अंकित हैं। खुदाई में मिट्टी के बने पूजा-पात्र, थालियाँ, लोटे, मटके, खप्पर, नाचते हुए पक्षी, कुण्डियाँ, घड़े आदि भी प्राप्त हुए हैं। बैराठ सभ्यता में ईंटों का आकार अलग-अलग है । फर्श पर बिछाने के लिए जो टाइलें काम में ली गई हैं, उनका आकार बड़ा है। इन ईंटों की बनावट मोहनजोदड़ो में मिली ईंटों के समान है। बैराठ में बौद्धमठ व मन्दिरों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं । बैराठ नगर के चारों ओर टीले हैं जिनमें से बीजक की पहाड़ी, भोमला की डूंगरी तथा महादेवजी की डूंगरी अधिक महत्त्वपूर्ण है।

बैराठ का मौर्यकाल में बौद्ध धर्मानुयायियों का एक प्रसिद्ध केन्द्र होना-मौर्यकाल – बैराठ क्षेत्र का विशेष महत्त्व था। इस कारण दीर्घकाल से पुराविदों के लिए यह आकर्षण का रहा है। 1837 ई. में कैप्टन बर्ट ने बीजक डंगरी पर मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में उत्काण स अशोक के शिलालेख की खोज की। स्थानीय लोग इस लेख को बीजक कहकर पुकारत । कारण से इस डूंगरी का नाम ‘बीजक डूंगरी’ पड़ गया। 1840 ई. में इस अभिलेख का काटकर कोलकाता संग्रहालय में ले जाया गया। 1871-72 ई. में काला सर्वेक्षण किया जिसके अन्तर्गत ‘भीम डूंगरी’ में एक और अशोक का शिलालख में कार्लाइल ने इस क्षेत्र का आया। 1936 ई. में दयाराम साहनी ने ‘बीजक डूंगरी’ पर पुरातात्विक उत्खनन किया. 1990 ई. में बैराठ करते।कालीन अशोक स्तम्भ, बौद्ध मन्दिर एवं बौद्ध विहार आदि के ध्वंसावशेषों की प्राप्ति 500 ई. में बैराठ कस्बे के निकट इन पहाड़ियों (गणेश डूंगरी, भीम डूंगरी एवं बीजक ही में स्थित शैलाश्रयों में अनेक शैलचित्र खोजे गए।

(1) बौद्ध स्तूप – बीजक डूंगरी के शिखर पर दो प्लेटफार्म हैं । उत्खनन के दौरान निचले पार्म पर बौद्ध स्तूप के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। यह गोलाकार स्तूप, स्तम्भों पर आधारित पार के पत्थर से निर्मित था। इसके पूर्व की ओर 6 फुट चौड़ा द्वार तथा स्तूप के चारों ओर

फट चौडा गोलाकार परिक्रमा मार्ग था। उत्खनन में स्तम्भ एवं छत्र के टूटे हुए प्रस्तरावशेष मिले हैं।

(2) बौद्ध विहार – बीजक डूंगरी के 5-7 मीटर ऊँचे प्लेटफार्म पर एक बौद्ध विहार के ध्वंसावशेष प्राप्त हुए हैं। यहाँ बौद्ध धर्मानुयायी साधना या उपासना करते थे। यहाँ की छोटी-छोटी कोठरियाँ साधना-कक्ष स्वरूप दिखाई देती हैं। इस विहार में 6-7 छोटे कमरे बने हुए हैं। विहार की दीवारें 20 इंच मोटी हैं । कमरों में जाने के लिए तंगमार्ग हैं । गोदाम तथा चबूतरे इस विहार के अन्य भाग हैं।

(3) मन्दिर – बैराठ में मौर्य-सम्राट द्वारा बनवाए गए एक मन्दिर के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। इस मन्दिर की फर्श ईंटों से निर्मित थी तथा द्वार एवं किवाड़ लकड़ी के बने हुए थे। लकड़ी के किवाड़ों को मजबूती प्रदान करने के लिए उनमें लोहे की कीलियों तथा कब्जों का प्रयोग किया गया था। मन्दिर के कुछ भागों की खुदाई से पूजा के पात्र, थालियाँ, मिट्टी की पक्षी-मूर्तियाँ, खप्पर, धूपदानी आदि वस्तुएँ मिली हैं। मन्दिर का आधार एक निचाई वाला चबूतरा है। मन्दिर के बाहर की दीवार भी ईंटों से ही बनी हुई है। मन्दिर के चारों ओर 7 फीट चौड़ी गैलरी भी है।

(4) अशोक स्तम्भ – लेख-यहाँ सम्राट अशोक के दो स्तम्भ-लेख भी मिले हैं। खुदाई स्थल के दक्षिण में चुनार पत्थर के पालिशदार टुकड़े बिखरे पड़े हैं। कई साधारण पत्थर के टुकड़े भी मिले हैं। कुछ पत्थर के टुकड़ों पर सिंह आकृति के खण्ड हैं।

(5) बैराठ का ध्वंस – बैराठ के उत्खनन से सिद्ध होता है कि बैराठ मौर्यकाल में बौद्ध धर्मानुयायियों का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था तथा स्वयं मौर्य-सम्राट अशोक का इस क्षेत्र से विशेष लगाव था, परन्तु परवर्ती काल में इस केन्द्र को ध्वंस कर दिया गया। यहाँ से अशोक स्तम्भ एवं बौद्ध स्तूप के छत्र आदि के हजारों की संख्या में टुकड़े प्राप्त होना, यहाँ की गई विनाशलीला को उजागर करते हैं । दयाराम साहनी के अनुसार हूण शासक मिहिरकुल ने बैराठ का ध्वंस किया। डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने भी लिखा है कि बैराठ में बौद्ध धर्म तथा बौद्ध विहारों का विनाश हूण नेता मिहिरकुल के आक्रमणों के फलस्वरूप हुआ था।

हूण शासक मिहिरकुल ने छठी शताब्दी ईस्वी के प्रारम्भिक काल में पश्चिमोत्तर भारतीय क्षेत्र में 15 वर्षों तक शासन किया था। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार मिहिरकुल ने पश्चिमोत्तर भारत में 1,600 स्तूपों और बौद्ध विहारों को ध्वस्त किया तथा 9 कोटि बौद्ध उपासकों का वध किया। अत: हूण नेता मिहिरकुल बैराठ के ध्वंस के लिए उत्तरदायी था।

(6) शैलाश्रय – सम्भवतः इस विनाशकाल में ही बौद्ध धर्मावलम्बियों ने कूटलिपि (गुप्त लिपि) का इन पहाड़ियों के शैलाश्रयों में प्रयोग किया है। इसका अधिकांशतः लाल रंग द्वारा 200 स आधक शिलाखण्डों की विभिन्न सतहों पर अंकन प्राप्त हुआ है। शैलाश्रयों की भीतरी दीवारों एवछती पर ये लेख अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित हैं। कुछ शैलाश्रयों में बौद्ध प्रतीकों का अंकन भी दिखाई देता है। ।

सन्दर्भ[संपादित करें]

मत्स्य देश का वर्तमान नाम क्या है?

राजस्थान के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में मत्स्य देश के रूप में है। इसकी राजधानी थी विराटनगरी।

मत्स्य देश कहाँ स्थित है?

मत्स्य जनपद एक राजस्थान का जनपद था यह महाभारत काल के समय का माना जाता है यह जनपद राजधानी विराटनगर मानी जाती है तथा यो जयपुर अलवर के आसपास के क्षेत्र को कवर करता था यह महा जनपद यमुना नदी के पश्चिम मे और कुरु राज्य के दक्षिण मे था। राजस्थान के जयपुर, भरतपुर और अलवर के क्षेत्र इसमे आते है।

मत्स्य देश के राजा का नाम क्या था?

विराट मत्स्य प्रदेश का राजा तथा कीचक का जीजा (बहनोई) तथा उत्तरा व कुमार उत्तर का पिता तथा अर्जुन का सम्धी तथा रानी सुदेषणा का पति था

महाभारत के समय मत्स्य जनपद का राजा कौन था?

महाभारतकाल में विराट नामक राजा मत्स्य महाजनपद का शासक था। ऐसी मान्यता है कि इसी ने जयपुर से 85 किलोमीटर की दूरी पर विराटनगर अथवा विराटपुर (वर्तमान बैराठ) बसाया था और इस नगर को मत्स्य जनपद की राजधानी बनाया।