नीचे आकृति में दिए हुए अव्ययों के भेद पहचानकर उनका अर्थपूर्ण स्वतंत्र वाक्यों में प्रयोग कीजिए :
Concept: व्याकरण (१० वीं कक्षा) Is there an error in this question or solution? Disclaimer The questions posted on the site are solely user generated, Doubtnut has no ownership or control over the nature and content of those questions. Doubtnut is not responsible for any discrepancies concerning the duplicity of content over those questions. कुछ समानार्थक क्रियाविशेषणों का अन्तर(i) अब-अभी 'अब' में वर्तमान समय का अनिश्र्चय है और 'अभी' का अर्थ तुरन्त से है; जैसे- अब- अब आप जा सकते हैं। अभी- अभी-अभी आया हूँ। (ii) तब-फिर- अन्तर यह है कि 'तब' बीते हुए हमय का बोधक है और 'फिर' भविष्य की ओर संकेत करता है। जैसे- तब- तब उसने कहा। फिर- फिर आप भी क्या कहेंगे। (iii) कहाँ-कहीं- 'कहाँ' किसी निश्र्चित स्थान का बोधक है और 'कही' किसी अनिश्र्चित स्थान का परिचायक। कभी-कभी 'कही' निषेध के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है; जैसे- कहाँ- वह कहाँ गया ? कहीं- वह कहीं भी जा सकता है। (iv) न-नहीं-मत- इनका प्रयोग निषेध के अर्थ में होता है। 'न' से साधारण-निषेध और 'नहीं' से निषेध का निश्र्चय सूचित होता है। 'न' की अपेक्षा 'नहीं' अधिक जोरदार है। 'मत' का प्रयोग निषेधात्मक आज्ञा के लिए होता है। जैसे- 'न'- इनके विभित्र प्रयोग इस प्रकार हैं- नहीं- (क) तुम नहीं जा सकते। मत- (क) भीतर मत जाओ। (v) ही-भी- बात पर बल देने के लिए इनका प्रयोग होता है। अन्तर यह है कि 'ही' का अर्थ एकमात्र और 'भी' का अर्थ 'अतिरिक्त' सूचित करता है। जैसे- भी- इस काम को तुम भी कर सकते हो। ही- यह काम तुम ही कर सकते हो। (vi) केवल-मात्र- 'केवल' अकेला का अर्थ और 'मात्र' सम्पूर्णता का अर्थ सूचित करता है; जैसे- केवल- आज हम केवल दूध पीकर रहेंगे। यह काम केवल वह कर सकता है। मात्र- मुझे पाँच रूपये मात्र मिले। (vii) भला-अच्छा- 'भला' अधिकतर विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है, पर कभी-कभी संज्ञा के रूप में भी आता है; जैसे- भला का भला फल मिलता है। 'अच्छा' स्वीकृतिमूलक अव्यय है। यह कभी अवधारण के लिए और कभी विस्मयबोधक के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे- अच्छा, कल चला जाऊँगा। (viii) प्रायः-बहुधा- दोनों का अर्थ 'अधिकतर' है, किन्तु 'प्रायः' से 'बहुधा की मात्रा अधिक होती है। प्रायः- बच्चे प्रायः खिलाड़ी होते हैं। (ix) बाद-पीछे- 'बाद' काल का और 'पीछे' समय का सूचक है। जैसे- बाद- वह एक सप्ताह बाद आया। (2)सम्बन्धबोधक
अव्यय :- जो शब्द वाक्य में किसी संज्ञा या सर्वनाम के साथ आकर वाक्य के दूसरे शब्द से उनका संबन्ध बताये वे शब्द 'सम्बन्धबोधक अव्यय' कहलाते । जैसे- दूर, पास, अन्दर, बाहर, पीछे, आगे, बिना, ऊपर, नीचे आदि। उपयुक्त प्रथम वाक्य में 'ऊपर' शब्द 'वृक्ष और 'पक्षी' के सम्बन्ध को दर्शता है। विशेष- यह बात विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि सम्बन्धबोधक शब्द को सम्बन्ध दर्शाना आवश्यक होता है। जब यह सम्बन्ध न जोड़कर साधारण रूप में प्रयोग होता है तो यह क्रिया-विशेषण का कार्य करता है। इस प्रकार एक ही शब्द क्रिया-विशेषण भी हो सकता है और सम्बन्धबोधक भी। जैसे-
सम्बन्धबोधक के भेदप्रयोग, अर्थ और व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक अव्यय के निम्नलिखित भेद है । (2) अर्थ के अनुसार- (i) कालवाचक (ii) स्थानवाचक (iii) दिशावाचक (iv) साधनवाचक (v) हेतुवाचक (vi) विषयवाचक (vii) व्यतिरेकवाचक (viii) विनिमयवाचक (ix) सादृश्यवाचक (x) विरोधवाचक (xi) सहचरवाचक (xii) संग्रहवाचक (xiii) तुलनावाचक (3) व्युत्पत्ति के अनुसार- (i) मूल सम्बन्धबोधक (ii) यौगिक सम्बन्धबोधक (1) प्रयोग के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद (2) अर्थ के अनुसार सम्बन्धबोधक के भेद (3) व्युत्पत्ति के अनुसार सम्बन्धबोधक के
भेद क्रिया-विशेषण और सम्बन्धबोधक में अंतरअनेक शब्द क्रिया-विशेषण भी हैं तथा सम्बन्धबोधक भी। प्रयोग में जब ये क्रिया की विशेषता प्रकट करें, तब क्रिया-विशेषण कहलाते हैं तथा जब संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ आकर उनका वाक्य के शेष शब्दों के साथ संबंध बताएँ तब सम्बन्धबोधक। जैसे- (3)समुच्चयबोधक अव्यय :-- जो अविकारी शब्द दो शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों को परस्पर मिलाते है, उन्हें समुच्चयबोधक कहते है। उदाहरण- आँधी आयी और पानी बरसा। यहाँ 'और' अव्यय समुच्चयबोधक है; क्योंकि यह पद दो वाक्यों- 'आँधी आयी', 'पानी बरसा'- को जोड़ता है। राम 'और' लक्ष्मण दोनों भाई थे। |