छायावादी युग (1918 ई०-1936 ई०)हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद के वास्तविक अर्थ को लेकर विद्वानों में विभिन्न मतभेद है। छायावाद का अर्थ मुकुटधर पांडे ने “रहस्यवाद, सुशील कुमार ने “अस्पष्टता” महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “अन्योक्ति पद्धति” रामचंद्र शुक्ल ने “शैली बैचित्र्य “नंददुलारे बाजपेई ने “आध्यात्मिक छाया का भान” डॉ नगेंद्र ने “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह”बताया है। Show
छायावाद– “द्विवेदी युग” के बाद के समय को छायावाद कहा जाता है। बीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध छायावादी कवियों का उत्थान काल था। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” और सुमित्रानंदन पंत जैसे छायावादी प्रकृति उपासक-सौन्दर्य पूजक कवियों का युग कहा जाता है। “द्विवेदी युग” की प्रतिक्रिया का परिणाम ही “छायावादी युग” है। नामवर सिंह के शब्दों में, ‘छायावाद शब्द का अर्थ चाहे जो हो परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह प्रसाद, निराला, पंत और महादेवी की उन समस्त कविताओं का द्योतक है जो 1918 ई० से लेकर 1936 ई० (‘उच्छवास’ से ‘युगान्त’) तक लिखी गई। सामान्य तौर पर किसी कविता के भावों की छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो वह ‘छायावादी कविता’ है। उदाहरण के तौर पर पंत की निम्न पंक्तियाँ देखी जा सकती हैं जो कहा तो जा रहा है छाँह के बारे में लेकिन अर्थ निकल रहा है नारी स्वातंत्र्य संबंधी :
छायावादी युग में हिन्दी साहित्य में गद्य गीतों, भाव तरलता, रहस्यात्मक और मर्मस्पर्शी कल्पना, राष्ट्रीयता और स्वतंत्र चिन्तन आदि का समावेश होता चला गया। इस समय की हिन्दी कविता के अंतरंग और बहिरंग में एकदम परिवर्तन हो गया। वस्तु निरूपण के स्थान पर अनुभूति निरूपण को प्रधानता प्राप्त हुई थी। प्रकृति का प्राणमय प्रदेश कविता में आया। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, सुमित्रानन्दन पंत और महादेवी वर्मा “छायावादी युग” के चार प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। छायावाद के कविजयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख कवि हैं।
रामकुमार वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी, हरिवंशराय बच्चन और रामधारी सिंह दिनकर को भी “छायावाद” ने प्रभावित किया। किंतु रामकुमार वर्मा आगे चलकर नाटककार के रूप में प्रसिद्ध हुए, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रवादी धारा की ओर रहे, बच्चन ने प्रेम के राग को मुखर किया और दिनकर जी ने विद्रोह की आग को आवाज़ दी। अन्य कवियों में हरिकृष्ण “प्रेमी”, जानकी वल्लभ शास्त्री, भगवतीचरण वर्मा, उदयशंकर भट्ट, नरेन्द्र शर्मा, रामेश्वर शुक्ल “अंचल” के नाम भी उल्लेखनीय हैं। रचना की द्रष्टि से छायावाद के कवि
कवि क्रम अनुसार छायावादी रचनाएँ
छायावादी युग में कवियों का एक वर्ग ऐसा भी था, जो सूरदास, तुलसीदास, सेनापति, बिहारी और घनानंद जैसी समर्थ प्रतिभा संपन्न काव्य-धारा को जीवित रखने के लिए ब्रजभाषा में काव्य रचना कर रहे थे। “भारतेंदु युग” में जहाँ ब्रजभाषा का काव्य प्रचुर मात्रा में लिखा गया, वहीं छायावाद आते-आते ब्रजभाषा में गौण रूप से काव्य रचना लिखी जाती रहीं। इन कवियों का मत था कि ब्रजभाषा में काव्य की लंबी परम्परा ने उसे काव्य के अनुकूल बना दिया है। छायावादी युग में ब्रजभाषा में काव्य रचना करने वाले कवियों में रामनाथ जोतिसी, रामचंद्र शुक्ल, राय कृष्णदास, जगदंबा प्रसाद मिश्र “हितैषी”, दुलारे लाल भार्गव, वियोगी हरि, बालकृष्ण शर्मा “नवीन”, अनूप शर्मा, रामेश्वर “करुण”, किशोरीदास वाजपेयी, उमाशंकर वाजपेयी “उमेश” प्रमुख हैं। रामनाथ जोतिसी की रचनाओं में “रामचंद्रोदय” मुख्य है। इसमें रामकथा को युग के अनुरूप प्रस्तुत किया गया है। इस काव्य पर केशव की “रामचंद्रिका” का प्रभाव लक्षित होता है। विभिन्न छंदों का सफल प्रयोग हुआ है। रामचंद्र शुक्ल, जो मूलत: आलोचक थे, ने “एडविन आर्नल्ड” के आख्यान काव्य “लाइट ऑफ़ एशिया” का “बुद्धचरित” शीर्षक से भावानुवाद किया। शुक्ल जी की भाषा सरल और व्यावहारिक है। राय कृष्णदास कृत “ब्रजरस”, जगदम्बा प्रसाद मिश्र “हितैषी” द्वारा रचित “कवित्त-सवैये” और दुलारेलाल भार्गव की “दुलारे-दोहावली” इस काल की प्रमुख व उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। वियोगी हरि की “वीर सतसई” में राष्ट्रीय भावनाओं की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति हुई है। बालकृष्ण शर्मा “नवीन” ने अनेक स्फुट रचनाएँ लिखीं। लेकिन इनका ब्रजभाषा का वैशिष्टय “ऊर्म्मिला” महाकाव्य में लक्षित होता है, जहाँ इन्होंने उर्मिला का उज्ज्वल चरित्र-चित्रण किया है। अनूप शर्मा के चम्पू काव्य “फेरि-मिलिबो” (1938) में कुरुक्षेत्र में राधा और कृष्ण के पुनर्मिलन का मार्मिक वर्णन है। रामेश्वर “करुण” की “करुण-सतसई” (1930) में करुणा, अनुभूति की तीव्रता और समस्यामूलक अनेक व्यंग्यों को देखा जा सकता है। किशोरी दास वाजपेयी की “तरंगिणी” में रचना की दृष्टि से प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय देखा जा सकता है। उमाशंकर वाजपेयी “उमेश” की रचनाओं में भी भाषा और संवेदना की दृष्टि से नवीनता दिखाई पड़ती है। “इन रचनाओं में नवीनता और छायावादी काव्य की सूक्ष्मता प्रकट हुई है, यदि इस भाषा का काव्य परिमाण में अधिक होता तो यह काल ब्रजभाषा का छायावाद साबित होता।” छायावादी युग की प्रमुख रचनाएं एवं कवियों की सूचीछायावादी युग के कवियों को दो भागों में बांटा गया है- मुख्य छायावादी युग के कवि एवं राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा के कवि। छायावादी युग के कवियों में जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, राम कुमार वर्मा, उदय शंकर भट्ट, वियोगी, लक्ष्मी नारायण मिश्र, जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ तथा राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा के कवियों में माखन लाल चतुर्वेदी, सिया राम शरण गुप्त, सुभद्रा कुमारी चौहान आदि आते हैं। मुख्य छायावादी काव्य धारा और राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा। दोनों प्रकार के छायावादी कवि और उनकी रचनाएँ नीचे दी हुई हैं- छायावादी काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
राष्ट्रवादी सांस्कृतिक काव्य धारा के कवि और उनकी रचनाएँ
छायावाद युग की विशेषताएं
छायावाद युग में विविध काव्य रूपों का प्रयोग हुआ
मुक्तक काव्यमुक्तक, काव्य या कविता का वह प्रकार है जिसमें प्रबन्धकीयता न हो। इसमें एक छन्द में कथित बात का दूसरे छन्द में कही गयी बात से कोई सम्बन्ध या तारतम्य होना आवश्यक नहीं है। कबीर एवं रहीम के दोहे; मीराबाई के पद्य आदि सब मुक्तक रचनाएं हैं। हिन्दी के रीतिकाल में अधिकांश मुक्तक काव्यों की रचना हुई। मुक्तक शब्द का अर्थ है ‘अपने आप में सम्पूर्ण’ अथवा ‘अन्य निरपेक्ष वस्तु’ होना. अत: मुक्तक काव्य की वह विधा है जिसमें कथा का कोई पूर्वापर संबंध नहीं होता। प्रत्येक छंद अपने आप में पूर्णत: स्वतंत्र और सम्पूर्ण अर्थ देने वाला होता है।
इस प्रष्ठ में छायावादी युग का साहित्य, काव्य, रचनाएं, रचनाकार, साहित्यकार या लेखक दिये हुए हैं। छायावादी युग के प्रमुख कवि, काव्य, गद्य रचनाएँ एवं रचयिता या रचनाकार विभिन्न परीक्षाओं की द्रष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
निम्नलिखित में छायावादी कवि कौन हैं?जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
निम्नलिखित में से कौन छायावादी कवि नहीं है?Detailed Solution. शिवमंगल सिंह सुमन छायावादी कवि नहीं है। अन्य विकल्प असंगत है । अतः सही उत्तर विकल्प 4 शिवमंगल सिंह सुमन होगा ।
छायावादी कवि कितने हैं?जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा इस युग के चार प्रमुख कवि हैं। “छायावाद” का केवल पहला अर्थात् मूल अर्थ लेकर तो हिन्दी काव्य क्षेत्र में चलने वाली महादेवी वर्मा ही हैं।
छायावाद पुस्तक के लेखक कौन है?मुकुटधर पांडेय ने 1920 की जुलाई, सितंबर, नवंबर और दिसंबर की श्रीशारदा (जबलपुर) में 'हिंदी में छायावाद' शीर्षक से चार निबंधों की एक लेखमाला छपवाई थी। जब तक किसी प्राचीनतर सामग्री का पता नहीं चलता, इसी को छायावाद-संबंधी सर्वप्रथम निबंध कहा जा सकता है।
|