निम्नलिखित नदियों में कौन पूर्व की ओर प्रवाहित नहीं होती 1⃣ बैतरणी 2⃣ स्वर्णरेखा 3⃣ तापी 4⃣ कृष्णा - nimnalikhit nadiyon mein kaun poorv kee or pravaahit nahin hotee 1⃣ baitaranee 2⃣ svarnarekha 3⃣ taapee 4⃣ krshna

नमस्कार दोस्तों ! आज हमलोग भारतीय अपवाह तंत्र के अंतर्गत दक्षिण भारत के पठार या प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली प्रमुख नदी तंत्रों के बारे में जानेंगे। भारतीय अपवाह तंत्र को उद्गम स्रोत के आधार पर दो भागो में विभाजित किया जाता है। पहला, हिमालय पर्वत शृंखला से निकलने वाली नदी तंत्र। जिसे तीन भागो में विभाजित किया जाता है – सिंधु नदी तंत्र, गंगा नदी तंत्र तथा ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र। जबकि दूसरे के अंतर्गत प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदी तंत्रों को शामिल किया जाता है।

Table of Contents

  • भारत के प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र क्या है ?
  • प्रायद्वीपीय पठार के नदी तंत्र की क्या विशेषताएं है ?
  • प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का विकास कैसे हुआ है ?
  • प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां
    • 1 . अरब सागर में गिरने वाली नदियां
      • लूनी नदी
      • साबरमती नदी
      • माही नदी
      • नर्मदा नदी
      • तापी ( ताप्ती ) नदी
      • शरावती नदी
      • भरतपूझा ( भरतपूजा ) नदी
      • पेरियार नदी
    • 2. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
      • स्वर्णरेखा नदी
      • वैतरणी नदी
      • ब्रह्मणी नदी
      • महानदी
      • गोदावरी नदी
      • कृष्णा नदी
      • कावेरी नदी

भारत के प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र क्या है ?

भारतीय प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों के जाल को प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र कहा जाता है। ये नदी तंत्र पठारी क्षेत्र में स्थित होने के कारण कई छोटे-बड़े अपवाह तंत्रो में विभाजित है। जिसमे स्वर्णरेखा नदी तंत्र, महानदी अपवाह तंत्र, गोदावरी नदी तंत्र, कृष्णा नदी तंत्र, कावेरी नदी तंत्र प्रमुख है जो पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। जबकि माही नदी तंत्र, साबरमती नदी तंत्र, नर्मदा नदी तंत्र, तापी नदी तंत्र अपना जल पश्चिम की ओर प्रवाहित करते हुए अरब सागर में मिल जाती है।

निम्नलिखित नदियों में कौन पूर्व की ओर प्रवाहित नहीं होती 1⃣ बैतरणी 2⃣ स्वर्णरेखा 3⃣ तापी 4⃣ कृष्णा - nimnalikhit nadiyon mein kaun poorv kee or pravaahit nahin hotee 1⃣ baitaranee 2⃣ svarnarekha 3⃣ taapee 4⃣ krshna
प्रायद्वीपीय नदी तंत्र

इसमें से अधिकांश नदी तंत्र का उद्गम स्थल पश्चिमी घाट है। पश्चिमी घाट ही प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र के लिया प्रमुख जल विभाजक का काम करती है। इसके पूर्वी ढाल से निकलने वाली नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती है। वही पश्चिमी ढाल से निकलने वाली नदियां अरब सागर में गिरती है।

प्रायद्वीपीय पठार के नदी तंत्र की क्या विशेषताएं है ?

भारत के प्रायद्वीपीय पठार में बहने वाली नदी तंत्रो में कई विशेषताएं है। जो इन्हें हिमालीय अपवाह तंत्र से अलग करती है। कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित इस प्रकार है।

  • प्रायद्वीपीय नदी तंत्र हिमालीय नदी तंत्र से प्राचीन कल की है।
  • यहाँ की अधिकांश नदियां प्रौढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी है।
  • इसकी घाटियां अधिक चौड़ी एवं उथली पाई जाती है।
  • यहाँ से निकलने वाली नदियों की लम्बाई हिमालीय नदियों के अपेक्षा छोटी होती है।
  • प्रायद्वीपीय नदियां के जल का स्रोत सिर्फ वर्षा होती है। अतः ये बरसाती होती है।
  • बरसात के समय ये नदियां विकराल रूप धारणकर लेती है। वही शीत ऋतू और ग्रीष्म ऋतू में सुख जाती है।
  • ये नदियां अपने मार्ग पर नदी क्षिप्रिकाएँ, झरना, जल प्रपात का निर्माण करती है।
  • यहाँ की नदियां अपने मार्ग में नदी विषर्प का निर्माण नहीं करती है।
  • प्रायद्वीपीय नदियां जलगम्य एवं सिचाई के लिए उपयुक्त नहीं होती है।
  • ये नदियां अपने सीधे मार्ग में प्रवाहित होती है। बार-बार अपना मार्ग नहीं बदलती है।
  • प्रायद्वीपीय नदियाों का जल अधिग्रहण क्षेत्र अपेक्षाकृत छोटी होती है।
  • अरब सागर में गिरने वाली नदियां अपने मुहाने पर ज्वारनदमुख ( एस्चुरी ) का निर्माण करती है।
  • नर्मदा और तापी नदी भ्रंश घाटी में प्रवाहित होती है।
  • बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां बड़े- बड़े डेल्टे का निर्माण करती है।

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र का विकास कैसे हुआ है ?

वर्त्तमान समय में प्रायद्वीपीय पठार के अपवाह तंत्र का स्वरूप का विकास प्राचीनकाल की तीन प्रमुख भूगर्भिक घटनाओं द्वारा निर्धारित क्या गया है।

  1. प्राम्भिक टर्शियरी काल में प्रायद्वीपीय पठार का पश्चिमी किनारा का अवतलन या धंसाव के कारण यह नीचे चला गया जिसके कारण मूल जल विभाजक के ( पश्चिमी घाट ) के दोनों ओर नदी की समान्यतः सम्मित योजना में गड़बड़ी हो गई।
  2. हिमालय पर्वत के उत्थान के कारण प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी भाग में अवतलन हुआ जिसके कारण भ्रंश घाटियों का निर्माण हुआ। इसी भ्रंश घाटियों में नर्मदा और तापी नदी प्रवाहित हो रही है। और इसी कारण से नर्मदा और तापी नदी में जलोढ़ो की मात्रा कम पाई जाती है। जिससे इनके मुहाने पर डेल्टे का निर्माण नहीं हो पाता और ये अपने मुहाने में ज्वारनदमुख ( एस्चुरी ) का निर्माण करती है।
  3. हिमालय पर्वत के उत्थान के समय में प्रायद्वीपीय पठार उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा में झुक गया। जिसके कारण यहाँ पर विकसित अपवाह तंत्र का बहाव बंगाल की खाड़ी की ओर हो गया है।

प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र की प्रमुख नदियां

यहाँ से निकलने वाली नदियों को जल विसर्जन के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. अरब सागर में गिरने वाली नदियां।
  2. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां।

1 . अरब सागर में गिरने वाली नदियां

इसके अंतर्गत उन सभी नदियों को शामिल किया जाता है। जो अपना जल अरब सागर में गिराती है या इनका अंतिम संगम अरब सागर में होता है। कुछ प्रमुख नदियां निम्नलिखित इस प्रकार है।

लूनी नदी

यह नदी तंत्र राजस्थान तथा थार के मरुस्थल का सबसे बड़ी नदी तंत्र है। इसकी लम्बाई 495 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 37,363 वर्ग किमी है। इसकी उत्पति अरावली पहाड़ी के पश्चिमी ढाल में राजस्थान के पुष्कर के समीप दो धाराओं सरस्वती और सागरमती के रूप में उत्पन्न होती है जो गोविंदगढ़ के निकट आपस में मिलती है। जिसके बाद इसको लूनी नदी के नाम से जानी जाती है। इसके बाद यह नदी तलवाड़ा तक यह पश्चिम दिशा में बहती है।

जोजड़ी इसके दाएं पर मिलने वाली एक मात्र प्रमुख नदी है जिसके बाद इसकी दिशा दक्षिण की ओर हो जाती है। जहाँ इसके बाएं किनारे पर अरावली से निकलने वाली कई नदियां इसमें मिलती है। जिसमे सुकड़ी, मीठड़ी, लीलड़ी, जवाई, सागी, बांडी एवं खारी प्रमुख सहायक नदियां है। यह नदी तंत्र एक मौसमी या अल्पकालीन नदी तंत्र है। इसका जल बलोतरा के नीचे खारी तथा ऊपर में मीठी होती है। अंत में यह दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए गुजरात के ‘कक्ष का रन’ ( अरब सागर ) में मिल जाती है।

साबरमती नदी

इस नदी का उद्गम अरावली पर्वत के दक्षिण में राजस्थान के डूंगरपुर जिले से हुई है। यह एक संकीर्ण अपवाह बेसिन में प्रवाहित होती है। जिसका क्षेत्रफल 21,700 वर्ग किमी तथा इसकी लम्बाई 300 किमी है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए खम्भात की खाड़ी, अरब सागर में मिल जाती है। इसकी छोटी-छोटी सहायक नदियां इसके दाएं किनारे पर मिलती है।

माही नदी

इस नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के धार जिले के विंध्याचल पर्वत के ‘अममाऊ’ स्थान से होता है। यह नदी अपने उद्गम स्थान से उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में प्रवेश करती है इसके बाद राजस्थान के डूंगरपुर होते हुए गुजरात में पहुँचती है। अंत में खम्भात की खाड़ी अरब सागर में मिल जाती है। इसकी लम्बाई 576 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 34,842 वर्ग किमी है।

माही नदी भारत की एक मात्र ऐसी नदी है जो कर्क रेखा को दो बार काटती है। इस नदी पर माही बजाज सागर, कडाणा बांध, वनाकबोरी बांध का निर्माण किया गया है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां सोम, जाखम, मोरन, अनस, पनम, इरु, नोरी, चैप, और भादर आदि है।

नर्मदा नदी

यह नदी अमरकंटक की पहाड़ी से 1,057 मीटर की उचाई से निकलती है तथा यह एक संकरी, गहरी और सीधी घाटी में पश्चिम की ओर 1,312 किमी बहती हुई भरुच के निकट अरब सागर में मिल जाती है। यह नदी विंध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ी के मध्य प्रवाहित होती है। इसका अपवाह क्षेत्र 93,180 किमी है।

यह नदी भ्रंश घाटी ( Rift Valley ) में संगमरमर के चट्टानों से होकर गुजरती है और कई छोटे बड़े जलप्रपात एवं क्षिप्रिकाएँ का निर्माण करती है। मध्य प्रदेश के जबलपुर के पास धुआँधार ( भेड़ा घाट ) जलप्रपात का निर्माण करती है। यह एक संकरी घाटी में बहने के कारण इसमें सहायक नदियों का आभाव पाया जाता है।ओरिसन नदी इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी है। जिसकी लम्बाई 300 किमी है। सरदार सरोवर बांध एवं सरदार बल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा का निर्माण इसी नदी पर किया गया है।

तापी ( ताप्ती ) नदी

इस नदी की उत्पत्ति मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में महादेव पहाड़ी के दक्षिण में मुलताई ( मूल ताप्ती ) नगर के पास 762 मीटर की उचाई से हुई है। इसकी लम्बाई 724 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 65,145 वर्ग किमी है। यह अरब सागर में गिरने वाली नर्मदा नदी के बाद दूसरी प्रमुख नदी है। यह अपने उद्गम स्थल से सतपुड़ा पहाड़ी के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होते हुए गुजरात के सूरत शहर के निकट ज्वारनदमुख का निर्माण करते हुए अरब सागर में मिल जाती है।

इस नदी के बाएं तट पर पूर्णा, बेघर, गिरना, बोरी और पांझर आदि सहायक नदियां मिलती है तथा दाहिने तट पर अनेर प्रमुख सहायक नदी है। इसका अपवाह क्षेत्र का 79 प्रतिशत भाग महाराष्ट्र में, 15 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश में और शेष 6 प्रतिशत भाग गुजरात में स्थित है।

शरावती नदी

इस नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक के शिमोगा जिले में अम्बुतीर्थ नामक स्थान के पास से हुआ है। यह अपने उद्गम स्थान से 128 किमी दूरी तय करते हुए अरब सागर में मिल जाती है। इसका अपवाह क्षेत्र 2,029 वर्ग किमी है। यह नदी पूर्ण रूप से कर्नाटक में प्रवाहित होती है जिसका अधिकांश हिस्सा पश्चिमी घाट में है।

भारत का सबसे ऊँचा जल प्रपात जोग या गरसोप्पा जल प्रपात स्थित है जिसकी उचाई 253 मीटर है इसी जल प्रपात पर शरावती जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया गया है।

भरतपूझा ( भरतपूजा ) नदी

भरतपूझा नदी केरल राज्य की सबसे बड़ी नदी है। इसकी उत्पत्ति अन्नामलाई की पहाड़ी से हुई है। इसकी कुल लम्बाई 250 किमी है जिसमे से 209 किमी केरल तथा 4 किमी तमिलनाडू में प्रवाहित होती है। इसका अपवाह क्षेत्र 5,397 किमी है।

पेरियार नदी

पेरियार नदी केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी है। यह नदी पश्चिमी घाट से निकलकर तमिलनाडु तथा केरल में पश्चिम दिशा में बहते हुए अरब सागर में मिल जाती है। इसकी लम्बाई 244 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 5,243 वर्ग किमी है।

इस नदी पर इडुक्की बांध का निर्माण किया गया है। इसी पर पेरियार जलविद्युत परियोजना का विकास किया गया है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां मुलयार, मुथिरपुझा, चेरुथोनी, पेरिंजनकुट्टी, एडमाला नदी आदि है। नेरियामंगलम, पल्लिवासल, पनियार, कंडलम, चेनकुलम इस नदी पर अन्य महत्वपूर्ण बांध है।

उपरोक्त नदियों के अलावे अरब सागर में गिरने वाली अन्य महत्वपूर्ण नदियां वैतरणा नदी जिसका उद्गम नासिक जिले के त्रिंबक पहाड़ियों में 670 मीटर की उचाई से निकलती है। कालिंदी नदी बेलगांव जिले से निकलकर करवाड की खाड़ी में गिरती है। मांडवी और जुआरी नदियां गोवा की प्रमुख नदियां है जो अरब सागर में मिलती है।

2. बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां

इसके अंतर्गत प्रायद्वीपीय पठार के उन नदियों को शामिल क्या जाता है जो नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में विसर्जित करती है। कुछ प्रमुख नदियां निम्नलिखित इस प्रकार है।

स्वर्णरेखा नदी

यह नदी झारखण्ड के रांची के दक्षिण-पश्चिम में पिस्का नगदी प्रखंड से निकलती है। अपने उद्गम स्थन से यह नदी दक्षिण- पूर्व की ओर प्रवाहित होते हुए ओडिसा में प्रवेश करती है और अंत में ओडिसा के बालासोर के निकट बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी लम्बाई 400 किमी है। तथा अपवाह बेसिन 19,296 वर्ग किमी है।

इसके रेत में सोने के कण पाए जाने के कारण इसे स्वर्णरेखा का नमकरण किया गया है। इसकी प्रमुख सहायक नदियां राढू, काँची, खरकई, गारानाल, जमार, करकरी आदि है। स्वर्णरेखा तथा इसकी सहायक नदियां अपने प्रवाह मार्ग में कई जलप्रपात का निर्माण करती है। जैसे- हुंडरू जलप्रपात ( स्वर्णरेखा नदी ), दशम जलप्रपात ( काँची नदी ), गौतमधारा जलप्रपात ( राढू नदी ) आदि।

इस नदी पर गेतलसूद और चांडिल बांध बनाया गया है। स्वर्णरेखा और खरकई के संगम स्थल पर भारत का पिट्सबर्ग जमशेदपुर शहर का विकास हुआ है।

वैतरणी नदी

इस नदी का उद्गम ओडिसा के केंदूझर जिले के गुप्त गंगा पहाड़ी के गोनासिका स्थल से हुई है। इसकी लम्बाई 365 किमी है। यह नदी ओडिसा के बालेश्वर जिला में ब्राह्मणी नदी के डेल्टाई क्षेत्र में बाएं तट पर मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी का जिक्र हिन्दु धार्मिक ग्रन्थ गरुढ़ पुराण तथा महाभारत में किया गया है। इसे ओडिसा की गंगा नदी कहा जाता है।

महाराष्ट्र में वैतरणा नदी है जो पश्चिमी घाट से निकलकर पश्चिम में अरब सागर में मिल जाती है।

ब्रह्मणी नदी

यह नदी झारखण्ड के दक्षिण-पश्चिम से निकलने वाली दो प्रमुख नदियां दक्षिणी कोयल और शंख नदी के मिलने के बाद बानी है। दक्षिणी कोयल का उद्गम झारखण्ड के रांची के पठार से होता है तथा शंख नदी का झारखण्ड के गुमला जिले से निकलती है। दोनों नदियां दक्षिण की ओर प्रवाहित होते हुए ओडिसा के राउरकेला में मिलती है इसके बाद इन्हे ब्राह्मणी नदी कहा जाता है।

यहाँ से यह नदी गर्जत पहाड़ियों को पार करते हुए बोने, तलचर एवं बालासोर जिलों से होकर बहती है तथा अंत में पारादीप बंदरगह के ऊपर धासर के पास बैतरणी नदी इसके मुहाने में मिलती है और अंत में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। इसकी लम्बाई 420 किमी है तथा इसका अपवाह क्षेत्र 39,033 वर्ग किमी है।

महानदी

महानदी का उद्गम छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में ‘सिहुआ‘ के निकट से निकलती है। अपने उद्गम के बाद यह नदी उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होती है जहाँ इसमें शिवनाथ एवं संदूर प्रमुख प्रमुख सहायक नदियां मिलती है। यहाँ यह नदी इस क्षेत्र में गहरे महाखड्ड का निर्माण करती है जहाँ पर भारत का सबसे लम्बा हीराकुंड बांध का निर्माण किया गया है। इसके बाद संबलपुर में यह नदी पूर्व की ओर मुड़ जाती है और अंत में बंगाल कि खाड़ी में कई धाराओं के साथ मिल जाती है।

इसकी लम्बाई 851 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 1,41,589 वर्ग किमी है। जिसमे से 53 प्रतिशत अपवाह क्षेत्र मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में है तथा 47 प्रतिशत अपवाह क्षेत्र ओडिसा राज्य में है। इस नदी के निचला भाग नौगम्य है। जहाँ से जल परिवहन किया जाता है। इसमें शिवनाथ, हसदो, मांद, ईब, जोकिंग तथा तेल प्रमुख सहायक नदियां मिलती है।

गोदावरी नदी

प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी एवं लम्बी नदी गोदावरी है। गोदावरी नदी को दक्षिण भारत की गंगा कही जाती है। यह पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल से नकलती है और दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, बस्तर का पठार ( छत्तीसगढ़ ) तथा तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में प्रवाहित होते हुए अंत में कोलेरु झील के उत्तर में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

इसकी लम्बाई 1,465 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 3,12,812 वर्ग किमी है जिसमे से 49 प्रतिशत अपवाह क्षेत्र महाराष्ट्र में, 20 प्रतिशत मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में और 31 प्रतिशत भाग तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश में है। यह गंगा के नाम से भी जानी जाती है।

इसके बाएं तट पर पूर्णा, मनेर, पेनगंगा, वेनगंगा, वर्धा, इंद्रावती, ताल तथा साबरी प्रमुख सहायक नदियां मिलती है। वेनगंगा और वर्धा को संयुक्त रूप से प्राणहिता नदी कहा जाता है। इसके दाहिने तट पर मिलने वाली प्रमुख सहायक नदी मंजीरा है। आंध्रप्रदेश के राजामुंदरी के बाद यह नदी कई धराओं में बंटकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है और वृहत डेल्टे का निर्माण करती है। यह नदी डेल्टाई प्रदेश में नवगम्य है।

कृष्णा नदी

प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी कृष्णा है। इसकी उत्पत्ति महाराष्ट्र के महाबलेश्वर के निकट सह्याद्रि ( पश्चिमी घाट ) से एक झरने से होती है। यह नदी अपने उद्गम से मुहाने तक महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में 1401 किमी दूरी तय करते हुए कोलेरु झील के दक्षिण में डेल्टे का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

इसका कुल अपवाह क्षेत्र 2,59,000 वर्ग किमी है जिसमे से 27 प्रतिशत अपवाह क्षेत्र महाराष्ट्र, 44 प्रतिशत कर्नाटक तथा 29 प्रतिशत तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अपवाहित है। इसकी प्रमुख सहायक नदियों में कोयना, भीमा, तुंगभद्रा, घाटप्रभा, पंचगंगा, दूधगंगा, मालप्रभा, मुसी आदि प्रमुख है।

कावेरी नदी

यह नदी कर्नाटक के कोडागु जिले में चेरंगला गांव के निकट ब्रह्मगिरि पहाड़ियों से 1341 मीटर की उचाई से निकलती है। यह अपने उद्द्गम स्थल से दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर कर्नाटक और तमिलनाडु में प्रवाहित होते हुए कावेरी पत्तनम के निकट बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

इसकी कुल लम्बाई 800 किमी तथा अपवाह क्षेत्र 67,900 वर्ग किमी है इसमें से कर्नाटक में 41 प्रतिशत, तमिलनाडु में 56 प्रतिशत तथा केरल में 3 प्रतिशत अपवाह क्षेत्र है। इसके बाएं तट पर हेरंगी, हेमवती, शिम्शा, तथा अर्कावती प्रमुख सहायक नदियां है। जबकि इसके दाहिने तट पर लक्ष्मण तीर्थ, काबिनी, सुवर्णवती, भवानी तथा अमरावती प्रमुख सहायक नदियां मिलती है।

यह नदी प्रायद्वीपीय पठार की नदियों में अलग स्थान रखती है। क्योकि इस नदी में सालोभर जलप्रवाह बनी रहती है। जिसके पीछे कारण यह है की इसके ऊपरी क्षेत्र में ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण पश्चिम मानसून से वर्षा का जल प्राप्त करती है वही निचली भागो में सहित ऋतु में उत्तर-पूर्वी मानसून के द्वारा जल प्राप्त करती है। जिससे इसमें समान्य जलप्रवाह बनी रहती है।

उपरोक्त बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के अतिरिक्त और भी प्रायद्वीपीय नदी तंत्र कुछ छोटी नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती है। जैसे-वामसाधारा, पेन्ना , पालार, वैगाई आदि प्रमुख है।

कौन सी नदियां पूर्व की ओर प्रवाहित नहीं होती है?

Expert-Verified Answer (c) तापी नदी पूर्व की ओर प्रवाहित नहीं होती हैं। तापी पश्चिमी भारत की प्रसिद्ध नदी है।

कौन सी नदी पूर्व की ओर जाती है?

विपरीत दिशा में बहने वाली उस नदी का नाम है नर्मदा। इस नदी का एक अन्य नाम रेवा भी है। गंगा सहित अन्य नदियां जहां पश्चिम से पूर्व की ओर बहते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, वहीं नर्मदा नदी बंगाल की खाड़ी की बजाय अरब सागर में जाकर मिलती है

नदी की तीन अवस्थाएं कौन कौन से हैं?

नदी अपने जीवन काल में युवा अवस्था (Youth stage), प्रौढ़ अवस्था (Mature stage) तथा वृद्धावस्था (Old stage) से गुजरती है। इन अवस्थाओं का सम्बन्ध उसके कछार के ढाल से होता है। अपनी युवावस्था तथा प्रौढ़ावस्था में नदी अपने कछार में भूआकृतियों (Land forms) का निर्माण करती है।

निम्नलिखित में से कौन सी नदी पंचनंद में शामिल नहीं है?

Detailed Solution सही उत्तर सिंधु है।