पंचायत समिति को यूपी में क्या कहते हैं? - panchaayat samiti ko yoopee mein kya kahate hain?

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पंचायत समिति तहसील (तालुक) के रूप में भारत में सरकार की स्थानीय इकाई होती है। यह उस तहसील के सभी गाँवों पर सामान रूप से कार्य करता है और इसको प्रशासनिक ब्लॉक भी कहते हैं। यह ग्राम पंचायत और जिला परिषद के मध्य की कड़ी होती है।[1] इस संस्था का विभिन्न राज्यों में भिन्न नाम हैं। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में इसे मंडल प्रजा परिषद्, गुजरात में तालुका पंचायत और कर्नाटक में मंडल पंचायत के नाम से जाना जाता है।

पंचायत समिति को यूपी में क्या कहते हैं? - panchaayat samiti ko yoopee mein kya kahate hain?

भारत की प्रशासनिक प्रणाली

आम तौर पर, क्षेत्रवार चुने गए सदस्यों और खंड विकास अधिकारी, अन्यथा अपूर्वदृष्ट सदस्यों (अनुसूचित जाति, जनजाति और महिला प्रतिनिधि), सह-सदस्य (उदाहरण के लिए उस क्षेत्र का बड़ा किसान, सहकारी समितियों के प्रतिनिधि और कृषि विपणन सेवा क्षेत्र से) तथा जिला परिषद के लिए तहसील स्तर पर चुने गये सदस्य मिलकर पंचायत समिति का निर्माण होता हैं।[2]

इस समिति का चुनाव पाँच वर्षों से होता है और इसके अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का चुनाव, चुने हुये सदस्य मिलकर करते हैं।[2] इसके अलावा अन्य सभी पंचायत समितियों पर्यवेक्षण के लिए एक सरपंच समिति भी होती है।

मंडल परिषदों की संरचना

मंडल परिषद् का निर्माण राजस्व मंडल से इस प्रकार होता है कि मंडल परिषद् और राजस्व मंडल का दायरा लगभग समान होता है। मंडल परिषद् निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनी होती है::

  • मंडल परिषद प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र सदस्य।
  • विधायक मंडल में क्षेत्राधिकार रखते हैं।
  • लोकसभा सदस्य मंडल में क्षेत्राधिकार रखते हैं।
  • मंडल के वो मतदाता जो राज्य परिषद् के सदस्य हैं।
  • अल्पसंख्यक वर्ग से सहयोजित एक सदस्य।
  • मंडल परिषद प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र सदस्य, जिनका चुनाव सीधा मतदाता करते हैं और इन सदस्यों द्वारा चुना गया मंडल अध्यक्ष। पाँच वर्ष के लिए चुने गये सदस्य, इनका चुनाव राजनीतिक दल के आधार पर किया जाता है। इन चुनावों का संचालन राज्य चुनाव आयोग करता है।

सम्बंधित मंडल के गाँवों के सभी सरपंच, मंडल परिषद् बैठकों के स्थायी आमंत्रित सदस्य होते हैं।

पंचायत समिति में सामान्यतः निम्न विभाग सर्वत्र पाये जाते हैं:[1]

  1. प्रशासन
  2. वित्त
  3. लोक निर्माण कार्य (विशेष रूप से पानी और सड़कें)
  4. कृषि
  5. स्वास्थ्य
  6. शिक्षा
  7. समाज कल्याण
  8. सूचना प्रौद्योगिकी
  9. महिला एवं बाल विकास

पंचायत समिति में प्रत्येक विभाग का अपना एक अधिकारी होता है, अधिकतर ये राज्य सरकार द्वारा नियुक्त सरकारी कर्मचारी होते हैं जो अतिरिक्त कार्यभार के रूप में यह कार्य करते हैं लेकिन कभी-कभी अधिक राजस्व वाली पंचायत समिति में ये स्थानीय कर्मचारी भी हो सकते हैं। सरकार नियुक्त प्रखंड विकास पदाधिकारी (बीडीओ) इन अतिरिक्त कार्यभार अधिकारियों और पंचायत समिति का पर्यवेक्षक होता है और वास्तव में सभी कार्यों का प्रशासनिक मुखिया होता है।[3]

पंचायत समिति, ग्राम पंचायत स्तर द्वारा तैयार किये गयी सभी भावी योजनाओं को संग्रहीत करती है और उनका वित्तीय प्रतिबद्धता, समाज कल्याण और क्षेत्र विकास को ध्यान में रखते हुये लागू करवाती है तथा वित्त पोषण के लिए उनका क्रियान्वयन करती है।

पंचायत समिति की आय निम्न तीन स्रोतों से होती है:[4][5][6]

  1. जल उपयोग एवं भूमि कर, पेशेवर कर, शराब कर और अन्य
  2. आय सृजन कार्यक्रम
  3. राज्य सरकार और स्थानीय जिला परिषद से सहायता अनुदान और ऋण
  4. स्वैच्छिक योगदान

अधिकतर पंचायत समितियों की आय का स्रोत राज्य सरकार द्वारा दिया गया अनुदान होता है। अन्य स्रोतों से पारम्परिक कार्यक्रम बहुत बड़ा राजस्व प्राप्त करने का स्रोत होता है। राजस्व कर सामान्यतः ग्राम पंचायतों और पंचायत समिति में साझा किया जाता है।[4][6]

पंचायत समिति के सदस्य कौन होता है?

सभी पंचायत समितियों के अध्यक्ष जिला परिषद् के सदस्य होते हैं । यह राज्य सरकार और पंचायत समिति के बीच की कड़ी है। जिला स्तरीय पंचायत के मुख्य कार्य - बेहतर बीज की आपूर्ति, स्कूल चलाना, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र व अस्पताल चलाना, पुल और सड़कें आदि बनाना है । * महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाना एक प्रमुख मुद्दा है।

उत्तर प्रदेश में पंचायती राज कब लागू हुआ?

उत्तर प्रदेश में पंचायती राज्यव्यवस्था वर्ष १९५२ से लागू है। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में त्रि -स्तरीय पंचायत व्यवस्था लागू है।

ग्राम पंचायत के मुखिया को क्या कहते हैं?

सरपंच, ग्राम सभा का चुना हुआ सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है। प्राचीन काल से ही भारतवर्ष के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन में पंचायत का महत्वपूर्ण स्थान रहा है।

पंचायती राज्य का क्या अर्थ है?

पंचायती राज वह व्यवस्था प्रणाली है जिसके अंतर्गत ग्रामीण स्तर पर अनेकों कार्य किए जाते हैं। जिस प्रकार नगरपालिका द्वारा शहरी क्षेत्रों का स्वशासन होता है उसी प्रकार पंचायती राज संस्था के माध्यम से भी ग्रामीण क्षेत्रों का स्वशासन संभव होता है। पंचायती राज को ग्रामीण स्थानीय सरकार के रूप में भी जाना जाता है।