पूर्णिमा का व्रत कब और कैसे किया जाता है? - poornima ka vrat kab aur kaise kiya jaata hai?

Kartik Purnima 2022 Date and Timing: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने से मनुष्य को सौ अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल मिलता है. आइए जानते हैं इस दिन का महत्व.

पूर्णिमा का व्रत कब और कैसे किया जाता है? - poornima ka vrat kab aur kaise kiya jaata hai?

Kartik Purnima 2022 Date and Timing: हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है. इस दिन लोग व्रत-उपवास करते हैं और भगवान की अराधना करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नना करना महत्वपूर्ण माना गया है और कहते हैं कि इस दिन स्नान व दान आदि करने से मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं इस साल कब है कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, शुभ मुहूर्त और महत्व.

कब है कार्तिक पूर्णिमा 2022

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है. इस दिन विशेष तौर पर भगवान विष्णु का पूजन होता है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा तिथि 7 नवंबर 2022 को शाम 4 बजकर 15 मिनट पर शुरू होगी और इसकी समाप्ति 8 नवंबर 2022 को शाम 4 बजकर 31 मिनट पर होगी. उदयातिथि के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का व्रत 8 नवंबर 2022 को रखा जाएगा.

कार्तिक पूर्णिमा 2022 शुभ मुहूर्त

कार्तिम पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान की परंपरा है और कहते हैं इस दिन व्रत करने से जातक को सौ अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल प्राप्त होता है. इस दिन सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में स्ननान करना शुभ माना जाता है. 8 नवंबर को ब्रह्म मुहूर्त सुबह 4 बजकर 57 मिनट से लेकर सुबह 5 बजकर 49 मिनट तक रहेगा.

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व

हिंदू धर्म में कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व माना गया है. पौ​राणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने असुर त्रिपुरासुर का वध किया था. इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी या त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है. एक अन्य कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्री हरि विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था. इसलिए भी इस दिन का विशेष महत्व है.

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारियां सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं. India.Com इसकी पुष्टि नहीं करता. इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह अवश्य लें.

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Sharad Purnima 2022: शरद पूर्णिमा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। जो कि इस बार 9 अक्टूबर को है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी प्रकट हुई थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं और अपने भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। तो आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा की कथा पूजा विधि और महत्व।

शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, कौमुदी व्रत, जैसे नामों से जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाती है। इस तिथि को धन दायक माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर आती है। चंद्रमा इस दिन अपनी 16 कलाओं से पूर्ण होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत का बरसात होती है।

शरद पूर्णिमा की कथा
हर महीने में पड़ने वाली पूर्णिमा तिथि पर व्रत करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक साहूकार की दो बेटियां महीने में आने वाली हर पूर्णिमा को व्रत किया करती थी। इन दोनों बेटियों में बड़ी बेटी पूर्णिमा का व्रत पूरे विधि-विधान से किया करती थी। जबकि छोटी बेटी व्रत तो करती थी लेकिन नियमों में उस तरह से पालन नहीं करती थी। नियमों को आडंबर मानकर उनकी अनदेखी करती थी।

जैसी ही दोनों बेटी बड़ी हुई साहूकार ने दोनों दोनों बेटियों का विवाह कर दिया। बड़ी बेटी के घर समय पर स्वस्थ संतान का जन्म हुआ। छोटी बेटी को भी संतान हुई लेकिन, उसकी संतान जन्म लेती ही दम तोड़ देती थी। जब उसके साथ ऐसा दो से तीन बार हो गया तो उसने एक ब्राह्मण को बुलाकर अपनी पूरी व्यथा सुनाई साथ ही इसका उपाय बताने के लिए भी कहा। उसकी सारी बात सुनकर और कुछ प्रश्न पूछने के बाद ब्राह्मण ने उससे कहा कि तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इस कारण तुम्हे व्रत का पूरा फल नहीं मिल रहा है और तुम्हे अधूरे व्रत का दोष लगता है। ब्राह्मण की बात सुनकर छोटी बेटी ने पूर्णिमा व्रत पूरे विधि-विधान से करने का निर्णय लिया।

लेकिन पूर्णिमा आने से पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया। जन्म लेते ही बेटे की मृत्यु हो गई। इस पर उसने अपने बेटे शव को एक पीढ़े पर रख दिया और ऊपर से एक कपड़ा इस तरह ढक दिया कि किसी को पता न चले। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। जैसे ही बड़ी बहन उस पीढ़े पर बैठने लगी, उसके लहंगे की किनारी बच्चे को छू गई और वह जीवित होकर तुरंत रोने लगा। इस पर बड़ी बहन पहले तो डर गई और फिर छोटी बहन पर क्रोधित होकर उसे डांटने लगी कि क्या तुम मुझ पर बच्चे की हत्या का दोष और कलंक लगाना चाहती हो! मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता तो?

इस पर छोटी बहन ने उत्तर दिया, यह बच्चा मरा हुआ तो पहले से ही था। दीदी, तुम्हारे तप और स्पर्श के कारण तो यह जीवित हो गया है। पूर्णिमा के दिन जो तुम व्रत और तप किया करती हो, उसके कारण तुम दिव्य तेज से परिपूर्ण और पवित्र हो गई हो। अब मैं भी तुम्हारी ही तरह व्रत और पूजन करूंगी। इसके बाद उसने पूर्णिमा व्रत विधि विधान से किया और इस व्रत के महत्व और फल का पूरे नगर में प्रचार किया। जिस प्रकार मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु ने साहूकार की बड़ी बेटी की कामना पूर्ण कर सौभाग्य प्रदान किया, वैसे ही हम पर भी कृपा करें।

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि
1. शरद पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद अपने इष्टदेव से समझ व्रत का संकल्प लें।

2. ध्यान रखें की पूजा के स्थान को अच्छे से साफ कर लें। इसके बाद मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद मूर्तियों को कुश के आसन पर रखकर जल से पवित्र कर लें। इसके बाद उन्हें गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित करें। इसके बाद पूजा और व्रत का संकल्प दौहराएं।

3. याद रखें की भगवान की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही माता पार्वती और भगवान विष्णु को सफेद या पीले रंग की मिठाई से भोग लगाएं। साथ ही उन्हें लाल और पीले रंग के फूल अर्पित करें।

4. शाम के समय चंद्रमा निकलने पर मिट्टी के 100 दीये या अपनी सामर्थ्य के अनुसार दिये गाय के शुद्ध घी से जलाएं।

5. साथ ही रात के समय छोटे बर्तनों में खीर रखकर उसे चंद्रमा की रोशनी में किसी छलनी से ढककर रख दें। अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि करने के बाद मां लक्ष्मी को खीर अर्पित करें और फिर प्रसाद के रूप में परिवार के सभी लोगों के साथ खीर का भोग ग्रहण करें।
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पूर्णिमा का व्रत कौन से महीने से करना चाहिए?

हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है.

पूर्णिमा का व्रत कैसे शुरू करें?

पूर्णिमा के दिन सुबह में इष्ट देव का पूजन करना चाहिए. इन्द्र और महालक्ष्मी जी का पूजन करके घी के दीपक जलाकर उसकी गन्ध पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए. ब्राह्माणों को खीर का भोजन कराना चाहिए और उन्हें दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिए. लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस व्रत को विशेष रुप से किया जाता है.

पूर्णिमा का व्रत कब से शुरू करें 2022?

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 07 दिसंबर दिन बुधवार को सुबह 08 बजकर 01 मिनट पर होगा. इस तिथि का समापन अगले दिन 08 दिसंबर को सुबह 09 बजकर 37 मिनट पर होगा. उदयातिथि के आधार पर मार्गशीर्ष पूर्णिमा का व्रत 07 दिसंबर बुधवार को होगा और स्नान-दान 08 दिसंबर गुरुवार को किया जाएगा.

पूर्णिमा का व्रत कितना करना चाहिए?

*जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, पूर्णिमा और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।