परदा (कहानी)
यशपाल हिंदी सहित्य के प्रसिद्ध कहानीकार और उपन्यासकार हैं। वैसे तो उन्होंने अनेक कहानियां लिखी हैं लेकिन यशपाल की परदा कहानी बहुत प्रसिद्ध है। यशपाल से पहले प्रसिद्ध कहानीकार के रूप में प्रेमचंद का नाम आता है। उसके बाद देखा जाए तो एक नए युग का प्रारंभ करने का श्रेय यशपाल जी को ही जाता है। यशपाल की कहानियां यथार्थवादी होने के साथ-साथ सामाजिक हैं। उन्होंने अपनी कहानियों में समाज की विभिन्न समस्याओं
का यथावत चित्रण किया है। इसलिए उनको प्रगतिशील और यथार्थवादी कथाकार माना गया है, यसपाल की परदा कहानी हिंदी सहित्य की एक श्रेष्ठ सामाजिक कहानी है जिसमें उन्होंने एक ऐसे मध्यवर्ग के एक परिवार की कहानी को प्रस्तुत किया है जो समाज के सामने अपनी पुरानी ख़ानदानी इज्जत को बनाए रखना चाहता है। अब यह परिवार पहले की तरह अमीर नहीं रहा, घर-परिवार की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कर्ज लेना पड़ता है। लाख कोशिश करने के बाद भी कर्ज की रकम बढ़ाती जाती है लेकिन पीरबख्श अब भी यही चाहता है कि घर की औरतें घर
की दहजीज के भीतर ही रहें क्योंकि उनके यहाँ घर की औरतों का बाहर निकलना अच्छा नहीं माना जाता। लेखक ने झूठी इज्ज़त के नाम पर दिखावा करने और सफेद पोशी के परदे के पीछे छिपी दीनता और दरिद्रता का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है।
कथानक
इसके कथानक की जब हम बात करते हैं तो यह कहानी चौधरी पीरबख्श के परिवार की है जिनके दादा अपने समय में चुंगी के दरोगा थे और उन्होंने अपना मकान भी बनवाया था, किंतु दो ही पीढ़ियों में उनके वंशज पीरबख्श अत्यंत निर्धन
हो गए।
कहानी का आरंभ पीर बख्श के परिवार से होता है। उसके पश्चात जीवन की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए पीरबख्श के चरित्र के रूप में कथानक का विकास होता है। खान से लिया गया उधार न चुका सकने के कारण स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जो भयानक का रूप धारण करती है। इसे कहानी के विकास की अवस्था की दृष्टि से संघर्ष की अवस्था कहा जा सकता है। परदा कहानी में चरम सीमा की अवस्था तब आती है जब पीरबख्श के द्वारा कर्ज का पैसा न लौटाने पर खान क्रोध से पीर बख्श के घर की ड्योढ़ी
पर लटका हुआ टाट का फटा पुराना, गला हुआ पर्दा तोड़कर आंगन में फेंक देता है। उस समय का मार्मिक और प्रभावशाली दृश्य पाठक पर गहरे अवसाद की अमिट छाप छोड़ देता है। इस प्रकार कहानी का कथानक अत्यंत संक्षिप्त है। चौधरी पीरबख्श एक अच्छे घराने के आदमी है पर धीरे धीरे बहुत तंगी में आ जाते हैं घर की इज्जत ढकने के लिए किवाड़ों पर पर्दा लगाए रखते हैं, एक बार मुसीबत में आकर वे एक खान से थोड़े से रुपए कर्ज ले लेते हैं, लेकिन वे समय पर कर्ज चुका नहीं पाते क्योंकि परिवार के बढ़ने से धीरे-धीरे पीरबख्श की
आर्थिक हालत बहुत माली हो जाती है। घर में खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। घर की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु धीरे धीरे घर के गहने और दूसरी बहुमूल्य वस्तुओं को
बेचा जाने लगा। घर की महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी। इसलिए आसपास के लोगों को पीरबख्श की माली हालत की कोई खबर नहीं थी। पीरबख्श की खानदानी इज्ज़त को घर की ड्योढ़ी पर पड़ा परदा बचाये रखता है। लेकिन जब खान क्रोध से किवाड़ों पर टंगे परदे को खिंचता है तो पर्दा हट जाने से लोगों के सामने उनकी वास्तविक
स्थिति सामने आ जाती है और यह वास्तविक स्थिति इतनी ज्यादा भयावह होगी इसकी पाठक ने भी कल्पना नहीं की होगी।
पात्र और चरित्र चित्रण
परदा कहानी में अधिक पात्र नहीं हैं। संपूर्ण कहानी का केंद्रीय चरित्र पीर बख्श है। उसका दूसरा विरोधी चरित्र है- खान का, खान के माध्यम से लेखक ने चौधरी पीर बख्श के चरित्र की विषमताओं को अधिक उभारने का प्रयास किया है, खान की कठोरता, निर्भयता, सूदखोरी की आदत तथा वाणी की कटुता एक प्रकार से समाज के संपूर्ण शोषक, पूंजीपति वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। चौधरी पीर
बख्श का चरित्र चित्रण बहुत ही सजीव हुआ है, उनका चरित्र किस प्रकार अपने घर परिवार के संस्कार से प्रभावित होता है और वह अपनी इज्जत की झूठी भावना से परेशान होते हैं। इसका बहुत ही वैज्ञानिक चित्र यहां खींचा गया है। वस्तुतः पीर बख्श का चरित्र भारतीय समाज के करोड़ों निम्न मध्यवर्गीय लोगों की दीन-हीन दिशा की ओर संकेत करता है। परदा कहानी के पात्र व्यक्तिगत न होकर वर्गगत हैं। इस कहानी के चरित्र चित्रण की यह विशेषता है कि लेखक ने पात्रों के बाहरी व्यक्तित्व और स्वभाव के साथ-साथ अंतरग चित्र को भी बड़ी
सजीता से अंकित किया है|
कथोपकथन
परदा कहानी में कथा कल्पना का बहुत अल्प प्रयोग हुआ है। कहानी का अधिकांश भाग वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक होने के कारण परदा कहानी के संवादों का भी कम विकास हुआ है ।परंतु जहां कहीं भी संवाद आए हैं वह अत्यंत स्वाभाविक और पात्र अनुकूल बन पड़े हैं। जैसे-
खान आग बबूला हो रहा था- "पैसा नहीं देने के वास्ते छिपता है......**** खान क्रोध में डंडा फटकार कर कह रहा था-
पैसा नहीं देना था, लिया क्यों?....
तनख्वाह किधर में जाता ....।
इस तरह संवाद नाम मात्र के होते हुए भी रोचक और पात्रों के अनुकूल हैं।
देश काल और वातावरण
यशपाल समाज के यथार्थ चित्रण करने के चेहरे के रूप में प्रसिद्ध हैं प्रस्तुत कहानी में उन्होंने आधुनिक युग के समाज की स्थिति का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है कहानी उन दिनों की है जब भारत स्वाधीन नहीं हुआ था परंतु उन दिनों हमारे निम्न मध्यवर्ग निम्न वर्गीय समाज की जो स्थिति थी आज भी लगभग वैसी ही है आज भी सफेदपोश वर्ग अपने ऊपर ईशान के नाम पर असलियत को स्वीकार
नहीं कर पाता और चौधरी पीर बख्श की भांति आर्थिक संकट में पिता रहता है लेखक ने इस कहानी में गरीबों की कच्ची और गंदी बस्ती के वातावरण का सजीव चित्र चित्र निम्न पंक्तियों में स्पष्ट किया है आसपास गरीब और कमीनी लोगों की बस्ती थी कच्ची गली के बीचो-बीच गली के मुहाने पर लगे कमेटी के नल से टपकते पानी की काली धार बहती रहती जिसके किनारे घास उग आई थी नानी पर मच्छरों और मक्खियां बादल मरते रहते|
भाषा शैली
परदा कहानी की सफलता का रहस्य यह है उसकी सहज स्वाभाविक भाषा भाषा की स्वाभाविक
ता के कारण ही कहानी यथार्थ के अधिक निकट और मार्मिक बन पड़ी है कहानी की पृष्ठभूमि मुसलमानी जीवन से संबंधित है अतः लेखक में कथा का वर्णन करते समय और वातावरण का चित्रण करते समय स्थिति और पात्रों के अनुकूल ही मुसलमान परिवारों में प्रयोग होने वाली उर्दू शब्दावली का अर्थात भाषा का प्रयोग किया है जैसे महकमा ओहदा माहवार कुनबा इज्जत आदि भाषा प्रयोग में यशपाल में पात्रों की अनुकूलता का भी विशेष ध्यान रखा है पीर बख्श की बातों में नम्रता और गंभीरता है जबकि खान की भाषा में पठानों के स्वभाव के अनुकूल अटपटी और
बिगड़ी हुई शब्दावली की अधिकता है जिसमें कठोरता और उद्दंडता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है कहानी की शैली वर्णनात्मक और चित्रात्मक है यद्यपि कथा तमक शैली नीरज होती है किंतु भाषा की सरलता स्वाभाविक ता के कारण परदा कहानी की शैली मर्मस्पर्शी बन गई है|
उद्देश्य
परदा एक प्रतीकात्मक कहानी है जिसका उद्देश्य हमारे समाज के भीतर खोखलेपन पर बड़े गंभीर और भीतर खोखलेपन पर पड़े हुए आवरण अर्थात पर्दे को हटाकर उसकी असली तस्वीर हमारे सामने प्रस्तुत करना है हमारे समाज का निम्न मध्यवर्ग अशिक्षित
निर्धन शोषित और लाचार होते हुए भी ऊपरी तौर पर एक झूठी शान का दिखावा करने से बाज नहीं आता मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपनी इज्जत को लोगों की निगाहों से जाने नहीं देना चाहता इस इज्जत को ढकने के लिए उसे चाहे जितनी मुसीबत सहनी पड़े वह कहता है लेकिन इस दुनिया में जो यथार्थ है वही सच है अर्थात वही सच निकलता है और झूठी इज्जत की भावना एक दिन जरूर टूटती भावना एक दिन जरूर टूटती अर्थात अर्थात इस लेकिन इस दुनिया में जो यथार्थ है वही सच निकलता है और झूठी इज्जत की भावना एक दिन जरूर टूटती है इस झूठ का टूटना और
यथार्थ के रूप में स्वीकार करना यही इस कहानी का उद्देश्य है| परदा कहानी आदि से अंत तक सामाजिक उद्देश्य को लेकर चली है| लेखक ने भारतीय समाज की दीन- हीन और दलित अवस्था के आवरण को उतार कर स्पष्ट कर दिया है कि इसे दयनीय दशा से छुटकारा प्राप्त करने के लिए वास्तविकता को स्वीकार करना आवश्यक है|
शीर्षक की सार्थकता
शीर्षक की सार्थकता इस बात से सिद्ध होती है कि कहानी के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही कहानी का शीर्षक परदा रखा गया है जो उचित है| निम्न पंक्तियां कहानी के
नामकरण की सार्थकता की ओर ही संकेत करती हैं कि कि "किवाड़ न रहने पर पर्दा ही आबरू का रखवाला था। यह पर्दा भी तार-तार होते होते एक रात आंधी में किसी भी हालत में लटकने लायक में रह गया।" इस प्रकार परदा कहानी एक सामाजिक समस्या प्रधान कहानी है जिसमें कहानी कला का उत्कृष्ट रूप देखा जा सकता है|