शिक्षा से पहले दी जाने वाली शिक्षा को प्राथमिक शिक्षा कहते हैं प्राथमिक शब्द का सामान्य अर्थ है - प्रारम्भिक, मुख्य तथा आधारभूत। इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा से तात्पर्य प्रारम्भिक अथवा आधारभूत शिक्षा से है। प्रारम्भिक स्तर पर सम्पन्न होने के कारण प्राथमिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था का आधार है।
प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्य
प्राथमिक शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण का सर्वप्रथम प्रयास भारतीय शिक्षा आयोग (हण्टर कमीशन, 1882) ने किया। आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के मात्र दो उद्देश्य निर्धारित किये थे - जिसमें प्रथम उद्देश्य जन शिक्षा का प्रसार तथा द्वितीय उद्देश्य व्यवहारिक जीवन की शिक्षा था।
कोठारी आयेाग (1964-66) ने अपने प्रतिवेदन में प्राथमिक शिक्षा के उद्देशें के सम्बन्ध में लिखा है ‘‘आधुनिक प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य बालक को भावी जीवन की परिस्थितियों का सामना करने में समर्थ बनाने के लिए शारीरिक एवं मानसिक प्रशिक्षण देकर उसका इस प्रकार से विकास करना है कि वह वास्तव में एक उपयोगी नागरिक बन सके।’’
विभिन्न आयोगों एवं राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान व प्रशिक्षण परिषद् द्वारा निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर प्राथमिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट होते हैं -
- बालकों को उनकी मातृभाषा (क्षेत्रीय भाषा) तथा उनके प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान कराना।
- बालकों को स्वास्थ्य नियमों का ज्ञान कराना तथा उन्हें स्वास्थ्यवर्धक क्रियाओं का प्रशिक्षण प्रदान करना।
- बालकों में सामूहिकतमा की भावना विकसित करना एवं उन्हें अस्पृश्यता, जातिवाद व साम्प्रदायिकता का विरोध करना सिखाना।
- बालकों में सहिष्णुता का विकास करना तथा उन्हें सांस्कृतिक क्रियाओं यथा-उत्सव, लोकगीत, लोकनृत्य आदि में सहभागिता के लिए प्रोत्साहित करना।
- बालाकों में सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक, राजनैतिक तथा राष्ट्रीय मूल्यों का विकास करना तथा उनका नैतिक एचं चारित्रिक विकास करना।
- बालकों को शारीरिक श्रम के अवसर प्रदान करना एवं उनमें शारीरिक श्रम के प्रति आदर भाव उत्पन्न करना तथा उनकी सृजनात्मक शक्ति का विकास करना।
- बालकों को पर्यावरण प्रदूषण के प्रति सचेत करना तथा उनमें वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास करना।
बालकों को विभिन्न धर्मो के पैगम्बरों तथा उनकी शिक्षाओं से परिचित करना तथा उनमें सर्वधर्म समभाव विकसित करना। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालयों में प्रदान की जाती है। प्राथमिक विद्यालय, प्राथमिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण औपचारिक अभिकरण तथा सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था की आधारभूत संस्था है। बालक के शैक्षिक जीवन में प्राथमिक विद्यालय की विशेष भूमिका होती है। बालक की नियमित एवं व्यवस्थित शिक्षा का शुम्भारम्भ प्राथमिक विद्यालय से ही होता है।
प्राथमिक विद्यालय में शिक्षकों, सहपाठियों एवं अन्य व्यक्तियों के संपर्क के फलस्वरूप बालक के व्यक्तित्व में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं जो कि उसके भावी विकास की दिशा सुनिश्चित करते हैं। प्राथमिक विद्यालय बालक में सामाजिक मूल्यों का विकास कर उन्हें भावी सामाजिक भूमिकाओं के लिए तैयार करते हैं। बालकों के ज्ञान कौशलों एवं अभिवृत्तियों का समाज सम्मत दिशा में विकास कर उन्हें प्रगति के पथ पर अग्रसर करते हैं।
संक्षेप में शिक्षा के एक औपचारिक अभिकरण के रूप में बालक के विकास (अथवा शिक्षा) में प्राथमिक विद्यालय की भूमिका निम्मवत् है :-
- प्राथमिक विद्यालय, बालक के क्रमबद्ध, संतुलित वं सुसंगत विकास में सहायक है।
- प्राथमिक विद्यालय बालक के व्यक्तित्व को समाज सम्मत दिशा प्रदान करते है। ]
- प्राथमिक विद्यालय बालक के उज्जवल शैक्षिक भविष्य के निर्माण में सहायक होते हैं।
- प्राथमिक विद्यालय में ही बालक में नैतिकता, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम, सहानुभूति, सहिष्णुता, प्रेम दया जैसे मानवीय गुणों का सृजन होता है।
प्राथमिक शिक्षा का महत्व
प्राथमिक शिक्षा सम्पूर्ण शिक्षा व्यवस्था की आधारशिला है। यह वह प्रकाश है जो बालक की मूल प्रवृत्तियों का परिमार्जन कर उसे आदर्श, संस्कारवान तथा संतुलित व्यक्तित्व प्रदान करती है। बालक के उज्जवल शैक्षिक भविष्य के निर्माण में प्राथमिक शिक्षा की विशेष भूमिका होती है। यह मानव मात्र के विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। विद्वानों ने इसे ज्ञान के द्वार की कुंजी कहा है।
प्रत्येक व्यक्ति, समाज, एवं राष्ट्र के जीवन में प्राथमिक शिक्षा प्रथम आवश्यकता की वस्तु है। यही वह प्रथम सोपान है जिसे सफलतापूर्वक पार करके ही कोई भी व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र अपने अभीष्ट लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। प्राथमिक शिक्षा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। आधुनिक प्रगतिशील युग में प्राथमिक शिक्षा की समुचित व्यवस्था किए बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति के शिखर पर आसीन नहीं हो सकता। प्राथमिक शिक्षा का पतन राष्ट्रीय पतन का संकेतक है।
इस सन्दर्भ में स्वामी विवेकानन्द का कथन उल्लेखनीय है, ‘‘मेरे विचार में जन साधारण की अवहेलना महान राष्ट्रीय पाप है तथा हमारे पतन के कारणों में से एक है। सब राजनीति उस समय तक विफल रहेगी, जब तक कि भारत में जन साधारण को एक बार फिर भली प्रकार से शिक्षित नहीं कर लिया जायेगा।’’