पर्यावरण जागरूकता की आवश्यकता क्यों है? - paryaavaran jaagarookata kee aavashyakata kyon hai?

अब बड़े शहरों के साथ छोटे शहरों व कस्बों में भी वायु प्रदूषण पढ़ता जा रहा है। यहां भी इसका असर देखा जा सकता है। बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण हमारे आसपास का पर्यावरण दिन प्रतिदिन प्रदूषित होता जा रहा है।

दैनिक भास्कर ने पर्यावरण विद् प्रोफेसर डा डीएल पटेल से इस संबंध में चर्चा कर इसके उपाय जाने। जो हैं तो काफी मामूली लेकिन हैं बड़े काम के। इनके अनुसार व्यक्ति को स्वयं पर्यावरण के प्रति जागरूक होना चाहिए। पॉलीथिन बैग का उपयोग करने से बचना चाहिए। कूड़ा तथा कचरा को जलाना नहीं चाहिए।

उल्लेखनीय है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते लगातार तापमान बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि यही हाल रहा तो आने वाले समय में वातावरण में व्यापक बदलाव होंगे। पानी के संकट के साथ साथ तापमान चरम पर होगा जिसे झेल पाना संभव नहीं होगा। मामूली उपाय के बाद अपने आसपास के वातावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं, साथ ही आने वाले संकट को भी टाला जा सकता है। इन सबके लिए जरूरी है की व्यक्ति स्वयं पर्यावरण के प्रति जागरूक हो तथा मामूली उपायों को व्यवहार में लाकर इसके सरंक्षण के लिए कार्य करे। इस कार्य की शुरूआत अपने घर से करने की जरूरत है। पर्यावरण विद प्रो. डा पटेल से ने समझाइश दी है कि पालीथीन बैग का उपयोग करने से बचने के साथ ही कूड़ा-कचरा को जलाना भी नहीं चाहिए। तेज रोशनी वाली लाइट का उपयोग नहीं करना चाहिए। पेट्रोल डीजल से चलने वाले वाहनों की सर्विसिंग समय-समय पर कराना जरूरी है। कचरे को पालिका द्वारा रखे गए कंटेनर में फेंकना चाहिए। घर में पूरी तरह क्रांक्रीट करण ना कर कुछ स्थान छोड़ कर उसमें क्यारी बनाए। भोजन के पहले हाथ धोने तक का पानी भी उन क्यारियों में डाले।

उन्होंने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को अपने या अपने पूर्वजों के नाम पर कम से कम एक पेड़ लगाना चाहिए। यदि घर में जगह नहीं है तो ऐसा स्थान खोजें जहां पेड़ लगाने पर किसी तरह व्यवधान या किसी को आपत्ति ना हो।

खाली जगहों पर पीपल, नीम, बरगद आदी के पेड़ लगाएं। ये पेड़ चिरायु होने के साथ साथ पर्यावरण के बड़े मित्र हैं। नीम कीटाणु नाशक है और बरगद से ज्यादा से ज्यादा आक्सीजन मिलता है। घर में कुछ औषधीय पौधे लगाकर इसका बड़ा लाभ लिया जा सकता है। घर आंगन में तुलसी, एलोविरा, दुब, नीम, सदा सुहागन, नीबू, पुदीना आदी के पौधे लगाए जा सकते हैं। इससे घर में हरियाली रहने के साथ साथ लोग भी स्वस्थ रहेंगे। जरूरत पड़ने पर इन पौधों को उपयोग में लाया जा सकता है।

जागरण टीम टौणीदेवी, भोरंज : पर्यावरण संरक्षण केवल सरकार का ही कार्य नहीं है, इसमें जनजागृति होना आवश्यक है। जब तक जनसाधारण में यह सोच पैदा नहीं होगी कि पर्यावरण प्रदूषण से अनेक बीमारियां, बाढ़, तूफान, भूस्खलन, सूखा,अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि, भूकंप तथा अन्य आपदाएं बढ़ रही हैं तब तक पर्यावरण संरक्षण के लिये कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। यह बात एपीएमसी के अध्यक्ष एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य प्रेम कौशल ने राजकीय महाविद्यालय भोरंज में पर्यावरण संरक्षण पर आयोजित राज्यस्तरीय सेमिनार में कही।

उन्होंने कहा कि पर्यावरण संकट वर्तमान पीढ़ी के भविष्य का संकट है इसलिए इसके उपर ¨चतन करना आवश्यक है ताकि इसके समाधान के लिए कुछ सार्थक सोचा जाए और उसे क्रियान्वित करने के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें। उन्होंने कहा पर्यावरण संरक्षण के लिये जो कुछ भी हम अपने स्तर पर कर सकते हैं उसे प्राथमिकता के आधार पर करते हुए अपना दायित्व सुनिश्चित करना होगा । उन्होंने कहा कि पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षण संस्थान, विद्यार्थी और आम जनता अपना अमूल्य भूमिका अदा कर सकती है। उन्होंने कहा कि जनमानस को अपने स्वार्थों को छोड़ कर पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर खुद को बदलना होगा तभी व्यवस्थाएं बदली जा सकती हैं।

उन्होंने कहा कि किसी भी देश विकास उद्योगों के बिना संभव नहीं है इसलिए प्राकृतिक पर्यावरण और औद्योगीकरण में संतुलन होना अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में प्रदूषण को रोकने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उद्योगों के प्रदूषण की ऑनलाईन जांच शुरू की है ताकि हिमाचल को प्रदूषण मुक्त बनाया जा सके।

उन्होंने कहा स्वास्थ्य संस्थानों में बायो वेस्ट और शहर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस एवं तरल कचरा को खुले में न छोडे़ं उसे उचित ढंग से ठिकाने लगाएं ताकि स्वच्छ वातावरण पैदा हो। इससे पहले स्थानीय कॉलेज के प्रधानाचार्य एच एस परमार ने मुख्य अतिथि व अन्य अतिथियों का स्वागत करते हुए पर्यावरण पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि राज्य स्तरीय पर्यावरण सेमिनार में प्रदेश के विभिन्न जिलों से 22 शोध पत्रों पर चर्चा की गई। इस मौके पर समस्त डॉ संजय, डॉ रमेश चंद, जगदीप वर्मा, बोविन्द्र चंद, डॉ अश्वनी, डॉ नितेश चौहान, डॉ निकीता, डॉ अमरजीत लाल , डॉ संजय नारंग, डॉ भावना बराड़, डॉ विवेक चंदेल, डॉ कृष्ण लाल, डॉ अनिल शर्मा, डॉ अंजना, डॉ बिहारी लाल, डॉ ¨प्रस ठाकुर, डॉ भगवती प्रसाद, डॉ विषय कौंडल, डॉ प्रोविन्द्र गुलेरिया, डॉ राज कुमार, डॉ राजीव भोरिया के अतिरिक्त स्थानीय कॉलेज के बीएससी चतृर्थ सेमेस्टर के विद्यार्थी अशीष ठाकुर और पूनम ने शोध पत्र पढ़े।

इस अवसर पर प्रधान ग्राम पंचायत कंजयाण पवन कुमार, प्रधानाचार्य राजेंद्र वर्मा, विज्ञान पर्यवेक्षक अश्वनी चंबयाल व केवल ¨सह के अतिरिक्त अन्य बुद्धिजीवी वर्ग उपस्थित रहा।

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण जागरूकता पर्यावरण सम्बन्धी तथ्यों, प्रत्ययों, प्रक्रियाओं का ज्ञान तथा बोध कराया जाता है। पर्यावरण के कारकों तथा घटकों की पारस्परिक निर्भरता, समस्याओं तथा समाधान की जानकारी प्रदान की जाती है। पर्यावरण में प्रदूषणों की जानकारी दी जाती है और प्रदूषकों का भी ज्ञान दिया जाता है।

पर्यावरण शिक्षा क्यों आवश्यक है?

इसे सुनेंरोकेंइससे संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्यावरण शिक्षा आवश्यक कौशल और विशेष ज्ञान को प्रदान करता है। इस शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान प्रदान कराना, जागरूकता पैदा करना, चिंतन का एक दृष्टिकोण पैदा करना और पर्यावरणीय चुनौतियों को नियंत्रित करने के आवश्यक कौशल को प्रदान करना है।

पर्यावरण शिक्षा जागरूकता और क्या प्रदान करती है?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण शिक्षा में सभी स्तरों पर कार्य करने तथा परिस्थितियों व वातावरण उत्पन्न करने हेतु अवसर प्रदान करती है जिससे समस्याओं का समाधान किया जाता है। पर्यावरण जागरूकता में समस्याओं तथा उनके समाधान की जानकारी ही दी जाती है व्यवहारिक कार्य नहीं किया जाता है।

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पर्यावरण अध्ययन का प्रमुख उद्देश्य क्या है?

इसे सुनेंरोकेंपर्यावरण अध्ययन के उद्देश्य एक ऐसी दुनिया का विकास करना है जिसमें व्यक्ति पर्यावरण और इसके साथ जुड़ी समस्याओं के बारे में जानते हैं और चिंतित हैं और व्यक्तिगत रूप से काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और साथ ही साथ वर्तमान समस्याओं और भविष्य की रोकथाम के समाधान के लिए सामूहिक रूप से काम करते हैं पर्यावरणीय अध्ययन का दायरा …

पर्यावरण की आवश्यकता क्यों?

इसे सुनेंरोकेंहमे पर्यावरण निति की आवश्यकता ही क्योंकि, हम जहां पर रहते है, ये पृथ्वी के नाम से जानी जाती है। इस धरती पर बहुत से प्राणी निवास करते है। जैसे- मनुष्य, जनावर और पक्षी आदि ये सारे इस धरती के प्राणी है जो एक दुसरे का सहारा बनाते है, अगर ये न हो तो इस पर्यावरण में संतुलन न रह जाएगा।

पर्यावरण शिक्षा विधियां कौन कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंप्रयोग वैज्ञानिक तरीके से किया जाता है तथा प्रयोग से प्राप्त परिणाम भी वैज्ञानिक होते हैं। इस विधि में धन, समय, पुस्तकें, सामग्री तथा उपकरणों की आवश्यकता होती है। इस विधि से छात्रों को समस्या का समाधान प्राप्त हो जाता है। यह शिक्षण की एक अच्छी विधि है जिसमें शिक्षक छात्रों की आवश्यकतानुसार सहायता करता है।

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पर्यावरण जागरूकता में शिक्षक की क्या भूमिका है?

इसे सुनेंरोकें(1) पर्यावरण चेतना विकसित करने में शिक्षक की विशेष भूमिका- उसका प्रत्यक्ष सम्पर्क सामाजिक क्षेत्र से होता है। अतः सामाजिक पर्यावरण में उत्पन्न भयावह स्थिति, विकृति को कम करने में वह विशेष भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह समाज का एक जिम्मेदार एवं संवेदनशील व्यक्ति विशेष होता है।

पर्यावरण हेतु जागरूकता की आवश्यकता क्यों है?

पर्यावरण अध्ययन एवं पर्यावरण की समझ के विकास हेतु आम जन को जागरूक होने की आवश्यकता है ताकि उन्हें यह ज्ञात हो कि हमारे वातावरण में जो परिवर्तन हो रहे हैं उनके द्वारा मानव जीवन कैसे प्रभावित हो रहा है। इस हेतु उनमें पर्यावरण की समझ विकसित करना आवश्यक है ताकि वे अलग-अलग समस्याओं से रू-ब-रू हो सके।

पर्यावरण जागरूकता क्या है इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए?

इसके द्वारा पर्यावरण सम्बन्धी तथ्यों, प्रत्ययों, प्रक्रियाओं का ज्ञान (components of environment) तथा बोध कराया जाता है। इसके अलावा पर्यावरण के कारकों तथा घटकों की पारस्परिक निर्भरता, समस्याओं तथा समाधान की जानकारी प्रदान की जाती है।

पर्यावरण जागरूकता की भूमिका क्या है?

पर्यावरण जागरूकता में परिस्थिति विज्ञान को ही महत्व दिया जाता है। पर्यावरण शिक्षा में समुचित वातावरण उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं। जिससे बालकों तथा व्यक्तियों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाया जाता है। इसमें वातावरण का सम्पादन शिक्षक द्वारा किया जाता है और पर्यावरण जागरूकता में उसका ज्ञान प्रदान किया जाता है।

पर्यावरण क्या है पर्यावरण के प्रति जन जागरूकता को समझाइए?

पर्यावरण के अन्तर्गत मानवीय सामग्री, स्थान तथा समय और स्रोतों को पहचानना जिससे सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास एवं अभिवृद्धि की जा सके। प्राकृतिक स्रोतों के उपयोग के लिए निर्णय लेना तथा उनके महत्व को समझना और समुदाय प्रयासों में सहायता करना जिससे उनका विशिष्ट उपयोग हो सके।