राजा परीक्षित और कलयुग का आगमन कैसे हुआ? - raaja pareekshit aur kalayug ka aagaman kaise hua?

कलयुग का आगमन – राजा परीक्षित को शाप पौराणिक कथा

कलयुग का आगमन (कलयुग की शुरुआत कब हुई)
कलयुग का आगमन(आरंभ काल) तभी से माना जाता हैं जब से भगवान श्री कृष्ण इस मृत्युलोक को छोड़ कर देवलोक प्रस्थान करते हैं. कलयुग के प्रथम राजा – राजा परीक्षित थे. राजा परीक्षित उतरा और अभिमन्यु के पुत्र थे. जिस समय महाभारत का युद्ध चल रहा था और अभिमन्यु मारा गया उस वक्त उतरा(अभिमन्यु की पत्नी) गर्भवती थी. एक बार अस्वथामा ने भी इस बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ा था. लेकिन भगवान ने सुदर्शन चक्र से उतरा के गर्भ की रक्षा की. उसी गर्भ से राजा परीक्षित का जन्म हुआ.
भगवान श्री कृष्ण के देवलोक प्रस्थान करने के पश्चात सभी पांडव भी स्वर्ग चले गए. धृष्टराष्ट्र और गांधारी को विदुर्जी से उनकी सद्गति हो गई. तब हस्तिनापुर और कलियुग के प्रथम राजा परीक्षित बने.
कलियुग की पहली घटना
एक दिन राजा परीक्षित दौरे पर निकले थे. रास्ते में उन्होंने देखा कि एक काला कलूटा आदमी गाय को मार रहा था. राजा परीक्षित ने उस आदमी से नाम पुछा – नाम क्या हैं तुम्हारा? मेरा नाम कलियुग हैं. तब राजा परीक्षित ने उसको रोका और गाय को मरने का कारण पुछा. तब उस आदमी ने कहा. ये गाय मुझे यहाँ रहने नही देती. तो तुम ये जगह छोड़कर क्यों नहीं चले जाते. चारो और आपका ही तो राज्य जहाँ जाता हूँ वहां पर ये गाये मुझे मिल जाती हैं. तब राजा परीक्षित ने कलियुग के चार कमरे बनवाये. पहला कमरा जुआ, दूसरा कमरा मदिरा, तीसरा कमरा चरित्रहीनता(वैश्या) और चौथा कमरा मांस. इसके अलावा एक कमरा ओर बनवाया – सोना(स्वर्ण). चूँकि सोना का मुकुट राजा परीक्षित के सर पर सवार था. जैसे ही कलियुग को सोना की उपाधि दी. राजा परीक्षित की बुद्धि फिर गयी और उन्होंने उलटे कम् शुरू कर दिए. अगले सवेरे राजा परीक्षित कही बाहर जंगल म निकले थे. वहां पर एक कुटिया देखी. वहां पर शमिक्जी तपस्या कर रहे थे. अब राजा परीक्षित को न जाने क्या सुझा उन्होंने मरे हुए सांप को शमिकजी के गले में डाल दिया. राजा परीक्षित जी वहां से चले गए. शमिकजी तपस्या करते रहे. अब शमिक जी के पुत्र श्रृंगी ऋषि वहां पर आ गए. जैसे ही श्रृंगी ऋषि ने पिताजी के गले में सांप देखा पहले तो अचम्भित हो गए. फिर दिव्य ज्ञान से पता लगाया की यह काम तो राजा परीक्षित का हैं. श्रृंगी ऋषि ने अपने कमंडल से अंजलि में जल निकाला और परीक्षित को शाप से दिया. श्रृंगी ऋषि ने शाप दिया की सातवे दिन तुमको भी सांप डस लेगा.
कलयुग के चार कमरे
राजा परिक्षित द्वारा निर्मित कलयुग के चार कमरे जुआ, मदिरा, वैश्या और मांस. ये चारो चीजे मनुष्य को पतन की और ले जाती हैं. पहला उदाहरण – कौरवो ने जुआ खेला, धर्म युद्द छिड गया. दूसरा उदहारण – रजा परिक्षित ने कलयुग को जगह दी, परिणाम स्वरूप उसको शाप लग गया. तीसरा उदाहरण – रावन ने सीता का हरण किया, उसे भी मरना पड़ा. जिस जिस ने इन चारो कमरों को अपनाया हैं उका पतन हुआ हैं.
फिर राजा परिक्षित को अपनी गलती का अहसास हुआ. उनको मालूम पड़ा की उनका जीवन साथ दिन में समाप्त हो जायेगा, तो उन्होंने सद्गति के लिए मार्ग खोजने में जुट गए, तत्पश्चात उनकी भेट शुकदेव जी से होती हैं. सात दिनों में शुकदेवजी राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाते हैं. और सातवे दिन सर्प के डसने से उनको मुक्ति मिल जाती हैं.
राजा परीक्षित का पुत्र कौन था ? जनमेजय राजा परीक्षित का पुत्र था. परीक्षित की मृत्यु के पश्चात जनमेजय ही हस्तिनापुर के राजा बने थे.


भागवत पुराण की इस पौराणिक कथा से क्या सीखा – मांस, मदिरा, वैश्या(चरित्रहीनता), और जुआ. ये सभी पतन के द्वार हैं.

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राजा परीक्षित और कलयुग का आगमन कैसे हुआ? - raaja pareekshit aur kalayug ka aagaman kaise hua?
The King Parikshit and arrival of kalyug

परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब वे गर्भ में थे तब अश्वत्थामा ने बह्रमास्त्र से परीक्षित को मरने का प्रयास किया था। ब्रम्हास्त्र के प्रभाव से वे मृत पैदा हुए। बता दें ब्रम्हास्त्र का सम्बन्ध भगवान ब्रह्मा से है इसकी रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। और ये सब कुछ खत्म कर देने की क्षमता रखता है। ब्रह्मास्त्र के उपयोग से पूरी सृष्टि को एक क्षण में समाप्त किया जा सकता है। इस घटना के बाद, भगवान श्री कृष्ण ने अपने योग बल से उत्तरा के मृत पुत्र को जीवित कर दिया था।

राजा परीक्षित का नाम कैसे पड़ा परीक्षित ?

माना  जाता है कि अपनी मां के कोख में ही परीक्षित को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हो गए थे।  जिसके बाद जिस किसी से भी मिलते थे तो उनमे भगवान श्री कृष्ण की छवि ढूंढ़ने की कोशिश करते थे। यह उनके लिए परीक्षा जैसी अवस्था होती थी इसी कारण उनका नाम परीक्षित पड़ा। इसके आलावा महाभारत के अनुसार, कुरु वंश के जन्म के बाद उन्हें 'परीक्षित' कहा जाता था। उत्तर के राजकुमार की बेटी इरावती से परीक्षित का विवाह हुआ। परीक्षित और इरावती के चार बेटे हुए जिनमें से एक जनमेजय था।

कहा जाता है महाभारत युद्ध की समाप्ति के कुछ ही समय बाद, युधिष्ठिर पांडव आदि जब संसार के मोह माया से भली भाँति उदासीन हो चुके थे, तब स्वर्ग को प्रस्थान करने का मन बनाया जल्द ही वे परीक्षित को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठा कर द्रौपदी के साथ निकल गए। परीक्षित जब राज सिंहासन पर बैठे उस वक्त तक भगवान कृष्ण परमधाम सिधार चुके थे। और युधिष्ठिर ने 37 वर्षों तक हि राज्य में शासन किया था। 

जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए उसके बाद परीक्षित ने कार्यभार और शासन संभाल लिया।अपने राज्य पाठ के दौरान गंगातट पर उन्होंने तीन अश्वमेघ यज्ञ किए जिनमें अंतिम बार देवताओं ने प्रत्यक्ष आकर बलि ग्रहण किया था। मुख्य बात यह है कि द्वापर युग का अंत और कलियुग की शुरुआत इन्ही के राज्यकाल में मानी जाती है।

कलयुग का आगमन कैसे हुआ 

एक दिन राजा परीक्षित ने सुना कि उनके राज्य में कलियुग ने प्रवेश कर लिया है और वह अधिकार प्राप्त करने का मौका तलाश रहा है। वह उसको अपने राज्य से बाहर निकालने के लिये ढूँढ़ने निकले पड़े। इन्होंने देखा कि एक अनाथ गाय और एक बैल कतार में खड़े हैं और एक व्यक्ति जिसका "वेष भूषण" और "ठाट-बाट" एक राजा के जैसा है वो हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीट रहा है। बैल का केवल एक पैर था। क्रोधित होकर परीक्षित ने उस व्यक्ति से पूछा ‘तू कौन अधर्मी है, जो निरीह गाय और बैल पर अत्याचार कर रहा है

राजा परीक्षित को बैल, गाय और व्यक्ति तीनों ने अपना अपना परिचय दिया। गाय पृथ्वी थी, बैल धर्म था और व्यक्ति कलयुग था। धर्म रूपी बैल के तीन पैर थे "सत्य, तप और दयारूपी" जिनको कलियुग ने मारकर तोड़ डाला था। केवल एक पैर दान बच गया था जिसके सहारे बैल भाग रहा था, कलियुग उसे भी तोड़ने के लिए बराबर उसका पीछा कर रहा था। यह बात सुनकर परीक्षित कलियुग पर गुस्सा होकर बोले "तेरा कृत्य ही ऐसा है कि तुझे मृत्युदंड मिलना चाहिए।" और कलियुग का वध करने के लिए अपनी तलवार निकाल ली। इस पर कलियुग राजा पीक्षित के पैरों में गिर कर बोलै "राजा अपनी शरण में आए हुए व्यक्ति की हत्या नहीं करते" तो उन्होंने कलियुग को जीवन दान दिया।

राजा परीक्षित ने दिए कलयुग को 5 स्थान 

कलियुग को जीवनदान देने के बाद राजा परीक्षित ने कहा "कलियुग, तू ही पाप, झूठ,चोरी, कपट और दरिद्रता का करण है" मेरे राज्य की सीमाओं से दूर निकल जा और कभी लौटकर मत आना। कलियुग गिड़गिड़ाते हुए विनती करने लगा "महाराज आपका राज्य तो संपूर्ण पृथ्वी पर है। मैं आपकी शरण में आया हूं तो मुझे रहने का स्थान भी आप ही दीजिए।

कलियुग की विनती स्वीकार करते हुए राजा परीक्षित ने उसे रहने के लिए जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन और हिंसा जैसी चार जगह दे दीं। इस पर कलियुग ने विनती की- राजन! ये चारों जगह मेरे लिए पर्याप्त नहीं है, आप एक और स्थान मुझे दीजिए। इस पर राजा ने उसे सोने में रहने की अनुमति दे दी और चले गये। कलियुग को स्थान देते समय राजा यह भूल गए कि उन्होंने सिर पर सोने का ही मुकुट पहना है।

राजा से स्थान मिलते ही कलियुग तब तो वहां से चला गया। लेकिन थोड़ी देर बाद सूक्ष्म रूप में वापस आया और राजा के मुकुट में घुस गया। कलियुग बराबर इस ताक में था कि किसी प्रकार परीक्षित का खटका रास्ते से हटाए और पूरा राज करे, क्योंकि परीक्षित के रहते वो पृथ्वी पर राज नहीं कर सकता था।  और न ही जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और सोना के आलावा किसी और स्थान में रह सकता था। राजा परीक्षित के रहते तो बिलकुल नहीं। 

ऋषि श्रृंगी द्वारा राजा परीक्षित को श्राप 

इस घटना के कुछ समय बाद राजा परीक्षित एक दिन शिकार करने निकले। घोड़े में बैठे राजा परीक्षित को एक हिरन दिखाई दिया, हिरन का शिकार करने के लिए राजा ने उसका पीछा किया। किन्तु बहुत दूर तक पीछा करने पर भी वह नहीं मिला। वे थक गये, और थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई थी। मार्ग में आश्रम था जो एक वृद्ध ऋृषि शमीक का था। और ऋृषि तपस्या में लीन थे। राजा ने उनसे पूछा कि बताओ, हिरन किधर गया है।  मुनि ध्यान में थे इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके।

कलियुग सिर पर सवार था ही, कलियुग के बुरे प्रभाव के कारण उनकी मति भ्रष्ट हो गई। और थके, प्यासे राजा ऋषि के इस इस व्यवहार को बर्दास्त नहीं कर पाए और क्रोध में आ गए। परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि ऋषि ने अपने घमंड के मारे हमारी बात का जवाब नही दिया है और इस अपराध का उन्हें कुछ दंड मिलना चाहिए। पास में एक मरा हुआ सांप पड़ा था। राजा ने उसे कमान की नोक से उठा लिया कर तपस्या में लीन ऋृषि के गले के चारों तरफ लपेट दिया और वहां से चले गए। 

ऋृषि शमीक का कोपशील श्रृंगी नाम का एक महातेजस्वी पुत्र था। वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में उसने सुना कि किसी राजा ने उसके पिता के गले में मरे हुए सांप की माला पहना गया है। कोपशील श्रृंगी ने पिता के इस अपमान की बात सुनते ही हाथ में जल लेकर श्राप दिया कि जिस पापी ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनायी है, आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम के सर्प के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। आश्रम में पहुँचकर, श्रृंगी ने पिता को अपमान करने वाले को उग्र श्राप देने के बारे में बताया।

ऋषि को पुत्र के द्वारा राजा को श्राप देने की बात सुन कर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने परीक्षित को श्राप की बात बताने के लिए एक शिष्य को भेज दिया ताकि वे सतर्क हो जाएँ। श्राप की बात जान कर राजा परीक्षित बहुत दुखी हुआ और ऋषि के शाप को अटल समझकर परीक्षित ने राजकाज त्याग कर बेटे जनमेजय को सौंप दिया और एक खंभे नुमा ऊंचें महल पर सुरक्षित होकर रहने लगे।

तक्षक सर्प द्वारा राजा परीक्षित की मित्यु 

देवी भागवत में भी लिखा हैं परीक्षित ने तक्षक सर्प से अपनी रक्षा करने के लिये एक सात मंजिल ऊँचा मकान बनवाया और उसके चारों ओर अच्छे अच्छे सर्प मंत्र ज्ञान सर्पो के मंत्रो का ज्ञान रखने वालो को और सर्प पकड़ने वालो को तैनात कर दिया। तक्षक को जब यह मालूम हुआ तब वह घबराया। अंत में परीक्षित तक पहुँचने को उसे एक उपाय सूझा। उसने एक अपने हि जाती के एक सर्प को योगी का रूप देकर उसके हाथ में कुछ फल दे दिए और एक फल में अति सूक्ष्म (छोटे) कीड़े का रूप में खुद जा बैठा। 

तक्षक के आदेश के अनुसार, योगी ने तक्षक को सुरक्षित परीक्षित के वास स्थान तक पहुंचा दिया। पहरेदारों ने योगी को अंदर जाने से रोका पर राजा को खबर होने पर की कोई तपस्वी आया है तो उन्होंने उसे अपने पास बुलवा लिया और फल लेकर उसे बिदा कर दिया। एक तपस्वी मेरे लिये यह फल दे गया है, अतः इसके खाने से अवश्य उपकार होगा, यह सोचकर उन्होंने फल को अपने खाने के लिये काटा। उसमें से एक छोटा कीड़ा निकला जिसका रंग पीले भूरे रंग का और आँखें काली थीं।

परीक्षित ने मंत्रियों से कहा "सूर्य अस्त हो रहा है, अब तक्षक सर्प से मुझे कोई भय नहीं। लेकिन ब्राह्मण के अभिशाप का मान रखना चाहिए।" इसलिये इस कीड़ी से डसने की विधि पूरी करा लेता हूँ। यह कहते हुए, उन्होंने कीड़े को गले से लगा लिया। जैसे ही परीक्षित  के गले से स्पर्श होते ही, वह छोटा कीड़ा एक भयंकर सांप बन गया। तक्षक ने उन्हें डस लिया और विष की भयंकर ज्वाला से उनका शरीर भस्म हो गया। 

परीक्षित के मृत्यु के बाद कलयुग ने सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने चपेट में ले लिया। इस समय परीक्षित की आयु 69 वर्ष की थी। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जनमेजय ने सर्पसत्र यग किया जिसमें पूरी दुनिया के सर्पो को मंत्र द्वारा खींच लिया गया और यज्ञ की अग्नि में उनकी आहुति होने लगी। डरा हुआ तक्षक इंद्र के सिंहासन से लिपट गया, आस्तिक ऋषि के समझाने पर जन्मेजय ने अपना यज्ञ रोका। परीक्षित की मृत्यु के बाद, फिर कलियुग की रोक टोक करनेवाला कोई न रहा और वह उसी दिन से मायावी रूप से शासन करने लगा। राजा परीक्षित के बाद पृथ्वी पर ऐसा कोई समर्थ राजा नहीं बचा, जो कलियुग को रोक सके

इनके अलावा, 'परीक्षित' नाम के चार अन्य राजा और हुए हैं, जिनमें से तीन कुरुवंशी और एक इक्ष्वाकुवंशी थे। तीनो कुरुवंशीय राजाओं में प्रथम वैदिककालीन राजा थे।

राजा परीक्षित ने कलयुग से क्या कहा?

कलियुग को जीवनदान देने के बाद राजा परीक्षित ने कहा- कलियुग, तू ही पाप, झूठ,चोरी, कपट और दरिद्रता का करण तू ही है। तू मेरी शरण में आया तो मैंने तूझे जीवनदान दिया।

कलयुग का आगमन कैसे हुआ था?

मान्यताओं के अनुसार द्वापरयुग में महाभारत युद्ध के कुछ वर्षों बाद कलियुग का आगमन पृथ्वी पर हुआकलियुग उस समय आया जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी छोड़ बैकुंठ लौट चुके थे और पांडव भी इस दुनिया को छोड़ चुके थे। कलियुग के आगमन के समय अर्जुन के पौत्र और अभिमन्यु के पराक्रमी बेटे परीक्षित का शासन था

कलयुग का राजा कौन है?

महाराज परीक्षित । द्वापर युग समाप्त हो रहा था और कलियुग प्रवेश कर रहा था उस समय राजा परीक्षित थे,इसलिए कलियुग के पहले राजा परीक्षित को कहा जा सकता है।

कलयुग में कितने वर्ष बीत चुके हैं?

कलियुग का प्रारंभ 3102 ईसा पूर्व से हुआ था, जब पांच ग्रह; मंगल, बुध, शुक्र, बृहस्‍पति और शनि, मेष राशि पर 0 डिग्री पर हो गए थे। इसका मतलब 3102+2020= 5122 वर्ष कलियुग के बित चुके हैं और 426882 वर्ष अभी बाकी है। वर्तमान में यह 28वें चतुर्युगी का कृतयुग बीत चुका है और यह कलियुग चल रहा है।