राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना कब की? - raaja raamamohan raay ne brahm samaaj kee sthaapana kab kee?

  • राजा राममोहन राय की पूरी जानकारी पढ़ें- Raja Ram Mohan Roy
    • राजा राममोहन रॉय का जन्म कब हुआ – Raja Ram Mohan Roy ka Janm Kab Hua
    • राममोहन राय की शिक्षा- Ram Mohan roy ki shiksha
    • राजा राममोहन राय का प्रारम्भिक जीवन – Raja Ram Mohan Roy ka Prarambhik Jivan
    • राजा राममोहन राय का करियर – Raja Rammohun Roy’s Career
    • विद्वानों के अनुसार राममोहन राय – Vidvaano Ke Anusar Ram Mohan Roy
    • राममोहन राय के उपनाम – Raja Rammohan Rai ke Upnam
    • राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित की गयी प्रमुख संस्थाएँ – Ram Mohan Roy ki Sansthayen
      • आत्मीय सभा की स्थापना किसने की – Atmiya Sabha ki Sthapna Kisne ki
      • हिंदू कॉलेज की स्थापना कब हुई – Hindu College ki Sthapna Kab Hui
      • वेदांत कॉलेज की स्थापना किसने की – Vedant College ki Sthapna Kisne ki
    • ब्रह्म समाज – Brahma Samaj
      • ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की – Brahm Samaj Ki Sthapna Kisne Ki
      • ब्रह्म समाज के उद्देश्य – Brahmo Samaj Ke Uddeshy
      • ब्रह्म समाज के सिद्धान्त – Brahma Samaj Ke Siddhant
      • ब्रह्म समाज का विस्तार – Brahmo Samaj Ka Vistar
      • ब्रह्म समाज का विभाजन – Brahma Samaj Ka Vibhajan
    • राजा राममोहन राय की पत्रिकाएँ –  Raja Ram Mohan Roy ki Patrikaye
    • राजा राममोहन राय की पुस्तकें – Raja Ram Mohan Roy Books
    • History of Raja Ram Mohan Roy
    • यूरोप की यात्रा करने वाले वे प्रथम भारतीय
    • राममोहन राय की मृत्यु कब हुई – Raja Ram Mohan Roy Death
    • राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Samajik Vichar
      • (1) परंपरावाद का विरोध
      • (2) सती प्रथा का अंत किसने किया – Sati Pratha Ka Ant Kisne Kiya
      • (3) बहुविवाह का विरोध
      • (4) विधवा विवाह का समर्थन
      • (5) बाल विवाह का विरोध
      • (6) स्त्री शिक्षा की वकालत
      • (7) स्त्रियों के पैतृक संपत्ति
      • (8) संकीर्ण जातीय, सांप्रदायिक भावनाओं का विरोध
    • राममोहन राय के राजनीतिक विचार – Ram Mohan Roy ke Rajnitik Vichar
      • (1) व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रतिपादन
      • (2) प्रेस की स्वतन्त्रता
      • (3) निरंकुश शासन का विरोध
      • (4) प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार संबंधी विचार
      • (5) सार्वभौमिक धर्म, मानववाद तथा अन्तर्राष्ट्रीयवाद का समर्थन
    • राजा राममोहन राय के आर्थिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Aarthik Vichar
      • (1) काश्तकारों के शोषण को रोकने का सुझाव
      • (2) व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार का समर्थन
      • (3) संपत्ति पर स्त्री उत्तराधिकारी का समर्थन
      • (4) ब्रिटिश नागरिकों का भारत में आवास
      • (5) निर्बाध व्यापार
      • (6) शोषण का विरोध
    • राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Dharmik Vichar
      • (1) एकेश्वरवादी
      • (2) धार्मिक सहिष्णुता
      • (3) सार्वभौमिक धर्म एवं नैतिकता पर बल
      • (4) धर्म के प्रति बौद्धिक व तार्किक दृष्टिकोण
      • (5) परंपरागत हिंदू धर्म में सुधार पर बल
    • राजा राममोहन के शिक्षा पर विचार – raja ram mohan roy ke shiksha par vichar
      • (1) सार्वजनिक एवं निःशुल्क शिक्षा
      • (2) भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के महत्त्व का अध्ययन
      • (3) पाश्चात्य शिक्षा पद्धति एवं पाठ्यक्रम में पूर्ण विश्वास
      • (4) पूर्व और पश्चिम के सर्वोत्तम सामंजस्य के पक्षधर
      • (5) व्यावहारिक और रचनात्मक विचार
    • राजा राममोहन राय से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Raja Ram Mohan Roy Question and Answer

आज के आर्टिकल में हम राजा राममोहन राय (Raja Ram Mohan Roy) की पूरी जानकारी पढ़ेंगे। इसमें हम राजा राम मोहन रॉय का जीवन परिचय (Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi), राजा राममोहन राय की पत्रिकाएँ (Raja Ram Mohan Roy ki Patrikaye), ब्रह्म समाज (brahma samaj), राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार (Raja Ram Mohan Roy ke Samajik Vichar), राजा राममोहन राय से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न (Raja Ram Mohan Roy Question and Answer) को जानेंगे।

राजा राममोहन रॉय का जीवन परिचय – Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi
जन्म – 22 मई, 1772
जन्मस्थान – बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा नगर
मृत्यु – 27 सितम्बर 1833
मृत्युस्थान – ब्रिस्टल (इंग्लैण्ड)
मृत्यु का कारण – मेनिनजाईटिस
पिता – रमाकांत राय (वैष्णव धर्म के उपासक)
माता – तारिणी देवी (शैव धर्म की उपासक)
पत्नी – उमा देवी
बेटे – राधा प्रसाद राय, राम प्रसाद राय
पत्रिकाएँ – संवाद कौमुदी (1821), प्रज्ञाचांद (1821), मिरातुल अखबार (1822), ब्रह्मणीकल मैग्नीज, बंगदूत
भाषा-ज्ञान – अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लैटिन, यूनानी हिब्रू
ब्रह्म समाज की स्थाापना – 20 अगस्त 1828 ई. में बंगाल में
उपलब्धि – 1829 ई. में सती प्रथा पर कानूनी रोक लगाई

राजा राममोहन रॉय का जन्म कब हुआ – Raja Ram Mohan Roy ka Janm Kab Hua

राजा राममोहन राय का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा नगर में एक सम्पन्न ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ। बंगाल के नवाबों ने इनके परिवार की सेवाओं से प्रसन्न होकर इनके पूर्वजों को ’रामराय’ की उपाधि दी थी जिसका संक्षिप्त रूप ’राय’ चलता रहा।

इनके पिता का नाम रमाकांत राय था, जो बंगाल के नवाब के यहाँ नौकरी करते थे। इनकी पिता वैष्णव धर्म के उपासक थे। माता का नाम तारिणी देवी था, जो कि शैव धर्म की उपासक थी। राय का परिवार रूढ़िवादी धर्मावलम्बी परिवार था, जहाँ हिन्दू शास्त्रों का कठोरता से पालन होता था। राजा राममोहन राय बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि और मेधावी थे।

राममोहन राय की शिक्षा- Ram Mohan roy ki shiksha

  • राजा राममोहन राय 15 वर्ष की अल्पायु में ही कई भाषाओं के ज्ञाता थे जिनमें प्रमुख थी – अरबी, फारसी, संस्कृत जैसी प्राच्य भाषाएँ तथा अंग्रेजी, फ्रांसीसी, लैटिन, यूनानी और हिब्रू जैसी पाश्चात्य भाषाओं के ज्ञाता थे।
  • फारसी, अरबी भाषा के अध्ययन के लिए पटना गये तथा संस्कृत के अध्ययन के लिए वाराणसी गये थे।
  • वेद, उपनिषद, कुरा, बाईबिल, हिन्दू दर्शन आदि धर्मशास्त्रों का भी अध्ययन किया।
  • उन्होंने हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन और ईसाई धर्म का अध्ययन किया। उन्होंने सभी धर्म के धर्म-ग्रन्थों का अध्ययन किया।
  • सभी धर्मों के सिद्धांतों को एकत्रित करके समाज सुधारक का कार्य किया।
  1. मुस्लिम धर्म – एकेश्वरवाद, मूर्तिपूजा का सिद्धांत
  2. ईसाई धर्म – नैतिकता
  3. सूफी – रहस्यवाद
  4. पश्चिमी राष्ट्रों – उदारवाद का सिद्धांत।

राजा राममोहन राय का प्रारम्भिक जीवन – Raja Ram Mohan Roy ka Prarambhik Jivan

राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म का स्वतः अध्ययन कर 1820 ई. में ईसाई धर्म पर ’प्रीसेप्ट्स ऑफ़ जीसस’ (अंग्रेजी पुस्तक) नामक पुस्तक लिखी। राममोहन राय पश्चिम की ’वैज्ञानिक’ एवं ’बुद्धिवादी विचारधारा’ से प्रभावित थे तथा ’लाॅर्ड मैकाले’ की शिक्षा व्यवस्था के समर्थक थे। राजा राममोहन राय अपने धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण में इस्लाम के एकेश्वरवाद, सूफीमत के रहस्यवाद, ईसाई धर्म की आचार शास्त्रीय नीतिपरक शिक्षा और पश्चिम के आधुनिक देशों के उदारवादी बुद्धिवादी सिद्धान्तों से काफी प्रभावित थे।

17 वर्ष की अल्पायु में ही वे मूर्ति पूजा के विरोधी हो गये थे। वे ईश्वर की एकता में विश्वास करते थे और सभी प्रकार के धार्मिक अंधविश्वास और कर्मकांडों के विरोधी थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1790 में राजा रामामोहन राय उत्तरी भारत के भ्रमण पर गए और उन्होंने बौद्ध सिद्धान्तों का परिचय प्राप्त किया। हिंदू, मुसलमान तथा ईसाई धर्म ग्रंथों के अध्ययन का उनके धार्मिक विचारों पर गंभीर प्रभाव पङा।

राजा राममोहन राय का करियर – Raja Rammohun Roy’s Career

  • पटना तथा वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने के बाद राजा राममोहन राय 1803 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में नियुक्त किए गए और दिग्बी महोदय के साथ दीवान के रूप में काम करने लगे।
  • दिग्बी महोदय ने उन्हें अंग्रेजी सिखाई और उनका परिचय उदारवादी और युक्तियुक्त विचारधारा से करवाया।
  • 1814 ई. में उन्होंने नौकरी छोङ दी।
  • फिर 1814 में राममोहन राय कलकत्ता में बस गए और लोक सेवा और सुधार के एक गौरवमय जीवन का प्रारम्भ किया।

विद्वानों के अनुसार राममोहन राय – Vidvaano Ke Anusar Ram Mohan Roy

राजा राममोहन राय 19 वीं शताब्दी के सांस्कृतिक जागरण के अग्रगामी थे। उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में जाना जाता है।

पट्टाभिसीता रम्मैया ने उनके संबंध में लिखा है – ’’अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी राजा राममोहन राय को ’’भारतीय राष्ट्रवाद का अग्रदूत और जनक’’ कहा जाता है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है कि ’’राजा राममोहन राय ने ही भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया है।’’ रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें ’आधुनिक भारत का सूत्रधार’ कहा है।

विपिन चन्द्र पाल ने लिखा है कि – ’’भारत में स्वतंत्रता का संदेश प्रसारित करने वालों में राजा साहब प्रथम व्यक्ति थे।’’

सुभाष चन्द्र बोस ने राजा राममोहन राय को ’युगदूत’ की उपाधि से सम्मानित किया था। सुभाष चंद्र बोस ने अपने ’द इंडिया स्ट्रगल’ में राममोहन राय को ’भारत में धार्मिक पुनरुत्थान का प्रतीक’ कहा था।

बी. मजूमदार के अनुसार, ’’आधुनिक भारत में राजनीतिक चिंतन का क्रम ठीक उसी प्रकार प्रारंभ होता है, जैसे पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन का इतिहास अरस्तू से।’’

रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा – ’’राजा राममोहन राय सम्पूर्ण संसार में विश्ववाद के प्रथम व्याख्याता थे।’’

मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने इन्हें ’राजा’ की उपाधि दी थी।

के. दामोदरन के अनुसार, ’’राम मोहन राय भारत में राष्ट्रवादी पत्रकारिता के जन्मदाता थे।’’

राममोहन राय के उपनाम – Raja Rammohan Rai ke Upnam

  • राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के राजनीतिक विचारक, चिंतक, समाज सुधारक तथा ब्रह्म समाज के संस्थापक के रूप में विख्यात हुए।
  • भारतीय पुनर्जागरण का पिता
  • भारत का प्रथम आधुनिक पुरूष
  • आधुनिक भारत के जनक व पिता
  • भारतीय राष्ट्रवाद के जनक
  • सुधार आन्दोलनों के प्रवर्तक
  • भारत के नवजागरण का अग्रदूत
  • आधुनिक भारत का पहला महान नेता
  • भारतीय पत्रकारिता का जनक
  • अतीत व भविष्य के मध्य सेतू
  • पूर्व व पश्चिम के मध्य सेतू
  • उन्हें ’बंगाली गद्य का पिता’ भी कहा जाता है।
  • उनको ‘Herald of New Age’ भी कहते हैं।

राजा राममोहन राय द्वारा स्थापित की गयी प्रमुख संस्थाएँ – Ram Mohan Roy ki Sansthayen

आत्मीय सभा की स्थापना किसने की – Atmiya Sabha ki Sthapna Kisne ki

  • 1814-1815 में हिन्दू धर्म के एकेश्वरवादी मत के प्रचार हेतु राजा राममोहन राय ने कलकत्ता में ’आत्मीय सभा’ की स्थापना की।
  • आत्मीय सभा की स्थापना उन्होंने ’द्वारिकानाथ टैगोर’ की सहायता से की।
  • यह दार्शनिक विचारों के व्यक्तियों की सभा है। इसमें बुद्धिजीवी वर्ग शामिल थे।
  • इसमें समाज में फैली कुरीतियों, आडम्बरों तथा भेदभाव पर बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा धार्मिक और सामाजिक चिंतन होता था।
  • इसने आत्मा की अमरता को प्रसारित किया गया।
  • जिसका उद्देश्य – ’ईश्वर एक है’
  • इसकी स्थापना का उद्देश्य – धार्मिक सत्य के प्रसार-प्रचार और धार्मिक विषयों की स्वतंत्र चर्चा को बढ़ावा देने के लिए एक संघ बनाया गया था।

हिंदू कॉलेज की स्थापना कब हुई – Hindu College ki Sthapna Kab Hui

  • राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे। उन्होंने अपने धन से एक अँग्रेजी स्कूल की स्थापना की। कलकत्ता में यह पहला स्कूल था जिसका व्यय पूर्णतः भारतीयों द्वारा वहन किया जाता था।
  • 20 जनवरी, 1817 को उन्होंने राधाकांत देव, रासामी दत्त, वैद्यनाथ मुखोपाध्याय, डेविड हेयर, सर एडवर्ड हाइड आदि शिक्षाविदों के साथ मिलकर कोलकाता में ’हिन्दू काॅलेज’ (1817) खोला।
  • 1855 ई. में यह काॅलेज दो भागों ’हिन्दू स्कूल व प्रेसीडेंसी स्कूल’ (वर्तमान में प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी) में विभक्त कर दिया गया।
  • हिन्दू स्कूल को ‘The Eton of East’ कहते हैं।

वेदांत कॉलेज की स्थापना किसने की – Vedant College ki Sthapna Kisne ki

1825 में उन्होंने उपनिषदों के एकेश्वरवादी सिद्धांतों के शिक्षण के लिए ’वेदांत काॅलेज’ की स्थापना की।

  • 1822 ई. में राजा राममोहन राय कोलकाता में एक एंग्लो-हिन्दू स्कूल खोला।
  • कलकत्ता में एकेश्वरवादी सम्प्रदाय के ईसाई मिशनरियों से सम्पर्क के बाद उन्होंने 1823 ई. में कलकत्ता में ’यूनीटेरियन कमेटी’ विलयम एडम की सहायता से की स्थापित की।

ब्रह्म समाज – Brahma Samaj

राजा राममोहन राय प्रथम भारतीय थे जिन्होंने सबसे पहले भारतीय समाज में व्याप्त मध्ययुगीन बुराईयों के विरोध में आंदोलन चलाया। राजा राममोहन राय वस्तुतः प्रजातंत्रवादी और मानवतावादी थे, उनके नवीन विचारों के कारण ही

ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की – Brahm Samaj Ki Sthapna Kisne Ki

19 वीं शताब्दी के भारत में पुनर्जागरण का जन्म हुआ। भारत में धर्म व समाज सुधार कार्य को प्रोत्साहित करने के लिए राजा राममोहन राय ने 20 अगस्त 1828 ई. में बंगाल में ’ब्रह्म सभा’ नामक धार्मिक संस्था स्थापित की जो ’ब्रह्म समाज’ कहलाया। ब्रह्म समाज के पहले मंत्री ताराचन्द्र चक्रवर्ती थे।

ब्रह्म समाज के उद्देश्य – Brahmo Samaj Ke Uddeshy

  1. हिंदू समाज की बुराइयों को दूर करना।
  2. ईसाई धर्म के भारत में बढ़ते प्रभाव को रोकना।
  3. सभी धर्मों में आपसी एकता स्थापित करना।

ब्रह्म समाज के सिद्धान्त – Brahma Samaj Ke Siddhant

  • ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वगुण सम्पन्न है।
  • ईश्वर कभी भी कोई शरीर धारण नहीं करता।
  • ईश्वर की प्रार्थना का अधिकार सभी जाति और वर्ग के लोगों को है। ईश्वर की पूजा के लिए मंदिर, मस्जिद और बाहरी आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं है।
  • सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना ईश्वर अवश्य सुनता है।
  • किसी भी धर्म-ग्रन्थ को दैवी मानने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कोई भी धर्म ग्रंथ ऐसा नहीं है जिसमें त्रुटियाँ न हो।
  • आत्मा अजर और अमर है।
  • मानसिक ज्योति और विशाल प्रकृति ही ईश्वर संबंधी ज्ञान प्राप्ति के साधन है।
  • मोक्ष प्राप्ति के लिए पाप का त्याग और पाप का प्रायश्चित आवश्यक है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पङता है।
  • सभी धर्मों और धर्म ग्रंथों के प्रति आदर की भावना रखनी चाहिए।

ब्रह्म समाज का विस्तार – Brahmo Samaj Ka Vistar

ब्रह्मसमाज की शुष्क बौद्धिकता, जिसमें भावनाओं का अभाव था, उच्च वर्ग के शिक्षितों को ही आकर्षित करने की क्षमता रखती थी, मध्यमवर्गीय लोगों पर इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं पङा।

राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज की गतिविधियों का संचालन कुछ समय तक महर्षि द्वारिकानाथ टैगोर और पंडित रामचंद्र विद्या वागीश के हाथों में रहा। महर्षि द्वारिका नाथ के बाद उनके पुत्र देवेन्द्रनाथ टैगोर (1817-1905) के नेतृत्व में ब्रह्म समाज की गतिविधियां जारी रहीं। ब्रह्म समाज में शामिल होने से पहले देवेन्द्रनाथ ने कलकत्ता में जोरासांकी में ’तत्वरंजिनी सभा’ की स्थापना की थी। कालांतर में तत्वरंजिनी ही ’तत्वबोधिनी सभा’ के रूप मे अस्तित्व में आई। इनके द्वारा 1840 में स्थापित ’तत्वबोधिनी स्कूल’ में विद्वान अक्षय कुमार को अध्यापक नियुक्त किया गया। इस स्कूल के अन्य सदस्यों में शामिल थे – राजेन्द्र लाल मित्र, पं. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, ताराचंद्र चक्रवर्ती तथा प्यारे चंद्र मित्र आदि।

देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 21 दिसम्बर, 1843 को ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की और राजा राममोहन राय के विचारों और धार्मिक लक्ष्य का पूरे उत्साह से प्रचार-प्रसार किया। देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ’ब्रह्म धर्म’ नामक धार्मिक पुस्तिका का संकलन तथा पूजा के ’ब्रह्म स्वरूप ब्राह्पोसना’ की शुरूआत करवायी। देवेन्द्रनाथ टैगोर ने 1857 के केशवचन्द्र सेन को ब्रह्म समाज की सदस्यता प्रदान करते हुए समाज का आचार्य नियुक्त किया। आचार्य केशव ब्रह्म समाज के पूर्णकालिक सदस्य बने इनके उदारवादी विचारों ने ब्रह्म समाज की लोकप्रियता और बढ़ा दिया, देखते ही देखते समाज की शाखाओं का विस्तार बंगाल से बाहर उत्तर प्रदेश, पंजाब और मद्रास में हुआ।

कालांतर में आचार्य केशव के उदारवादी विचारों के कारण ही समाज में फूट पङ गई, 1865 में  देवेन्द्रनाथ टैगोर ने केशवचन्द्र सेन को ब्रह्म समाज के आचार्य पद से मुक्त कर दिया। ब्रह्म समाज में प्रथम विभाजन से पूर्व आचार्य केशव ने ’संगत सभा’ की स्थापना आध्यात्मिक तथा सामाजिक समस्याओं पर विचार के लिए किया। 1861 में केशव ने ’इण्डियन मिरर’ नामक अंग्रेजी के प्रथम भारतीय दैनिक का संपादन किया। आचार्य केशव के प्रयत्नों से ब्रह्मसमाज को ’अखिल भारतीय आंदोलन’ का स्वरूप प्राप्त हुआ। आचार्य केशव के प्रयासों से ही मद्रास में ’वेद समाज’ तथा महाराष्ट्र में ’प्रार्थना समाज’ की स्थापना हुई।

ब्रह्म समाज का विभाजन – Brahma Samaj Ka Vibhajan

ब्रह्म समाज का प्रथम विभाजन – Brahma Samaj Ka Pratham Vibhajan

  • 1866 में ब्रह्म समाज में पहला विभाजन हुआ – ’आदि ब्रह्म समाज’ और ’भारतीय ब्रह्म समाज’ में।
  • केशवचंद्र सेन ने अपने एक ’भारतीय ब्रह्म समाज’ की स्थापना की।
  • ’भारतीय ब्रह्म समाज’ का नारा था कि ’ब्रह्मवाद ही हिन्दूवाद’ है।
  • जो पहले ’ब्रह्म समाज’ (1828) था, वह ’आदि ब्रह्म समाज’ कहलाया।
  • इस आदि ब्रह्म समाज का 1911 ई. में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा नेतृत्व स्वीकार किया गया।

ब्रह्म समाज का द्वितीय विभाजन – Brahma Samaj ka Dwitiya Vibhajan

1872 ई. में आचार्य केशवचन्द्र सेन ने सरकार को ’ब्रह्म विवाह अधिनियम’ (1872) को कानूनी दर्जा दिलवाने हेतु तैयार कर लिया। इस अधिनियम में बालिका की विवाह की न्यूनतम आयु 14 वर्ष निश्चित थी। आचार्य केशवचन्द्र सेन ने पश्चिमी शिक्षा के प्रसार स्त्रियों के उद्धार, स्त्री शिक्षा आदि सामाजिक कार्यों के लिए ’इण्डियन रिफार्म एसोसिएशन’ की स्थापना की। ब्रह्म समाज में दूसरा विभाजन 1878 में आचार्य केशव चंद्र सेन के कारण हुआ। इसका विभाजन दो भागों में हुआ है – भारतीय ब्रह्म समाज एवं साधारण ब्रह्म समाज। आचार्य केशव ने ’ब्रह्म विवाह अधिनियम’ (1872) का उल्लंघन करते हुए 1878 में अपनी अल्पायु पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से कर दिया ,जो ब्रह्म समाज के द्वितीय विघटन का कारण बना।

1878 में ‘भारतीय ब्रह्म समाज’ से अलग होकर आनंद मोहन बोस, शिवनाथ शास्त्री और उमेश चंद्र दत्ता (उदारवादियों) द्वारा ’साधारण ब्रह्म समाज’ की स्थापना की गई। जिनका उद्देश्य था – जाति प्रथा, मूर्ति पूजा का विरोध, नारी मुक्ति का समर्थन आदि। आनन्द मोहन बोस इसके प्रथम अध्यक्ष थे। ’साधारण ब्रह्म समाज’ की स्थापना आनन्द मोहन बोस द्वारा बनाये गये ढांचे और सिद्धान्त पर हुआ था। साधारण ब्रह्म समाज के अग्रणी सदस्यों में शामिल थे – शिवनाथ शास्त्री, विपिन चन्द्रपाल, द्वारिकानाथ गांगुली और आनन्द मोहन बोस

जन सामान्य के कल्याण, नारी शिक्षा, अकाल राहत कोष, अनाथालयों आदि की स्थापना की दिशा में साधारण ब्रह्म समाज प्रयासरत था। जनसाधारण को शिक्षित करने हेतु साधारण ब्रह्म समाज ने तत्व कौमुदी, संजीवनी, नव्यभारत ब्रह्म जनमत, इण्डियन मैसेन्जर, मार्डन रिव्यू जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन किया।

राजा राममोहन राय की पत्रिकाएँ –  Raja Ram Mohan Roy ki Patrikaye

संवाद कौमुदी (1821) बांग्ला भाषा (भारतीय द्वारा संपादित प्रथम समाचार-पत्र)
मिरात-उल-अखबार (Mirat Ul Akhbar) (1822) फारसी भाषा (जो प्रथम फारसी अखबार था।)
समाचार चन्द्रिका हिन्दी भाषा
बुद्ध दर्पण (1822) साप्ताहिक समाचार-पत्र
ब्रह्मणीकल मैग्नीज अंग्रेजी भाषा
बंगदूत बांग्ला भाषा

राजा राममोहन राय की पुस्तकें – Raja Ram Mohan Roy Books

तुहफात-उल-मुवाहिदीन (एकेश्वरवादियों का उपहार) – फारसी पुस्तक (1803)
प्रीसेप्ट्स ऑफ़ जीसस – अंग्रेजी में अनुवाद (1820)
मंजार्तुल अदयान – फारसी भाषा की पुस्तक
केन और कंठ उपनिषद् – अंग्रेजी अनुवाद (1816)
वेदान्त सूत्र – बंगला भाषा में अनुवाद (1815)
ईशोपनिषद (1816)
कठोपनिषद (1817)
मुंडुकोपनिषद (1819)
बंगाली व्याकरण (1826)
ब्रह्मोपासना (1828)
ब्रह्मसंगीत (1829)
द यूनिवर्सल रीलिजन (1829)
गाइड टु पीस एण्ड हैप्पीनेस
धार्मिक सहनशीलता पर एक निबंध (1823)
ईसाई जनता के नाम अंतिम अपील (1823)
ईसा के नीति वचन-शांति और खुशहाली (1820)
ईसाई धर्म नैतिकता में दृढ़ विश्वास का दर्शन होता है।
हिन्दू उत्तराधिकार नियम (1822) – हिन्दी में
यूरोपवासियों को भारत में बसाने के संबंध में विचार
भारत की न्यायिक एवं राजस्व व्यवस्था आदि पर प्रश्नोत्तर
प्रज्ञा का चांद
वेद मन्दिर
महिलाओं को उत्तराधिकार माना।

History of Raja Ram Mohan Roy

  • राजा राममोहन राय ने सामाजिक सुधार की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने हिंदू समाज में उस समय फैली अनेक कुरीतियों यथा – सती प्रथा, नागरिकों की दुर्दशा, शिशु हत्या, विधवाओं का उत्पीङन, अशिक्षा आदि के विषय में जन-जागृति उत्पन्न कर समाज को इन विकृतियों से मुक्त होने का सन्देश दिया।
  • उन्होंने बाल विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा, छुआछूत, जाति प्रथा की जटिलता, कन्या वध आदि का विरोध कर नारियों के उत्थान का संदेश दिया। उन्होंने विधवा विवाह, अन्तर्जातीय विवाह, विधवाओं को सम्पत्ति में अधिकार दिलाने का समर्थन किया।
  • बांग्ला भाषा के विकास में भी उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने स्वयं एक बंग्ला व्याकरण का संकलन किया। उनके लेखन से बंगाल में एक सुंदर गद्यशैली का जन्म हुआ।
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ ही वे राजनीतिक स्वतंत्रता के भी हिमायती थे। उन्होंने आमूल परिवर्तन की जगह भारतीय प्रशासन में सुधार के लिए आंदोलन किया। ब्रिटिश संसद द्वारा भारतीय मामलों पर परामर्श किए जाने वाले वे प्रथम भारतीय थे।
  • उन्होंने उपनिषदों का बांग्ला में अनुवाद किया था।
  • उन्होंने वरिष्ठ सेवाओं के भारतीयकरण, कार्यपालिका को न्यायपालिका से अलग करने, जूरी द्वारा न्याय और भारतीयों व यूरोपियनों के बीच न्यायिक समानता की माँग की।
  • संस्कृति साहित्य के संबंध में राममोहन उपनिषदों के ’एकेश्वरवादी सिद्धांतों’ की पवित्रता से प्रभावित थे साथ ही हिंदू मूर्तिपूजा के प्रचलन के ठीक विपरीत थे।

यूरोप की यात्रा करने वाले वे प्रथम भारतीय

  • राजा राममोहन राय 1830 में मुगल सम्राट अकबर द्वितीय की पेंशन बढ़वाने हेतु ब्रिटिश क्राउन से निवेदन करने हेतु इंग्लैण्ड में ब्रिटिश सम्राट विलियम चतुर्थ के दरबार में गये थे।
  • वे यहाँ अकबर द्वितीय के दूत बनकर गये थे, इसलिए उन्हें अकबर द्वितीय ने ’राजा’ की उपाधि दी थी।
  • यूरोप की यात्रा करने वाले वे प्रथम भारतीय थे।

राममोहन राय की मृत्यु कब हुई – Raja Ram Mohan Roy Death

  • राजा राममोहन राय का देहान्त 27 सितम्बर 1833 ई. मेें ब्रिस्टल (इंग्लैण्ड) में हो गया। यात्रा के मध्य मेनिनजाईटिस हो जाने के कारण यहाँ ब्रिटेन में ही उनका अप्रत्याशित निधन हो गया था।
  • उन्हें सर्वप्रथम स्टेपलेटन (इंग्लैण्ड) में दफनाया गया था,
  • लेकिन 1843 ई. में उन्हें ब्रिस्टल में नवनिर्मित आर्मोस वेल कब्रिस्तान में दफनाया गया था।
  • वहाँ आज भी उनकी स्मारक बनी हुई है, जिसका हरिकेला नाटक उल्लेखित है।
  • ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में ग्रीन काॅलेज में उनकी मूर्ति स्थापित की गई है।

मैकनिकोल के अनुसार, ’’राजा राममोहन राय ने जो ज्योति जलाई उसने भारतीय जीवन के अंधकार को नष्ट कर दिया।’’

राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Samajik Vichar

(1) परंपरावाद का विरोध

  • राजा राममोहन राय ने परंपरावाद का विरोध किया। उनका विचार था कि सामाजिक जीवन के अंतर्गत किसी स्थिति को न तो इस कारण से श्रेष्ठ समझा जा सकता है कि वह लंबे समय से चली आ रही है और न ही इस कारण से श्रेष्ठ समझा जाना चाहिए कि पश्चिमी देश में ऐसा होता है। हमें अपने देश के अतीत या पश्चिमी किसी का भी अंधानुकरण नहीं करना चाहिए। सामाजिक जीवन में हमें आज की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विवेकसंगत मार्ग को अपनाया जाना चाहिए।

(2) सती प्रथा का अंत किसने किया – Sati Pratha Ka Ant Kisne Kiya

  • सामाजिक दृष्टि से राजा राममोहन राय का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान सती प्रथा का विरोध करना था।
  • सती प्रथा विरोध की प्रेरणा उनको 1811 में उनके भाई जगमोहन की मृत्यु होने पर उनकी भाभी के जबरदस्ती सती होने से मिली।
  • सती विरोधी संगठन के रूप में आत्मीय सभा का गठन किया गया।
  • राजा राममोहन राय के प्रयासों के कारण ही गवर्नर जनरल लाॅर्ड विलियम बैंटिक ने 4 दिसम्बर 1829 ई. (धारा 17 में) में ’सती प्रथा’ को गैर-कानूनी एवं दंडनीय घोषित किया।
  • रूढ़िवादी हिन्दूओं ने राजा राधाकांत देब के नेतृत्व में इसके विरोध में ’धर्म सभा’ नामक एक प्रतिद्वंद्वी संघ का गठन किया, जिसने राजा राममोहन राय के कार्यों का विरोध एवं उपहास किया।
  • सती-प्रथा पर सर्वप्रथम रोक ’बंगाल’ में लगायी गई। अगले ही वर्ष बंबई में भी रोक लगा दी गई और साथ ही मद्रास में भी रोक लगा दी गई।
  • इस प्रकार ’सती-प्रथा’ का अंत हो गया।

(3) बहुविवाह का विरोध

  • राजा राममोहन राय ने बहुविवाह की प्रथा का भी विरोध किया। इसने स्त्रियों की दशा को बहुत दयनीय बना दिया था। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार तो था नहीं, स्त्रियां प्रायः शादी के बाद पति पर ही उसकी इच्छाओं के अनुकूल रहने के लिए बाध्य थीं। राजा राममोहन राय ने बहुविवाह के विरुद्ध आवाज उठाई जिससे धीरे-धीरे इस प्रकार का वातावरण तैयार हुआ जिसमें बहुविवाह हतोत्साहित किए गए।

(4) विधवा विवाह का समर्थन

  • सती प्रथा की समाप्ति पर विधवाओं की समस्याएँ सामने आईं। राजा राममोहन राय ने देखा कि विधवाओं का पुनः विवाह करके उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है। अतः उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह की आवाज उठाई।

(5) बाल विवाह का विरोध

  • राजा राममोहन राय ने बाल विवाह का विरोध तथा अन्तर्जातीय विवाह की वकालत करके भी राजा राममोहन राय ने भारतीय नारियों की दशा सुधारने के लिए कार्य किया।

(6) स्त्री शिक्षा की वकालत

  • स्त्रियों में शिक्षा का अभाव होने के कारण ही स्त्रियों की ऐसी दीन दशा थी। राजा राममोहन राय ने लङकियों तथा स्त्रियों को शिक्षा के प्रसार के लिए पर्याप्त दृढ़ प्रयास किए।

(7) स्त्रियों के पैतृक संपत्ति

  • स्त्रियों के पैतृक संपत्ति के अधिकार के समर्थन में आवाज उठाने वाले राजा राममोहन राय पहले व्यक्ति थे। यद्यपि राजा राममोहन राय सती प्रथा की समाप्ति कराने के ठोस कार्य ही कर पाए थे तथापि उन्होंने स्त्रियों की दशा में सुधार लाने के लिए अन्य प्रयत्न करके इस प्रकार के सुधारों को आगे ठोस रूप लेने के लिए उपयुक्त वातावरण एवं मार्ग तैयार किया।

(8) संकीर्ण जातीय, सांप्रदायिक भावनाओं का विरोध

  • राय आधुनिक भारत में पहले व्यक्ति थे जिन्होंने एहसास किया कि समाज में विघटनकारी तत्त्व विद्यमान थे और वे तत्त्व लोगों में अर्थात् भिन्न-भिन्न धर्मों के अनुयायियों और जातियों में संकीर्णता, धर्मांधता, जातीय श्रेष्ठता तथा ऊँच-नीच की भावनाओं के कारण विद्यमान थे। अतः उन्होंने धार्मिक सहनशीलता एवं धर्मनिरपेक्ष विचारों पर जोर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह पर भी बल दिया।

राममोहन राय के राजनीतिक विचार – Ram Mohan Roy ke Rajnitik Vichar

(1) व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता का प्रतिपादन

  • राजा राममोहन राय व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्राकृतिक अधिकारों के प्रबल समर्थक थे। वाल्टेयर, माण्टेस्क्यू और रूसो की भांति राजा राममोहन राय को स्वतंत्रता के आदर्श से उत्कृष्ट प्रेम था। वे प्रत्येक स्थिति और प्रत्येक मूल्य पर व्यक्ति की गरिमा की रक्षा के पोषक थे और स्वतंत्रता, अधिकार, अवसर, न्याय आदि राजनीतिक वरदानों को सर्वोच्च मानते थे तथा राज्य को ऐसी दिशा में प्रेरित करने की आकांक्षा रखते थे कि व्यक्ति को ये वरदान सुलभ हो सकें।

(2) प्रेस की स्वतन्त्रता

  • राममोहन राय प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रारंभिक समर्थकों में थे। राय का मत था कि ’’विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जिस समाज को प्राप्त नहीं होती, वह समाज किसी भी प्रकार उन्नति के निश्चित पथ की ओर अग्रसर नहीं हो सकता।’’ राय स्वस्थ एवं प्रबुद्ध जनमत निर्माण में प्रेस की भूमिका को स्वीकारते थे और इस प्रकार वे प्रेस को शासित व शासक के बीच एक सम्पर्क सूत्र मानते थे।

(3) निरंकुश शासन का विरोध

  • राजा राममोहन राय किसी भी प्रकार के निरंकुश व दमनकारी शासन के विरोधी थे। इस दृष्टि से वे अतिशक्तिशाली राजतंत्र, अधिनायक-तंत्र तथा अनुदार कुलीन तंत्र के विरोधी थे, क्योंकि ये सभी शासन आम नागरिक अथवा बहुसंख्यक व्यक्तियों के दमनकारी व कष्टकारी सिद्ध होते हैं।

(4) प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार संबंधी विचार

राममोहन राय ने भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था के सुधार हेतु अनेक सुझाव दिए –

  1. जमींदारी व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए।
  2. लगान में वृद्धि के स्थान पर विलासिता के सामान पर कर वृद्धि की जानी चाहिए।
  3. सरकार को अपने प्रशासनिक व्यय में कमी करनी चाहिए।
  4. प्रमुख एवं उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर भारतीयों की नियुक्ति की जानी चाहिए।
  5. राय स्थायी सेना की संख्या सीमित करने और आरक्षित लोक सेना बनाने के पक्ष में थे।

(5) सार्वभौमिक धर्म, मानववाद तथा अन्तर्राष्ट्रीयवाद का समर्थन

  • राय का मत था कि मानव मात्र में एक आध्यात्मिक एकता मौजूद है। राय ने मनुष्यों के बीच जाति, धर्म, भाषा, राष्ट्र आदि के विभेदों की उपेक्षा करते हुए उनके बीच सहिष्णुता, सहयोग, एकता एवं बंधुत्व के महत्त्व को प्रतिपादित किया।

राजा राममोहन राय के आर्थिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Aarthik Vichar

(1) काश्तकारों के शोषण को रोकने का सुझाव

  • राय का मत था कि सरकार को काश्तकारों के साथ भी भूमि का स्थायी बंदीबस्त स्वीकार करना चाहिए। जमींदारों को लगान वसूल करने का अधिकार होना चाहिए, किन्तु उसे काश्तकारों पर लगान की मनमानी राशि लगाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। स्वयं सरकार को भी जमींदारों पर लगान की राशि घटानी चाहिए, क्योंकि इस स्थिति में ही जमींदारों द्वारा काश्तकारों के शोषण को रोका जा सकता है।

(2) व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार का समर्थन

  • राजा राममोहन राय ने अपने लेख परंपरागत संपत्ति पर हिंदुओं के अधिकार में हिंदुओं को संपत्ति के उत्तराधिकार तथा संविदा करने के परंपरागत अधिकार से सरकार द्वारा वंचित नहीं किए जाने का आग्रह किया था। वे इस प्रकार संपत्ति के अधिकार को अक्षुण्ण बनाए रखने के पक्ष में थे।

(3) संपत्ति पर स्त्री उत्तराधिकारी का समर्थन

  • राजा राममोहन राय हिंदू स्त्रियों को संपत्ति पर उत्तराधिकारी का अधिकार देने के पक्ष में थे। उत्तराधिकार की आधुनिक विधि से स्त्रियों के साथ जो अन्याय होता था, उसकी उन्होंने कटु आलोचना की।

(4) ब्रिटिश नागरिकों का भारत में आवास

  • राजा राममोहन राय देश से प्रतिवर्ष करोङों की धनराशि के निर्यात को रोकना चाहते थे। इस दृष्टि से उन्होंने उच्च ज्ञान तथा उच्च चरित्र वाले समृद्ध विदेशी व्यापारियों को, जो भारत में ही संपत्ति अर्जन करते हैं, भारत में ही बसाने का विचार प्रस्तुत किया। इससे एक तरफ भारत में औद्योगिक चेतना का विकास होगा, भारत की कृषि व्यवस्था में नवीन उपकरणों का प्रयोग होगा और उत्पादन में वृद्धि होगी।

(5) निर्बाध व्यापार

  • राजा राममोहन राय ने निर्बाध व्यापार के विचार का समर्थन किया। उनका कहना था कि अंग्रेजों द्वारा अपने देश में ले जाए जाने वाले माल पर से कर हटा लेना चाहिए ताकि विदेशी बाजार में भारतीय माल की अच्छी खपत हो। वे व्यापार की एकाधिकारवाद प्रणाली को सही विकल्प नहीं मानते थे।

(6) शोषण का विरोध

  • राजा राममोहन राय संपत्ति से उत्पन्न होने वाले शोषण के दुष्परिणामों से परिचित थे। वे बंगाल में शुरू किए गए स्थायी बंदोबस्त से उत्पन्न आर्थिक बुराइयों से परिचित थे। इससे काश्तकारों का शोषण हो रहा था। वे किसानों को जमींदारी और रैयतवाङी दोनों ही प्रथाओं के शोषण से बचाना चाहते थे। अतः उन्होंने शोषण का विरोध किया।

राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार – Raja Ram Mohan Roy ke Dharmik Vichar

(1) एकेश्वरवादी

  • राजा राममोहन राय समस्त मनुष्यों को एक ही ईश्वर की संतान मानते थे। उनका मत था कि संपूर्ण सृष्टि में एक ही आध्यात्मिक सत्ता व्याप्त है, जो अपनी प्रकृति से सत्य, सर्वोच्च, निराकार व चैतन्य है और सबके लिए मंगलकारी है।

(2) धार्मिक सहिष्णुता

  • राजा राममोहन राय धार्मिक सहिष्णुता को सर्वाधिक महत्त्व देते थे। उन्होंने संप्रदायवाद का विरोध किया तथा धर्म को आडम्बरों से मुक्त करके लौकिक बनाने का प्रयास किया।

(3) सार्वभौमिक धर्म एवं नैतिकता पर बल

  • राजा राममोहन राय ने अपनी एकेश्वरवाद धारणा के आधार पर संपूर्ण मानव जाति के लिए एक सार्वभौमिक धर्म की धारणा प्रस्तुत करने की चेष्टा की। उनका मत था कि संपूर्ण मानव जाति का ईश्वर एक ही है, अतः सभी के लिए सार्वलौकिक नैतिक विषय भी उपलब्ध हैं। सत्य, अहिंसा, दान, अस्तेय आदि सद्गुण सार्वलौकिक नैतिकता के अंग हैं और इनका पालन सभी धर्मों के अनुयायियों द्वारा किया जा सकता है।

(4) धर्म के प्रति बौद्धिक व तार्किक दृष्टिकोण

  • राजा राममोहन राय ने धर्म को रहस्यात्मक एवं पारलौकिक अवधारणा नहीं माना। उन्होंने धर्म को एक इहिलौकिक आवश्यकता के रूप में स्वीकारा है और इसकी सामाजिक उपयोगिता एवं महत्त्व पर विचार किया है। उनका मत था कि अतीत में धार्मिक सिद्धांतों की उत्पत्ति किसी समाज में प्रचलित संबंधों की रक्षा के लिए हुई थी। धार्मिक सिद्धांतों ने व्यक्ति के संपत्ति के अधिकार तथा व्यक्ति के आचरण को नियमित एवं संतुलित किया है।

(5) परंपरागत हिंदू धर्म में सुधार पर बल

  • राजा राममोहन राय हिंदू समुदाय के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक पतन का एक मुख्य कारण हिंदू धर्म में उत्पन्न दोषों एवं कमियों को मानते थे। उन्होंने हिन्दू समाज में व्याप्त विकृतियों, जैसे- मूर्ति-पूजा, बलि-प्रथा, सती-प्रथा, अवतारवाद आदि को दूर करने का प्रयास किया।

राजा राममोहन के शिक्षा पर विचार – raja ram mohan roy ke shiksha par vichar

(1) सार्वजनिक एवं निःशुल्क शिक्षा

  • राजा राममोहन राय ने राष्ट्रीय हित में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली पर बल दिया। उनका मत था कि प्राथमिक शिक्षा सभी वर्गों एवं जातियों के बच्चों को अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राप्त होनी चाहिए। वे बालिकाओं की शिक्षा के कट्टर समर्थक थे।

(2) भारतीय संस्कृति एवं दर्शन के महत्त्व का अध्ययन

  • राजा राममोहन राय की भारतीय संस्कृति एवं दर्शन में गहरी आस्था थी। वे व्यक्ति एवं राष्ट्र के चारित्रिक उत्थान के लिए तथा धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में सुधारों को लागू करने के लिए एकेश्वरवादी दर्शन की शिक्षा पर जोर देते थे।

(3) पाश्चात्य शिक्षा पद्धति एवं पाठ्यक्रम में पूर्ण विश्वास

  • राजा राममोहन राय मंदिरों से जुङी पाठशाला प्रणाली अथवा गुरुकुल प्रणाली के विरोधी थे और इसके स्थान पर स्कूली प्रणाली पर आधारित पाश्चात्य पद्धति के प्रशंसक एवं समर्थक थे। वे यूरोप की तरह भारत में भी पाठ्यक्रम में सामाजिक विज्ञानों, प्राकृतिक विज्ञानों व गणित आदि को सम्मिलित करना चाहते थे। इस प्रकार राय अंग्रेजी भाषा तथा पाश्चात्य शिक्षा पद्धति को भारत के विकास की एक अनिवार्य शर्त मानते थे।

(4) पूर्व और पश्चिम के सर्वोत्तम सामंजस्य के पक्षधर

  • राममोहन राय पूर्व और पश्चिम दोनों के सर्वोत्तम सामंजस्य के पक्षधर थे। एन.सी. गांगुली के शब्दों में, ’’पूर्वी संस्कृति तथा पश्चिमी विज्ञान दोनों ने उनके लिए वह समग्रता प्रदान की जिसमें ज्ञान की संपूर्णता दिखाई दी।’’ अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने 1822 में एक ’इंग्लिश हाई स्कूल’ स्थापित किया और उसकी प्रेरणा से ही 1822-23 में ’हिन्दू काॅलेज’ की स्थापना हुई।

(5) व्यावहारिक और रचनात्मक विचार

  • राजा राममोहन राय के शिक्षा संबंधी विचार व्यावहारिक तथा रचनात्मक थे। उन्होंने इस बात को समझ लिया था कि पाश्चात्य शिक्षा पद्धति को अपनाने पर ही जागरण और राष्ट्रीय एकता का प्रसार होगा। उनका विश्वास था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो जन-जागरण के लिए व्यावहारिक और उपयोगी हो तथा वैज्ञानिक चिंतन से ही देश आगे बढ़ सकता है।

राजा राममोहन राय से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रश्न – Raja Ram Mohan Roy Question and Answer

1. राजा राममोहन राय का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर – 22 मई 1772 ई. को बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा नगर

2. राजा राममोहन राय के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर – रमाकांत राय

3. राजा राममोहन राय की माता का नाम क्या था ?
उत्तर – तारिणी देवी

4. राजा राममोहन राय के पिता को राय की उपाधि किसके द्वारा मिली थी –
उत्तर – बंगाल के नवाब के द्वारा

5. राजा राममोहन राय किन-किन भाषाओं के जानकार थे ?
उत्तर – अरबी, अंग्रेजी, ग्रीक, फ्रेंच, जर्मन, फारसी, संस्कृत, लैटिन, हिबु्र।

6. राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म पर किस पुस्तक का प्रकाशन किया था ?
उत्तर – राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म का स्वतः अध्ययन कर 1820 ई. में ईसाई धर्म पर ’प्रीसेप्ट्स ऑफ़ जीसस (अंग्रेजी पुस्तक) नामक पुस्तक लिखी।

7. राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी कब से कब की थी –
उत्तर – 1803 से 1814 तक

8. ईस्ट इण्डिया कंपनी में नौकरी करते समय राजा राममोहन राय की मुलाकात किससे हुई ?
उत्तर – राजा राममोहन राय ने वहाँ दिग्बी महोदय के साथ दीवान के रूप में काम कया। दिग्बी महोदय ने उन्हें अंग्रेजी सिखाई और उनका परिचय उदारवादी और युक्तियुक्त विचारधारा से करवाया।

9. ’’राजा राममोहन राय ने ही भारत में आधुनिक युग का सूत्रपात किया है।’’ यह कथन किसका है ?
उत्तर – रवीन्द्रनाथ टैगोर

10. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने किसको ’आधुनिक भारत का सूत्रधार’ कहा है ?
उत्तर – राजा राममोहन राय को

11. ’भारतीय पत्रकारिता का जनक’ किसे कहा जाता है ?
उत्तर – राजा राममोहन राय को

12. भारत में नवजागरण के अग्रदूत माने जाते है –
उत्तर – राजा राममोहन राय

13. किसे आधुनिक भारत का पिता कहा जाता है ?
उत्तर – राजा राममोहन राय को

14. भारतीय पुनर्जागरण के पिता कहलाते है ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

15. सुभाष चन्द्र बोस ने राजा राममोहन राय को कौनसी उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर – युगदूत

16. किसने राममोहन राय को ’विश्ववाद की प्रथम व्याख्याता’ कहा है ?
उत्तर – रामधारी सिंह दिनकर

17. राजा राममोहन राय ने आत्मीय सभा की स्थापना कब की ?
उत्तर – 1814-1815 ई. में

18. आत्मीय सभा की स्थापना उन्होंने किसकी सहायता से की ?
उत्तर – द्वारिकानाथ टैगोर

19. राजा राममोहन राय ने कोलकाता में हिंदू काॅलेज की स्थापना कब की ?
उत्तर – 20 जनवरी, 1817

20. राजा राममोहन राय ने कोलकाता में हिंदू काॅलेज की स्थापना किसकी सहायता से की ?
उत्तर – राधाकांत देव, रासामी दत्त, वैद्यनाथ मुखोपाध्याय, डेविड हेयर, सर एडवर्ड हाइड की सहायता से।

21. सन् 1825 में राजा राममोहन राय ने किसकी स्थापना की ?
उत्तर – वेदांत काॅलेज

22. कलकत्ता ’यूनीटेरियन कमेटी’ का गठन किसके द्वारा किया गया ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

23. आधुनिक भारत में हिंदू धर्म के सुधार का पहला आंदोलन कौन-सा था ?
उत्तर – ब्रह्म समाज

24. किसने ब्रह्म समाज की स्थापना की ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

25. ब्रह्म समाज की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर – 20 अगस्त 1828 को राजा राममोहन राय ने

26. राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज की गतिविधियों का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर – महर्षि द्वारिकानाथ टैगोर और पंडित रामचंद्र विद्या वागीश

27. देवेन्द्रनाथ ने कब ब्रह्म समाज की सदस्यता ग्रहण की ?
उत्तर – 21 दिसम्बर, 1843

28. ब्रह्म समाज का पहला विभाजन कब हुआ था ?
उत्तर – 1866 में

29. 1866 में ब्रह्म समाज का विभाजन कितने भागों में हुआ और उनका नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर – 1866 में ब्रह्म समाज का विभाजन दो भागों में हुआ –
(1) आदि ब्रह्म समाज – देवेन्द्रनाथ टैगोर
(2) भारतीय ब्रह्म समाज – केशवचन्द्र सेन

30. ब्रह्म समाज का का द्वितीय विभाजन किसके कारण हुआ ?
उत्तर – ब्रह्म समाज में दूसरा विभाजन 1878 में आचार्य केशव चंद्र सेन के कारण हुआ। आचार्य केशव ने ’ब्रह्म विवाह अधिनियम’ (1872) का उल्लंघन करते हुए 1878 ई. में अपनी अल्पायु पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से कर दिया, जो समाज के द्वितीय विघटन का कारण बना।

31. ब्रह्म समाज का द्वितीय विभाजन कब और किसके नेतृत्व में हुआ ?
उत्तर – दूसरा विभाजन 1878 में आचार्य केशव चंद्र सेन के कारण हुआ। इसका विभाजन दो भागों में हुआ है – भारतीय ब्रह्म समाज एवं साधारण ब्रह्म समाज।

32. तत्वबोधिनी सभा की स्थापना किसने की ?
उत्तर – देवेन्द्रनाथ ने कलकत्ता के जोरासांकी में ’तत्वबोधिनी सभा’ की स्थापना की।

33. किसके प्रयत्नों से ब्रह्मसमाज को ’अखिल भारतीय आंदोलन’ का स्वरूप प्राप्त हुआ ?
उत्तर – आचार्य केशवचन्द्र सेन के प्रयत्नों से

34. किसने सरकार को ’ब्रह्म विवाह अधिनियम’ को कानूनी दर्जा दिलवाने हेतु तैयार कर लिया ?
उत्तर – आचार्य केशवचन्द्र सेन ने 1872 ई. में

35. बांग्ला भाषा में भारतीय द्वारा संपादित प्रथम समाचार-पत्र कौन-सा था ?
उत्तर – संवाद कौमुदी (1821)

36. राजा राममोहन राय ने बांग्ला भाषा में कौन-सी अखबार का प्रकाशन किया ?
उत्तर – संवाद कौमुदी

37. राजा राममोहन राय ने 1821 में संवाद कौमुदी समाचार पत्र किस भाषा में निकाला –
उत्तर – बांग्ला भाषा में

38. ’मिरात-उल-अखबार’ फारसी भाषा में राममोहन राय ने कब निकाला –
उत्तर – 1822 में

39. राजा राममोहन राय की किस पुस्तक को ’एकेश्वरवादियों का उपहार’ कहा जाता है –
उत्तर – तूहफात उल मुवाहिदीन – फारसी पुस्तक (1803)

40. राजा राममोहन राय ने अंग्रेजी भाषा में कौनसी मैग्नीज का प्रकाशन किया ?
उत्तर – ब्रह्मणीकल मैग्नीज

41. अकबर द्वितीय ने राजा राममोहन राय को अपना दूत बना कर कहाँ भेजा ?
उत्तर – 1830 में इंग्लैण्ड में ब्रिटिश सम्राट विलियम चतुर्थ के दरबार में

42. किसने राजा राममोहन राय को अपने पेंशन के मामले में इंग्लैण्ड भेजा ?
उत्तर – बादशाह अकबर द्वितीय ने

43. राजा राममोहन राय को ’राजा’ की उपाधि किसने दी –
उत्तर – बादशाह अकबर द्वितीय ने

44. यूरोप की यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय कौन थे ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

45. राजा राममोहन राय की मृत्यु कब और कहाँ हुई ?
उत्तर – 27 सितम्बर, 1833 ई. में ब्रिस्टल (इंग्लैण्ड)

46. राजा राममोहन राय की मूर्ति कहाँ स्थापित की गई ?
उत्तर – ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में ग्रीन काॅलेज में

47. किस धर्म सुधारक की मृत्यु भारत से बाहर हुई ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

48. किसके प्रयासों के कारण सती प्रथा पर रोक लगायी गई ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

49. 1829 में भारत के किस गवर्नर जनरल ने सती प्रथा निषेध कानून बनाया ?
उत्तर – लाॅर्ड विलियम बैंटिक

50. सती प्रथा का विरोध किस संगठन ने किया ?
उत्तर – सती प्रथा का विरोध राजा राधाकांत देब के नेतृत्व संगठित ’धर्म सभा’ नामक संगठन ने किया।

51. स्त्रियों के पैतृक संपत्ति के अधिकार के समर्थन में आवाज उठाने वाले पहले व्यक्ति कौन थे ?
उत्तर – राजा राममोहन राय

52. सती-प्रथा पर सर्वप्रथम रोक कहाँ लगायी गई ?
उत्तर – बंगाल में

53. ’’राम मोहन राय भारत में राष्ट्रवादी पत्रकारिता के जन्मदाता थे।’’ यह कथन किसका है ?
उत्तर – के. दामोदरन

READ THIS⇓⇓

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

सत्यशोधक समाज की पूरी जानकारी पढ़ें

औरंगजेब की पूरी जानकारी पढ़ें

गौतम बुद्ध की पूरी जानकारी पढ़ें

16 महाजनपदों की पूरी जानकारी

अभिलेख किसे कहते है

क़ुतुब मीनार की पूरी जानकारी 

ताज महल की पूरी जानकारी पढ़ें

चार्टर एक्ट 1833 की पूरी जानकारी

राजा राममोहन राय द्वारा ब्रह्म समाज की स्थापना कब की गई थी?

राजा राम मोहन राय ने अगस्त 1828 में ब्रह्म सभा की स्थापना की, जिसे बाद में 'ब्रह्म समाज' (ईश्वर का समाज) नाम दिया गया।

राजा राममोहन राय ने किस समाज की स्थापना की थी और उन्होंने भारतीय समाज के कौन कौन से सुधारों में योगदान दिया था?

महान समाज सुधारक और ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राम मोहन राय हिंदू समाज की कुरीतियों के घोर विरोधी होने के कारण 20 अगस्त 1828 को ” ब्रह्म समाज ” नामक एक नए प्रकार के समाज की स्थापना भी की थी। ब्रह्म समाज को सबसे पहला भारतीय सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन माना जाता था

ब्रह्म समाज का पहला विभाजन कब हुआ?

1866 ई. में ब्रहम समाज का विभाजन हो गया क्योकि केशवचंद्र सेन के विचार मूल ब्रहम समाज के विचारों की तुलना में अत्यधिक क्रांतिकारी व उग्र थे। वे जाति व रीति-रिवाजों के बंधन और धर्म-ग्रंथों के प्राधिकार से मुक्ति के पक्षधर थे ।

Toplist

नवीनतम लेख

टैग