जम्मू, कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल को राजस्थान हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने की सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सिफारिश की है।
इलाहबाद के मूल निवासी पंकज मित्तल राजस्थान हाईकोर्ट के अगले मुख्य न्यायाधीश होंगे। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जम्मू, कश्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल का तबादला कर राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सिफारिश की है।
न्यायाधीश पंकज मित्तल ने एक जनवरी 2021 को जम्मू, कस्मीर व लद्दाख हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। मुख्य न्यायाधीश एसएस शिन्दे के 31 जुलाई को रिटायर्ड होने के बाद से राजस्थान हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति नियुक्ति आदेश जारी करते है।
यह है प्रावधान
संविधान में अनुच्छेद 124 (2) में सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के बारे में प्रावधान है। इसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के परामर्श पर की जाती है। कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जज होते हैं। यही कॉलेजियम सुप्रीम कोर्ट के साथ राज्यों के हाईकोर्ट के न्यायधीशों की नियुक्ति की भी सिफारिश करता है। कॉलेजियम की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है. सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों से परामर्श लेकर सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश यानी चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का परामर्श इस नियुक्ति में अहम माना जाता है।
कानून मंत्रालय ने कहा कि उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्रीवास्तव एक अगस्त को मुख्य न्यायाधीश संभाजी शिवाजी शिंदे के सेवानिवृत्त होने के बाद दो अगस्त को पदभार ग्रहण करेंगे।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश 65 वर्ष जबकि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होते हैं।
न्यायमूर्ति शिंदे जून में राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किए गए थे।
बाद में एक ट्वीट में, कानून मंत्रालय ने अधिवक्ता राकेश मोहन पांडे और न्यायिक अधिकारी राधाकृष्णन अग्रवाल को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की।
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राजस्थान उच्च न्यायालय राजस्थान राज्य का उच्च न्यायालय है। इसकी स्थापना 29 अगस्त 1949 को राजस्थान उच्च न्यायालय अध्यादेश, 1949 के तहत की गई थी।[1]
कोर्ट की सीट जोधपुर में है।अदालत में जजों की स्वीकृत संख्या 50 है।
राजस्थान उच्च न्यायालय का दृश्य, उम्मेद पार्क में सरदार संग्रहालय और ऊपरी दाहिनी ओर 1960 में जोधपुर का किला है।
राजस्थान के एकीकरण से पहले, राज्यों की विभिन्न इकाइयों में पांच उच्च न्यायालय कार्यरत थे - जोधपुर, जयपुर और बीकानेर में, पूर्व राजस्थान और मत्स्य संघ के उच्च न्यायालय था, राजस्थान उच्च न्यायालय अध्यादेश, 1949 ने इन विभिन्न न्यायालयों को समाप्त कर दिया और पूरे राज्य के लिए एक ही उच्च न्यायालय का प्रावधान किया। राजस्थान का उच्च न्यायालय 1949 में जयपुर में स्थापित किया गया था, और 29 अगस्त 1949 को राजप्रमुख, महाराजा सवाई मान सिंह द्वारा उद्घाटन किया गया था, बाद में 1956 में राजस्थान के पूर्ण एकीकरण के बाद इसे सत्यनारायण राव समिति की सिफारिश के साथ जोधपुर में ।स्थानांतरित किया गया था।
पहले मुख्य न्यायाधीश कमलकांत वर्मा थे राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 51 की उप-धारा (2) के तहत 31 जनवरी 1977 को जयपुर में एक पीठ का गठन किया गया था जिसे 1958 में भंग कर दिया गया था। वर्तमान में न्यायाधीशों की स्वीकृत शक्ति 50 है और वास्तविक संख्या 34 है।
राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन, जयपुर[संपादित करें]
राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन, जयपुर राजस्थान उच्च न्यायालय की जयपुर पीठ में वकालत करने वाले अधिवक्ताओं की एक पंजीकृत संस्था है। निकाय हर साल प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से अपने पदाधिकारियों का चुनाव करता है।
3 मार्च 1989 को लायंस क्लब द्वारा प्रायोजित राजस्थान न्यायिक अधिकारी संघ ने उच्च न्यायालय की अनुमति से उच्च न्यायालय के लॉन के सामने मनु की मूर्ति स्थापित की थी।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की खंडपीठ ने निर्देश दिया कि मामले को 22 दिसंबर को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘इस अर्जी को उस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करें, जिसमें हममें से एक सदस्य (न्यायमूर्ति तलवंत सिंह) शामिल न हों। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश की सहमति पर निर्भर करेगा।’’
अदालत को अवगत कराया गया कि सेंगर आठ फरवरी को अपनी बेटी की शादी में शामिल होने के लिए दो महीने की अंतरिम जमानत मांग रहा है।
सेंगर के वकील ने कहा कि शादी की रस्में 18 जनवरी से शुरू होंगी।
उन्नाव बलात्कार मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली सेंगर की अपील पहले से ही उच्च न्यायालय में लंबित है।
भाजपा से निष्कासित नेता सेंगर ने अपनी अपील में निचली अदालत के 16 दिसंबर, 2019 के उस फैसले को रद्द करने की मांग की है, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया था। सेंगर ने 20 दिसंबर, 2019 के उस आदेश को रद्द करने की भी मांग की है, जिसमें उन्हें जीवन के अंतिम क्षण तक कारावास की सजा सुनाई गई थी।
सेंगर को 2017 में नाबालिग बच्ची का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार करने के लिए दोषी ठहराया गया था।
उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर मामले को उन्नाव से दिल्ली स्थानांतरित किया गया था और उसके बाद पांच अगस्त, 2019 को दिन-प्रतिदिन के आधार पर सुनवाई शुरू की गयी थी।